the night train at deoli and other stories,

the night train at deoli and other stories summary in hindi by ruskin bond

इस ब्लॉग पोस्ट में मैं आपको the night train at deoli and other stories, जो रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखी गई है, को साझा करूंगा जिसमें कुछ चुनिंदा कहानियाँ ही हैं।

अगर आप और भी कहानियों को पढ़ना चाहते हैं तो कमेंट करे।

Book Review

“the night train at deoli” रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित शानदार कहानियों का एक संग्रह है। जिसका हिन्दी अनुवाद ॠषि माथुर ने राजपाल एण्ड संस पब्लिशर के माध्यम से पब्लिश किया है। हिन्दी अनुवाद का पहला संस्करण 2015 में पब्लिश किया गया था, जिसके बाद हिन्दी भाषी प्रेमियों ने अपनी इस शानदार किताब का दीदार किया था।

इस कहानी संग्रह में ज्यादातर छवि उत्तराखंड की पहाड़ियों और उन पर उगने वाले एक-से-एक फूलों का वर्णन हैं  तो वहीं वातावरण की ताजगी सुगंध से रु-ब-रु होना अच्छा लगता है। रस्किन बॉन्ड अपने जीवन में भूली-बिसरी कुछ यादों और घटनाओं को बड़ी ही सरल और मार्मिक तरीके से अपने पाठकों से साझा किया है। जो पढ़ने लायक है।

“the night train at deoli ” के इस कहानी संग्रह में पहाड़ों पर रहने वाले सीधे-सादे, सरल लोगों की ये कहानियाँ कहीं तो पाठक के दिल को छु लेती हैं और कहीं उनके चेहरे पर मुस्कान लाती हैं। पहाड़ों पर विकास की गति बढ़ने से कैसे वृक्षों की जगह ऊंची इमारते खड़ीं हो रही हैं और स्टील, सीमेंट, प्रदूषण व आधुनिक रहन-सहन के तनाव और चिंताएं इन लोगों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है-इन सबकी पीड़ा की भी झलक इन कहानियों में देखने को मिलती है। 

इस कहानी संग्रह में “the night train at deoli”, सीता और नदी, इंस्पेकटर लाल की जांच-पड़ताल, एक परिचित की मौत कूल सत्रह कहानियों में से बहुत खास हैं। जो आपको दिल को छु लेगी। इन्ही चार कहानियों में आपको अलग चीजों को महसूस करने का और आपको कुछ जानने का मौका मिलेगा।

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Book Summary

“the night train at deoli ” कुल सत्रह कहानियों का संग्रह है, जिसे पढ़ने के बाद जो मुझे अच्छा लगा और ताकि इस समरी को पढ़ने के बाद आसानी से उन कहानियों को आपसे साझा कर सकूँ, ऐसी कहानियों का चयन मैने किया है।  

the night train at deoli-

रस्टी जब अपने कॉलेज के दिनों में दिल्ली से अपने दादी के पास ट्रेन  के माध्यम से घर उत्तराखंड आते-जाते थे, तो रास्ते में एक स्टेशन पड़ता था, देओली। जो बिल्कुल ही शांत और अपनी गुमसुम सा चेहरा लिए बस प्लेटफार्म पर खड़े ट्रेन को देखा करता था। और ट्रेन के अंदर बैठे यात्री उस स्टेशन को। इस स्टेशन से ना ही कोई चढ़ता था और ना ही कोई उतरता था। ये देखकर रस्टी को समझ में ही नहीं आता था कि आखिर ये ट्रेन यहाँ रुकती क्यों है?

