इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित कहानी संग्रह किताब Rusty goes to London के कुछ चुनिंदा कहानियों को आपके समक्ष रखेंगे। जो बहुत ही बेहतरीन हैं।
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Book Review
“रस्टी चला लंडन की ओर” रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित “Rusty goes to London” बेस्टसेलर का हिन्दी अनुवाद है, जिसे “रचना भोला(यामिनी)” ने अनुवाद किया है । और राजपाल एंड संस से प्रकाशित किया है। हिन्दी अनुवाद का पहला संस्करण 2019 में प्रकाशित हुआ था और हिन्दी भाषी पाठकों के बीच वितरित किया गया था ।
“रस्टी चला लंदन की ओर” एक कहानी संग्रह हैं, जिसमें कुछ भाग रस्किन द्वारा अपने जीवन के चार साल बिताए लंदन की गलियां और बड़े घर हैं तो वहीं वापसी के बाद अपना सुकून भरा उत्तराखंड का जंगली पहाड़ी एरिया। जहां रस्किन के अपना बचपन बिताया।
अपनी हर कहानीयों की तरह रस्किन की यह कहानी संग्रह की भाषा भी बहुत ही सरल और मार्मिक है। इस किताब में हर तपके के लोगों के लिए कुछ न कुछ है। जो उन्हे अच्छा लगेगा। इस कहानी संग्रह में प्यार है, बचपन है, लंदन की बड़ी इमारते हैं तो वहीं उत्तराखंड की वादियाँ भी है। अल्हड़पन है। जवानी है तो बुढ़ापा भी है। पहलवानी है तो कमजोरी भी है, जीवन हैं तो मृत्यु भी है। जो इस कहानी संग्रह को औरों से अलग बनाती है।
इस कहानी संग्रह का मुख्य पात्र रस्टी, जो अपनी लेखक बनने का सपना लिए बीस साल की उम्र में अपना शहर देहरा छोड़ कर लंदन चला जाता है, और दिन में कलर्क की नौकरी करते हुए रात के अंधेरे में अपने भविष्य को पन्ने पर लिखता रहता है। चार साल बिताने के बावजूद रस्टी को लंदन की गलियां और बड़ी इमारते उसे रास नहीं आती और अपनी यादों में बसाये भारत की वादियों को याद करता है।
आखिरकार वह देहरा वापिस आ जाता है और फिर वहीं ठहरने की विचार करता है। लंडन में रस्टी के साथ अनेक मजेदार किस्से होते हैं, जो इस कहानी संग्रह में सम्मिलित है। रस्किन बॉन्ड के लोकप्रिय पात्र, रस्टी की कहानियों की शृंखला में यह चौथी किताब है। इसे एक बार अवश्य पढ़िये और आनंद लीजिए।
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Rusty goes to London: short stories in hindi
इस कहानी संग्रह में कुछ चौदह कहानियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हे मैने पढ़ा है लेकिन मैं उनमें से कुछ ही कहानियों को आपसे साझा करूंगा ताकि आपको उन्हे पढ़ने में आसानी और अच्छा लगे।
कोपनहेगन से एक लड़की…
रस्टी लंदन में अपने काम करते वक्त उसकी मुलाकात वू नाम की एक गोरी-चित्ती नाटी सी ताईवानी लड़की से से प्यार हो जाता है। जो मुश्किल से उसके कंधे तक आती थी। उसी ताइवान का रहने वाला लड़का तान्ह रस्टी का दोस्त रहता है। दोनों एक-दूसरे से काफी मिलते-जुलते हैं, जिससे उन दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है।
अब दोनों के मिलते-जुलते रहने से दोनों वू को जानते हैं और वू को अपना दिल दे बैठते हैं। बात यहाँ तक पहुचती है कि रस्टी बिना एक पल समय गवाये वू को अपने दिल की बात कह देता है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, और शादी भी करना चाहता हूँ। वू ये कहते हुए टाल देती है कि वो ताइवान में स्थित अपने माता-पिता से पुछ कर ही कोई निर्णय लेगी। तब तक रस्टी को इंतजार करना होगा।
