इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे अरुणिमा सिन्हा द्वारा लिखित autobiography Summary of Everest ki Beti को साझा करेंगे। जिसका हिन्दी अनुवाद वर्ष 2016 मे केशव जी द्वारा किया गया था।

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Review of Everest ki Beti Author by Arunima Sinha
अरुणिमा सिन्हा द्वारा लिखी “born again on the mountain” जिसका हिन्दी अनुवाद “Everest ki beti” है। और अनुवादक केशव जी हैं। पब्लिशर प्रभात प्रकाशन है। अपनी इस autobiography से अरुणिमा ने ये साबित किया है कि वह युवाओं और खास कर युवतियों को प्रेरित करने वाली वाकई मे एवरेस्ट की बेटी हैं।
सूरज की लाली उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से निकल कर एवरेस्ट पर पहुचने ने बाद जो संसार मे अपनी चमक को बिखेरा है। मुझे नहीं लगता कि उनकी इस दिव्य प्रकाश से कोई अछूता होगा। और अगर होगा तो अंधकार ही उसका घर होगा। अरुणिमा का बचपन परिवार की संघर्षों के बीच रहा है।
बचपन मे ही पिता का रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो जाने के बाद माँ और भाई को बीस दिनों तक सलाखों के पीछे रहना। पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित करना और फिर किसी तरह भाई अभी कुछ करने के लायक हुआ ही था कि अपने दोस्तों द्वारा उसे धोखा देकर मार दिए जाना। इन सभी परिस्थितियों से होते हुए अपने आप को संभालना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
भाई के साथ ऐसी घटना अरुणिमा और उनके परिवार के ऊपर किसी पहाड़ के टूट कर गिर पड़ने से कम नहीं था, जिसकी परछाई घोर अंधेरे जैसी थी। समय का पहिया ऐसा चला कि अरुणिमा ने उसी पहाड़ के चोटी पर चढ़ कर फतह हासिल किया और सूरज से भी तेज रोशनी से सबको चकित कर दिया।
अरुणिमा ने अपनी बायोग्राफी लिखकर आज से लेकर आने वाले कल पर एक उपकार किया है। जो युवाओं को सदियों तक प्रेरित करता रहेगा। मैं क्या इस बायोग्राफी को वर्तमान प्रधानमंत्री “श्री नरेंद्र मोदी जी” ने कहा है कि इस किताब को सभी छात्र-छत्राओं को पढ़ना चाहिए। बल्कि मैं तो थोड़ा और ज़ोर देते हुए कहूँगा कि एटलिस्ट एक बार तो पढ़ लीजिए। यकीन मानिए ये किताब आपके ऊपर अपनी अमिट छाप जरूर छोड़ेगी।
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Summary of Everest ki Beti Author by Arunima Sinha-
जैसा की आपको अभी तक पता चल गया होगा की “Everest ki Beti ”अरुणिमा की अपनी बायोग्राफी है। जिसमे उन्होंने अपने पैर गवाने के बावजूद एवरेस्ट फतह करने तक का सफर की चर्चा की है। ऐसा नहीं है कि अरुणिमा का बचपन से सपना था, या वो शेरपा के बीच में पैदा हुई थी तो उन्हे चढ़ना पड़ा।
चाहत बस इतनी थी की अपने घर-बार को थोड़ा ठीक से चलाने के लिए सी. आर. पी. एफ. की जॉब इन्टरव्यू के लिए लखनऊ से निकल कर दिल्ली को जाना चाहती थी लेकिन भगवान को मंजूर नहीं था। क्योंकी उसने इस काम के लिए नहीं भेजा था। और जब ऊपरवाले की चाह नहीं तो फिर उसे कैसे होने देता। आगे की घटना हम अरुणिमा से ही जाने तो बेहतर होगा।
अरुणिमा लिखती हैं कि जॉब इंटरव्यू के लिए मैंने लखनऊ से पद्मावती एक्सप्रेस पकड़कर दिल्ली के लिए लिए जाना था। मैंने ट्रेन तो पकड़ लिया पर इतना भीड़ था कि उसमे शौचालय तक लोग बैठे हुए थे, निगाहे इधर-उधर शीट तलासती हुई एक आदमी के पास गई, जो बहुत ही मसकक्त करने के बाद ही उसे भी मिली होंगी, पर मुझे सज्जन मालूम होने पर मैंने उनसे आग्रह किया और वो भी बड़े ही प्रेम से मान गए।