ऐसे ही एक रोज़ कॉलेज से छुट्टी मिलने के बाद जब रस्टी अपने घर को जा रहा था, तब ठीक उसी स्टेशन पर अपने समय अनुसार ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी हो गई। टरस्टी खिड़की से उस स्टेशन की तरह देख रहा था कि अचानक एक युवा और खूबसूरत लड़की टोकरी लिए उसके करीब आई और रस्टी से लेने को कहा।

रस्टी ने पहले तो मना किया लेकिन जब उस लड़की ने अपने बातों से उसे प्रभावित कर टोकरी बेचने में सफल हो गई, या यूं कह लें कि रस्टी उसकी खूबसूरती और चपलता पर मोहित हो गया। टोकरी खरीदने के बाद अभी दोनों कुछ बात कर ही रहे थे कि ट्रेन ने हॉर्न मारा और चल दी। इससे पहले की ट्रेन छूट जाती रस्टी ने दौड़ते हुए ट्रेन को पकड़ लिया।

घर से लौटते समय भी रस्टी ने उस टोकरी वाली लड़की से मुलाकात किया और जब तक ट्रेन स्टेशन पर खड़ी रहती तब तक दोनों खूब ढेर सारा बातें करते। जिसके कारण इस बार भी रस्टी को चलते हुए ट्रेन को पकड़ना पड़ा। अब टोकरी वाली लड़की रस्टी के दिलों-दिमाग में बस चुकी थी। जिसके बाद उसका मन हमेशा उस लड़की में ही लगा रहता था।

रस्टी को जब अगली बार मौका मिला और ट्रेन स्टेशन पर रुकी तब कोई भी स्टेशन पर नहीं मिला, जिसे लेकर रस्टी परेशान सा हो गया। उसने प्लेटफ़ॉर्म पर इधर-उधर देखा पर वो कहीं नहीं दिखी। इससे पहले की ट्रेन छूट जाती और उसे सारी रात स्टेशन पर ही गुजारनी पड़ती रस्टी ने ट्रेन पकड़ ली।

लेकिन इस बार ज्यादा दिन तक घर नहीं रुका और दादी से ये कहते हुए की इस बार कॉलेज जल्दी खुल गया है कह कर निकल गया। और उस रात स्टेशन पर बहुत जान-पड़ताल की और नहीं मिलने पर सुनह को उसे इलाके में खोजने का सोचा लेकिन फिर उसे लगा कि उसे ऐसे ही चाहना अच्छा लगता है।

उसके मिलने के बाद शयद ये चाहत खत्म हो जाए, जो मैं नहीं चाहता। जिसके वजह से रस्टी ने ट्रेन के हॉर्न मारने पर आराम से अपने शीट तक चला गया और अब उसे याद कर करता है तो चेहरे पर मुस्कान से साथ, मन में उसकी खूबसूरती घुमड़ने लगती है।  

यह भी अवश्य पढे:- रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित “कश्मीरी किस्सागो” पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।

सीता और नदी-

नदी के बीच एक छोटा सा टापू था, जिस टापू पर सीता अपने दादा-दादी के साथ रहा करती थी। अल छोटा सा झोंपड़ा और आस-पास के जमीन पर दादा जी अपने मेहनत से कुछ साग-सब्जी लगा देते थे, जिससे सब्जी भी मिल जाती थी और दादाजी का जीवन भी आराम से कट जाता था।

सीता की उम्र लगभग 12-14 वर्ष की रही होंगी, जिसके कारण वह बहुत ही फुर्तीली थी। पाले गए मुर्गीयों और बकरी की देख भाल किया करती थी। और खाना पकाने के लिए आस-पास के जंगलों से लड़कियां काट कर लाया करती थी। झोंपड़ी से कुछ ही दूरी पर बहुत बड़ा पीपल का पेड़ ठा, जिसकी उम्र लगभग 100-200 साल होंगी, जिसकी झाया में अक्सर सीता बकरियाँ और मुर्गियों को चराया करती थी।

उस टापू पर अकेला होने के कारण मुसीबत के दिनों का सामना करने के लिए सीता ने वे सारे गुड़ सिख लिए थे, जो कभी भी काम आआ सकते हैं। जैसे मछली पकड़ना, नदी में तैरना, और पेड़ों पर चढ़ना तो उसने खुद सीखा था। पिता बाहर शहर में कां करते थे और माँ की मृत्यु बहुत पहले ही हो चुकी थी, सीता का लालन-पालन दादा-दादी ने ही किया था।    