उसी दिन तान्ह भी रस्टी से मिलता है और हसी-खुशी कहता है कि उसने वू को अपने दिल की बात कहीं और उसने स्वीकार भी कर लिया है। रस्टी जब वू के द्वारा कहीं गई बातों को पुछता है तो तान्ह वही कहता है जो वू ने रस्टी से कहा था। तब रस्टी भी बता देता है कि वू ने उसे भी यही कहा। जिसके बाद दोनों निराश हो जाते हैं और रस्टी को ये पता चल जाटा है कि वू उन दोनों से बच निकलना चाहती है। जिससे तान्ह का दिल टूट जाता है। और कुछ दिनों के लिए गायब हो जाता है।
बाद में रस्टी को खबर मिलती है कि तान्ह मर चुका है। वू भी कुछ दिनों के लिए लंडन से बाहर गई होती है। अचानक पंद्रह दिन बाद रस्टी से मिलती है और एक सोलह साल की डेनिश लड़की से परिचय कराती है, जिसका नाम उला है। जो इन्लैन्ड में छुट्टियाँ बिताने आई है।
वू दोनों का परिचय कराने के बाद रस्टी से ये कहते हुए चली जाती है कि उला का खयाल रखना और कोई शरारत नहीं करना।उला की आंखे नीली और बहुत ही खूबसूरतथी। वू के जाने के बाद दोनों के एक-दूसरे को देखा और उला ने अपनी दांत निपोरते हुए मुस्कुरा दी।
उला को ज़ोरों की भूख लगने के कारण दोनों पास के एक रेस्ट्रो में जाते हैं, जहां उला पुरा भरपेट खाती है। उसके बाद दोनों थियेटर देखने जाते हैं। ट्रफलगर स्क्वायर में उला कबूतरों को डदाना चुगाती है। इसी दौरान दोनो को बात करते हुए उला बताती है कि उसे इंग्लिश सीखना, टेनिस खेलना और तैरना पसंद है। माता-पिता एक किताबों की दुनिया चलाते हैं।
थियेटर देखने के बाद लंच करने जाते हैं। जिसके बाद रात हो जाती है और उला को रस्टी के कमरे पर जाना पड़ता है। बिस्तर पर गिरने के बाद दोनों एक-दूसरे को कुछ देर देखते रहते है और फिर उला रस्टी के बाहों में आते हुए उसे चूम लेती है। कुछ देर बाद दोनो सो जाते हैं।
सुबह जब उला की आंखे खुलती हैं तो रस्टी नास्ता तैयार कर चुका होता है और दोनों नास्ता कर प्रीमरोज की पहाड़ियाँ घूमने जाते हैं फिर चिड़िया घर जहां उला बंदरों को कुछ खाने को देती है। और शाम के समय लौटते वक्त उला रस्टी को चूम कर विदा लेती है और अपने शहर कोपनहेगन के लिए रवाना हो जाती है।
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पहले जैसा मान –
रस्टी जब चार साल बाद लंदन से अपने देश भारत और अपने शहर देहरा लौटा तो रास्ते में उसकी नजर एक भिखारी पर पड़ी। जिसके शरीर में मटमैले और फटे हुए कपड़े थे, उसके कंधे ऐसे लग रहे थे जैसे किसी पहलवान के हों। सारा शरीर गंदा और इधर-उधर से पस निकल रहा था। जो बहुत ही भयानक लगा।
बाजू के गुजरते हुए दोनों की नज़र जब पड़ी तो उस भिखारी ने मुस्कुरा दी रस्टी को ऐसा लगा कि उसे देखा हुआ है, रस्टी अभी सौ कदम ही चला था कि उसे याद आ गया कि ये भिखारी कौन है। बचपन का दोस्त हसन था, जो बड़ा होकर शहर का जानदार और शानदार पहलवान बना। उससे मिलने के रस्टी उलटे पाँव लौट पड़ा लेकिन न जाने कहाँ गायब हो गया।
अभी लंदन जाने पहले ही उसे देखा था। जब रस्टी उसके साथ शहर मे लगने वाले मेले में गया था, जहां उसने अपनी ताकत से कई पहलवानों को धूल चाट दिया था। उसी मेले में न जाने कहाँ से कहीं की एक महारानी उमड़ पड़ी और हसन की गठीला शरीर देखकर उसे अपने लिए अंगरक्षक बनने के लिए न्योता दे दिया। जिसे हसन ने स्वीकार कर लिया।
