Lapoojhanna Book in Hindi by Ashok Pandey

Summary of Lapoojhanna Book in Hindi by Ashok Pandey pdf download

Summary of Lapoojhanna Book in Hindi by Ashok Pandey pdf download. अशोक पांडे द्वारा लिखित एक बेहतरीन बचपन की झांकी, जिसे सब कोई एक बार देखना पसंद करेगा। और अपनी बचपन में बिताई गई समय को याद कर मुस्कुरा देगा।

Review of Lapoojhanna Book in Hindi by Ashok Pandey

कभी-कभी आप कोई ऐसा काम करते हैं, जिसे करते वक्त आपके मन में एक सवाल उठता है कि आप इस काम  को क्यों कर रहे हैं, लेकिन फिर भी आप उस काम को करते हैं। और निरंतर करते जाते हैं। जब आपका काम खत्म होकर उसका रिजल्ट सामने आता है, तो आप अचंभित हो जाते है क्योंकि जो काम आप कर रहे थे, रिजल्ट उससे भी बेहतरीन होता है। ऐसा कुछ महसूस मुझे हुआ, इस किताब को पढ़ते हुए और फिर पढ़ने के बाद।

“लपुझन्ना” अशोक पांडे द्वारा लिखित उस्ताद और शागिर्द की खूबसूरत उपन्यास है। जो बचपन की दोस्ती को समझाने के लिए एक बहुत बड़ी गाथा है।  लेकिन मैं इसे अशोक की बायोग्राफी या उनकी बचपन की कुछ यादें कहूँगा। अशोक को अपने बचपन की इतनी  तगड़ी यादें हैं, ये सोचने की बात है।

“लपुझन्ना” बाकि उपन्यासों से बहुत ही अलग है। क्योंकि इसमें कोई मार-काट, रोमांस या फिर किसी चीज की चाहत में पीछे भागते पात्र तो नहीं है लेकिन फिर भी बहुत कुछ है। जो पढ़ने लायक है। इसमें दो लड़कों के बचपन और उनके दोस्ती के प्रति ईमानदारी है। हिन्दू है, मुसलमान है, बसपन का प्यार है, आज़ादी है। शिक्षकों द्वारा पढ़ाई जाने वाली क्लास है, तो वही बच्चों द्वारा उन्हे उपनामों से संबोधित किये जाने की लालच भी है।    

बचपन पर लिखे जाने वाली बहुत कम ही किताब लेखकों द्वारा लिखी जाती है। जबकि ये सबसे बड़ा सब्जेक्ट है। पर ज़्यादातर लोग इस पर ध्यान नहीं देते। इसके पहले मैं मानव कौल द्वारा लिखित ”शर्ट का तीसरा बटन” पढ़ा था, जो लड़कों के बचपन पर आधारित है और दूसरा अशोक पांडे द्वारा लिखित यह किताब। 

मैने इस उपन्यास को पढ़ते वक्त अपने को खोजा है, पर उतना कुछ नहीं मिला, जितना इसमें मौजूद है। दोस्त होना ऊपरवाले का दिया हुआ सबसे अनमोल खजाने में से एक है, जिससे मेरा हमेशा से एक नियमित दूरी बनी रहती है। मैं इस किताब को उन लड़कों को बूलूँगा पढ़ने के लिए, जो चहार-दीवारी के अंदर सिमट कर रह जाते हैं। और उनकों भी बोलुगा पढ़ने के लिए जो लफत्तू जैसा बचपन जी चुके हैं। ताकि उन्हे अपने बचपन पर गर्व हो।

Summary of Lapoojhanna Book in Hindi

लेखक द्वारा लिखी जाने वाली यह किताब नौ साल के अशोक और लफत्तू की कहानी है। अशोक के पिता की अलमोंढा से ट्रांसफर होने के बाद पूरे परिवार सहित रामनगर चले आ गए। जहां अशोक की मुलाकात उसी मुहल्ले में रहने वाले लफत्तू नाम के लड़के से होती है, जो कि उसका हमउम्र है और सहपाठी भी। जितना सीधा-साधा और संस्कारी अशोक है, इसका ठीक उल्टा लफत्तू।

लफत्तू एक चोर है। आए दिन अपने माता-पिता और भाई के पैसे या जरूरत पड़ने पर घर को कोई समान ही चुरा कर बाज़ार में बेच देता है और कभी-कभी तो वो सामान बेचने में अशोक का मदद भी लेता है। लफत्तू चोर है, ये बात उसके घर वाले भी जानते है, और अशोक के घर वाले भी। इसमें खास मबाट ये है कि लफत्तू के घर वाले भी अशोक को उससे दूर अरहने को कहते हैं लेकिन अशोक को लफत्तू खास लगता है। उसका आजाद और बेखौफ जीवन अशोक को प्रभावित करता है, जिस कारण वश अशोक लफत्तू को अपना हीरो मानता है।

