स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन | swami vivekananda quotes in hindi. इस ब्लॉग पोस्ट में स्वामी विवेकानंद के द्वारा कहे गए 9 अनमोल वचन के साथ-साथ और भी motivational quotes हैं।
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स्वामी विवेकानंद से संबंधित महत्वपूर्ण कालचक्र-
कलकत्ता में जन्म | 12 जनवरी, 1863 |
प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश | 1879 |
जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश | 1880 |
श्री रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट | नवंबर, 1881 |
श्री रामकृष्ण परमहंस से संबंध | 1882-86 |
स्नातक परीक्षा उतीर्ण और पिता का स्वर्गवास | 1884 |
श्री रामकृष्ण परमहंस की गंभीर बीमारी | 1885 |
श्री रामकृष्ण का निधन | 16 अगस्त, 1886 |
वराहनगर मठ की स्थापना | 1886 |
वराहनगर मठ में सन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा | जनवरी, 1887 |
परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण | 18890-93 |
कन्याकुमारी में चितन-प्रवास | 25 दिसंबर, 1892 |
बंबई से अमेरिका रवाना | 31 मई, 1893 |
बैंकुवर, कनाडा पहुचे | 25 जुलाई, 1893 |
शिकागों पहुचे | 30 जुलाई, 1893 |
हावर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफेसर सर जॉन राइट से भेट | अगस्त, 1893 |
विश्व-धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान | 11 सितंबर, 1893 |
विश्व-धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान | 27 सितंबर, 1893 |
हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण | 16 मई, 1894 |
न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना | नवंबर, 1894 |
न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ | जनवरी, 1895 |
पेरिस में व्याख्यान | अगस्त, 1895 |
लंदन में व्याख्यान | अक्टूबर, 1895 |
वापस न्यूयॉर्क प्रस्थान | 6 दिसंबर, 1895 |
पुनः लंदन प्रवास | 22-25 मार्च, 1896 |
हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान | मई –जुलाई , 1896 |
पुनः लंदन प्रस्थान | 15 अप्रेल, 1896 |
लंदन में धार्मिक कक्षाएं | मई-जुलाई, 1896 |
ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट | 28 मई, 1896 |
नेपाल से भारत की ओर रवाना | 30 दिसंबर, 1896 |
कोलंबो, श्री लंका प्रस्थान | 15 जनवरी, 1897 |
रामेश्वरम में शानदार सवागत एवं भाषण | जनवरी, 1897 |
मद्रास में व्याख्यान | 6-15 फरवरी, 1897 |
कलकत्ता आगमन | 19 फरवरी, 1897 |
रामकृष्ण मिशन की स्थापना | 1 मई, 1897 |
उत्तर भारत की यात्रा | मई-दिसंबर, 1897 |
कलकत्ता वापसी | जनवरी, 1898 |
मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना | 19 मार्च, 1899 |
पश्चिम की ओर दूसरी यात्रा | 30 जून, 1899 |
न्यूयॉर्क प्रस्थान | 31 जिलाई, 1899 |
सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना | 22 फरवरी, 1990 |
न्यूयार्क में अंतिम कक्षा | जून, 1900 |
यूरोप रवाना | 26 जुलाई, 1900 |
वियना, हंगरी, ग्रीस, मिश्र, आदि देशों की यात्रा | अक्टूबर, 1900 |
भारत रवाना | 26 नवंबर, 1900 |
बैलूर मठ आगमन | 9 दिसंबर, 1900 |
मायावती की यात्रा | 10 जनवरी, 1901 |
पूर्वी बंगाल और असम की यात्रा | मार्च-मई,1901 |
बोधगया और वाराणसी की यात्रा | जनवरी-फरवरी, 1902 |
बैलूर मठ में वापसी | मार्च, 1902 |
महासमाधि में लीन | 4 जुलाई, 1902 |
स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन 1-10
स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी पढ़ने के दौरान जितने भी उनके अनमोल विचार हैं, मैने उन सबको लिख दिया है। एक भी छूटना तो नहीं चाहिए लेकिन एक-आद हो सकता है।
- किसी मनुष्य के प्राण बचाना सबसे बड़ा धर्म है।
- जब व्यक्ति कुछ करना चाहता है तो उसकी लगन और परिश्रम से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