बरसात का औसम आआ गया था। बरिस कभी होटी थी, कभी नहीं होटी थी, इसी बीच दादी की तबीयत खराब हो गई, जिसकों दिखान एके लिए दादा जी दादी को लेकर पास के एक शहर में शाहगंज लेकर चले गए। सीता उस टापू पर बिल्कुल निडर रह गई।

उस रात बारिश होना शुरू हो गई और सुबह तक होती रही। पूरे दिन बिट गए और बारिश लगातार होटी है। पास के नदी में पानी का बहान तेज हो गया। टापू से पानी सरकता हुआ तेजी से नदी में बहता था, जिसकी डरावनी आवाज आती थी।

बारिश के लागातार होने से पानी का लेबल इतना बढ़ गया कि मुर्गों की बाड़ में पानी का सतह आ गया। सीता ने उन्हे किसी तरह झोंपड़े के ऊपर रख दिया उआर सारे समान को ऊपर रखने लगी और दादाजी के कहें अनुसार उस पीपल के पेड़ पर जा बैठी। पानी अपना और विकराल रूप लेता गया, जिसके कारण पेड़ के नीचे से पटरीली मिट्टी सरक गई और पानी के ऊपर सीता पेड़ सहित बहने लगी।

उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करें, चारों तरह सिर्फ और सिर्फ पानी ही था। किससे अपने मदद को पुकारे कि तबही एक अधनंगा लड़का पनि नाव लिए उसके करीब आआ पहुँचा और उसकी मदद से सीता की जांच बच सकी। बारिश अभी भी जारी था। पानी का बहाव इतना था कि नाव पर उस लड़के के छोटे हाथों द्वारा छाया जा रहा चप्पू कुछ कां ही नहीं आ रहा था।

इसलिए दोनों ने नाव को पानी की दिशा में बहते छोड़ दिया। दोनों की कुछ-चित हुआ और लड़के ने अपना नाम विजय बताया और ये भी वो बाजू वाले टापू पर उसका घर है, वो उसे जानता है, क्योंकि वो सीता को देखने के लिए कभी-कभी चुपके से उसके टापू पर आया करता था।

विजय और सीता दोनों नाव पर बहते हुए एक जंगल में जा पहुंचे और रात के समय जब उन्हे किनारा मिला तो उन्होंने थोड़े देर तक आराम किया, विजय न एपने नाव में रखे आम को सीता के तरफ बढ़ाया, जिसे सीता ने स्वीकार किया। सुनह होने पर दोनों अपनी नाव लेकर आगे बढ़े और उन्हे दूसरे गावं में शरण लेना पड़ा।

उस गावं के चौधरी ने उन्हे साहारा दिया और अपने यहाँ ठहरने को जगह भी दी। उस चोंधरी का लड़का अगले दिन अपने बाजू वाले गावं में कुश्ती लड़ने की तैयारी कर रहा था, जिसमें विजय और सीता को भी साथ चलने का न्योता दिया। सीता और विजय ने स्वीकार किया। अगले दिन दोनों बैलगाड़ी पर बैठ कर उस मेले में पहुंचे जहां चौधरी का लड़का अपना डम दिखाने वाला था।

मेले में बहुत भीड़ थी, और कुश्ती देखने वालों का जमावड़ा लगा हुआ था। शुरुआत में कुछ पटखनी खाने के बाद जब लड़के को शरीर में गर्मी आई तब उसने ताकत का प्रदर्शन किया और कुश्ती जित गया। जिसका श्रेय उस लड़के ने विजय और सीता को दिया क्योंकि इसके पहले उसने कई बार हार को स्वीकार किया था। उसके बाद सबने मिलकर मेले में खूब मस्तियाँ की और घर को लौट गए।