हसन की जिंदगी अब अच्छी कटने लगी थी, क्योंकि जीवन व्यतीत को पैसे और खाने को भरपूर भोजन मिला करता था। उसके बाद जब कहीं भी पहलवानी के लिए हसन जाता तो साथ में महारानी भी जाती, और अपने पैसों से उसके साथ लड़ने वाले पहलवानों को खरीद लिया करती, जिसके बदलें पहलवान हसन से धूल चाटते।
धीरे-धीरे दिन बितते गए और महारानी का पैसा और जवानी ढोनों ढलता गया। एक समय ऐसा भी आया जब महारानी से अलविदा कह दिया और राजा ने भी ये कहते हुए मना कर दिया कि उनके पास अब इतना पैसा नहीं बचा है कि वो हसन को अपने यहाँ रख सकें।
हसन वापस अपनी उसी चौराहे पर आ खड़ा हुआ। पिता का पतंग बनाने की दुकान थी, शुरू से पहलवानी मे रमने के कारण उसने कभी उस ओर ध्यान ही नहीं दिया और अब अपनी जीविका चलाने के लिए उसे वापस पहलवानी का रास्ता अपनाना पड़ा। और हुआ ये कि इस बार मेले में आए रसियाँ, चाइनीज और सरदारों की पशलियों से भिड़ने के बाद अखाड़े में हसन के कदम पाँच मिनट भी नहीं टीके ।
अखाड़े में हारने के बाद हसन फिर कभी मुड़ कर नहीं देखा। और हालत ये हुई कि जीने के लिए भीख मांगना पड़ा।
अगले दिन रस्टी जब अपने घर से निकला एक चौराहे पर उसे कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ दिखी, रस्टी जब वहाँ पहुँच तो देखा कि एक आदमी की लाश नाले में पड़ी हुई थी। उसका धड़ नाले के बाहर था लेकिन सर नाले में था। नगर पालिका कर्मचारी ने जब सर नाले से बाहर निकाला तो भनभनाती मक्खियों का अंबार फैल गया और साथ ही बदबूँ भी। रस्टी तो पहचान गया लेकिन उसने अपना मुख नहीं खोला, ताकि हसन का पहले जैसा मान बना रहे।
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शामली में ठहरा हुआ वक्त-
दिल्ली से अपने शहर देहरा जाते वक्त एक ऐसा स्टेशन पड़ता था, जहां ट्रेन रुकती तो थी, पर कोई चढ़ता या उतरता नहीं था। इस स्टेशन का नाम था, शामली। चारों तरह घने जंगल थे। जिसे स्टेशन के दीवारों के उस पास का शहर देखने के लिए रस्टी का मन गुलाटीयाँ मारने लगता था।
ऐसा ही एक दिन एक वाकया हुआ। हुआ ये कि उस दिन ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। और कहीं भी जगह न होने के कारण रस्टी को शौचालय के दरवाजे के पास उकुडु मार कर बैठना पड़ा। ट्रेन चलती हुई शामली स्टेशन पर खड़ी हो गई। जिसके वजह से रस्टी अपने शरीर को थोड़ा सुस्ताने के लिए बाहर निकला और पता चला कि ट्रेन अभी आधे घंटे तक रुकेगी।
जिसके वजह से रस्टी प्लेटफार्म पर इधर-उधर भटकने लगा तभी उसकी इच्छा हुई कि क्योंक ना आज इस स्टेशन के बाहर दीवारों के बाहर चला जाए। जिसके तुरंत बाद रस्टी अपनी बैग उठाए स्टेशन से बाहर निकल पड़ा।
स्टेशन के बाहर एक तांगा था। टाँगेवाले को रस्टी को देखकर थोड़ा अचंभा सा लगा क्योंकि यहाँ कोई आता-जाता नहीं था। तांगेवाले ने पुछ लिया। रस्टी ने जवाब दिया कि मैं घूमने आया हूँ। अगर तुम कोई ठहरने केई जगह जानते हो तो ले चलो। तांगेवाला रस्टी को बैठाए चल पड़ा।
रस्टी ने भी जब पूछा कि जब कोई आता-जाता नहीं तो तुम यहाँ क्यों आते हो, तो उसने जवाब दिया कि इसी समय इस इलाके से एक महाजन अपने कुछ समान दिल्ली से मंगाते हैं, जो आज नहीं आए। तांगा चलता हुआ एक होटल में पहुँचा और तांगे वाला एक रुपया लेते हुए ये कहा कि वो कल सुबह समय से हाजिर हो जाएगा।
