Rooh Book Summary in Hindi by Manav koul pdf Download. कश्मीर मानव की आत्मा है, जिसमें उनका अतीत बसा हुआ है और आप इस अतीत को कभी भूल नहीं सकते।
Table of Contents
Review
मानव कौल के लिए लेखन आनंद की यात्रा रहा है। मानव ने लिखने के समय में खुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस किया है। इनके लेखन की शुरुआत लहभाग 20 साल पहले हुई मगर बीते 6 सालों में इन्होंने बहुत सघन लेखन किया है। यह मानव की नौवीं किताब है, जोकि एक यात्रा-वृतांत है। पिछली किताब “शर्ट का तीसरा बटन” एक उपन्यास था। मानव कौल अपनी रूह की मदद से एक अप्रवासी कश्मीरी के उसके निजी कश्मीर के अतीत और वर्तमान से बेहद निजी संवाद भी कह सकते हैं।
“रूह” मानव कौल द्वारा लिखी गई , साल 2022 में प्रकाशित होने वाली दूसरी किताब है। जिसका थीम एक यात्रा-वृतांत है। अपनी इस सुखद यात्रा में मानव ने अपने पिता और कश्मीर के बारे में लिखा है। मानव कश्मीर को अपना पिता और पिता को कश्मीर की तरह मानते और जानते हैं। जिनसे दोनों जुदा हो चुका हैं, जो कभी अपने हुआ करते थे।
मुझे मानव की किताब को पढ़ना ऐसा लगता है जैसे कि मैं मानव को पढ़ रहा हूँ। और जबसे मैने मानव को पढ़ना शुरू किया है, मुझे मानव में कश्मीर और कश्मीर में मानव की छवि नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे मानव कश्मीर के बिना और कश्मीर मानव के बिना अधूरा है।
अपनी इस किताब के जरिए मानव कौल कश्मीर की एक अच्छी छवि को प्रदर्शित करते हैं। जो कश्मीर आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। एक जमाने में कश्मीरी पंडितों के भगाए जाने के बाद, जिसमें मानव कौल का परिवार भी शामिल था। जब उस कश्मीर को खोजते हुए मानव बारामुला, ख्वाजाबाग और गुलबर्ग के जंगलों में टहलते हुए अपने अतीत को टटोलते हैं, तो उनके कुछ पुराने साथी और कुछ जान-पहचान के लोग मिलते हैं। और मानव पर अपना प्यार लुटाते हैं।
मुझे मानव कौल की यात्रा का साथी बनना अच्छा लगा, अगर आप भी उनके इस यात्रा की साथी बनना चाहते हैं तो जरूर इस किताब को खरीदिए। आपको यह रिव्यु कैसा लगा हमें कमेंट कर के जरूर बताइएगा।
Rooh Book Summary in Hindi by Manav Koul
मानव कौल की इस में यात्रा में कश्मीर और कश्मीर बिताए हुए कुछ यादें हैं। ख्वाजाबाग में बसे घर की नीली दीवार, जो कभी संजीदा और आँगन में खुशियां झूमा करती थी, आज जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं और गायब होने की परिस्थिति में हैं। मगर आज भी ऐसा लगता है कि एक अनोखा नाता है उससे, जो भूलाए नहीं भूलेगा।
कश्मीर से पंडितों को भगाए जाने के बाद जब पिता ने हमें माँ के साथ होशंगाबाद भेज दिया था, तब उन्हे मिलिटेन्ट ने कब्जे में ले लिया। जब ये बात माँ को पता चली तो माँ ने राज्य सरकार के गवर्नर से मिली, जो की एक कश्मीरी मुसलमान थे। उन्होंने माँ की मदद की और शांत होने को कहा। उनके द्वारा की लिखी गई चिट्ठी जब कश्मीरी जवान के अधिकारी को मिली तो उन्होंने अपनी मेहनत से पिता को मिलिटेन्ट के कब्जे से छुड़ा कर होशंगाबाद भेज दिया।