अगले दिन उस चोंधरी ने सीता को शाहगंज के ट्रेन में बैठा कर विदा कर दिया। सीता को पाने दादा-दादी की बहुत चिंता हो रही थी। क्योंकि दादी की तबीयत बहुत खराब थी। सीता ट्रेन से उतरने के बाद शहर के अस्पताल में इधर-उधर खोजने के बाद भटक रही थी कि दादा जी की उससे टक्कर हो गई। अपने दादा जी से मिलकर सीता बहुत खुश हिलेकिन जब उसे पता चला कि दादी मृत्यु को प्राप्त हो गई, तो उसे बड़ा तकलीफ हुआ।

दोनों मयुशी के साथ अपने घर को लौट गए और विजय आने का वादा कर अपने घर को लौट गया। घर पहुँच कर दादा जी ने दोबारा झोंपड़ा को बनाने में लग गए तो वहीं सीता खाना बनाने में। कुछ दिन बाद सीता उस पीपलके पेड़ के स्थान पर जब एक आम की गीथली लगा कर शांति से बैठी हुई विजय की याद कर रही थी की पिछ से कुछ अहलचल उसे महसूस हुआ, और पता चला कि विजय ही है तो उसका दिल खुशी से झूम उठा।

यह भी अवश्य पढ़ें:- रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित “मुट्ठी भर यादें” पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।

इंस्पेक्टर लाल की जांच-पड़ताल-

शाहपुर में रहते हुए रस्टी की मुलाकात वहाँ के थाना प्रभारी से हुआ। जो उसके साथ उठते-बैठते और कभी-कभार खाते-पीते थे। एक रोज दोनोंसाथ में बैठे होने के कारण बातचित शुरू हुई और उन्होंने एक ऐसा वाकया बताया कि कैसे वो इंस्पेक्टर बनते-बनते रह गए।

शाहपुर में रहने वाली एक माहारानी की हत्या हुई, टाँगीं से उसके सर के दो टुकड़े कर दिए गए थे। जिसकी जांच-पड़ताल मैने किया। बहुत छन-बिन करने के बाद भी कोई पकड़ा णी गया। उस दौरान मैने कुछ नोटिस किया कि उस घर में काम करने वाले नौकर की बेटी मुझसे न जाने क्यों अपनी नजरें चुराया करती थी। मेरे सामने आने से हमेशा बचा करती थी।

मैने एक दिन उसे गोर किया तो वह भागती हुई पास के जंगलों में छिप गई। मैने उसका अपिछ किया और बहुत देर तक उसकी खोज की, लेकिन कुछ पता नहीं चला कि अचानक मेरे पीछे कुछ खड़बड़ाहट हुई, मैने जब पीछे मूड कर देखा तो अचंभित हो गया, वो लड़की तेजी से एक कुहाड़ी उठाए हुए तेजी से मेरे तरह दौड़ती हुई चली आ रही थी।

वो तो मेरा दिन अच्छा था, मैं हट गया और कुल्हाड़ी मेरे पीछे एक पेड़ की डाली से जा टकराई। जब मैने उसके ऊपर काबू पा लिया तब वह मुजहससे माफी मांगती हुई मेरे पैरों पर गिड़ पड़ी। और कहाँ कि महारानी ने अपने घर बुलाकर अपने मेहमान से मेरे कपड़ने उतारने को बॉल रही थी, जो मुझसे रहा नहीं गया और मैने उसे मार दिया ये देख कर वहाँ खड़ा उसका मेहमान वहाँ से फरार हो गया।

अब मैने उसे माफीन दे दी और जो जानता भी था वो अपनी जान बचाने के लिए कभी सामने नहीं आया। और वो केश उलझा ही रहा। जो मेरे इंस्पेक्टर बनने में एक बड़ी रुकावट साबित हुआ।     