अशोक एक सीधा-साधा और पढ़ाई-लिखाई में तेज-तर्रार लड़का है, तो वहीं लफत्तू मुहल्ले के सबसे बदमाश, चोर-चपाती और खेल-कुद में तेज-तर्रार है। लाल सिंह के दुकान से बमपकौड़ा खाँने के लिए और चोरी-छिपे फिल्म देखने के लिए घर से कोई भी सामान, पिता और भाई के जेब से पैसे चुराता है।

अशोक और लफत्तू मुहल्ले के एस. पी. इंटर कालेज में क्लास सिक्स में एडमिशन हो गया और दोनों स्कूल जाने लगे। स्कूल के मास्टर ऐसे थे, कि बच्चों को पढ़ाते कम मारते-पीटते और गाली-गलौज ज़्यादा करते थे। दुर्गादत्त मास्साब क्लास में जासूसी के उपन्यास पढ़ा करते थे। स्कूल में सबसे ज़्यादा खौफ तिवारी मास्साब का था। प्रागैतिहासिक समय से उन्हे थ्योरी मास्साब कहा जाता था। कोयले की रंगत वाले थ्योरी मास्साब हमे चित्रकला यानि आल्ट के अलावा भूगोल यानि भिगोल भी पढ़ाते थे। मास्साब के पास तेल पिलाया हुआ एक पुराना डंडा था। जिसका नाम गंगाराम था। जिससे बच्चों की सुताई होती थी। 

सिचाई डिपार्टमेंट में काम करने वाले एक इंजीनियर साहब अशोक के पिता के दोस्त थे। उनका बेटा ज़ियाउल अशोक का सहपाठी होने के नाते दोस्त था। ज़ियाउल अशोक के साथ कभी-कभार खेलने आता था लेकिन बागड़बिल्ला, जो घुच्ची खेलने मे माहिर था, उसे हमेशा चोर बना देता था। लेकिन अशोक ने ऐसा करने से मना कर दिया और उसके बदले अपने को चोर बनना स्वीकार किया, जिसके बाद वो हमेशा बनता ही रहा।

अपने माता-पिता द्वारा उसे हमेशा ज़ियाउल से दूर रहने की सलाह मिलती थी, लेकिन अशोक और लफत्तू किसी की नहीं सुनते थे, एक दिन चोरी-छिपे ज़ियाउल के घर को पहुच गए और बकायदा नास्ता-पानी कर खाना खाने के बाद घर को लौटे। ज़ियाउल की अम्मी और उसके बहनों द्वारा लाड़-प्यार पाकर दोनों जियाउल को एक अछा लड़का और घर-परिवार वाला मानने लगे। और उन सभी बातों को नकार दिया, जो ज़ियाउल को लेकर पड़ोसी और उसकी माता कहा करती थी।

दोनों का जीवन यू ही हसी-मजाक और खेल-कुद में बितने लगा। कि एक दिन लफत्तू का तबीयत बहुत खराब हो गई। जिसकी इलाज करने के लिए उसे मुरादाबाद जाना पड़ा। लफत्तू के मुरादाबाद जाने के बाद अशोक को बहुत कचोटता था। उसके बिना अशोक की जिंदगी अकर्षणविहीन हो गई थी। लेकिन ये सिर्फ कुछ दिनों की बात थी, लफत्तू मुरादाबाद से इलाज करा कर अपने घर को लौट गया। जिसे चादर में लपेटे हुए देखने के के बाद अशोक को लगा कि लफत्तू मर गया और रोने लगा लेकिन कुछ देर उसे पता चला कि ऐसा नहीं है, वो जीवीत है और उसे डॉक्टर ने इधर-उधर आने-जाने से मना किया है।

जिसके बाद अशोक अपने माता-पिता से पूछने के बाद उसके घर जाने लगा। तबीयत खराब होने की वजह से लफत्तू की शरीर गल चुकी थी। शरीर दुबला हो चुका था। साथ के खेलने वाले लड़के भी उसके घर जाकर उसका हाल-चाल लिया करते थे। जिससे लफत्तू को अच्छा लगता था। और हसी-खुशी दिन बित जाता था।

