इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे दाजी और जोशुआ पोलॉक द्वारा लिखित “the heartfulness way” की review, summary definition of meditation के साथ-साथ pdf download को भी साझा करेंगे।
Table of Contents
Book Review-
“the heartfulness way” दाजी और जोशुआ पोलॉक द्वारा लिखित एक आध्यात्मिक किताब है। जिसे अंग्रेजी भाषा में 2018 में westland ने प्रकाशित किया गया था। फिर एक साल बाद इसकी मांग और महत्ता को देखते हुए हिन्दी भाषा में उसी प्रकाशन द्वारा 2019 में प्रकाशित किया गया।
इस किताब का निर्माण लोगों की कल्याण के लिए किया गया है। एक शिष्य का अपने गुरु द्वारा पूछे गए ऐसे बहुत सारे सवालों का जवाब है, जो मेरे और आपके मन में निश्चित ही उठते हैं। हम कुछ करना चाहते हैं पर कुछ समझ में नहीं आता, सब-कुछ पाने के बाद भी मन में शांति नहीं मिलती, बेकार की बातें सोच-सोच कर परेशान हुए जा रहे हैं, कुछ और करना चाहते हैं पर मन नहीं लगता। अगर आप इस अपने से जूझ रहे हैं, तो यह किताब आपका मार्गदर्शन करेगी।
दाजी और जोशुआ पोलॉक द्वारा लिखित इस किताब का निर्माण इतनी सरलता और सुगमता के साथ किया गया है कि इसे पढ़ने मात्र से असर दिखना शुरू हो जाएगा, लेकिन दाजी कहते हैं कि सिर्फ किताब पढ़ना ठीक वैसा ही ही है जैसे भूख लगने पर खाना पका लेना लेकिन अपने अंदर भूख को मिटाने के लिए आपको खाना ही पड़ता है, ठीक उसी प्रकार आपको इसका भी प्रेक्टिकल करना होगा।
भारत की अनंतकालीन मौखिक पररम्परा को कायम रखते हुए कमलेश डी. पटेल जिन्हे दाजी के नाम से जाना जाता है, और जो हार्टफुलनेस वंशावली के चौथे गुरु हैं- वे आध्यात्मिक खोज की प्रकृति का अध्ययन करते हुए एक जिज्ञासु की खोज का वर्णन करते हैं। एक शिक्षक और शिष्य के बीच हुए ज्ञानवर्धक वार्तालाप की शृंखला द्वारा दाजी, हार्टफुलनेस अभ्यास के सिद्धांतों एवं दर्शन का खुलासा जोशुआ पोलॉक के समक्ष करते हैं, जो एक हार्टफुलनेस अभ्यासी व प्रशिक्षक हैं।
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the heartfulness way summary in hindi
इस किताब को तीन भागों मे बांटा गया है, पहला भाग हमें ये बताता है कि heartfulness क्यों जरूरी है और क्यों करना चाहिए, दूसरा भाग हमें ये बताता है कि कैसे कब, कहाँ और कितना करना चाहिए। तीसरा भाग हमें ये बताता है कि क्या heartfulness का अभ्यास करने के लिए क्या गुरु की आवश्यकता होती है, या नहीं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।
यह कोई उपन्यास नहीं है कि पूरी पढ़ने के बाद आपको मोटा-मोटा कहानी अपने तरफ से साझा करू, इसलिए मैने the heartfulness way को पढ़ने के बाद उसी किताब से कुछ-कुछ हिस्से को साझा किया है।
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हार्टफुलनेस क्यों?
