भारत की धरती पर जन्मे एक ऐसा विदेशी लेखक

जिसकी लेखकी को कई बार नकार दिया गया फिर भी उसने हार नहीं मानी। और लिखता रहा। 

किसी प्रकाशक ने उसकी लेखकी को देखा और समाज में लाने को तैयार हुआ।  

किताब जब बाजार में आई, लोगों ने हाथों-हाथ खरीदना शुरू कर दिया और 1949 में तहलका मच गया।

उस लेखक का नाम जार्ज आर्वेल था। जिसने अपनी लेखनी से अपनी कलम को लोहा मनवा दिया और पूरी दुनिया में छा गए।

1984 जार्ज आर्वेल  द्वारा लिखी गई एक ऐसी किताब जो 1989 तक सफर करते हुए 50 से भी ज्यादा भाषा में छपी। जो उस समय किसी भी लेखक के लिए ये बहुत ही ज्यादा था। 

जार्ज आर्वेल द्वारा लिखित विवादास्पद पुस्तक, 1984 तानाशाही, साम्यवादी और अन्य अधिनायकवादी ताकतों के विरुद्ध एक निर्भीक आवाज है। 

जो ये  बताती है कि एक रूढ़िवादी, नाजीवादी सत्ताधारी पार्टी जब सत्ता संभालती है तो उसके लोगों के प्रति रवैया कैसा होता है?

जो अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए हर लोगों की ऊपर एक टेलीस्क्रीन द्वारा जासूसी करती रहती है, उसके आला-अधिकारी हर लोगों पर अपनी पैनी नजर रखे होते हैं। 

सत्ताधारी पार्टी के अपने कुछ नियम होते हैं जैसे कि युद्ध ही शांति है। स्वतंत्रता गुलामी है और अज्ञानता ही शक्ति है।

उसके अपने मंत्रालय है जैसे कि शांति का मंत्रालय- जिसका सीधा संबंध है युद्ध से। सच का मंत्रालय- जिसका सीधा संबंध है झूठलाने से,  प्रेम मंत्रालय यातनाएं देता है और प्रचूर मंत्रालय भूखा मारता है।

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