कश्मीर के पिता और होशंगाबाद में रह रहे पिता में बहुत अंतर था। यहाँ वह हमेशा सचेत रहते। उन्हे ठगे जाने का खतरा बना रहता। जो भी हमारे मोहल्ले से गुजरता, वह उसे खिड़की से जाता हुआ देर तक देखते रहते। अगर कोई एक दिन में दो से ज़्यादा बार हमारे घर के सामने से निकलता तो वह भीतर से एक डरावनी आवाज निकालते, ताकि उसे पता चले कि कोई उसे देख रहा है। हमें बहुत हंसीं आती इस नए पिता पर, पर हम इतने छोटे थे कि कभी उन हरकतों की गहराई में नहीं जा पाए। उन्होंने कश्मीर छोड़ने के पहले क्या-क्या देखा होगा, उसका जिक्र वह कभी भी नहीं करते थे।
सन् 1988 के बाद से जो भी घटा था इस कश्मीर वादी में, और वादी से निकल गए सारे परिवारों ने जो सहा था, उन सब लोगों की कहानियों को अगर हम सुनना शुरू करेंगे तो हमें अपनी इंसानियत पर शर्म आने लगेगी। जिस तरह बाहर रह रहे कश्मीरी पंडितों को छूते ही वे फुट पड़ते हैं, ठीक वैसे ही यहाँ रह रहे कश्मीरी मुस्लिम भी पुरानी घटनाओं पर फट पड़ते हैं। लेकिन इन सबमें पंडितों का कश्मीरी मुस्लिम और कश्मीरी मुस्लिम का पंडितों के प्रति स्नेह भाव खत्म नहीं हुआ है। यहाँ घूमते हुए जब भी किसी को पता चलता है कि मैं(मानव कौल) पंडित हूँ, ठीक उसी वक्त से हमारी बातचित में एक अपनापन आ चुका होता है।
‘इसे सब पता है’ वाला भाव दोनों के संवादों में रहता है। अब जो पंडितों की नई पीढ़ी है, उसे घटनाओं की सुनी हुई जानकारी है, जिन्होंने उन घटनाओं को जिया था वे या तो बहुत बूढ़े हो चुके हैं या वे अब नहीं रहें। कश्मीरी मुस्लिम बच्चे जो उस वक्त बड़े हो रहे थे, या जो पंडितों के बच्चे यहाँ से नहीं गए थे, उनके बचपन के जिए हुए की छाप उनके चेहरे पर साफ दिखती है। ‘तुम लोग तो चले गए थे’, मैं इस वाक्य के पीछे का मर्म समझ सकता हूँ।
मानव कौल एक तरह जहां सन् 1988 में हुए कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों की झलक दिखाते हैं तो वही कश्मीरी पंडित और कश्मीरी मुस्लिमों के स्नेह को भी बड़े ही उदारतापूर्वक अपने रचना पटल पर उतारते हैं। मानव कौल बताते हैं कि ऐसा नहीं हुआ कि कश्मीरी पंडितों के चले जाने पर वहाँ शांति छा गई, बल्कि उन्हे भी तिल-तिल कर हर रोज मरना होता था। बॉर्डर उस पार से कुछ लड़ाके आते थे, जो हमारे लड़कों को जोंर-जबर्जस्ती कर के उन्हे उस पार ले जाते थे और ट्रेनिंग देकर तैयार करते थे।
जो भी उनके बातों को नकार देता फिर उसके परिवार वालों को उनके बंदूक की गोलियों से छलनी कर दिया जाता था। फिर उनसे लड़ने के लिए कुछ कश्मीरियों ने यहाँ की फौज से मिलकर अपनी आर्मी खड़ी की, जो उन्हे रोक सके और फिर आए दिन हम अपने में ही लड़ते और मरते थे। कुछ पाकिस्तान के लिए लड़ते थे। कुछ भारत के लिए लड़ते तो वहीं कुछ कश्मीर की आज़ादी के लिए। और होता कुछ नहीं सिवाय वादी के नालियों में गंदा पानी के जगह हमारे कश्मीरियों का खून बहता था।