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ट्रेन रुकते-चलते बरेली पहुंची थी कि चार-पाँच शराबी चढ़ गए और मुझे देख कर उन्होंने मेरे गले मे माँ का दिया हुआ चैन, जो मेरे लिए बहुत ही कीमती था, उसे खिचने लगे। मैं राष्टीय स्तर की बॉलीबाल खिलाड़ी रही थी, तो ऐसे कैसे आसानी से जानी देती, ले लिया लोहा और भीड़ गई उनसे। कोच मे बैठे लोग तमासगिर बने रहे और मैं अकेले लड़ती रही। अब चार-पाँच थे, तो मेरे ऊपर हाबी होने लगे और जब उन्हे लगा कि मैं हार नहीं मानने वाली तो उन्होंने मुझे चलती ट्रेन से फेंक दिया।
मेरा शरीर दूसरी पटरी पर आने वाली ट्रेन से टकराई फिर मैं बीच मे गिर पड़ी। एक पैर ट्रेन के नीचे आने से कट गया और दूसरा बुरी तरह से कई जगह टूट चुका था। सिवाय ज़ोर से चीखने-चिल्लाने के मैं और कुछ नहीं कर सकती थी। पूरी रात ऐसे ही पड़ी रही। एक के बाद एक ट्रेन आते और लोगों का मल-मूत्र गिराते हुए तेजी से निकलते चले गए। कुछ देर बाद जब पटरियाँ शांत होती थी तो चूहों ने मेरे कटे हुए पैर से मांसों को चुनना शुरू कर दिया मैं उन्हे भगाने मे नाकाम थी लेकिन ट्रेन के आने के वजह से वो कुछ देर के लिए भाग जाते थे।
पूरी रात पड़े रहने पर सुबह जब एक लड़का हल्का होने आया था, मुझे देखते ही उसका दिमाग भारी हो गया और वो भाग गया। जहां तक मुझे याद है, कुछ देर के बाद मैंने देखा कि वो लड़का कुछ लोगों की भीड़ को लेकर मेरे तरफ आ रहा था। जिसे देखने के बाद मेरे दिल को थोड़ा तसल्ली मिला और लोगों की मदद से मैंने अपने साहब (जिजा जी) को फोन किया और अपनी स्थति को बता दिया। उसके बाद मुझे बरेली रेलवे स्टेशन ले जाया गया, जहां कुछ कागजी कार्यवाई होनी थी।
कागजी कारवाई होने के बाद मुझे बरेली अस्पताल को ले जाया गया। जहां किसी तरह अस्पताल के कर्मचारी, यादव जी और उनके कुछ सहयोगियों द्वारा मेरे स्वीकार करने पर मांस से चिपके हुए पैर के आधे भाग बिना बेहोसी की इंजेक्शन दिए काट कर निकाल दिया गया। जिसमे यादव जी ने मुझे अपने रक्त दान दिए। उसके बाद और जरूरत पड़ने पर मेरे साहब ने और फिर कुछ जुगाड़ करने पर रक्त दिया गया।
तब तक बाजार मे माहौल बन चुका था। साहब ने मीडिया की मदद ली और मीडिया के माध्यम से होने वाले सी. एम. से लेकर मौजूदा सी. एम. तक, होने वाले केंद्र सरकार से लेकर मौजूदा केंद्र सरकार तक सबका आना-जाना लगा रहा। सबने मेरी मदद भी की। मेरा इलाज और अच्छे बेहतर डाक्टरों की देख-रेख मे होने लगा। यहाँ तक की सारा का सारा सरकारी खर्चे पर। अजय माकन के कहने पर एक मीडिया सलाहकार की मदद से मैंने और मेरे परिवार के लोगों ने आगे का इलाज दिल्ली एम्स करवाना सही समझा और मुझे एयर एम्बुलेंस की मदद दिल्ली एम्स लाया गया।
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सब कुछ ठीक चल रहा था। मुझे चलने के लिए कृतिम पैर दिए गए। जिनके साथ मुझे चलना होता था। मैं भी बहुत एक्साइटेड रहने लगी थी। अपने नए पैर को लेकर। फिर एक दिन शहनाज हुसैन मुझसे मिलने आई और मुझे एम्स मे ही ब्यूटीशियन का डिप्लोमा कोर्स करने सलाह दी, जिसे डाक्टरों ने मना कर दिया फिर उन्होने कुछ अपने टाका भिड़ाए और कोर्स चालू हो गया।
