path ke davedar

path ke davedar: book review, summary in hindi, pdf download, sarat chandra chattopadhyay

इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे sarat chandra chattopadhyay द्वारा लिखित “path ke davedar” उपन्यास की book review, summary in hindi और pdf download भी साझा करेंगे।

Book review

शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय की लिखित “path ke davedar” बंगला उपन्यास ‘पथेरदावी’ का अनुवाद है। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर ढाती कहर, जाति-पाति और छूआ-छूत को दर्शाती है। अंग्रेजों को भारत आने के बाद जब उन्होंने “इस्ट इंडिया कम्पनी” की स्थापना की। जिसके बाद उनका हौसला और बुलंद हुआ और एक-के-बाद-एक कंपनी और कारखाने बैठाने लगे। उन कंपनीयों में भारतीय मजदूरी किया करते थे।

कारखानो को आगे बढ़ने के साथ अंग्रेजों का भारतीय मजदूरों पर शोषण करना भी बढ़ता गया। मजदूरों की तबीयत खराब होने पर उन्हे छुट्टी नहीं मिलती थी, और तो और जिस दिन कारखानों मे जा नहीं पाते थे, उस दिन की मजदूरी की पैसा काट लिया जाता था। दवा-दारू के पैसे तक नसीब नहीं होते थे।

जिससे आहत होकर सव्यसाची एक समूह बनाता है और उस समूह का नाम दिया path ke davedar। यह एक क्रांतिकारियों का एक समूह है जो अंग्रेजों के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाते हैं और उनके खिलाफ लोगों को जागरूक कर लाचारी महिलाओं को सहारा प्रदान करते हैं।

शरतचंद्र ने बड़ी सुगमता और बड़े ही बारीकी से सव्यसाची और भारती के मदद से उन सभी घटनाओं को दर्शाया है, जिसे आज के लोगों को जानने की जरूरत है। अपूर्व एक सदाचारी सीधा-सादा ब्राम्हण है, जो अंग्रेजों के द्वारा बनाई गई कंपनी में काम करता है, भारती, एक ईसाई महिला होने के बावजूद उसे अपने देश से प्यार है और अंग्रेजों के खिलाफ उसकी लड़ाई जारी है। इन सब के बीच अपूर्व और भारती का मिलना रोचक है।

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path ke davedar book summary in hindi

कहानी की शुरुआत कोलकाता के निवासी अपूर्व से होती है। जो एक बंगाली ब्राम्हण खानदान से ताल्लुक रखता है। सर पर चोटी रखे, कालेज मे छात्रवृति और मेडल प्राप्त करके परीक्षाए भी पास करता है। घर मे एकादशी व्रत और संध्या-पूजा आदि नित्य-कर्म भी करता है, तो खेल के मैदानों मे भी किसी से कम नहीं है।

अपूर्व को फुटबाल, क्रिकेट, हॉकी आदि खेलने मे उसको जितना उत्साह था, प्रातः काल माँ के साथ गंगा स्नान करने मे भी उससे कुछ कम नहीं था। एम.एम-सी. की परीक्षा पास करने के बाद अपूर्व को बोथा कंपनी में बर्मा के रगून शहर मे एक नया कार्यालय खुलने से 400 रुपये महीने की नौकरी मिल जाती है।

माँ करुणामयी अपने बेटे को जाने से रोकती है लेकिन अपूर्व किसी तरह समझा-बुझा कर उन्हे राजी कर लेता है अगले दिन ट्रेन पकड़ कर अपने रसोइया तिवारी(जो उत्तर भारत से है और अपूर्व के घर उसका रसोइया का काम देखता है) के साथ रंगून पहुचता है। जहां उसे कार्यालय के तरफ से एक लकड़ी का बना कमरा मिलता है। जिसके ऊपरी वाले फ्लोर पर ईसाई परिवार रहता है।

उस ईसाई परिवार की एक सदस्य भारती है। कुछ दिनों तक अपूर्व भारती से बाते तो दूर आख उठा कर देखना तक नहीं होता। अपूर्व अपने कार्यालय का पहला दिन ज्वाइन करता है जहां उसकी मुलाकात रामदास तलवरकर से होती है, जो एक अच्छे इंसान है। कार्यालय में काम शुरू हो जाता है।