जब पंडित कश्मीर से निकले तो उन्हे ऐसा लगा था कि हिंदुस्तान उनका दोनों हाथों से स्वागत करेगा और मुसलमानों को लगा कि वे जब सारे पंडितों को निकालकर आज़ादी की बात करेंगे तो पाकिस्तान उन्हे खुले दिल से गले लगा लेगा… पर क्या हुआ- न उन्हे पूछा गया, न इन्हे। कश्मीरी, चाहे वो मुसलमान हो या हिन्दू फुटबाल बन गए थे और जो देश अच्छा खेलता, उस देश के लोग वाह-वाह करते, पर लाते तो फुलबाल को पड़ रही थी।
इन सबके बीच एक दिन मानव जब न्यू यार्क के एक बार बैठे थे, तब उनकी मुलाकात एक रूह नाम की लड़की से हुई। जो कश्मीर के बारे में जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहती है। जिसके जुबान पर कश्मीर के चर्चे होते हैं। रूह देखते ही पहचान जाती है कि मानव कश्मीर से संबंध रखते हैं। मानव को भी ये जानकर खुशी होती हैं कि उनके अंदर कश्मीरियत अभी भी जिंदा है। लेकिन उस समय अपने को मायूस पाते हैं जब उनका सामना एक असल के कश्मीरी से होता है, जो वहाँ अभी है।
दोनों कश्मीर के बारे में गपशप करने के बाद रूह कश्मीर जाने का प्रस्ताव रखती है। जिसे मानव भी अपने को रोक नहीं पाते और दोनों कश्मीर को पहुचते हैं। मानव के पिता के पुराने दोस्त गुल मोहम्मद उन्हे एक कमरे का प्रबंध करते हैं जहां दोनों एक साथ रहते हैं। और अगले दिन रूह के साथ अपने पुराने घर और कुछ पुराने जान-पहचान वालों से मिलते हैं, जिसे देख कर उनका दिल खिल उठता है। सब उन्हे ढेर सारा प्यार देते हैं।
मानव को ये लगता ही नहीं कि ये वहीं कश्मीरी मुसलमान हैं, जिनसे डर कर मेरे पिता को अपने परिवार सहित भागना पड़ा। एक दिन मानव के मोबाइल फोन पर बेबी आंटी का कॉल आता है। जो एक कश्मीरी पंडित हैं। और कभी मानव की पड़ोसी हुआ करती थी। जिससे मानव बहुत प्यार किया करते थे। बेबी आंटी से फोन पर ही बात करने के दौरान मानव वात्सल्य से इतना गीला हो जाते हैं कि अपने को रोक नहीं पाते और एक बार आंटी के कहने पर उनसे मिलने के लिए रूह के साथ चल पड़ते हैं।
बेबी आंटी और मानव का जब सामना होता है तो दोनों एक-दूसरे को देख कर अपनी उम्र का पड़ाव भूल कर रोने लगते हैं और दोनों एक-दूसरे को जितना हो सके उतना तेजी से जकड़ लेते हैं। मानव को उनके गोद में बिताए समय याद आने लगते हैं। जो मानव को बेबी आंटी के प्रति करुणा से गीला होना पड़ता है।
कश्मीर से जाने पहले मानव एक लेखक के रूप में रुही के साथ उस्मान से मिलते हैं, जो बचपन में कभी मानव का दोस्त हुआ करता था। उस्मान 1993 के ब्लास्ट के बाद, टाइगर मेमन से मिल चुका है और वो भी पाकिस्तान में! एक अप्वाइमेंट लेने के बाद मानव, रुह के साथ जब उसके ऑफिस को पहुचते हैं तो उनका बहुत स्वागत किया जाता है।, बहुत सारे लोग वहाँ गोला बनाए बैठे रहते हैं। उन्हे चाय दिया जाता है।
तब तक उस्मान फोन पर बातें करते हुए उनके सामने आता है। मानव उस्मान से डरते हुए किसी तरह मीडिया नहीं एक लेखक् के तौर पर उनसे उनके दोस्तों के बारे में, पाकिस्तान में उनकी ट्रेनिंग के बारे में कुछ सवाल पूछता है, जिसका जवाब उस्मान के द्वारा बड़े सहजता से दिया जाता है। एलकीं जवाब में राजनीतिक झलक दिखती है। उस्मान बड़े ही खुशी के साथ ये भी कहता है कि उस पर दो वेबसिरीज़ और एक फिल्म बन रही है।