मैं अपने बहन के साथ सिखती थी। एक दिन अचानक साहब ने एक न्यूज पेपर पढ़ने के बाद पता नहीं क्या सोच कर मुझसे कहा कि मुझे पहाड़ चढ़ना चाहिए, पहले तो मुझे भी कुछ अजीब लगा लेकिन उन्होंने सिरियस ही कहा था। साहब ने कहा कि मैं इतिहास रच सकती हूँ। जब मैंने विकलांग होने का हवाला दिया तो उन्होंने बताया कि यही तो बात है कि अब तक किसी विकलांग और ऊपर से एक महिला विकलांग ने कभी पहाड़ नहीं चढ़ा तो ये मेरे लिए एक मौका है जिसे मुझे गवाना नहीं चाहिए। ये बात मेरे जहन मे घर कर गई।
मुझे अपने कृतिम पैरों के साथ चलने पर डॉक्टरों के किसी न किसी के साथ ही चलने को कहा था लेकिन मैं ऐसा नहीं चाहती थी। मैं रात को सबके सो जान के बाद अकेले ही चलती थी। जिसे जानने के बाद डॉक्टर हैरान थे कि लोगों को ऐसे चलने मे सालों लग जाते हैं और मैं कुछ ही दिनों मे चलने लगी थी। दैनिक हिन्दी के एक महिला पत्रकार से कहने पर मैंने बछेंद्री पाल जी नंबर लिया, जो एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला थी। महिला पत्रकार ने मुझे उनका नंबर दे दिया और मैं साहब के साथ उनके कार्यालय जमशेदपुर चली गई।
बछेंद्री मेरे बारे मे पहले से ही जानती थी, और जब उन्होंने मुझे अपने पास देखा तो वो मुझसे मिलने के लिए बड़े ही उत्सुक थी। बछेंद्री को अपने मिलने का कारण बताया। जिसे उन्होंने जल्दी स्वीकार नहीं किया और फिर उन्होंने मुझे अपने एक ट्रेनिंग कैम्प उत्तर काशी बहेग दिया। जहां जाने मे मझे साहब का मदद लेना पड़ा।
ट्रेनिंग कैम्प मे पहुचने के बाद मुझे कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ा। बहुत सारे बाधाओं को पार करना था। जिसे मैंने कड़ी मेहनत के साथ पार किया जिसके दौरान मुझे दस-बीस किलो समान के साथ पहाड़ियों पर चढ़ना होता था। बछेंद्री को मैंने अपने ट्रैनिंग को पूरा करने के बाद बताया। जिसे जानने के बाद बछेंद्री को मुझ पर गर्व होता था। अब आखिरी पड़ाव मुझे ‘सेफ आई’ प्रमाड़ की जरूरत थी, जो मुझे एन.आई. एम. द्वारा ये सुनिश्चित कर के दिया जाता था कि एवरेस्ट चढ़ने वाला पर्वतारोही सक्षम है या नहीं। मैंने उसे भी पार कर लिया और मुझे ‘सेफ आई.’ मिल गया।
एवरेस्ट जाने से पहले मैंने एक हफ्ता अपने घर और फिर वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद मैंने दिल्ली मे मेरे स्पॉन्सर टाटा स्टील द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेंस किया। जहा मेरी मुलाकात कृतिम पैर बनाने वाले दो डॉक्टरों से हुई। सबने मुझे बधाइयाँ दी। और मैं वापस हवाई जहाज से काठमांडू आ गई।
‘एशियन ट्रॅकिंग एजेंसी’ के माध्यम से मुझे टाटा स्टील ने भेजने निश्चय किया, जिसमे रामलाल जैसे दो-चार और लोग भी थे। हमारा शेरपा नीमा कांचा ने मेरी बहुत मदद की और आखिरी लड़ाई तक मेरे साथ रहा। मैंने उसके साथ एवरेस्ट को चढ़ना शुरू किया। जिसे चार चरण मे बांटा गया था। बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
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एक पल को लगा कि मैं गई लेकिन मैंने पानए को भगवान को सौप दिया, और भगवान ने आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता गया और मैं चोटी तक पहुच गई। मेरे मुख और गले से खून आना शुरू हो गया था। लौटने से पहले ऑक्सीजन भी खतम। पर फिर भगवान ने किसी को भेज दिया जो ऑक्सीजन के दो सिलेंडर लेकर चढ़ा था, उसने एक सिलेंडर वही छोड़ दिया और मैंने नीमा कांचा की मदद से ऑक्सीजन लेकर वापस अपने कैंप तक गिरती-पड़ती पहुच गई।
