Review And Summary of Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi. अमीश त्रिपाठी और उनकी बहन भावना रॉय के साझे से लिखा लिखा गया किताब “धर्म: सार्थक जीवन के लिए महाकाव्यों की मीमांसा” है।

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Review of Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi
धर्म: सार्थक जीवन के लिए महाकाव्यों की मीमांसा” हिन्दी अनुवाद शुचिता मितल ने किया है। अमीश की इस काव्य को एक आध्यात्मिक नजरिए से देख सकते हैं। जो सेल्फ मोटिवेटेड किताब भी है। अमीश ने कहा कि आपको इसे आध्यात्मिक नहीं समझना है, आप बस इसे अपने लिए एक ज्ञान वर्धक की तरह लीजिए। यह पिछली रचनाओं की तरह कोई फिक्शन उपन्यास नहीं है। जैसा की इस किताब के सबटाइटल मे लिखा गया है। सार्थक जीवन के लिए महाकाव्यों(शिव रचना त्रयी और राम शृंखला के साथ महाभारत) के कुछ प्रमुख पात्रों के जीवन से घटित कार्यों को लेकर इस किताब मे उपस्थित चार पात्रों के चर्चा के माध्यम से समझाने का प्रयत्न किया है। जिस तरह अमीश ने अपनी उपन्यासों से पाठकों के दिलों मे अपना पैठ बनाया है, उसी का खयाल रखते हुए इस किताब की रचना की गई है।
इस किताब को पढ़ते वक्त इसमे कुछ सवालों के साथ जवाब भी हैं, जिन्हे अपनी पिछली रचनाओं के पात्रों: काली का मेलुहा के प्रति क्रोध, गणेश का क्रोध के साथ धैर्य, कुंभकर्ण का दयालु और निष्ठा अपने दुस्ट भाई रावण के प्रति, सुपूर्णखा का रावण के प्रति ईर्ष्या, महाभारत मे कर्ण का अर्जुन के प्रति ईर्ष्या और दुशासन का युधिष्ठिर के प्रति द्वेष आदि है।
आप इस किताब को धीरे-2 आराम से ही पढे वरना आप बहुत सी चीजों की जानकारी हासिल करने से वंचित रह जाएंगे। हो सकता है इस किताब को पढ़ते वक्त आपको उबासी और कभी-कभी नींद की झपकी भी आए । कुछ तथ्यों को समझाने के लिए जिस प्रकार छोटी-2 महाकाव्यों के घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है, थोड़ी रोचक लगती हैं। और अंत मे वर्तमान मे जीने के लिए प्राणायाम की क्रियाविधी कराते हुए मसला को हल किया गया है।
Summary of Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi
नचिकेत होटल के काम से छूटने के बाद अपने श्वसुर धर्मराज के घर पहुचता है। और थका हुआ धर्मराज के सामने एक गद्दी पर बैठ जाता है। जीसे धर्मराज कर्म कहते हैं। नचिकेत जब थोड़ा सही होकर बैठता है तो उसकी नजर धर्मराज के बाजू मे पड़ी एक किताब “रावण : आर्यवर्त का शत्रु” पर पड़ती है। जिसके बाद दोनों मे एक के बाद एक सवाल-जवाब होने लगते हैं। नचिकेत के पूछे जाने पर धर्मराज अमीश की शिव रचना और राम शृंखला के साथ-2 महाभारत के कुछ महान पात्रों के साथ घटी घटनाओं और विचार साझा करते हैं।
इन सब सवाल-जवाब के बीच धर्मराज की पत्नी लोपमुद्रा और नचिकेत की पत्नी गार्गी भी शामिल हो जाते हैं। जो इस संवाद को और भी रोचक बनाते हैं। एक सवाल के जवाब के बाद किसी दूसरे के मन मे दूसरा सवाल पनकता रहता है।
नचिकेत द्वारा सवाल कर्म क्या है? पूछे जाने पर धर्मराज एक शेर और हिरण की कहानी सुनाते हैं। जिसमे शेर अपने भूखे शावकों का पेट भरने के लिए दूर खेल रहे हिरण के बच्चे का शिकार करने जाता है, लेकिन उन बच्चों की माँ खुद को शेर के सामने कर लेती है ताकि उसके बच्चे बच जाए और समय मिलने पर दूर भाग जाए। जिसमे हिरण और शेर अपना-2 कर्म करते हैं। जो एक-दूसरे के लिए अच्छा या बुरा हो सकता है।
स्वधर्म बनाम धर्म- जैसे महाभारत के समय गंधारी धृतराष्ट्र से व्याहने के बाद जब अपने ससुराल हस्तिनापुर को आई थी। तो अपने पति धृतराष्ट्र को अंधा देख कर उसने भी अपने आँखों पर काली पट्टी बाधने का निर्णय किया, जो उसे नहीं करना चाहिए। गंधारी को अपने पुत्र दुर्योधन की उन सारी गलतियों से उसने मुह मोड लिया, जो उसे सही-गलत समझा सकती थी, या धृतराष्ट्र को बता सकती थी। जो उसका धर्म था। लेकिन उसने अपने स्वधर्म को आगे रखा।
