Siddharth: Book Review, Summary in Hindi

Siddharth: Book Review, Summary in Hindi, Quotes, FAQ, pdf download

इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे जर्मन लेखक हरमन हेस द्वारा लिखित Siddharth उपन्यास की Book Review के साथ-साथ Summary in Hindi और Siddharth की Quotes के साथ-साथ pdf download भी साझा करेंगे।

Siddharth: Book Review

“सिद्धार्थ” 1920 के दशक में जर्मन लेखक हरमन हेस द्वारा लिखा जाने वाला आध्यात्मिक उपन्यास है। जो महज 100 पन्नों में समाहित है। लेकिन इस 100 पन्नों के किताब ने 1960 के दशक में अपना जलवा बिखेरा और हरमन हेस एक चर्चित लेखक बन गए। इसे अन्य कई भाषाओं में भी प्रकाशित किया जा चुका है। जिसमें हिन्दी भाषा भी शामिल है।

2014 में इसे हिन्दी भाषा में राजपाल एण्ड संस ने प्रकाशित किया और यह आजतक पढ़ने वालों का मार्गदर्शन का काम कर रहा है। यह उपन्यास बुद्ध के मार्गदशन से लिखा जाने वाला किताब है। जिसका मुख्य पात्र सिद्धार्थ अपनी खोज में इधर-उधर की यात्रा करता रहता है। और अपने जीवन में घटी घटनाओं से सिख कर अपने को आत्मसात करता है।

यूं तो पूरब से लेकर पश्चिम तक आध्यात्म पर बहुत सी किताबें बहुत सारे लेखकों द्वारा लिखी गई हैं, जिनमें यह जर्मन किताब ने भी अपना मुख्य योगदान दिया है। इस किताब के माध्यम से हरमन यह बताते हैं कि आत्म खोज के लिए किसी मंदिर, मंत्र या गुरु का चेला बनना ज़रूरी नहीं है। आप अपने सामाजिक जीवन से भी सिख कर अपनी खोज कर सकते हैं। जिस पर सिद्धार्थ खरा उतरता है।

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Siddharth: Summary in Hindi

ब्राम्हण के सुंदर, सुडौल बेटे, उस युवा विहग, सिद्धार्थ ने बचपन और किशोरावस्था के पड़ाव अपने मित्र गोविंद के साथ घर की छाया में, नहीं के किनारे नावों के पास धूप में और साल के वन और उदुम्बर के गाछ की छाँह में पार किये। नहीं तट पर नहाते हुए या पवित्र बलियों के समय पावन स्नान करते हुए सूर्य की किरणे उसके छरहरे कंधों को संवालाती रहीं।

अमराई में खेलते समय, माँ के गुनगुनायें गीतों को सुनते हुए, अपने पिता के सामने बैठकर पढ़ते हुए या ज्ञानियों की संगत करते हुए उसकी आँखों के आगे से परछाइयाँ गुज़रती रहीं। सिद्धार्थ पहले ही बहुत दिनों से ज्ञानियों की चर्चा में हिस्सा लेता आया था, गोविंद के साथ उसने बहसें की थीं और उसी के साथ मनन-चिंतन और साधना का अभ्यास किया था।

अभी से उसने सिख रखा था कि शब्दों के शब्द-ओम्-का उच्चार निःशब्द ढंग से कैसे किया जाए, कैसे उसे सांस के भीतर लेते समय कहे और अपनी आत्मा की पूरी शक्ति से सांस को बाहर निकालते समय भी, शुद्ध अंतःकरण के प्रकाश से दमकते हुए मस्तक के साथ । अभी से वह अपने अस्तित्व की गहराई में अनश्वर आत्मा को पहचानना जान चुका था-संसार के साथ सामंजस्य की स्थिति में।

उसके पिता के हृदय में अपने पुत्र की वजह से प्रसन्नता थी जो बुद्धिमान था और जिसमें ज्ञान की प्यास थी; वे कल्पित कि वह बड़ा होकर महान ज्ञानी, पुरोहित, ब्राम्हणो में सम्राट सरीखा बन गया है।