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

  • किसी लालची आदमी को लूटना आसान होता है, क्योंकि वह इसी लायक होता है। आमिर आदमी को लूटना आसान होता है, क्योंकि वह लूटना बरदाश्त कर सकता है। लेकिन एक गरीब आदमी को लूटना आसान नहीं होता, जीसे कि लूट जाने से कोई फरक नहीं पड़ता। एक आमिर आदमी या लालची आदमी या फिर होशियार आदमी अपनी रकम तकिये या गद्दे के नीचे नहीं रखता, उसे किसी सुरक्षित जगह, ताले में बंद  करके रखता है।
  • दुनियाबी तौर पर जिस चीज की कोई कीमत हो, ऐसी चीज के खोने पर लोगों का मुँह बन जाता है। लालची आदमी बौखला जाता है, आमिर आदमी गुस्सा दिखाता है और गरीब आदमी को डर। खौफ सताता है।
  • किसान के लिए जीवन एक संघर्ष है जो चलता ही चला जाता है। जब वह सूखे से उबरता है, बाढ़ के बाद जी जाता है, जंगली सूअरों को खेत से खदेड़ देता है, सारस से फसल को बचा लेता है… और आखिरकार फसल काट लेता है, तब खून का प्यासा पिशाच… सूदखोर महाजन। उससे बचना नामुमकिन है!
  • भारत में, समाज में ऐसा चलन है कि लोग आपके बारे में जितना जाना जा सकता है उतना जानने की कोशिश करते हैं
  • शेक्सपियर और चौसर जैसे लेखकों को पढ़ना उन छात्रों के लिए जरूरी बाटाया जाता है जिन्हे आधुनिक अंग्रेजी की थोड़ी-बहुत समझ होती है। हर साल बदीं तादाद में स्नातक तैयार होकर निकलते हैं और उनमें से ज्यादातर दफ्तरों में बाबू, बस के कंडक्टर और शायद स्कूल टीचर बनते हैं।
  • अगर लोग पेड़ लगाने के बजाय काटते रहे तो एक दिन जंगल ही नहीं बचेंगे और दुनिया एक बहुत बड़े रेगिस्तान में बदल जाएगी।   

कोट्स-

  • कभी-कभी दोस्त ही बरबादी की वजह बन जाते हैं।
  • कामयाब होने के लिए चोर का बेरहम होना जरूरी है।
  • कुछ चुराने से कहीं ज़्यादा कठिन है चुरायी हुई चीज बिना पता लगे वापस करना ।
  • लड़ने वालों के लिए हार जैसी कोई चीज नहीं होती।
  • हर समस्या का समाधान कहीं न कहीं तो मिल ही जाता है, बशर्ते हम गौर से देखें।
  • हमारी जिंदगी में कुछ ताकते ऐसी होती हैं जिन्हे सिर्फ हमें छू कर अपने रास्ते चला जाना होता है…..    
  • इंसान की बोली अक्सर कोमल भावनाओं की सुंदरता को चकनाचूर कर देती है।
  • अपनी मामूली से मामूली करनी का फल हमारे सामने आता है और हम उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते…
  • प्यार तब मिलता है जब आप उसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं कर रहे होते हैं। जब आपको लगता है कि आपने उसकों चारों तरफ से पकड़ रखा है तभी आपके हाथ से फिसल जाती है।
  • बेहतरीन बगीचों में वक्त के कोई मायने नहीं होते।
  • जिंदगी कभी कुछ देती है और कभी छिन लेती है और फिर दोबारा दे देती है।
  • औरतों को अगर प्यार हो जाता है तो वे जोखिम उठाने में मर्दों से पीछे नहीं रहती!

FAQ

Q-the night train at deoli का लेखक कौन है?

रस्किन बॉन्ड।

Q-the night train at deoli का हिन्दी अनुवादक कौन है?

ॠषि माथुर।

Q-the night train at deoli का हिन्दी का प्रथम संस्करण कब प्रकाशित हुआ था?

2015 को।

Q- the night train at deoliका हिन्दी संसकरण का प्रकाशक कौन है?

राजपाल एण्ड संस।

Q-रस्किन बॉन्ड का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

रस्किन बॉन्ड का जन्म 1934 में कसौली में हुआ था।

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