जोशुआ पोलॉक जब दाजी से उनके घर पर इस किताब को लिखने के सिलसिले में मिलते हैं तो उनका पहला सवाल यही होता है कि heartfulness क्यों करना चाहिए? जिसका जवाब दाजी कुछ इस तरह देते हैं,
“क्यों नहीं?” उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा- कारण तो हर व्यक्ति के अलग-अलग होते हैं , जीवन में हमारा ध्येय हमारी अपनी जरूरतों और रुचि के अनुरूप होता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अपना वजन कम करने के लिए जिम जाता है तो कोई सिक्स पैक एप्स बनाने के लिए, लेकिन दोन एक ही जिम में जाते हैं ।
उदाहरण के लिए बहुत से लोग तनावपूर्ण जीवन-शैली से त्रस्त हैं, अतः वे रिलैक्स होने का कोई रास्ता चाहते हैं, कोई अपना ब्लडप्रेशर कम करना चाहता है। कोई व्यक्ति मानसिक स्पष्टता तलाशता है तो कोई भावनात्मक संतुलन चाहता है, लेकिन जब वे ध्यान शुरू करते हैं तो जल्द ही इन उद्देश्यों से कहीं अधिक लाभ हासिल करना शुरू कर देते हैं।
प्रायः लोग अपने भीतर उत्पन्न एक गहरी आध्यात्मिक संतुष्टि से अत्यंत आश्चर्यचकित होते हैं, यह हालत भीतरी खुशी और आनंद को प्रतिबिंबित करती है। यह ऐसा ही है जैसे कोई भूखा आदमी खाने को एक टुकड़ा मांगे मगर कोई उसे दावत देकर हैरान कर दे।
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हार्टफुलनेस का अभ्यास
भाग दो में जोशुआ पोलॉक के माध्यम से दाजी हमे ये बताते हैं कि ध्यान क्या होता है, कब और कहाँ ध्यान करना चाहिए, ध्यान का आसन क्या होना चाहिए, रिलैक्सेशन क्या होता है, ध्यान कैसे करे, कितनी देर करे, ध्यानवस्था कैसी होनी चाहिए आदि के बारे में बताते हैं।
ध्यान
ध्यान! उधवार्धर अक्ष स्थिर मन और और अस्थिर मन के बीच का क्रम प्रदर्शित करता है। स्थिर मन एक विचार पर टिकता है और वहीं रहता है। यह एक बिन्दु पर केंद्रित होता है। इसके विपरीत अस्थिर चंचल मन एक विषय से दूसरे विषय पर भटकता रहता है। यह कई विषय सोचता है तथा इसका ध्यान यहाँ से वहाँ कूदता रहता है। इन दो चरम सीमाओं के बीच, एकज मध्य का क्षेत्र है। मन की अधिकांश गतिविधि इसी मध्य क्षेत्र में होती है।
ध्यान के द्वारा हम मन की जटिलता से हृदय की सरलता की ओर बढ़ते यहीं। हर चीज की शुरुआत हृदय से ही होती है। जब हृदय शांत होता है तो मन भी स्थिर होता है। जब हृदय संतुष्ट होता है तो मन में अंतदृष्टि, स्पष्टता और समझ पनपती है। ध्यान बस आपकी आंतरिक हालत को, चाहे वो कैसी भी हो सामान्य करता है।
असल में वह चीज जिसके लिए मन वास्तव में तड़पता है, स्थायित्व है, यह सिमीत में खुश नहीं रहता। यह आनंद की अस्थाई दशाओं से भी संतुष्ट नहीं होता। यह अनंत ढूँढता है यानि एक ऐसी तृप्ति जो सभी तृप्तियों का अंत कर दे। यह ऐसी इच्छा को तृप्त करने की खोज में लगा रहता है जिसके तृप्त होने पर बाकि सभी इच्छाओं का अंत हो जाता है। संक्षेप में मन केवल ध्यान ही नहीं करना चाहता अपितु ध्यान में अंतहीनता भी चाहता है। यही सच्चा ध्यान है, गहन ध्यान है।
कब और कहाँ ध्यान करे?
ध्यान का कोई समय अथवा स्थान नहीं होता। आपको ध्यान तब करना चाहिए जब आपके लिए व्यवधान की संभावना कम से कम हो। हमें अपने ध्यान करने के लिए समय का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए। एक रास्ता तो यह भी है कि सुबह ही जल्दी ध्यान कर लिया जाए जब आपके पास ऐसा कोई काम भी नहीं होता कि उस समय पर आप अपना समय और ध्यान लगाए। लेकिन यदि आपको इसमें रुचि है तो चाहे जो हो जाये आप इसे करके ही रहेंगे।
ध्यान का आसन
ध्यान की परंपरागत मुद्रा टाँगे मोड़कर बैठी हुई मुद्रा होती है।हाथों की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। आदर्श रूप में वे आपस में बधें हुए और अंगुलियाँ भी आपस मे बंधी हुई होनी चाहिए। या आप एक के ऊपर दूसरा हाथ रख सकते हैं। इसके अलावा ध्यान में हम आंखे बंद रखते हैं।