होटल में सबसे पहले मुलाकात दया राम से होती है, जो रस्टी को उसका कमरा दिखाता है। रस्टी जल्दी से फ्रेश होकर और नहा-धूल लेने के बाद बाहर बागानों की तरफ निकलता है, जिसमें ज्यादातर अमरूद के पेड़ लगे होते हैं। और एक लड़की झूला झूल रही होती है।
रस्टी के पूछने पर लड़की झट से और एक दम सीधी आवाज में अपना नाम किरण बताती है और ये भी उसकी उम्र 10 साल है। पीछे बागान में हीरा नाम का माली काम कर रहा है, जिसकी उम्र लगभग 100 साल होंगी। जो बहुत ही अच्छा है और हर रोज मुझे कहानियाँ सुनाता है। अपने बारे और बताते हुए किरण कहती है कि उसके पापा फैक्ट्री मनेजर हैं, और ये भी कि वो इस होटल में नहीं रहती। वो पास ही के एक घर में रहती है।
होटल में रह रहे बाकि लोगों के बारे में बताते हुए उसने कहा कि मिस डिड्स नशे में आकर मजेदार हरकते करती हैं। मिस्टर लिन तो कुछ ज्यादा ही अजीब हैं। और इस होटल का मैनेजर दयाल बहुत ही घटिया इंसान है। छोटी-छोटी चीजों से डर जाता है। पर उसकी बीवी बड़ी अच्छी है। वह फूल तोड़ने से मना नहीं करती, पर वह ज़्यादा बात नहीं करती।
होटल में रह रहे लोगों से जब रस्टी की मुलाकात होती है तो उससे पूछा जाता है कि वो इस सुनसान इलाके में क्या करने आया है तो वह बताता है कि वह अपने दोस्त मेजर रॉबर्ट्स से मिलने आया है, जो इसी इलाके में रहा करता था, रस्टी झूठ बोलता है, वो किसी रॉबर्ट्स को नहीं जानता लेकिन सयोंग ऐसा होता है कि इसी इलाके में रहने वाला दया राम कहता है कि हाँ कुछ साल पहले मैं भी मेजर रॉबर्ट्स को देखा था, जो अब नहीं दिखाई देते।
बाहर से दौड़ता हुआ हीरा आता है और कहता है कि उसके पालतू कुत्ते को बाघ उठा ले गया तो सब हाथ में लाठी लिए उसे खोजने जंगल में निकल पड़ते हैं। लेकिन कुछ देर बिताने के बाद सब वापस आ जाते हैं सिवाय हीरा और रस्टी को छोड़कर।
रस्टी के कारण दोनों शाम को देरी से लोटते हैं। और खाने पर भी देरी से पहुचते हैं। अगले दिन रस्टी की मुलाकात झूला झूल रहे एक गुलाबी रंग की साड़ी पहने युवा महिला से होती है, दोनों एक-दूसरे को देख कर अचंभित हो जाते हैं। क्योंकि वो औरत और कोई नहीं मैनेजर की बीवी और रस्टी की कॉलेज के दिनों की दोस्त कोकि है, जिसे रस्टी कभी प्यार किया करता था।
रस्टी और कोकि दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश होते हैं और बारिश का मौसम होने के कारण दोनों घुमने के लिए जंगलों के तरह निकल पड़ते हैं। रस्टी कोकि को कहता है कि उसे अभी भी उसके साथ चलना चाहिए। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, वो उसका इंतजार करता है और अभी भी कर ही रहा है। लेकिन कोकि उसे समझाती है।
कुछ ही देर बाद बारिश की बूंदें पड़ने लगती है, जिसमें दोनों गीले हो जाते हैं और कोकि रस्टी के गीले होंठों पर अपना गुलाबी होंठ रख देती है और दोनों एक—दूसरे को एक जोरदार चुंबन देते हैं। इससे पहले की कुछ और होता कोकि लौट पड़ती है।
रस्टी भी अपने कमरे में चला जाता है। जब उसे लगता कि अब कोकि को वापस नहीं पाया जा सकता, निराश होकर होटल से कभी न आने का वादा कर निकल पड़ता है। तांगा वाला समय से होटल के बाहर मौजूद रहता है। जिसके कारण उसे देहरा के लिए ट्रेन पकड़ने में आसानी होती है।