मानव के सवाल जितने गंभीर होते गए, उस्मान के जवाब में उतनी ज़्यादा राजनीतिक सूझ-बुझ आती गई। इस भरी-भरकम इंटरव्यू के बाद जब मानव वहाँ से निकलने को होते हैं तो ये कहते गए कि आप सीएम बन सकते हैं। ये वाक्य उस्मान के चहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी था। मानव अपनी कश्मीर यात्रा को यही समाप्त कर मुंबई को निकल पड़ते हैं।
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
हम इंसानों में कौन असल में कौन है, इसका पता करना कितना ज़्यादा मुश्किल है। कौन सी मानव जाति श्रेष्ठ है, ये लड़ाई कितनी पुरानी है। और इसे मनवाने में कितना ज़्यादा खून खराबा हुआ है! अगर हम धर्म को अलग कर दें तो क्या एक कमजोर और एक बलवान साथ नहीं रह सकते! ये पौरुष और श्रेष्ठ होने की लड़ाई का अंत क्या है! इस अहम पर जब किसी एक धर्म का रंग चढ़ता है तो सारा कुछ और भी खतरनाक हो जाता है।
मुझे अब समझ आता है कि मेरे पिता क्यों कश्मीर पर ज़्यादा बात नहीं करते थे। यहाँ हर आदमी का अपना निजी कश्मीर है जिससे अपने पूरे अतीत के साथ वह बहुत कसकर जुदा हुआ है। हर एक घटना के उतने ही पहलू हो सकते हैं, जितने लोग उस घटना का जिक्र कर रहे हैं। निजी कब सार्वजनिक हो जाते है और पूरा सार्वजनिक कब आपकी निजता छिन लेता है, यह आपको पता ही नहीं चलता। सबसे कम बात भविष्य की होती है, क्योंकि भविष्य इतना ज़्यादा ढुलमुल है कि जब तक वर्तमान को उसकी पूरी आज़ादी से नहीं जिया जाएगा तब तक भविष्य पर कोई भी बात करना झूठ सुनाई देगा।
मुझे लगता है कि लोग बोर हो जाते हैं, जैसे हमारे देश में लोग गांधी से बोर हो गए हैं। जैसे ही कोई गांधी की अहिंसा के अलावा कोई विवादास्पद बात उनके बारे में कहता है तो लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। हमे अपनी जिंदगी में लागातार ड्रामा चाहिए होता है। हमारे घरों को ही ले लो, चार-छः लोगों में हम इतना ड्रामा खड़ा कर देते हैं कि हमारा आपस में साथ रहना मुश्किल हो जाता है।
कश्मीर अपनी समस्याओं और इतिहास में इतना गुथा हुआ है कि सतही सवाल भी गहरे जख्म उभार देता है। हम शहरी लोगों को जख्मों को छुपाने की आदत है, पर कश्मीर में जख्म खुले हुए हैं। हर आदमी की अपनी कहानी है, अपना भोगा हुआ इतिहास है और उसकी थकान है। उस पर मेरे जैसा एक इमोशनल कश्मीरी आता है, जिसे सिर्फ उसके बचपन के सुंदर चित्र याद हैं, और ऊपर से वह कश्मीर पर लिखना चाहता है… ये सारी बातें फिर एक नया पैराडॉक्स बनती हैं। मैं इससे जूझ रहा हूँ, जैसे बहुत बार मैं कश्मीर के बारे में ज़्यादा जानना नहीं चाहता।
आप हर पल बदलते हो, हर पढ़ा हुआ नया साहित्य आपको बदलता है, देखि हुई अच्छी फिल्म और यात्राएं आपको बदलती हैं। लेकिन कुछ जीवन के अनुभव, जिनमें सबसे ज़्यादा बचपन शामिल होता है, उसके भरी पत्थर नदी की गहराई में कहीं जमा हो जाते हैं, उन पर किसी भी बाढ़ या तूफ़ान से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब-जब आप नदी में गहरे गोता लगाते हैं, वे सारे पत्थर आपको वहीं वैसे के वैसे जमे हुए दिख जाते हैं, मानो वे आपके भीतर आने का इंतजार कर रहे थे।
कोट्स-