रिलैक्सेशन
- अपनी आंखे अत्यंत कोमलता से और हल्के से बंद कर लें।
- पैरों की अंगुलियों को थोड़ा हिलाए और महसूस करें कि वे शिथिल हो रही हैं।
- अपने टखनों और पैरों को ढीला होता हुआ महसूस करें।
- महौस करें कि धरती माता से ऊर्जा निकल कर पैरों के तलों मेन प्रवेश कर रही है।
- महसूस करें कि यह पैरों से होकर घुटनों की ओर बढ़ती हुई टांगों को शिथिल कर रही है।
- अपनी जांघों को शिथिल करे। ऊर्जा ऊपर की ओर बढ़ती हुई टांगों को शिथिल कर रही है।
- अब अपने कूल्हे, कमर और पेट को गहराई से शिथिल होने दें।
- अपनी पीठ को रिलैक्स करें। ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी पीठ रिलैक्स हो गई है।
- अपनी छनती और कंधों को शिथिल करें। अपने कंधों को पिघलता हुआ महौस करें।
- अपनी बाहों के ऊपरी भाग को ढीला छोड़ दें, बाहों के निचले भाग की सभी मांसपेशियों को तथा हथेली व उंगलियों को उनके सिरे तक शिथिल होने दें।
- महसूस करें कि किस प्रकार आपका पूरा शरीर पूर्ण रूप से शिथिल हो चुका हो चुका है। सर की चोटी से लेकर पैरों की उंगलियों तक मुआयना करें कि किसी भाग को आपके ध्यान की जरूरत तो नहीं है? पुनः उस जगह तक जाएँ और उसे रिलैक्स करें।
- अपना ध्यान अपने हृदय की ओर ले आयें। कुछ देर वहीं रहें। अपने हृदय में विद्यमान प्रेम व प्रकाश में स्वयं को डूबा हुआ महसूस करें।
- स्थिर व शांत बने रहे और धीरे-धीरे स्वयं में डूब जाएं।
- जब तक आपको यह न लगाने लगे कि आप बाहर आने के लिए तैयार हो गए हैं इसी में डूबे रहें।
ध्यान कैसे करे?
समय व स्थान नियत कर लेने तथा आरामदायक मुद्रा में आ जाने के बाद अब हम ध्यान करने के लिए तैयार हो गए हैं। हल्के से हम अपनी आंखे बंद करते हैं यह सोच कर हृदय में मौजूद दिव्य प्रकाश हमें भीतर की ओर आकर्षित कर रहा है हम अपनी चेतना को हृदय में केंद्रित कर देते हैं।
दिव्य प्रकाश के बारे मे सोचने का प्रयत्न इसे महसूस करने में आड़ें आता है। यह हमें मानसिक पटल पर बंधे रखता है और गहराई में जाने से रोकता है।
अतः इस विचार को हमें अत्यंत सूक्ष्म ढंग से लेना पड़ता है। अधिक से अधिक हम स्वयं को हल्के से याद दिला सकते हैं कि हृदय में दिव्य प्रकाश मौजूद है और वह हमको भीतर, स्रोत की ओर आकर्षित कर रहा है। हमे इसे शुरू में, एक बार करते है। असल में इतना करना भी अनावश्यक ही है। यह इतनी स्वाभाविक प्रक्रिया है कि हर चीज अपने आप होती है।
ध्यान कितनी देर करे?
पहले ही कोई समय सीमा निर्धारित कर लेना बहुत बनावटी होता है। असल में ध्यान में हमें कोई एजेंडा निर्धारित नहीं करना चाहिए। हमें कोई शर्त नहीं लगानी चाहिए। हमें तो विस्मय और अज्ञानता की हालत में स्वयं को खुला रखना चाहिए।
जब आप चेतना की संतोषजनक गहराई को छु लेते हैं तो यह पउरा हो जाता है। बाबूजी(दाजी के गुरु) ने एक घण्टा बताया था। जब लोगों ने शिकायत करना आरंभ कर दिया तो उन्होंने घाटा कर इसे आधा घण्टा कर दिया। लेकिन उन्होंने कहा कि एक घण्टा ही सबसे अच्छा था। उन्होंने देखा कि ध्यान में संतोषजनक गहराई तक पहुँचने में लोग अक्सर यही समय लेते हैं।
“लेकिन इस विचार को बांध न ले कि ‘ठीक है,’ अब मैं एक घण्टा ही ध्यान करूंगा। ऐसे में भी आप समय के विचार पर ही ध्यान कर रहे होंगे, दिव्य प्रकाश पर नहीं। इसलिए समय को भूल जाए! बस ध्यान करें।”
ध्यानावस्था
ध्यान के बाद अपनी आँख बहुत धीरे से खोले और फिर कुछ मिनटों तक अधखुली आँखों से ध्यान मेन ही रहे। ये बहुत जरूरी है। उन चंद मिनटों में आप यह न सोचे कि आज दिन भर क्या करना है। अपने फोन पर संदेश न देखे। आप अभी भी ध्यान में हैं, बस हाकि से खुली आँखों से। कुछ मिनट ऐसे ही रहे जब तक कि स्वयं को अपने चारों ओर पूरी तरह से उपस्थित महसूस न करे।
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गुरु की आवश्यकता
