Review And Summary of Karta Ne Karm Se by Manav Kaul Poetry Book in Hindi. यह मानव की भावनाओं से उपजी कई सारी कविता का एक समूह मात्र है।

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Review of Karta Ne Karm Se by Manav Kaul Poetry Book in Hindi
मानव कौल द्वारा लिखी गई यह किताब “कर्ता ने कर्म से” पिछले 20 साल से लिख कर एकत्रित कीये गए एक-2 अमूल्य कविताओं का गुच्छा है। बहुत कम शब्दों मे सबसे ज्यादा अपनी बातें कहना कोई मानव से सीखे। इस कविता संग्रह को पढ़ते वक्त मुझे ख्याल आया कि कंप्यूटर प्रोग्रामींग का माध्यम भी कविता होनी चाहिए। भाषा का चाहे कोई भी हो। जिससे उसकी स्टोरेज का इस्तेमाल कम होगा और आउटपुट स्पीड बढ़ जाएगी। खैर..
“कर्ता ने कर्म से” ये मेरी पहली कविता किताब है, जिसे मैंने पढ़ा है। मानव ने उन सभी चीजों के बारे मे हमसे साझा किया है, जिन्हे उन्होंने बहुत ही गहरे से महसूस किया है। चाहे वो अपने माता-पिता हो, प्रेमिका हो, जो शायद उन्हे छोड़ कर चली गई। कोविड-19 हो, या एक पिजड़े मे कैद कोई पंछी या जानवर। मानव की ये दूसरी कविता सग्रह किताब है। वैसे मानव ने इसके पहले अपने छः किताबें अपने पाठकों के बीच मे पहुचा चुके हैं। जिसे उन्हे ढेर सारा प्यार भी मिला है और अपने दुख मे उनका कोई साथी भी।
पता नहीं क्यों मैंने मानव को पढ़ा है, जिसके बाद अब जब भी मानव को किसी भी टीवी शो पर या किसी फिल्म मे देखता हूँ, तो वो मेरे सामने होते हुए भी मैं उन्हे खोजने की कोशिश करता हूँ। ऐसा लगता ही नहीं है कि वही मानव है, जिसकी मैंने किताबें पढ़ी है। वैसे मानव एक थियेटर कलाकार होने के साथ बड़े पर्दे पर भी अपना जलवा बिखेर चुके हैं लेकिन मुझे उनके द्वारा लिखी गई किताबें ज्यादा आकर्षित करती हैं। उनकी किताबों को पढ़ने के बाद मानव के जीवन मे जो झाकने का मौका मिला है, मैं उसे कभी गवा नहीं सकता। चेहरे पर हसी के साथ मानव जब परदे आते हैं, तो ऐसा लगता है कि वो अपने दर्द को पीछे लॉकर मे बंद कर चाभी को कहीं गुम कर दिया है। “कर्ता ने कर्म से” मानव को जानने के लिए एक खुला हुआ तिजोरी है। जो खोलने वाला कुछ भी चुरा सकता है।
अगर आपको कविता पढ़ना पसंद है, या आप बहुत ही कम शब्दों मे ज्यादा कुछ जानने की चेष्टा करते हैं तों आपको मानव की इस कविता संग्रह को अवश्य पढ़नी चाहिए।
Summary of Karta Ne Karm Se by Manav Kaul Poetry Book in Hindi.