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एक दिन गावों की आस-पास घूमते श्रमणों को देख कर सिद्धार्थ के मन में जिज्ञासा जगी कि मुझे भी इनके साथ जाना चाहिए। और मुझे भी श्रमण बनना चाहिए। जिसके लिए वह अपने पिता से इसके लिए इजाजत लेता है। पिता न चाहते हुए भी हठी सिद्धार्थ के कारण उन्हे आदेश देना पड़ता है। जिसमें उसका मित्र गोविंद भी साथ देता है। और दोनों श्रमण के लिए निकल पड़ते हैं।

कई दिनों तक श्रमणों के साथ घूमने के बाद सिद्धार्थ को संतुष्टि नहीं मिलती है। वह बेचैन सा रहता है। उसे आत्म संतुष्टि नहीं मिलती है कि सिद्धार्थ और गोविंद को उन्ही श्रमणों में से किसी के माध्यम से आस-पास के इलाके में विचरते बुद्ध और उनके द्वारा दिए जाने वाले उपदेशों के बारे में जानकारी मिलती है।

जिसे जानने के बाद सिद्धार्थ और गोविंद बहुत प्रभावित होते हैं। और उनसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। ऊनके तलास में निकल पड़ते हैं। एक समय आता है जब श्रावस्ती में सिद्धार्थ का बुद्ध से सामना होता है। गोविंद बुद्ध और ऊनके उपदेशों से बहुत प्रभावित होता है और अपने को उन्हे समर्पित कर देता है। लेकिन सिद्धार्थ के मन में कई सारे सवाल पैदा होने के कारण और बुद्ध के उपदेशों में विश्वास न करते हुए गोविंद को बुद्ध के चरणों में छोड़ वह आगे बढ़ जाता है।

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उसे रास्ते में एक नदी मिलती है। जिसे पार करने के लिए एक नाव रहती है। जिसे वासुदेव नाम का व्यक्ति अपने चप्पू की मदद से लोगों को नदी पार कराता है। नदी पार करते हुए वासुदेव और सिद्धार्थ में मित्रता हो जाती है। सिद्धार्थ नगर की ओर जाने के लिए जब नौका से उतरता है तो वह उसके पास कर के रूप में देने के लिए कुछ नहीं होते हैं। अतः वह ये कह कर जाता है कि जब वह दोबारा उसके नौका का इस्तेमाल करेगा तो जरूर देगा।

वासुदेव कुछ नहीं कहता। नौका से उतरने के बाद सिद्धार्थ एक नगर में पहुंचता है। जहां उसकी मुलाकात उस नगर की सबसे सुंदर वेश्या कमला से होती है। कमला को देख कर सिद्धार्थ उसके तरह आकर्षित होता है। चुकि सिद्धार्थ का बलिष्ठ शरीर और उसकी तेज से कमाल भी उससे प्रभावित होती है और उसे चूमती है।

इस मीठे एहसास के लिए सिद्धार्थ उसे पाने की चेष्टा करता है। तब कमला उसे कामस्वामी के बार एमेम बताती है। जो बहुत बड़ा व्यापारी है। जिसके पास बहुत सारा धन-दौलत है। अगर वही सब कुछ सिद्धार्थ भी हासिल कर लेता है तो वह उसकी हो जाएगी। सिद्धार्थ कामसवामी के पास काम करने लगता है। और 20 साल तक कां करते हुए अपनी जिंदगी बिता है। जिसमें कमला और कमला प्यार भी शामिल होता है।

एक दिन सिद्धार्थ अपने को कमजथका हुआ महसूस करता है। उसे महसूस होता है कि वह इस दिन के लिए अपने पिता और गोविंद जैसे मित्र को नहीं छोड़ा था। फिर उसके चक्षु खुलते हैं और वह सब कुछ छोड़कर फिर से उसी नदी के पास पहुँच जाता है, जहां उसकी मुलाकात वासुदेव से होती है। लेकिन इस बार वासुदेव को देने के लिए सिद्धार्थ के पास अपने महंगे कायदे और जूते होते हैं।