सबने मुझे Everest ki Beti स्वीकार कर लिया था। मेरे पहुचने से पहले हवाओं ने मेरा समाचार लोगों तक पहुचा दिया था। जिनमे बहुत प्यार भरा था। स्टेशन पर बछेंद्री पाल और साहब मेरा इंतजार कर रहे थे। और भी बहुत सारे लोग थे। जिनमे बहुत जोश था, मुझसे मिलने का। हॉलीवुड का एक डायरेक्टर मेरी कहानी खरीदने के लिए मेरी माँ और साहब से मिल चुका था।
सड़क के दोनों किनारे मुझसे मिलने के लिए लोगों की लंबी लाइन लगी थी। जो मुझे बहुत ही उत्साहित कर रहा था। उसके बाद मैंने एक स्पोर्ट्स अकादमी खोलने का निश्चय किया है। जो लोगों और कॉरपोरेट के लोगों की मदद से खुलेगा ताकि जरूरत और हुनरमंद लड़के-लड़कियों ओलंपिक खेलों की तैयारी करने मे मदद की जा सके। जिसका वर्तमान नाम चंदशेखर आजाद अकादमी है।
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
- अरुणिमा का साहस– जैसे ही रेल ट्रैक दुबारा कांपने लगे, मैं कंपकँपा गई थी। क्या यह मेरा अंत होगा? मैंने पत्थरों पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली थी। एक मिनट बाद, मैंने चैन की सांस ली। पहले की कई ट्रेनों की तरह इस ट्रेन ने भी मुझे बख्श दिया था। मैं अभी भी सांस ले रही थी। असल मे मुझे लगता था कि कोई अभी भी शक्ति है, जो चाहती है कि मैं सांस लूँ,लड़ूँ और जीतू। मैं अभी भी सोने की चैन को अपनी गरदन पर महसूस कर सकती थी। और अधिक आश्चर्य यह था कि तारों को घूरते हुए मैंने एक मुस्कुराहट दी थी।
- हमारे देश का रोजगार क्षेत्र भी अधिक सीमा तक एक अत्यधिक माँगवाली ट्रेन के साधारण डिब्बे की तरह होता है, जहां साधारण बहुत सारे लोग प्रत्येक सिट के लिए पेश होते हैं। केवल एक ही फरक है कि जहां साधारण श्रेणी का डब्बा सभी को स्थान देता है, वही रोजगार के बाजार में बहुतेरे गरीब बेरोजगार और तिरस्कृत होते हैं।
- अस्पताल की दयनीय स्थिति-जिला अस्पताल की हालत काफी खराब है। उनके पास पर्याप्त मात्रा मे चिकित्सकों और प्रशिक्षत नर्सों की कमी है। उनके पास उचित मात्र मे ऑपरेशन से संबंधित उपकरण और मेरे जैसी आपातकाल स्थिति के लिए कोई रक्तकोष नहीं है। यहाँ तक कि अस्पताल के कर्मचारियों का चेहरा मुरझाया हुआ था। हमारे देश की स्वास्थ सेवा को पूर्ण जांच और मरम्मत की जरूरत है, विशेषतया उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों मे।
- यादव जी मदद करना– “मैं अपना रक्त तुम्हारे लिए दान करूंगा।” उन्होंने यह जानने के बाद घोषित किया था कि मेरे पास सहारा लेने के लिए कोई नहीं है। राजनेता, जो बड़े-2 वायदे टो करते हैं, परंतु उनको पूरा करने की चिंता ही नहीं करते, उनसे भिन्न यादव जी ने अपने शब्दों का माँ रखा था।
- कवि शेली की उक्ति– हम सबको कवि शेली की एक उक्ति उधार लेनी पड़ेगी,’’जिंदगी और खून के काँटों पर गिर गए।’ परंतु हालातों का सामना करके अपनी हिम्मत का वजन कम होने के बजाय हम अपने तरीकों से ताकतवर होकर निकलते हैं।
- साहब का जोश भरना-“यदि भगवान ने उसे जिंदा रखा है तो मेरा मानना है कि यह एक संदेश है कि उसके पास इसके लिए कुछ योजना है। चिंता मत करो, यह इतिहास रचने वाली है।”
