1935 के दशक में हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखा गया एक ऐसी कविता जिसने सबको अपने आगोश में लिया
हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला से पान कर बाहर निकालने वाले अपने होश को खो कर मधुशाला के कायल हो गए।
बच्चन के मधुशाला में 135 रुबाइयाँ(चौपाई) थी। जिसने एक किताब का रूप ले लिया।
मधुशाला का पहला संस्करण 1935 में और आज तिहत्तरवां संस्करण वितरण किया जा रहा है। जो इसकी खासियत और मांग को दर्शाता है।