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वासुदेव उसे स्वीकार करता है। और सिद्धार्थ के कहने पर उसे अपने साथ अपने छोपड़ी में रहने की अनुमति देता है। दोनों साथ रहने लगते हैं। सिद्धार्थ अपने बीते दिनों की चर्चा करता है और उसने आज तक जो कुछ भी सीखा वह वासुदेव को बताता है। बदले में वासुदेव भी नदी से सीखी जानकारी को सिद्धार्थ से साझा करता है। यहीं उसकी मुलाकात कुछ पल के लिए गोविंद से भी मुलाकात होती है।

फिर गोविंद अपने श्रमणों के साथ आगे बढ़ जाता है। जहां बुद्ध अपना उपदेश सुनाने वाले होते हैं। बुद्ध के अनुयायियों को अपनी जगह दान करने के बाद सत्य की तलास में निकली कमला अपने बच्चे संग उसी नदी को पार करने के लिए पहुचती है कि कमला को एक साँप काट लेता है। वह और उसका बच्चा दोनों मदद से लिए आवाज देते हैं, जिसे सुनने के बाद सिद्धार्थ और वासुदेव दौड़ते हुए आते हैं।

दोनों कमला की मदद करते हैं लेकिन कमला ये कहते हुए अपना प्राण त्याग देती है कि यह बच्चा उसका है। कमला का क्रिया-कर्म करने के बाद सिद्धार्थ अपने बच्चे को पाकर बहुत खुश होता है लेकिन बच्चा उसकी एक न सुनता। और बहुत परेशान करने लगता है, जिसके कारण सिद्धार्थ और वासुदेव को बहुत सारे दिक्कतों का समाना करना पड़ता है। और वह दिन आता है जब वह लड़का वासुदेव की नाव चुराकर नदी के उस पार भाग खड़ा होता है और नगर में प्रवेश कर जाता है, जहां से वह आया था।

सिद्धार्थ उसके पीछे जाने की कोशिश करता है लेकिन वासुदेव उसे समझा-बुझाकर सिद्धार्थ को मना लेता है। दोनों फिर से अपने में नदी द्वारा सिख गई ज्ञान की बातों पर चर्चा करने लगते हैं। एक यह भी समय आता है जब वासुदेव अपनी नाव और झोपड़ी सिद्धार्थ के हाथों सौप कर वह सत्य की खोज में चला जाता है।

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एक बार गोविंद ने विश्राम का समय कुछ और भिक्षुओं के साथ उस वाटिका में बिताया था जो गणिका कमला ने अर्सा पहले गौतम के अनुयायियों को भेंट में दे दी थी। वहाँ गोविंद ने एक बूढ़े मांझी की चर्चा सुनी जो दिन भर के फासलें पर नहीं के पास रहता था और जिसे कई लोग ज्ञानी पुरुष मानते थे।

जब गोविंद वहाँ से चला तो इस मांझी को देखने की उत्सुकता से उसने घाट को जाने वाला रास्ता चुना, क्योंकि हालांकि उसने अपना जीवन नियम-धर्म के अनुसार बिताया था और अपनी उम्र और विनम्रता के कारण अपेक्षाकृत छोटी उम्र वाले भिक्षुओं द्वारा आदर से देखा जाता था, उसके हृदय में अब भी अशान्ति  थी और उसकी खोज पूरी नहीं हुई थी।

वह उस मांझी से मिला, जो अब सिद्धार्थ है और दोनों ने मिलकर विचार-विमर्श करते हुए अपने को आत्मसात किया, जिसके बाद गोविंद ने सिद्धार्थ के प्रति आँसू बहायें…. और ज्ञान की गंगा लगातार बहती रही।

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

सिद्धार्थ ने कहा,”हाँ मुझे विचार आए हैं और यहाँ-वहाँ ज्ञान भी मिला है। कभी-कभी, एक घंटे या एक दिन के लिए मुझे ज्ञान का बोध भी हुआ है, ठीक जैसे किसी को अपने हृदय में जीवन की अनुभूति होती है। मुझे बहुत विचार आते रहे हैं, लेकिन उनके बारे में तुम्हें बताना मेरे लिए कठिन होगा। लेकिन एक विचार जिसने मुझे प्रभावित किया है, वह यह है, गोविंद, “प्रज्ञा या बुद्धि संप्रेषित नहीं की जा सकती।

जो बुद्धि एक बुद्धिमान व्यक्ति संप्रेषित करने की कोशिश करता है, वह हमेशा सुनने में मूर्खता जान पड़ती है।”