साल बितने को था, अशोक के पिता ने नैतिनाल वाले स्कूल हॉस्टल में एडमिशन के लिए टट्टी मस्साब (ऐसा मुहल्ले के लड़कें उन्हे संबोधित करते थे।) को अंग्रेजी पढ़ाने का ट्यूशन घर पर कर दिया। उसी स्कूल में एडमिशन के लिए मुहल्ले के पापा के दोस्त की लड़की नसीम अंजुम भी घर पर आने लगी। जो बहुत ही प्यारी थी। जिसे देखते ही प्यार करने को मन करता था। अशोक का दिल उस पर आ गया था, और वो भी पढ़ाई के दौरान अशोक को घूरा करती थी। लेकिन अशोक का मन उससे उचट गया। स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद अशोक के पिता ने उसे नैनीताल वाले स्कूल के हॉस्टल में दाखिला करा दिया।

हॉस्टल में पहुचने के बाद अशोक को बने हुए स्कूल के रुल-रेगुलेशन पर चलना बहुत कठिन था। लेकिन अशोक ने उसका पालन किया। स्कूल के एक रुल की वजह से अपने परिवार वालों को हर हफ्ते एक लेटर लिखना होता था। जिसका फायदा उठाते हुए अशोक ने लफ़तू को, फिर माता-पिता को खत लिखता । महीने में सबसे ज़्यादा खत लफत्तू के नाम के ही जाते थे, और लफत्तू भी उसे हर खत का जवाब लिखता था। किसी तरह साल बिताने के बाद अशोक जब घर पर लौटा तो तुरंत सबसे पहले लफत्तू से मिलने उसके घर को गया। जहां दोनों एक-दूसरे को देख कर बहुत खुश हुए। और दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।

कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

  • मुझसे थोड़े बड़े यानी बारह-तेरह साल के लड़के गुल्ली-डंडा और कंचे खेला करते थे . लफत्तू मेरी उम्र का था लेकिन चोर के रूप में उसकी ख्याति होने के कारण यह बड़े लड़के उसे अपने साथ खेलने देते थे। उसका नया दोस्त होने के नाते मुझे खेलने को तो कम मिलता था लेकिन बिना गाली खाए उनके कर्म क्षेत्र के आसपास बने रहने की इजाजत होती थी। गुल्ली-डंडा खेलते वक्त वह मुझे अक्सर पदाया करते थे लेकिन उनके साथ हो पाने को मैं एक उपलब्धि मानता था, तो खुशी-खुशी पदा करता।
  • कभी-कभी, खासतौर पर जब लफत्तू अपने पापा के बटुए से पैसे चुरा कर लाया होता था, यह लड़के घुच्ची खेलते थे। घुच्ची के खेल में कंचों के बदले 5-5 के सिक्कों का इस्तेमाल हुआ करता था। 5 पैसे में बहुत सारी चीजें आ जाती थी। इस खेल में लफत्तू अक्सर हार जाता था क्योंकि उसका निशाना कमजोर था। वह अमूमन अठन्नी ₹1 चुराता था। बड़े नोट न चुराने के पीछे उसकी दलील यह होती थी कि उन्हे तुड़वाने में जोखिम होता है।
  • गुच्ची में एक, दो और 5 पैसे के सिक्के चाहिए होते थे । चुराई गई अठन्नी-चवन्नी के बदले इन सिक्कों को हासिल करने के लिए उसे चाय की दुकान वाले शेर दा या जब्बार कबाड़ी के पास जाना होता था । एक बार वह पूरे 5 का नोट चुराया, जिसे तोड़ने के लिए वह मुझे अपने साथ लक्ष्मी बुक डिपो लेकर गया। वहां जाने से पहले उसने मुझे नोट थमाया और कहा कि मैं अपने लिए कोई मैगज़ीन खरीद लूं। वह मुझे अपने साथ इसलिए लेकर गया कि बकौल उसके मुझे होशियार माना जाता था ऐसे बच्चों पर कोई शक नहीं करता ।
  • लफत्तू और मैं पढ़ाई-लिखाई के बारे में कभी बात नहीं करते थे। घर से भी कर या ऐसे ही कोई चीज स्कूल ले कर जानी होती तो लफत्तू के लिए वे चीज़े मैं लेकर जाया करता। हमारी आपसी  समझ इतनी बन गई थी कि लफत्तू की चीजें खरीदने के लिए मैं मां से झूठ बोल देता था और बौने के ठेले पर होने वाले हमारे आयोजनों मे अपने पापा की जेब से चुराए पैसों से लफत्तू पेमेंट किया करता।
  • दिसंबर-जनवरी के दिन थे । दो हफ्ते की सर्दियों की छुट्टियां हुई। लाल बेलबाटम पहनने वाला, अंग्रेजी पढ़ाने वाली पड़ोसी मैडम का भाई इस बार नैनीताल से गिटार लेकर आया था।  मैं उसका प्रशंसक था जबकि लफत्तू को से नफरत थी। बातचीत में उसका जिक्र आते ही गालीज्ञान का निर्बाध प्रदर्शन करने लगता था।
  • सिंचाई डिपार्टमेंट में काम करने वाले एक इंजीनियर साहब बापू  के दोस्त थे। उनका बेटा और मेरा सहपाठी जियाउल कभी-कभी हमारे साथ कायपड्डा  खेलने आता था।  बागड़बिल्ला उसे हर बार चोर बना देता। नतीजतन वह खेल भर पदा रहता। मेरी कक्षा में पढ़ने वाला होशियार ज़ियाउल मुझे अच्छा लगता था। उसके और मेरे सेक्शन अलग-अलग थे। अपने सेक्शन में हमेशा फर्स्ट आकार मास्टरों के नकली शाबाशी पा लेता था ।
  • पिटाई खाने के 1 हफ्ते तक लफत्तू को कहीं नहीं देखा गया। मैं अकेला दुख में डूब गया।  सारा मोहल्ला उसके पापा की थू-थू कर रहा था क्योंकि यह माना जा रहा था कि लफत्तू को गहरी गुम चोटें आई हैं। शुरू के दो-तीन दिन अपने सामने लगा खाना देखकर मेरे गले में जैसे कोई सूखा पत्थर फस जाता। एक दिन मेरी बहन जो लफत्तू की बहन की दोस्त ने घर पर सबको और खासतौर से मुझे सुनाते हुए सूचना दी कि दो-तीन दिन में लफत्तू बिल्कुल ठीक हो जाएगा।  वह खुद अपनी आंखों को देख कर आई है। मेरी उदासी और बढ़ गई।
  •  उर्स से पहले दरगाह में जाकर मन्नत मांगने का रिवाज था । उर्स के पहले दिन जियाउल अपनी मम्मी के साथ दरगाह जाने वाला था।  मैंने पिछली शाम उस से तकरीबन भर्राये गले से गुजारिश की कि मेरी तरफ से दुआ मांग ले कि लफत्तू जल्दी ठीक हो जाए।