- अपने घर में खाली मँडराते रहने के बजाय किसी अनजान जगह पर मँडराना खालीपन को एक वजह देता है।
- कम दिखना आपको हमेशा ज़्यादा दिखने से अधिक देता है।
- समय काल्पनिक है, उसे जैसा जियो वो वैसा ही हो जाता है।
- छोटी बातें हमेशा रह जाती हैं, जो बहुत खास होती है।
- आजीविका कमाना, सारी समस्याओं को कुछ देर के लिए ही सही ताक पर रख देता है।
- खुशवंत सिंह ने कहीं लिखा है-‘पहली जेनरेशन में जिनका धर्म-परिवर्तन होता है, वे हमेशा बहुत कट्टर निकलते हैं।’
- आशा हर इंसान को खूबसूरत बनाए रखती है।
- कुछ लोग होते हैं जो आपके जीवन में बहुत ही कम वक्त के लिए आते हैं, पर वे आपको उन कई लोगों से ज्यादा जानते हैं जिनका आपसे सालों का साथ रहा है।
- हमारे दुश्मन वही होते हैं, जिन्हे हम ठीक से नहीं जानते हैं।
- जिस देश में लोगों को अच्छी कला, अच्छी कविता की समझ नहीं है; वहाँ हिंसा होना आम बात है।
- जिंदगी में कई चीजें गणित के सवाल की तरह होती हैं, जिन्हे अगर आपको हल करना है तो आपको ‘माना कि’ से शुरुआत करनी पड़ती है।
- किसी भी तरीके की चरमपंथी विचारधारा हमेशा घातक होती है। इतिहास से हम इतना तो सिख ही सकते हैं।
यह भी पढे:-
- ऐनिमल फार्म पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।
- महादेवी वर्मा को पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।
- हरिवंश राय बच्चन को पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।
- देवदूत को पढ़ने के लिए अभी क्लिक करें।
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
रूह-
रूह मानव की महिला साथी। जो आजाद खयाल की नरम दिल वाली है। कश्मीर के लोगों के बारे में पढ़ना और जानना उसे अच्छा लगता है। बेबी आंटी और मानव जब मिलते हैं तो उसकी भी आँखें भावुकता से गीली हो जाती है। उसका दिल करुणा और स्नेह से भर जाता है।
गुल मुहम्मद-
गुल मुहम्मद मानव के पिता के कश्मीरी मुसलमान दोस्त हैं। जिनकी उम्र 70 साल है। लेकिन काम करने से नहीं चूकते। उनका मन साफ और कोमल है। मानव के कश्मीर पहुचने के बाद उसे रिसीव करते हैं और उसके रहने का प्रबंध भी करते हैं।
बेबी आंटी-
बेबी आंटी कश्मीर में रहने वाली कश्मीरी पंडित हैं। जिनका परिवार 1988 में कश्मीरी पंडितों के भगाए जाने पर भी कश्मीरी नहीं छोड़ और किसी तरह उन्होंने सरवाइव कर अपनी जिंदगी को वही बिताना ठीक समझा। जिनकी गोद में मानव ने कभी अपने बचपन गुजारे थे। बेबी को जब मानव के कश्मीर में होने की खबर मिलती है तो उसे अपने पास बुलाती है और देखते ही उसे जोंर से गले लगा लेती है, जैसे वो उसे कभी छोड़ना नहीं चाहती।
FAQ
Q: रूह का लेखक कौन है?
Ans: मानव कौल इस किताब के रचनाकार है।
Q: रूह का जर्ने क्या है?
Ans: यह एक यात्रा-वृतांत है।
Q: मानव की रूह किस बारे में है?
Ans: कश्मीर पंडितों और मुसलमानों के बीच बने हुए परस्पर स्नेह को दर्शाती है।
Q: रूह किसका नाम है?
Ans: रूह मानव कौल की महिला मित्र का नाम है, जो न्यू यार्क में उनसे एक बार में मिली थी?
pdf download
नीचे दिए गए print बटन पर क्लिक करें और save as pdf पर क्लिक करें।