ईर्ष्या का बोझ- इसमे धर्मराज ने दुर्योधन और कर्ण के माध्यम से समझाने की कोशिश किया है। जिस प्रकार दुर्योधन पांडवों से और कर्ण अकेले अर्जुन से ईर्ष्या करता है। पांडवों द्वारा भरी सभा मे कर्ण को बेइज्जत करना, कर्ण के लौ को जला देता है। और कर्ण ना चाहते हुए भी दुर्योधन का सखा बन जाता है क्योंकि उसने कर्ण के आत्मसम्मान की दृढ़ता से रक्षा की थी। जीसे कर्ण भली-भाति समझता है। और दुर्योधन द्रोपती से ईर्ष्या करता है,जिसने उसे अंधे का बेटा अंधा कहा था। यही कारण है कि महाभारत जैसी भीषण युद्ध का उधगम हुआ।
अपने मन की सुने-
विनम्रता की दलील- सोलह साल की सती, पर्वतेश्वर और दक्ष सरस्वती नदी के तट पर विहार के लिए गए हैं। सती वन से निकल कर एक स्त्री के पास पहुचती है। जिस पर काफ़ी संख्या मे जंगली कुत्तों ने हमला किया हुआ है। वह भी दहाड़ती हुई पहुच जाती है और लड़ने लगती है। सती के पुकारने पर उसके अंगरक्षक पर्वतेश्वर और दक्ष पहुच जाते हैं। और इस तरह उस स्त्री को बचा लिया जाता है। सती उस स्त्री के प्रति विनम्रता दिखाती है।
निष्ठा एक फिसलन ढलान है- अमीश की रचना के अनुसार रावण पंद्रह वर्ष की आयु तक रावण सिद्ध हस्त तस्कर बन गया है। सफल, सक्षम और क्रूर। दूसरी ओर कुंभकर्ण भला और संवेदनशील है। वह तब भी सहानुभूति से भरा रहता है, जब रावण अपनी सारी कोमल भावनाओं को उतार फेकता है। अलावा जो एक ही दिशा मे जाती थी: वेदवती।
कुंभकर्ण ईश्वर से डरता है। सीता के स्वयंवर मे रावण का पिनाक फेक के चले जाने पर कुंभकर्ण उसे उठाकर माथे से लगाते हुए सम्मानपूर्वक पीठिका के पास रखते हुए प्रभु रुद्र से अपने भाई के लिए क्षमा-याचना करता है।
क्रोध का मोल- काली जो की एक नागा है, पूरे मेलुहा से ईर्ष्या करती है और उन सबको मार देना चाहती है उसे और गणेश को अपने एक विकर्ण होने के वजह से उसे राज्य से निकाल दिया गया था, और उसकी बहन सती को उसके बहन और बेटे के बारे मे ये बताया जाता है कि गणेश मरा हुआ ही पैदा हुआ था। जीसे जंगल मे काली ने गणेश को सहारा दिया और लालन-पालन किया। काली जब मेलुहा को दोषी करार देते हुए मारने का निर्णय करती है तो गणेश अपनी सूझ-बुझ से विनम्रता दिखाते हुए काली को ऐसा करने से रोकते हैं।
महत्वपूर्ण तो वर्तमान ही है- अगली सुबह नचिकेत अपने होटल निकलने से पहले गार्गी के साथ मिलकर प्राणायाम करते हैं। जिसमे गार्गी प्राणायाम करने के तरीके अपने डेमो के साथ एक-2 स्टेप बताती रहती है, जीसे सभी फालों करते हैं। गार्गी स्वास लेने के सही तरीके भी बताती है। धर्मराज हमेशा से ऐसा करने का निर्णय लेते हैं। और प्राणायाम करने के बाद नचिकेत अपने होटल को चला जाता है।
The Best Review And Summary of Thrilar Book in Hindi
Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi का सारांश
कर्मठता- कर्मठता क्रियाशीलता, कोशिश, दक्षता और अनुशासन को गले लगती है। बदलाव का स्वागत करती है। छोटी-छोटी लड़ाइयाँ लड़ती है। जैसे सबेरे छः बजे उठना। आज कल और हर रोज। कर्मठता जिम्मेदारी को समझती है और बहानों से किनारा करती है। कर्मठता दूसरों की कर्मठता के भरोसे नहीं रहती। यह लय की तलास करती है। यह फंटसी और अव्यावहारिक सपनों से बचती है। इसके हथियार कल्पनाशीलता, फोकस और आत्म-निरीक्षण होते हैं।
लापरवाही- लापरवाही हमे अनेपक्षित बर्ताव करने को मजबूर कर देती है। यह आज्ञानतापूर्ण काम की ओर ले जाती है। ऐसे काम जो आदतन, बिना जाँचे-परख,असावधानीपूर्ण होते हैं। यह बहानों की तलाश करती है और उन्हे आसानी से ढूँढ़ भी लेती है। दूसरों के प्रति तिरस्कार, आक्रोश और आकलन इसके हथियार होतें हैं।