एक दिन शाम के समय अपूर्व जब कार्यालय से लोटता है तो दरवाजे पर भारती को देख चौक जाता है। भारती इधर-उधर की बात न करते हुए सीधे मुद्दे की बात करती है और कि उसके घर मे चोरी हो गई है वो तो ठीक समय पर पहुच गई वरना सब खाली हो जाता। उस दिन देर रात को तिवारी जब घर को लौटता है तो बताता है कि वह पास के ही एक मुहल्ले में नाच देखने चला गया था।

कुछ दिनों बाद अचानक तिवारी को एक लाइलाज बीमारी जकड़ लेती है। जिसकी सेवा कर भारती उसे बचा लेती है। अभी तिवारी ठीक होता कि तब तक अपूर्व भी उसी बीमारी से ग्रसित हो जाता है। अपूर्व के जीवन को बचाने के लिए न चाहते हुए भी भारती को उसे छूना पड़ता है और कुछ दिन की सेवा-पानी के बाद धीरे-धीरे अपूर्व ठीक हो जाता है। अपनी जान बचाने के बाद तिवारी भारती को बहन मानने लगता है।

एक दिन भारती अपूर्व को अपने साथ कहीं घुमाने ले जाती है और कुछ लोगों से मिलाती है, जिन्हे वह “path ke davedar” नाम से संबोधित करती है। जिसकी निव सव्यसाची ने रखी है, जिसे उस संगठन के लोग डाक्टर कहकर पुकारते हैं और अध्यक्षता की कमान सुमित्रा ने संभाली है। अपूर्व इस समूह से प्रभावित होता है और अपने कार्यालय के साथी रामदास को भी बताता है।

बात आगे बढ़ती है और भारती एक दिन अपूर्व को लेकर अंग्रेजी कारखानों मे काम करने वाले मजदूरों के घरो को दिखाने ले जाती है। जहां बहुत सारे मजदूर मारे-मारे फिर रहे हैं। दो वक्त रोटी खाने के लाले पड़े हैं और तबीयत खराब है सो अलग।

अपूर्व एक मजदूर से उसके हाथ मे चोट लगने के कारण पूछता है तब मजदूर अपना दुख बयां करते हुए हुए कहताआ है कि कारखाने वाले इसका कोई प्रबंध नहीं करते? “मजदूर के लिए प्रबंध?” वह तो कह रहे हैं कि काम नहीं कर सकते तो मकान छोड़ दो। ठीक होकर आना। काम मिल जाएगा। ऐसी हालत मे कहाँ चला जाऊँ? बीस वर्ष से काम कर रहा हूँ महाशय! यह लोग हराम-खोर हैं। ये घटना अपूर्व को आहत  करती है।

दोनों घूमते-फिरते और भी लोगों से मिलते हैं और उस दौरान भारती सबको संगठित कर उन अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने को कहती है। “आप सब लोगों को एक हो जाना चाहिए और कारखाने के काम को रोक देना चाहिए।“ भारती को सुनने वाले मजदूर उसकी इस बात से प्रभावित होते हैं। अपूर्व इसे भारती को सरकार के खिलाफ भड़काना कहता है, जो गलत है।

कुछ दिन बाद फायर मैदान मे लगों की भीड़ इकट्ठा की जाती है। जिसमे पथ के दावेदार के साथ अपूर्व और रामदास भी होते हैं। सुमित्रा भाषण देना शुरू करती है लेकिन उसकी तबीयत खराब होने के कारण ठीक से बोल नहीं पाती और अपूर्व को अपनी बात चिल्ला-चिल्ला कर कहने को कहती है।

अपूर्व भीड़ और अंग्रेजी सिपाहियों को देख कर डर जाता है, जिससे उसके ज़ूबान से आवाज ही नहीं निकलती। ये देख कर रामदास से रहा नहीं जाता और खुद जो उसे समझ मे आता है लोगों को खूब चिल्ला-2 कर सावित्री की बातों को कह देता है। जिससे लोगों मे अंग्रेजों के खिलाफ़ आक्रोश भर जाता है।