- साहब का अरुणिमा को उसकी नियति बताना – “एवरेस्ट चढ़ोगी?” उन्होंने अभी एक दिलचस्प जानकारी का अंश अखबार मे पढ़ा था। यद्यपि बहुत से एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ चुके थे, पर किसी भी विकलांग महिला ने अभी तक ऐसा नहीं किया था।
- बछेंद्री पाल द्वारा मीडिया से अरुणिमा का प्रशंसा करना- “देखो, यह ऐसे हालात मे भी एवरेस्ट चढ़ने को सोच रही है। क्या यह एक अदम्य साहस का उत्कृष्ट उदाहरण नहीं है?” पत्रकारों ने हाँ मे सर हिलाया था। तब मेरी तरफ मुड़कर उन्होंने एक टिप्पणी की थी, जो मुझे आज तक याद है-“तुम्हारे दिल मे तुम पहले ही एवरेस्ट पर चढ़ चुकी हो।”
- बछेंद्री का विश्वाश होना- मुझमे सदैव ताजा विश्वाश भरने वाली बछेंद्री पाल ने बाद मे मुझसे कहा,”अरुणिमा, तुम उनसे बहुत ही अच्छी हो। वास्तव मे, ये व्यक्ति एक विकलांगता से पीड़ित दिखाई देते हैं, तुम नहीं। मुझे तुम पर गर्व है।”
- साहब का साक्षताकार होना जब अरुणिमा रास्ता भटक गई थी– “न तुम्हारे पिता, न मेरे पिता ने हमारे लिए कुछ छोड़ा है। हमारा ध्येय एवरेस्ट है। हमने अपना मार्ग अस्थाई रूप से खो दिया है। परंतु हम उसे ढूँढ़ लेंगे। महत्वपूर्ण चीज यह है कि हमे अपने ध्येय का पथ नहीं खोना है।”
- राहुल की प्रेरणा- राहुल ने बाद मे बताया था कि उसने मुझसे प्रेरणा ली थी। “मैं तुम्हारा भाई हूँ। मेरी असफलता तुम्हें शर्मिंदा करेगी, क्योंकि तुम अत्यधिक कठिनाइयों को पार कर सफल हुई हो। इसलिए मुझे जितना ही होगा।” उसने कहा था।
- नीमा कांचा का प्रभावित होना-अब शायद मेरी प्रतिबद्धता को देखकर प्रभावित होकर नीमा कांचा ने कहा था,”अरुणिमा, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चिंता मत करो, यदि इसका मतलब मृत्यु है, हम इसका एक स्वागत करेंगे। मैं दूर नहीं भागूँगा।”
- माँ की सलाह-“अरुणिमा! यह तुम्हारे लिए बहुत बड़ा बड़ा समय है। मैं जानती हूँ कि तुम बहुत ऊंचे स्थान पर हो। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की तुम्हारी उपलब्धियां कितनी ऊंची हैं, तुम्हारे कदम हमेशा ज़मीन पर रहने चाहिए।“
Quotes
जिंदगी को तो चलते रहना ही है। कोई महत्व नहीं है कि दु:ख कितना बड़ा बड़ा है। समय हमेशा ही मरहम लगाता है। फिर भी घाव रह जाते हैं।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
पर्वत हर एक से समान व्यवहार करते हैं। केवल प्रतिबद्ध व्यक्ति ही मार्ग में आने वाली चुनौतियों से निकल पाते हैं।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
धैर्य और योग्यता से सभी प्रकार के हालातों को अपने अनुकूल कर और मार्गदर्शक को सदैव सुनना ही सफलता की कुंजी है।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
जब तक हम अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे, तब तक नारी सशक्तिकरण की बातें, जो हम हर समय सुनते रहते हैं, दिखावा ही रहेंगी।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
कभी-2 जब आप किसी अन्य की मदद करते हैं तो आप असल मे खुद की ही सहायता कर देते हैं।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
याद रखो, कोई भी तुम्हें नहीं हरा सकता, जब तक तुम खुद हार नहीं मानते हो।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