यह the heartfulness way का तीसरा सबसे अहम और मुख्य भाग है। जब जोशुआ पोलॉक दाजी से पूछते हैं कि हमें ध्यान करने के लिए क्या गुरु की आवक्षयाकता होती है तब दाजी जवाब देते हैं –
गुरु सच्चे साधक को दिया गया उत्तर है। बाबूजी अक्सर कहाँ करते थे कि जिज्ञासु की सच्ची तड़प मालिक को उसके दरवाजे पर ले आती है। कुछ मामलों में जिज्ञासु इस आंतरिक पुकार के प्रति जागरूक होता है। कुछ अन्य मामलों में यह पुकार अचेतन होती है। और जिस प्रकार यह सत्य है कि साधक य जिज्ञासु गुरु को खींच लेता है, यह भी उतना ही सत्य है कि गुरु जिज्ञासु का चयन करता है।
गुरु हम सबको बहुत पहलए से ही तैयार करते हैं। लेकिन कुछ हद तक मुझे इसकी जानकारी थी। आम तौर पर इस प्रकार की तैयारी बिना पता चले होती है। यह चुपचाप, बिना हमारी या किसी और की जानकारी के होती है। यह उस बीज की तरह है जो जमीन के भीतर अंकीरित होता है। इस बीज को केवल वही जानता हई, जिसने उसे बोया है ।
कोट्स-
विकास नहीं रुक सकता। परिवर्तन की चाह हमारे अंदर हमेशा रहनी चाहिए।
दाजी।
केवल भोजन के वादे से आप किसी व्यक्ति की भूख नहीं मिटा सकते। और न ही मात्र विश्वाश से एक तड़पते दिल की प्यास बुझाई जा सकती है।
दाजी।
अनुभव ही आध्यात्मिकता और धर्म में अंतर बताता है। बिना अनुभव के विश्वास खोखला ही है।
दाजी।
सत्य का अनुभव व्यावहारिक तौर पर होना चाहिए और ध्यान उसका साधन है।
दाजी।
आपकी परंपरा कोई भी हो, उसी पर कायम रहे- लेकिन ध्यान अवश्य करें।
दाजी।
मेरा अहंकार जितना अधिक होगा उतना ही बदतर मेरा अनुभव भी होगा।
दाजी।
अगल लोगों के दिलों मे शांति नहीं है तो उनके चारों तरफ भी शांति नहीं होंगी।
दाजी।
जहां प्रेम होता है, वहाँ स्वीकार्यता होती है। जहां प्रेम होता है, वहाँ क्षमा होती है, वहाँ करुणा होती है।
दाजी।
जहां बल काम नहीं आता वहाँ हमारी रुचि काम कर देती है।
दाजी।
अगर आप किसी परियोजना में रुचि रखते हैं तो आप अवश्य ही सफल होंगे। यदि आप कोई दिलचस्पी नहीं रखते तो आप संघर्ष करते रहेंगे।
दाजी।
किसी चीज का अनुभव जब आप स्वयं करते हैं तो विश्वाश का कोई मतलब नहीं रह जाता।
दाजी।
समाधि में परेशान मन अपनी मूल संतुलित अवस्था की ओर वापसी करता है।
दाजी।
एक तालाब में तरंगे तभी उठती हैं जब इसमें कुछ छेड़खानी की जाती है वरना अपने में तो यह शांत ही रहता है।
दाजी।
अगर आप कुछ करने के आतुर है तो कोई रास्ता आप ढूँढ़ ही लेंगे।
दाजी।
व्यस्त लोगों को यह भी समझना चाहिए कि ध्यान जीने के कई छोटे रास्ते भी दिखाता है।
दाजी।
अहंकार बस मे हो जाए तो सच्चा अहसास स्वतः ही प्रकट होता है।
दाजी।
प्रकृति हमें कोई सबक नहीं सिखाना चाहती। वह तो सिर्फ हमें हमारे संस्कारों के वजन से मुक्त कराती है, जिससे हमारी चेतना हल्की और शुद्ध रह सके।
दाजी ।
अशुद्धता कभी भी आत्मा को स्पर्श नहीं करती। यह केवल उसे ढक देती है।
दाजी।
स्वार्थपूर्ति के लिए प्रार्थना करना ठीक वैसा ही है जैसे पैसे के लिए विवाह करना।
दाजी।
जो हृदय सरल, मासूम, और अहंकाररहित होते हैं वहाँ स्वर्ग स्वतः ही उतर आता है।
दाजी।
जब भी स्वार्थ हम पर हावी होता है, हम अपराध महसूस करते हैं।
दाजी।
दूसरों का फायदा उठाना, अपनी खुशी के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को निशाना बनाना, अपराध बोध पैदा करता है।
दाजी।
जब आप दूसरों से प्रेम व करुणा का भाव रखते हैं और उनका खयाल रखते हैं तो आप उनसे कुछ प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते।
दाजी।
प्रार्थना कमजोर का पहला सहारा है और मजबूत का अंतिम।
दाजी।
केवल यथार्थता ही मानव हृदय को स्पर्श कर सकती है।
दाजी।
प्रार्थना इस कदर करनी चाहिए कि वह ध्यान में बदल जाए।
दाजी।
एक सच्चा महात्मा वह है जो कुछ दावा नहीं करता, कुछ वादा नहीं करता।
दाजी।
FAQ
Q the heartfulness way का लेखक कौन है?