अंग्रेज सिपाही जब सुनते हैं तो रामदास को ऐसा बोलने से मना करते है, लेकिन रामदास की आवाज और तेज होती जाती है। अपूर्व भी उसे कुर्ते से पकड़ कर शांत होने के लिए खिचने लगता है रामदास को समझाता है कि वो एक अनजान देश मे है, वह यह न भूले की उसकी पत्नी और बच्चे भी हैं लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है।

सिपाही उस जन-समूह पर हमला कर देते हैं। जिसके वजह से भगदड़ मच जाती है।  सब इधर-उधर बेतहासा भागने लगते हैं पता चलता है कि रामदास पकड़ा गया है। उसी शाम को सव्यसाची रामदास को छुड़ा लाता है।

कुछ दिन बितने को होते हैं कि भारती के घर से चार-पाँच मिल दूर पर बहुत ही गुप्त और आवश्यक सभा रखी जाति है, जिसे हीरा सिंह पता लगाता है। जो उस इलाके का सरकारी पोस्टमास्टर है और सव्यसाची के अच्छे दोस्त होने के साथ-साथ उसका खबरी भी है।

भारती और सव्यसाची के पहुचने पर पता चलता है कि अपूर्व बाबू को सुमित्रा और उसके समूह के लोगों ने पेड़ों से बांध कर रखा है। सुमित्रा कहती है कि उस दिन घटना के बाद अपूर्व बाबू ने हमारे बारे मे सब कुछ अंग्रेज सिपाहियों को बता दिया है ताकि सजा ना मिल सके और नौकरी बची रहे। अब समूह के लोगों ने ये निर्णय लिया कि समूह से गद्दारी करने वालों को मौत की सजा मिलगी।

सव्यसाची एक बार भारती की मन को जानना चाहते हैं जो सिर्फ रोती  रहती है। सव्यसाची भारती के मन की बात जानकर अपूर्व को छोड़ देने का निर्णय करते हैं लेकिन बाकी समूह के लोग नाराज होते हैं।

धीरे-2 समूह से कुछ लोग टूट जाते हैं। अपूर्व वहाँ से छूटने के बाद अपने काम पर लग जाता है। साव्यसाची भारती को लिए इधर-उधर छुपते-फिरते हैं। कोलकाता से माँ की मृत्यु की खबर के बाद अपूर्व वापस भारती की समूह मे जुड़ जाता है, जिसमे भारती, सुमित्रा और शशि होते हैं। अपूर्व किसानों की मदद करने का प्रण लेता है। सव्ययसाची अंग्रेजों से बचने और वहाँ की लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ प्रोत्साहित करने के लिए चाइना चले जाते हैं।

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

जब अंग्रेज लड़कों द्वारा अपूर्व को ट्रेन से बाहर फेक दिया जाता है-

अपूर्व सीधा स्टेशन मास्टर के कमरे मे गया, जो अंग्रेज थे। मुह उठाकर उसने देखा । अपूर्व के जूते का दाग दिखाकर घटना सुनाई। वह अवज्ञापूर्वक बोले,”युरोपियन की बेंच पर बैठे क्यों?”

अपूर्व ने कहा,”मुझे मालूम नहीं था।”

“मालूम कर लेना चाहिए था।”

“क्या इसलिए इन्होंने एक भले आदमी पर हाथ उठाया?”

साहब ने दरवाजे की ओर हाथ बढ़ाकर कहा,”गो-गो-गो, चपरासी इसको बाहर कर दो।”

भारती बोली- “प्राण जाना क्या वस्तु है, आप यही तो नहीं जानते। तिवारी जानता है, लेकिन इस विषय पर बहस करने से अब क्या लाभ है? आपकी तरह अंधकार मे डूबे व्यक्ति को प्रकाश मे लाने की अपेक्षा अधिक आवश्यक काम अभी मुझे करने बाकी है। आप थोड़ी देर सो रहिए।”

भारती अपूर्व को लेकर मजदूरों को उनका घर दिखाने ले जाती है।

पास वाले कमरे मे एक उड़िया मिस्ट्री रहता है। उसके पास वाले कमरे से बीच-बीच मे तेजी हसी और कोलाहल की आवाजे आ रही थी। यह सब पंचकौड़ी के कमरे मे भी सुनाई दे रहा था। वह उस दोनों कमरे मे पहुंचे। भारती को वह लोग पहचानते थे। सभी ने उसकी अभ्यर्थना की। एक ने दौड़कर स्टूल और बैठने का मोंढा ले आया। दोनों बैठ गए।