“कर्ता ने कर्म से” एक कविता संग्रह है। जहां तक मुझे नहीं लगता कि कविता कि कोई समरी होती है। जबकि कविता खुद एक समरी है। वैसे चार लाइन की कविता मे खुद बहुत से शब्द और भाव गुथे होते हैं, जो अपने भावों और किसी चीज के वर्णन करने के लिए खुद एक समरी है। और अगर बात करे उस किताब की जो कविता संग्रह है, तो मानव ने किसी एक भाव या किसी एक घटना को लेकर नहीं लिखा है। शुरुआत ही इन्होंने बादल से किया है पतंग, जुता, चिड़िया, नींद, माँ,पिता, भूख, कश्मीर, कोविड, तुम्हारे बिना, ठीक तुम्हारे पीछे, इंतजार, मृत्यु, समुन्द्र, सांस, और अंतिमा का दिख जाना पर खत्म किया है।
हाँ ये अलग बात है कि मानव ने अपनी कविता मे सबसे ज्यादा तवज्जो अपने उस खास दोस्त को दिया है, जिसे छोड़ने के बाद ज्यादा से ज्यादा कविता को सफेद पन्नों पर उल्टी कर दिया। लोगों के मुताबिक मानव तो आज अपने उस खास दोस्त से दूर है पर अपने कलमों के मध्यम से अपने किताबों मे उसे ज्यादा जगह दिया है। और ये अच्छा भी है नहीं तों हमे इतने भावपूर्ण कविता पढ़ने को कहाँ मिलते। मानव के मुताबिक अपने को खाली मानते हैं लेकिन मुझे लगता है कि अपने भावों को कलमों के माध्यम से सफेद और साफ पन्नों पर उतारने मे भारी व्यस्त हैं। मानव की जो इतनी सारी कविताए, जो मैंने अब तक पढ़ी उनमे सबसे छोटा और गहरा शब्द कुछ इस प्रकार है।
- “जुता ब काटता है
- तब ज़िंदगी काटना मुश्किल हो जाता है।
- जुता जब काटना बंद कर देता है
- तब वक्त काटना मुश्किल हो जाता है।”
मुझे इसे पढ़ने के बाद ऊपर के दो लाइन तो मुझे बिल्कुल समझ आए क्योंकि मुझे स्कूल जाते वक्त मैंने ये महसूस किया है लेकिन नीचे के दो लाइन तो नहीं। हलाकी शब्द कुछ ऊपर वाले जैसे भी है लेकिन भीतर के शब्दों मे जो गहराई है, वो तो मालूम पड़ती है पर फिर भी कितनी गहराई है और क्या कहना चाहती है। ये समझ नहीं आया। तो बस ऐसे ही बहुत सारी कविताएं हैं, जिसे मानव ने इस किताब के कवर के नीचे दबा रखा है, अगर आप इच्छुक हैं तो आप किताब खरीद सकते हैं।
Karta Ne Karm Se by Manav Kaul Poetry Book in Hindi के कुछ अच्छे कविता-
माँ
- धूप चेहरा जला रही है
- परछाई जूता खा रही है
- शरीर पानी फेक रहा है
- एक दरख्त पास आ रहा है।
- उसके आँचल में मैं पला हूँ
- उसके वात्सल्य की सांस पीकर
- आज मैं भी हरा हूँ।
- आप यकीन नहीं करेंगे
- पर इस जंगल मे एक पेड़ ने मुझे सींचा है
- मैं इसे माँ कहता हूँ।
- जब रात शोर खा चुकी होती है
- जब हमारी घबराहट नींद को रात से छोटा कर देती है
- जब हमारी कायरता सपनों में दखल देने लगती है
- तब माथे पर उसकी उँगलियाँ हरकत करती हैं…
- और मैं सो जाता हूँ।
भूख
- बाहर खुला नीला आकाश था
- और भीतर एक पिंजरा लटका हुआ था।
- बाहर मुक्ति का डर था
- और भीतर सुरक्षित जीने की थकान।
- उसे उड़ने की भूख थी
- और पिंजरे में खाना रखा हुआ था।
ठोकरों से बदलता आदमी
- तूने धीरे कहा था।
- मैं धीरे ही चला था।
- पर जब आसमान देखा
- तो वहाँ ठोकर थी
- जो जब मुझे दिखी थी तब तक मैं चूक गया था।
- मैं तेज नहीं चला था कभी भी…
- मैं तो ठोकरों की मदद से गिरता चला आया था।
- फिर तूने देखा था मुझे दूर कहीं।
- सब कहते हैं ठोकरों से आदमी बदल जाता है।
- क्या मैं बदल गया था?