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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
हम प्रीमरोज़ पहाड़ी पर जाकर, लड़कों को पतंगे उड़ाते देखते रहे, हम धूम में लेते घास के तिनके चबाते रहे आउ फिर चिड़ियाघर चले गए, जहां उला ने बंदरों को खाना खिलाया। उसने बहुत सारी आइसक्रीम खाई। हमने एक घंटे छोटे से ग्रीक रेस्तरां में लांच किया और मैं वू को फोन करना ही भूल गया। हम शाम को टहलते-टहलते, कॉमरेड टाउन से होते हुए घर तक चले गए। रास्ते में बियर पी, मछली और चिप्स के साथ बधियाँ और तैलीय भोजन किया। उस रात जल्दी लेट गए। उला को अगले दिन सुबह बोट-ट्रेन पकड़नी थी।
“आज का दिन बहुत अच्छा रहा,” वह बोली।
“मैं तो ऐसा फिर से करना चाहूँगा।”
“पर कल तो मुझे जाना होगा ।”
“हम्म, कल तुम्हें जाना होगा।“
उसने सिरहाने पर अपना सर घुमाया और मेरी आँखों में ताकने लगी, मानो उनमें कुछ तलाशना चाहती हो। पता नहीं उसकी खोज पूरी हुई या नहीं पर वह आगे झुकी और मेरे होंठों को हौले से चूम लिया।
“मेरे लिए इतना कुछ किया, शुक्रिया,” वह बोली ।
“गुड़नाइट, उला।”
अगली सुबह स्टेशन पर बहुत भीड़ थी और हम हाथों में हाथ थामें दमक रहे थे।
“वू को मेरा प्यार देना,” वह बोली।
“जरूर, कह दूंगा।”
हमारे बीच कोई वादा नहीं हुआ- न खत लिखने का और न ही दोबारा मिलने का। जाने क्यों हमारा संबंध अपने-आप में भरा-पूरा महसूस हो रहा था, मेरा पूरा दिन खुशी ले एहसास में ही बीटा। ऐसा लगा कि सारा दिन उला साथ ही थी। जब उस रात बिस्तर के दूसरी ओर हाथ गया तब उसके जाने का खयाल और यकीन हुआ कि वह वापिस जा चुकी थी।
कोट्स-
- दिलकश लोग संजीदा नहीं होते।
- कभी मायूस मत हो। और अगर हो भी जाओं, तो मायूसी के बावजूद काम में जुटे रहो।
- चमड़ी बदलने से आंखे नहीं बदलती।
- आँखें इंसान की उम्र और संजीदगी को पूरी सच्चाई से बयां करती है।
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
रस्टी-रस्टी इस कहानी संग्रह का मुख्य पात्र है। जो बहुत ही संजीदा और कोमल स्वभाव का है। मेहनती है। दिलकश है। ईमानदार है। दूसरों के प्रति उसके मन हमेशा एक इज्जत और मान-मर्यादा है।
उला- उला लंदन में रस्टी से मिलने वाली सोलह साल की डेनिश लड़की है। जो सुनहरे बालों वाली गोरी लड़की है। उला की आंखे नीली और प्यारी है। लेकिन उसकी हाइट रस्टी से छोटी है। बमुश्किल ही वह रस्टी के कंधों तक आती है। उसका शरीर छरहरा और सपाट है।
हसन- हसन देहरा में रस्टी का दोस्त है। जो एक पहलवान है। उसके कंधे लंबे-चौड़े और बाजू बहुत ही कठोर है। वो किसी से हारता नहीं है। वह ईमानदार और स्वाभिमान लड़का है। भीख मांगते हुए जब उसका सामना रस्टी से होता है तो अगले ही दिन वह आत्महत्या कर लेता है।
FAQ-
Q-Rusty goes to London का लेखक कौन है?
रस्किन बॉन्ड।
Q- Rusty goes to London का हिन्दी अनुवादक कौन है?
रचना भोला (यामिनी)।
Q- Rusty goes to London का हिन्दी अनुवाद कब हुआ था ?
2019.
Q- Rusty goes to London हिन्दी संस्करण का पब्लिशर कौन है?
राजपाल एण्ड संस।
Q- Rusty goes to London में कितने कहानियों का संग्रह है?
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