फर्श पर बैठे छः-सात आदमी और सात-आठ औरते शराब पी रहे थे। टूटा हुआ शराब की शीशी और कुछ खाली बोतले चारों ओर लुढ़की पड़ी थी। एक बूढ़ी औरत नशे मे धुत पड़ी सो रही थी। उसे एक प्रकार से नंगी ही कहा जा सकता है। आज रविवार है। पुरुषों के छुट्टी का दिन था। प्याज-लहसुन की तरकारी और जर्मन शराब की दुर्गंध मिलकर अपूर्व के नाक तक पहुचते ही उसका जी मिचलाने लगा।      

सुमित्रा का अपने प्यार को मार देना।

प्रेम क्या है, यह बात भी उससे छिपी नहीं है फिर भी एक नारी के प्रेमी को प्राण-दंड देने मे नारी होकर भी उसे रत्ती भर हिचक नहीं हुई। वेदना की आग से छाती के भीतर जब इस प्रकार की ज्वाला जलाने लगती तब वह अपने को यह कहकर समझा लेती कि कर्तव्य के प्रति इस तरह मिरमं निष्ठा न होने पर पथ के दावेदारों की अध्यक्ष कौन बनती?

पात्रों का चरित्र-चित्रण-

सव्यसाची – दुर्दम्य क्रांतिकारी है। वह अतिमानवीय प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति है, अनेक भाषाओं का ज्ञाता, दुनियां के बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों का डिग्रीधारक, अत्यंत सूक्ष्म चिंतक और विचारक है। जिसे समूह के लोग डाक्टर नाम से पुकारते हैं। सव्यसाची नाम उसके मास्टर ने उसे दिया। जिसने पथ के दावेदार की निव रखी। भारती को अपना बहन मानता है और बहुत प्यार करता है। सुमित्रा से प्यार करता है और अग्रेजों को लूट-पाट कर उन्हे मार देता है। जिसकी वजह से भेष बदल कर इधर-उधर छिपता-फिरता है। 

भारती- एक ईसाई महिला है। जो बड़े ही नरम दिल की है। गरीब लोगों की सेवा करती और उनके बच्चों को शिक्षा देने का काम भी करती है। सव्यसाची को अपना भाई मानती है और अपूर्व को प्यार करती है।

अपूर्व- एक बंगाली सदाचारी ब्राम्हण है। जो बहुत ही सीधा-साधा इंसान है। जो छुआ-छूत को मानता है। 400 रुपये महिना की नौकरी करने बर्मा के रंगून शहर आया होता है। जिससे उसकी मुलाकात भारती से होती है । जो पथ के दावेदार के समूह से मिलाती है। अपूर्व किसानों की मदद करना चाहता है लेकिन अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हथियार उठाना नहीं चाहता। 

सुमित्रा- सुमित्रा “पथ के दावेदार” समूह की अध्यक्ष है। जो पहले कभी गाँजा का धंधा किया करती थी। पकड़े जाने पर सव्यसाची ने बचाया था और समूह मे सामील किया। जो मन ही मन सव्यसाची को प्यार करती है।

रामदास- अपूर्व के कार्यालय का कर्मचारी है। लकें अंग्रेजों के खिलाफ उसमें जहां में जहर है। उसके रगों में देशभक्ति की ज्वाला जलती रहती है और चिंगारी पाने पर भड़क उठती है। रामदास की पत्नी और एक छोटी बच्ची है। अपूर्व के साथ मिलकर “पथ के दावेदार” समूह को अंग्रेजों के खिलाफ ज्वाइन करता है और समूह का पूरा साथ भी देता है।

FAQ

Q पथ का दावेदार का लेखक कौन है?

पथ के दावेदार का लेखक शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय हैं।

Q पथ का दावेदार किस पर आधारित है?

पथ का दावेदार सव्यसाची द्वारा बनाया गया क्रांतिकारियों का समूह है, जिसका मकसद अंग्रेजों के खिलाफ एक सेना तैयार करना है और लोगों को जागरूक करना है।

Q पथ का दावेदार का मुख्य पात्र कौन है?

पथ के दावेदार का मुख्य पात्र साव्यासांची है।

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