जोशुआ पोलॉक और कमलेश डी. पटेल।
Q the heartfulness way कब प्रकाशित किया गया था?
2018.
Q the heartfulness way क्यों जरूरी है?
बहुत से लोग तनावपूर्ण जीवन-शैली से त्रस्त हैं, अतः वे रिलैक्स होने का कोई रास्ता चाहते हैं, कोई अपना ब्लडप्रेशर कम करना चाहता है। कोई व्यक्ति मानसिक स्पष्टता तलाशता है तो कोई भावनात्मक संतुलन चाहता है, लेकिन जब वे ध्यान शुरू करते हैं तो जल्द ही इन उद्देश्यों से कहीं अधिक लाभ हासिल करना शुरू कर देते हैं।
Q ध्यान क्या है?
ध्यान के द्वारा हम मन की जटिलता से हृदय की सरलता की ओर बढ़ते यहीं। हर चीज की शुरुआत हृदय से ही होती है। जब हृदय शांत होता है तो मन भी स्थिर होता है। जब हृदय संतुष्ट होता है तो मन में अंतदृष्टि, स्पष्टता और समझ पनपती है। ध्यान बस आपकी आंतरिक हालत को, चाहे वो कैसी भी हो सामान्य करता है।
Q ध्यान कब और कैसे करे?
ध्यान का कोई समय अथवा स्थान नहीं होता। आपको ध्यान तब करना चाहिए जब आपके लिए व्यवधान की संभावना कम से कम हो। हमें अपने ध्यान करने के लिए समय का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए। एक रास्ता तो यह भी है कि सुबह ही जल्दी ध्यान कर लिया जाए जब आपके पास ऐसा कोई काम भी नहीं होता कि उस समय पर आप अपना समय और ध्यान लगाए। लेकिन यदि आपको इसमें रुचि है तो चाहे जो हो जाये आप इसे करके ही रहेंगे।
Q ध्यान करने के लिए आसन क्या होना चाहिए?
ध्यान की परंपरागत मुद्रा टाँगे मोड़कर बैठी हुई मुद्रा होती है।हाथों की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। आदर्श रूप में वे आपस में बधें हुए और अंगुलियाँ भी आपस मे बंधी हुई होनी चाहिए। या आप एक के ऊपर दूसरा हाथ रख सकते हैं। इसके अलावा ध्यान में हम आंखे बंद रखते हैं।
Q ध्यान कितनी देर करे?
पहले ही कोई समय सीमा निर्धारित कर लेना बहुत बनावटी होता है। असल में ध्यान में हमें कोई एजेंडा निर्धारित नहीं करना चाहिए। हमें कोई शर्त नहीं लगानी चाहिए। हमें तो विस्मय और अज्ञानता की हालत में स्वयं को खुला रखना चाहिए।
ध्यानावस्था क्या होती है या क्या होनी चाहिए?
ध्यान के बाद अपनी आँख बहुत धीरे से खोले और फिर कुछ मिनटों तक अधखुली आँखों से ध्यान मेन ही रहे। ये बहुत जरूरी है। उन चंद मिनटों में आप यह न सोचे कि आज दिन भर क्या करना है। अपने फोन पर संदेश न देखे। आप अभी भी ध्यान में हैं, बस हाकि से खुली आँखों से। कुछ मिनट ऐसे ही रहे जब तक कि स्वयं को अपने चारों ओर पूरी तरह से उपस्थित महसूस न करे।
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