यदा-कदा असफलताएं आपकी परीक्षा लेती हैं, लेकिन कोशिश करती राहनी चाहिए। अवसर के कुछ दरवाजे अवश्य ही खुलेंगे।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
यदि आपने अपना मस्तिष्क कुछ पाने के लिए निश्चित कर लिया, आपको उसके लिए लगे रहना चाहिए।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
मानसिक रूप से स्वस्थ रहना यहाँ सफलता की एक कुंजी थी, जहां प्रकृति आपके केंद्रित रहने के निश्चय और सामर्थ की प्रत्येक कदम पर परीक्षा लेती है।
Arunima sinha, Summary of Everest ki Beti
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
अरुणिमा– अरुणिमा एक संघर्षशील और सदा ऊर्जा उत्सर्जित करने वाली राष्ट्रीय बॉलीबाल खिलाड़ी है। जिसने एक ट्रेन हादसे मे अपने एक पैर खो दिया। और फिर एक दिन उसके अपने साहब से अपनी नियति का पता चला और उसने कड़ी मेहनत कर उसे हासिल किया।
साहब– ‘साहब’ अरुणिमा के बहन का पति हैं। जिन्होंने सदा से ही अरुणिमा का साथ दिया और उसका पिता या भाई या जीजा कह ले, उन्होंने बड़ी दरियादिली दिखाई, जिसके वजह से अरुणिमा एवरेस्ट पर पहुचने मे सक्षम हुई और अपनी रौशनी को चारों तरह बिखेरा।
बछेंद्री पाल-बछेंद्री पाल भारत की पहली महिला एवरेस्ट फतह करने वाली जाबाज और नेक दिल महिला है। जिन्होंने अरुणिमा का साथ दिया और एवरेस्ट फतह करने से पहले उसे अपने ट्रैनिंग कैंप मे जगह दी। और हमेशा से अरुणिमा को मोटिवेट करती रही।
नीमा कांचा– नीमा कांचा एक शेरपा है। जिसका काम उन लोगों को गाइड करना है जो एवरेस्ट फतह करने के लिए आए होते हैं। जिसे ‘एशियन ट्रैकिंग एजेंसी’ टाटा स्टील ने रखा था। नीमा कांचा ने अरुणिमा को सिर्फ एवरेस्ट फतह कराना ही नहीं बल्कि उसे सुरक्षित अपने कैंप मे वापस ले जाना भी बड़े ही ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी को अंत तक निभाता है। यहाँ तक कि अरुणिमा के साथ मरना स्वीकार करता है लेकिन उसे बिना लिए बगैर वापस को नहीं लौटता।
FAQ
एवरेस्ट की बेटी का लेखक कौन है?
एवरेस्ट की बेटी का लेखक खुद “अरुणिमा” हैं। जिन्होंने अंग्रेजी मे “born again on a mountain” लिखा था। जिसका हिन्दी अनुवाद केशव जी ने किया।
अरुणिमा ने एवरेस्ट पर कौन सी तारीख को फतह हासिल किया था?
अरुणिमा ने 21 मई, 2013 को प्रातः 10.55 पर एवरेस्ट की चोटी पर थी।
अरुणिमा द्वारा खोली गई स्पोर्ट्स अकादमी कहाँ है?
एवरेस्ट फतह करने के बाद अरुणिमा मे निः शुल्क स्पोर्ट्स अकादमी की स्थापना उन्नाव मे की है।
अरुणिमा को कौन से अवार्ड से नवाजा गया है?
अरुणिमा को राष्ट्रपति महोदय “प्रणव मुखर्जी” के हाथों से वर्ष 2015 मे पद्म श्री और फिर ‘तेनजिंग नोर्गे’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
सागरमाथा किसे कहते हैं?
सागरमाथा एवरेस्ट की चोटी को कहते हैं। जिसका कुछ टुकड़ा तोड़ कर अरुणिमा ने बछेंद्री पाल लाई थी।
‘सेफ आई’ प्रमाड़ क्या है?
‘सेफ आई’ प्रमाड़, जो एन.आई. एम. द्वारा ये सुनिश्चित कर के दिया जाता था कि एवरेस्ट चढ़ने वाला पर्वतारोही सक्षम है या नहीं। अरुणिमा ने उस टेस्ट भी पार कर लिया और ‘सेफ आई.’ मिल गया।
एवरेस्टस पर सबसे पहले किसने और कब चढ़ाई की थी?
एवरेस्ट पर सबसे पहले न्यूजीलैंड निवासी एडमंड हिलेरी और नेपाली निवासी टेनसिंग नॉर्गे ने वर्ष 1953 मे चढ़ाई की थी।
Sahi ja rge ho, lge rho