लफत्तू का डायलॉग

“वो जमाने  लद गए बंतू बेते जब गधे पकौली हगते थे।“

पात्रों का चरित्र-चित्रण-

अशोक- अशोक लफत्तू का सबसे अच्छा दोस्त है। जो सीधा-साधा, संस्कारी और पढ़ाई में तेज है। जिसके वजह से मोहल्ले के लोग उसे होशियार कहते हैं। अशोक को अपने बचपन की आज़ादी पसंद है। 

लफत्तू- लफत्तू अशोक का सबसे अच्छा और प्यारा दोस्त है। जिसकी आवाज तोतली है, जो अशोक को प्यारी लगती है। लफत्तू आजाद खयाल का घुमक्कड़ और चोरी-चपाटी करने वाला लड़का है। जिसे सब बदमाश कहते हैं और मुहल्ले के लोग अपने-अपने बच्चे को उसके साथ घूमने को मना करते हैं। 

लाल सिंह- लाल सिंह लफत्तू और अशोक का सहपाठी होने के साथ-साथ दोस्त है। जिसके पिता बमपकौड़े की दुकान लगाते हैं। लफ़तू और अशोक कभी भी उसकी दुकान से बमपकौड़े खा सकते हैं।

FAQ

Q: लपु झन्ना का मतलब क्या होता है।

Ans: लपुझन्ना का कोई खास मतलब नहीं मिला है। मैने हर जगह खोजने की कोशिश भी की पर कोई उत्तर नहीं मिला ।  

Q: लपुझन्ना के लेखक कौन है?

Ans: अशोक पांडे ।

Q:  अशोक और लफत्तू की दोस्ती कैसी थी?

Ans: सबसे प्यारी और गहरी दोस्ती, दोनों एक-दूसरे के लिए कुछ भी कर सकते हैं ।

Q: क्या लफत्तू तबीयत खराब होने के बाद फिर कभी स्कूल जा पाया?

Ans: हा! लफत्तू का तबीयत ठीक होने के बाद स्कूल जा पाया लेकिन उसके तबीयत ठीक होने में एक साल लग गए।

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