लापरवाही के कुछ मनपसंद वाक्यांश होते है: “मैं भूल गया”, “आज नहीं जाऊंगा”, “कल करूंगा”, “अभी टाइम है”, “ध्यान ही नहीं गया”, “तो मैं करू”, “मैं ही क्यू?”, “मैं अगली बार ऐसा नहीं करूंगा।“
Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi के कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश
- शब्दों के बीच धर्म एक अबूझ पहेली ही है। इसे पकड़ पाना मुश्किल है, यह अगोचर है और बेतहाशा गूढ़ है। परिभाषा मे ज़रा स हेरफेर किया तो यह कुछ और ही अर्थ ले लेता है। मगर फिर भी,भारतीय दर्शनशास्त्र ब्रम्हांड के भीतर ही निहित है।
- हमारे सांस लेने का तरीका बुनियादी तौर पर हमारे स्वास्थ से जुड़ा है। साँसे और भावनाएं बारीकी से आपस मे जुड़ी होती हैं। और अपनी भावनाओं पर बेहतर पकड़ बनाकर हम अपने सोचने और व्यवहार करने का तरीका बदल सकते हैं। इसलिए सांस लेने को सशक्त और प्रभावशाली कार्य कहा गया है।
- संतुष्ट होने का राज चाहने और होने के बीच के बारीक अंतर को समझने मे निहित है। हममे से ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि एक बार हमें वो मिल जाए जो हम हम चाहते हैं, तो हम सुखी हो जाएंगे। इसके बजाय, जिस पल हम एक इच्छा पूरी करते हैं, दूसरी इच्छा उसकी जगह ले लेती है।
- प्रेम, वासना पर हावी हो जाता है और उसे नष्ट कर देता है। वासना प्रबल हो सकती है। प्रेम के लिए उस पर काबू पाना और उसे वक्ष मे करना बहुत मुश्किल हो सकता है। कभी-कभी, हमारी ईमानदार कोशिशें भी पतन के एक विवेकहीन पल मे नाकाम हो सकती हैं। जबकि निष्ठा समय के साथ बेहद उपयोगी हो सकती है।
- जन उन लोगों की बात आती है जो ‘हमारे अपने’ नहीं होते, तो जजमेंट ज़्यादा सख्त हो जाता है। अगर हम किसी को पसंद करते हैं।, तो उसकी कमियाँ नहीं देखते; और अगर किसी को नापसंद करते हैं, तो उनमे कोई गुण नजर नहीं आता। यह परफ़ेक्ट फिल-गुड रेसिपी है।
- सम्मान वापस लेना असम्मान करने जैसा नहीं है। जब आप अपना सम्मान वापस लेते हैं, तो अपनी शिष्टता को छोड़ नहीं देते हैं। बल्कि इसका उलट है। आपको करुणा और समझबूझ से काम लेना होगा। मानव प्रकृति हम सबसे छल करती है, और असम्मान केवल घमंड और असहिष्णुता से उभरता है।
- प्राणायाम ध्यान अभ्यास के रूप मे शुरू होता है। अपने साथ जबरदस्ती न करे। अपने विचारों को तन नियंत्रित करने या बाहर निकालने की कोशिश न करे। केवल गौर करे। वर्तमान क्षण, यह सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। वर्तमान क्षण मे सांस ही एकमात्र चीज़ है जिस पर हम सचेत रु से नियंत्रण कर सकते हैं। बाकी सब-विचार, भवनाए, योजनाएं- वे सभी भूत या भविष्य मे हो सकती हैं। और वर्तमान मे भी हम अपनी सांस को भविष्य के लिए बचाकर नहीं रख सकते।
Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi के शानदार कोट्स-
- परम्पराएं राख की पूजा करना नहीं बल्कि अग्नि को संरक्षित करना है।
- आध्यात्मिकता आंतरिक संसार के विषय मे होती है।
- अच्छाई की असफलता मे ही तथाकथित दुष्ट जीवन के बीज होते हैं। या अच्छाई के चोटिल होने मे। जब चरित्र का पाटन होता है, तो अक्सर इसके लिए बहाने तलासते हैं।
- खुद को धोखा देना और झूठा दिलासा देना कहीं ज्यादा आसान होता है। हम उस पर विश्वास करते हैं जिस पर हमे विश्वास करना जंचता है। कर्म अक्सर चुनौती दे सकते हैं और गगुमराह कर सकते हैं।
- बड़ों को, खुद को सम्मान योग्य बनना चाहिए।
- ईर्ष्या के बारे मे यही बात तो है। आप औचित्य तलासते हैं। ईर्ष्या कई बहानों मे खुद को ढांपती है। जैसे-यह गलत है; मैं इसका हकदार हूँ; मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की थी; वह इसकी अहमियत नहीं समझता; मुझे अवसर नहीं दिया गया….
