ग़ज़ल
इस वेब स्टोरी में हम आपसे
jitendra kumar tripaathi द्वारा लिखित एक बेहतरीन ग़ज़ल
को साझा करेंगे।
ग़ज़ल
आए थे हम तेरी दिल्ली में जवानी लेकर
अर्श से फर्श तक जाने की कहानी लेकर
ग़ज़ल
अपने हाथों की ताकत में ही पहचान लिए
अपनी तकदीर बदल देने का अरमान लिए
ग़ज़ल
दुधमुहें बच्चे को रोता छोड़कर फुटपाथ पर
चिलचिलाती धूप में हम तोड़ते रहते पत्थर
ग़ज़ल
संग यूं तोड़े कि हाथों में ज़ख्म कर डाला
फिर भी तामीर कीए महल बुलंद-ओ-बाला
ग़ज़ल
सिला मेहनत का मगर हमको बराबर न मिला
रहे फुटपाथ पर कि हमको कोई घर न मिला
ग़ज़ल
आया अज़ाब तो हमको ही निकाला तुमने
हमारे हाथ का ही छीना निवाला तुमने
ग़ज़ल
हम हैं मजलूम, भले आज शिकायत न करें
खैर मानो जो कभी भी बगावत न करें
ग़ज़ल
रहेगी हाथ में ताकत तो पलट आएंगे
हाथ का लिक्खा तो हम फिर से उलट आएंगे।
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