- समाज में कुछ ऐसे लोग भी पाए जाते हैं, जो अज्ञान के कारण किसी भी बात का बतंगण बना देते हैं।
- शिक्षित युवा स्वतंत्र निर्णय लेने वाले होते हैं।
- जीव पर दया नहीं, बल्कि शिवज्ञान से जीव की सेवा करों।
- ईश्वर इसलिए मानव बनता है कि वह मानव से ईश्वर बन सके।
- सन्यासी पथ पर पारिवारिक स्नेह-बंधनों के साथ नहीं चला जा सकता।
- कोई भी व्यक्ति कामिनी-कंचन को पूर्ण रूप से जितने में सफल नहीं हो सकता।
- सच्चे वेदान्त का प्रचार से ही धर्म को सुरक्षित रखा जा सकता है।
- ज्ञान को पल्लवित करने के लिए दसों दिशाओं के विस्तार में भ्रमण करना होता है।
swami vivekananda quotes in hindi 11-20
- सूर्य का महत्व इसी कारण होता है कि वह सभी दिशाओं में अपना प्रकाश प्रकीर्णत करता है।
- जिसे जाति-कुल और धन का अभीमान हो, वह कभी सन्यासी नहीं हो सकता।
- शांति की प्राप्ति में स्वयं को पूर्ण समर्पित करना पड़ता है।
- केवल गृह का त्याग कर देने से ही कोई गौतम नहीं बन जाता।
- भय इस संसार के सब दुखों का मूल है। निर्भीकता स्वर्ग का माध्यम है।
- जैसे गुरु रखे, वैसा रहना ही एक सच्चे शिष्य का धर्म है।
- ईश्वर अवतरित नहीं होता, वह तो हर क्षण उपस्थित रहता है-प्रत्येक मनुष्य में अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ!
- धर्म की रक्षा जीवन का कर्तव्य है और जीवन की सरसता धर्म का स्वभाव!
- शक्ति के बिना संसार का उद्धार नहीं हो सकता।
- मृत्यु भय देती है, पर संकल्पवान के समक्ष उसे भी भय लगता है।
स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन 21-30
- एक अपरिचित देश में किसी परिचित के होने से वहा अधिक आसानी होती है।
- क्षुधा की प्रबलता जब अपने चरम पर होती है तो व्यक्ति अपने मानसिक संतुलन को भी नहीं संभाल पाता।
- मानव अस्तित्व ही भावनाओं पर टीका हुआ है।
- सनातन सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता में ही विश्वाश नहीं करता, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार भी करता है।
- जिन्हे चोट कभी नहीं लगी है, वे ही चोट के दाग की ओर हंसीं से देखते हैं।
- विज्ञान एकत्व की खोज के सिवा और कुछ नहीं है।
- मन में किसी छवि के बिना आए कुछ सोच लेना उतना ही असंभव है, जितना श्वास लिए बिना जीवित रहना।
- परदेश में किसी अपने को मिलना भावनाओ के आवेग को तेज कर देता है।
- निरोगी काया ही परिवर्तन का बड़ा घटक है।
- व्यक्ति की परख उसके अपने आदर्शों के अनुसार करनी चाहिए, दूसरों के आदर्शों के अनुसार नहीं।
swami vivekananda quotes in hindi 31-41
- यह हमें विशेष रूप से जान लेना चाहिए कि हमारी धारणा के अनुसार सारा संसार नहीं चल सकता, बल्कि हमें ही सारे संसार के साथ मिल-जुलकर चलना होगा।
- दूसरों की हिंसा करते हुए तुम अपनी ही हिंसा करते हो, क्योंकि वे सब तुम्हारे ही स्वरूप हैं।
- उठों, एक बार और उठों, क्योंकि त्याग के बिना कुछ नहीं हो सकता।
- दूसरों की यदि सहायता करना चाहते हो तो तुम्हें अपने अहंभाव को छोड़ना होगा।
- पूर्णता का मार्ग यही है कि स्वयं पूर्ण बनने का प्रयत्न करना तथा कुछ थोड़े से स्त्री-पुरुष को पूर्ण बनाने का प्रयत्न करना।
- सर्व साधारण को शिक्षित बनाइए एवं उन्नत कीजिए, तभी एक राष्ट्र का निर्माण हो सकता है।
- चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़कर अपना रास्ता बना सकता है।
- औरों के हित के लिए काम करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
- जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह किसी महान आदर्श के पीछे लगाया जाए।
- शिक्षा से आत्मविश्वाश आता है और आत्मविश्वास से अंतर्निहित ब्रम्हा भाव जाग उठता है।
- उठों, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक नहीं रुकों।
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