- बेलगाम ताकत विनाशकारी और उद्देश्यहीन होती है। इसका शोषण भी किया जा सकता है। आखिरकार, ईर्ष्या जगाती है। और आक्रोश।
- एक बात याद रखना: अपने नियंत्रण मे रहने या न रहने की तुम्हारी शक्ति का इस बात से को लेना-देना नहीं है की दूसरे लोग तुम्हारे बारे मे क्या महसूस करते हैं।
- अगर खुद को खोजना ही हो तो अकेले मे खोजों।
- कहानियों का आनंद लो, मगर उन पर रुको मत। उनमे गम मत हो जाओ। गहरे उतरो। ज्ञान को छूओ और खुद समझो। इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि वे पारंपरिक ग्रंथों की हैं या उनके आधुनिक रूपांतरण की।
- अक्सर, उच्च नैतिकता वाले लोग हासिए पर बाथकर प्रवचन करते हैं जबकि ‘कमतर’ लोग जमीनी स्तर पर समस्याओं से निबटते हैं।
- जब हम निश्चित सीमाओं को पार करने से पीछे हटते हैं तो हम विवेकपूर्ण हो रहे होते हैं।
- भावनाओं, संवेदनाओं, विचारों, ऊर्जा मे। ये वे साधन हैं जो हमारे चुनावों और अनुभवों को नियंत्रण करते हैं एक बार हम इन साधनों को डिकोड कर लें तो अपनी गतिविधियों पर नियंत्रण पा सकते हैं।
- जीवन आवश्यक रूप से हमारी पाशविक प्रवृति से ऊपर उठाने का नाम है। हमें किसी न किसी जीवनकाल मे मनुष्य होने की क्षमता को पहचानना होगा। तभी हम साहचर्य की सच्ची सुंदरता का अनुभव कर पाएंगे।
- अगर आपको कुछ मांगना है, तो तमीज़ से मांगे। शर्तों के बिना यह मानते हुए कि जिस व्यक्ति से मांग रहे हैं, उसे अपनी प्रतिक्रिया मे ईमानदार होने हक है।
- परिस्थितियाँ ताकतवर से ताकतवर लोगों को भी कमजोर स्थिति मे डाल सकती है।
- जिस तरह हम खुद को देखते हैं, वो उससे बहुत अलग होता है जैसे लोग हमे देखते हैं। कभी-कभी हमे पता होता है कि हम क्या है,लेकिन हम भाऊत ही संधानी से इसे बाकी सबसे छिपा लेते हैं।
- जब गर्व अपना अवलोकन करता है और उसकी जगह वास्तविक विनम्रता ले लेती है, तो गर्व परिवर्तित हो जाता है। जब खुद पर गर्व की जगह वो गर्व ले लेता है जो दूसरे आप पर करते हैं।
- दूसरे के मार्ग पर चलकर सटीक जीवन जीने से स्वधर्म पर चलते हुए गलतीयां करना बेहतर है।
- गुस्सा गलत फैसले करवा सकता है। यह आपको अंधा कर सकता है।
- सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने बारे में क्या सोचते हैं। दूसरों से कहे शब्दों मे नहीं, बल्कि अपने भीतर, और ईमानदारी से अपनी खोज करें, कम से कम अपने लिए!