“क्या तुम हंसी कर रहे हो?” गोविंद ने पूछा

“नहीं, मैं तुम्हें वह बता रहा हूँ जो मैने खोजा है। ज्ञान बांटा जा सकता है, लेकिन बुद्धि नहीं। हम उसे खोज सकते हैं, पा सकते हैं, उससे पुष्ट हो सकते हैं उसके माध्ययम से अद्भुत कार्य कर सकते हैं। लेकिन उसे बाँट या सीखा नहीं सकते। ”

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पात्रों के चरित्र-चित्रण-

Siddharth-

सिद्धार्थ एक सुशील और सुडौल शरीर स्वभाव का लड़का है। जिसको पांडित्य का पूरा ज्ञान है। वह आज्ञाकारी है। वह एक खोजी है। जिसे आत्म-सात की जरूरत है। जो अपनी खोज में निरंतर भटक रहा है। वह एक सच्चा मित्र है। वह एक जिज्ञासा  वाला व्यक्ति है। जो किसी से भी जब भी मिलता है उससे कुछ सीखने के लिए हमेशा आतुर रहता है।

Govind-

गोविंद एक सच्चा मित्र-भक्त है। वह बचपन से सिद्धार्थ के साथ उसका भक्त बन कर हमेशा उसके साथ रहता है। उसका लँगोटियार बनकर। उसे अपने दोस्त पर पूरा विश्वास है। वह उस पर पूरी निष्ठा से विश्वास करता है।  वह जानता है कि उसका दोस्त एक दिन उस सत्य की खोज कर लेगा, जिसे उसकी तलास है। और वह भी उसी के माध्यम से उस सत्य को अर्जित कर लेगा। वह एक श्रवण श्रोता है।  

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Siddharth: Quotes

खोजने का मतलब है: एक लक्ष होना; लेकिन पाने का मतलब है मुक्त होना।

Siddharth: Quotes

अपने लक्ष्य की ओर बधने के प्रयास में तुम बहुत-सी चीजे नहीं देखते जो तुम्हारी नायक के नीचे है।

Siddharth: Quotes

बुद्धि को संप्रेषित नहीं किया जा सकता।

Siddharth: Quotes

जो बुद्धि बुद्धिमान व्यक्ति संप्रेषित करने की कोशिश करता है, वह हमेशा सुनने में मूर्खता जान पड़ती है।

Siddharth: Quotes

ज्ञान बाटा जा सकता है, लेकिन बुद्धि नहीं।

Siddharth: Quotes

कोई सत्य शब्दों में तभी व्यक्त किया और घेरा जा सकता है अगर वह इकतरफा हो।

Siddharth: Quotes

हर बात जो शब्दों में सोची और व्यक्त की जाती है है, वह एकपक्षी है।

Siddharth: Quotes

कभी कोई आदमी पूरी तरह संत या पूरी तरह पापी नहीं होता।

Siddharth: Quotes

FAQ

Q सिद्धार्थ उपन्यास का लेखक कौन है? 

सिद्धार्थ उपन्यास के लेखक का नाम हरमन हेस है, जो जर्मन का प्रमुख लेखकों में से एक हैं।

Q सिद्धार्थ उपन्यास को पहली बार कब पब्लिश किया गया था?

सिद्धार्थ उपन्यास को पहली बार 1922 में पब्लिश किया गया था।

Q सिद्धार्थ उपन्यास को हिन्दी भाषा में कब और किस पब्लिशर ने पब्लिश किया है?

सिद्धार्थ उपन्यास को हिन्दी भाषा में 2014 में राज्यपाल एंड संस ने पब्लिश किया है।

Q सिद्धार्थ उपन्यास का सारांश क्या है?

खुद को खोजने की अंतरयात्रा की यह कहानी भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। कहानी है गौतम बुद्ध कर जमाने में सिद्धार्थ नामक युवक की जो ज्ञानोदय की तलास में अपने घर-बार को छोड़कर निकल जाता है। इस यात्रा के दौरान सिद्धार्थ को अलग-अलग अनुभव होते हैं। यही सब इस उपन्यास में दर्शाया गया है।

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