स्वामी विवेकानंद
इस वेब स्टोरी में हम आपको विवेकानंद के जीवन के बारे में कुछ डाटा शेयर करेंगे।
स्वामी विवेकानंद
भारत का ऐसा सनातनी जिसने पश्चिम को सनातन से परिचय कराकर वहाँ की निव हिला कर रख दिया।
स्वामी विवेकानंद
भुनेश्वरी देवी ने अपनी इष्ट देवता के आशीर्वाद से
12 जनवरी, 1863
को पूरब के सूरज को जन्म दिया
स्वामी विवेकानंद
अन्नप्रास संस्कार के दौरान उस सूरज का नाम
नरेन्द्रनाथ दत्त
रखा गया।
स्वामी विवेकानंद
नरेन्द्रनाथ को अपने गुरु
श्री रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट नवंबर, 1881
को अपने सखा के घर हुआ ।
स्वामी विवेकानंद
अपने गुरु से ज्ञान लेने के बाद भिक्षा मांग कर योगी का भेष धारण किया और
विदिशानन्द
नाम से एक केनई पहचान हुई।
स्वामी विवेकानंद
16 अगस्त, 1886
को गुरु रामकृष्ण परमहंस ने विदिशानन्द को अपना कार्य भर सौप कर महासमाधि में विलीन हो गए।
स्वामी विवेकानंद
गुरु के आशीर्वाद से उनके द्वारा दिए गए ज्ञान को पूरे भारत में बिखेरा और इसी दौरान उन्हे
विश्व धर्म सम्मेलन
में बारे में ज्ञात हुआ।
स्वामी विवेकानंद
अमेरिका में जाने के लिए लोगों से स्वामी विदिशनन्द ने चंदा इकट्ठा करने लगे।इसी दौरान मद्रास में उनकी मुलाकात
खेतड़ी के राजा अजित सिंह
से हुई।
स्वामी विवेकानंद
अजित सिंह उनके तेज से प्रभावित होकर उन्हे एक नया नाम दिया
विवेकानंद।
स्वामी विवेकानंद
राजा अजित सिंह ने ही स्वामी विवेकानंद को
अमेरिका जाने के लिए टिकेट के साथ सारा खर्चा
भी दिया।
स्वामी विवेकानंद
31 मई, 1893
को स्वामी विवेकानंद बंबई के बंदरगाह से अमेरिका ने लिए रवाना हुए।
स्वामी विवेकानंद
जापान, सिंगापूर और कनाडा होते हुए अमेरिका को पहुचे।
स्वामी विवेकानंद
विश्व धर्म-सम्मेलन में अभी समय होने के कारण विवेकानंद ने
अमेरिका में घूम-घूम कर वहाँ के लोगों को सनातन
से परिचय कराया।
स्वामी विवेकानंद
आखिर वो दिन आ ही गया। और विवेकानंद ने विश्व-धर्म सम्मेलन,
शिकागो में प्रथम व्याख्यान 11 सितंबर, 1893
को दिया।
स्वामी विवेकानंद
“सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका…!”
बस फिर क्या था, श्रोतागण के कानों में अभी इतने ही वाक्य पहुचे कि सभी खुशी और उन्माद से चिल्लाने लगे और सात मिनट तक पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजता रहा।
स्वामी विवेकानंद
पिछले व्याख्यान के बाद विवेकानंद पूरे पश्चिम में पूजे जाने लगे और उनका तेज आग की तरह पूरे पश्चिम को प्रकाशमय किया।
स्वामी विवेकानंद
भारत लौटन के बाद विवेकानंद ने
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई, 1897
को किया।
स्वामी विवेकानंद
पुनः अपना ज्ञान बाटने पश्चिम को निकले और फिर समय आने पर भारत को लौट आए।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद अपना कार्य-भार प्रेमानन्द को देने के बाद
4 जुलाई, 1902 महासमाधि
में लीन हो गए।
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