- जब थमा, तो तू नहीं थी।
- जब संभला, तो मैं गुम था।
कोविड
- वह गले के रास्ते ही भीतर प्रवेश करेगा
- इसलिए इस लॉकडाउन मे गला सुखने का डर बना रहता था।
- प्यास लगती तो डर लगने लगता।
- कल रात की बात है
- कल देर रात में गटागट पानी पी रहा था
- पर प्यास नहीं बुझ रही थी।
- तीन बॉटल पानी पीने के बाद
- मैंने मटके समेत ,पानी अपने मुख मे उड़ेल दिया
- तब ध्यान आया कि मेरे घर मे मटका तो है ही नहीं।
- मैं प्यासा था और पानी पीने का सपना देख रहा था।
- जब मैं उठा तो अचानक लगा कि क्या वो सारे जानवर भी
- पिंजरे में गोल-गोल घूमते हुए
- जंगल मे चलने का सपना देखते होंगे?
- क्या हमने पिंजरे मे बंद पक्षियों को बोलना इसलिए सिखाया था
- ताकि उनके आज़ाद उड़ने का सपना भी तोड़ सकें?
- मैं इस लॉकडाउन मे दिन भर घर मे टहलते हुए
- जब भी खिड़की के पास जाता हूँ
- तो लगता है कि मैं वो बंदर हूँ, जिसे लोग पत्थर मारते हैं
- ताकि वो उछले-कूदे और सबका मनोरंजन करे।
- क्या हम अभी भी जानवरों का इस्तेमाल
- अपने मनोरंजन के लिए कर रहे हैं?
- जब ये सब खत्म होगा तो
- क्या हमें हमारा जानवर होना याद रहेगा?
- क्या हमें याद रहेगा कि कैसे हमने अपने मनोरंजन के लिए
- पूरी ज़िंदगी जानवरों को प्यासा रखा था।
- शायद सारे जानवर पिंजरे मे बंद होकर
- इन्ही दिनों का सपना देख रहे थे।
- हैं ना?
लेखक की जगह
- लेखक को बस एक कुर्सी बराबर जगह चाहिए होती है
- उड़ने के लिए।
- जहां बैठे हुए उसे
- अपने घर की खिड़की जितनी आजादी का
- नीला आसमान दिखे
- जिसमें उसे ईमानदार सफेद शब्दों के
- हाथी-घोड़े बनते-बिगड़ते दिखाई देते रहे।
Karta Ne Karm Se by Manav Kaul Poetry Book in Hindi. लेखक के बारे मे-
मानव कौल एक भारतीय थिएटर निर्देशक, नाटककार, लेखक, अभिनेता और फिल्म निर्माता हैं। अब तक उनकी कई रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके उल्लेखनीय नाटकों में इल्हाम, पार्क और शक्कर के पांच दाने हैं, जो 2004 में नाटककार और निर्देशक के रूप में उनकी पहली फिल्म भी थी। उनकी सातवीं कृति, हिंदी कविताओं का एक संग्रह, “करता ने कर्म से” है जो अभी हाल ही, २०२१ में प्रकाशित हुई है। उनकी आठवीं क़िताब जो कि उनका दूसरा उपन्यास भी है, जल्द ही आने वाली है।
‘अजीब दास्तान’ को मानव कौल ने इंस्टाग्राम पर हिंद युग द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह का पहला लुक पोस्ट किया है। 44 वर्षीय अभिनेता ने कहा कि कवि की नजर उस बच्चे की होती है जो दुनिया को अलग तरह से देखता है और उम्मीद करता है कि उसका काम पाठकों को पसंद आएगा। “ऐसी कई कविताएँ, जिन्हें मैं वर्षों से एकत्रित कर रहा हूँ, आखिरकार इस पुस्तक में एक घर मिल गया है। इस घर में आपका स्वागत है। मुझे उम्मीद है कि आप इसके साथ घर जैसा महसूस करेंगे, ”कौल ने लिखा। उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ पुस्तक ऑर्डर करने के लिए लिंक भी साझा किया। “तुम्हारे बारे में”, “बहुत दूर, कितना दूर होता है” और पिछले साल के उपन्यास “अंतिमा” के बाद “कर्ता ने कर्म से” कौल की सातवीं किताब है।
good job