- प्राणायाम हमें अपनी ही शारीरिक वास्तविकता का निरीक्षण करने मे मदद करता है। अगर हम अपने विचारों का निरीक्षण करना सिख जाए, तो हम उन्हे रोक सकते हैं, उनकी दिशा बदल सकते हैं, उन्हे खामोश कर सकते हैं।
- स्वयं को निरीक्षण कर के हम संस लेने और छोड़ने की दर को संतुलित कर सकते हैं।
Dharm Book in Hindi by Amish Tripathi के पात्रों का चरित्र-चित्रण-
नचिकेत- नचिकेत शिवाजी नगर के ईगो होटल मे काम करने वाला कर्मचारी है। जो अपनी पत्नी गार्गी के उसके मायके मे रहता है। नचिकेत एक बहुत ही संस्कारी और अदब वाला है। जिसके ज़हन मे अपने श्वसुर और और सास की बड़ी इज्जत है। जिसे अपना माँ-बाप समझता है।
गार्गी- गार्गी नचिकेत की पत्नी है। जो योगा क्लास भी देती है। दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। गार्गी इस किताब की और जीवन की सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक को बड़े ही अच्छे से जानती है। गार्गी कहती है कि महत्वपूर्ण तो वर्तमान ही है। और सबको एक साथ बैठाकर कर लाइव टेस्ट भी देती है।
धर्मराज- धर्मराज नचिकेत का श्वसुर और गार्गी का पिता है। जो अपने ड्यूटी से रिटायर्ड होने के बाद किताबों को पढ़ने मे अपना अमूल्य समय देते हैं। जो सदाचार और आध्यात्मिक भी है। नचिकेत को अपने बेटे की तरह मानते हैं। धर्मराज और नचिकेत के सवाल-जवाब के वजह से तो इस किताब की रचना हो सकी।
लोपमुद्रा- लोपमुद्रा धर्मराज की धर्मपत्नी और गार्गी की माँ और नचिकेत की सास हैं। लोपमुद्रा सबसे प्यार और अच्छा व्यवहार रखने वाली हैं। जो बहुत ही भावुक महिला के साथ बहुत समझदार भी है। जिसने महाकाव्यों को पढ़ा है।
FAQ
Q: इंद्रजाल क्या है?
Ans: इंद्र देव ने एक चमत्कारिक जाल बुना और उसे शून्य के विस्तृत विस्तार पर फैला दिया। उसका न कोई आदि है न अंत। वो बस निरंतर चला जा रहा है… अंतहीन फैला हुआ। जाल गाँठो से जुड़ा हुआ है, हर गांठ एक स्पंदनशील तनाव का जगमगाता रत्न है साथ ही हर दूसरे रत्न का अक्स भी। किसी रत्न को स्वतंत्र अस्तित्व की इजाजत नहीं है, और निश्चित अंतराल पर उनका स्थान उनके वंशज ले लेते हैं। इस ताने-बने से कोई बाहर नहीं जी सकता। यही इंद्रजाल है।
Q: कर्म क्या है?
Ans: कर्म एक हरकत है। इसलिए, हमारे मन मे, जाने-अनजाने चलाने वाले विचार कार्य मे आतें हैं। सपने कार्य हैं। जब भी कोई विचार हमारे दिमाग मे आता है, या कोई भावना मेरे दिल को कचोटती है, तो वो कार्य का ही एक रूप है।
Q: पॉल मैकलीन कौन है?
Ans: एक अमेरिकी न्यूरोसाइंटिस्ट हैं। उन्होंने मानव मस्तिष्क का एक विकासमूलक मॉडल बनाया था- त्रयात्मक मस्तिष्क।
Q: त्रयात्मक मस्तिष्क क्या होता है?
Ans: त्रयात्मक मस्तिष्क केवल क्रिया और प्रतिक्रिया समझता है। आप इसे प्रतिक्रिया न करना नहीं सीखा सकते।
Q: क्या सांस लेने का कोई आदर्श तरीका भी है।
Ans: आदर्श रूप से, हमारी सांस का दो-टीहै भाग पेट से जुड़ा होना चाहिए, और बाकी छाती से। अपनी सांस पर नजर रखो, जैसा कि इसने कहा। अगर छाती से श्वसन बहुत ज़्यादा हो, तो खुद से पूछे कि क्या आप भयभीत हैं, अगर हाँ, तो आपको भय किस चीज़ का है? हममे से कई के लिए यह अपने आप में एक दराने वाला सवाल हो सकता है। हम यह मानना पसंद करते हैं कि हम किसी चीज़ से नहीं डरते।
Q: नाड़ी शोधन क्या है?
Ans: यह सांस की एक वर्जिश है जिसका मकसद हमारी बायोकैमिस्ट्री को संतुलित करना है।