Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi And Jivan Parichay pdf download

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi. हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखी गई एक ऐसी कविता, जिसका का रसपान लाखों लोग कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे। लेकिन यह ‘काव्य की प्याला’ कभी खाली नहीं होने वाली है।

Madhushala Book Review

“मधुशाला”! जब से हाथ लगी है छूटने का नाम ही नहीं ले रही है। जब भी नजर जाती है, हाथ मधुशाला का पान करने के लिए हाथ लगा ही देती है। और मुझे तो लगता है कि इसका नशा और ज्यादा हो गया है। शायद इसलिए कहा भी जाता है कि मधू जितना पुराना होती है, उतनी और नशीली होती जाती है। मधुशाला का नशा आज भी बरकरार है, इसमें कोई दो-राय नहीं। इस सच्चे मधुशाला से हमारी युवा पीढ़ी ने आज दूरी बना रखी है, और दूसरे मधुशाला की तरह उसका ध्यान है। जो शाम को गले से उतरती है और सूरज निकलने के साथ-साथ नशा भी निकल जाता है।

लेकिन फिर भी! कुछ तो बात है, इस मधुशाला में। जिसका पहला संस्करण 1935 में छपा और आज तिहत्तरवां संस्करण  वितरित किया जा रहा है। हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखी गई एक ऐसी काव्य रचना जिसने न सिर्फ अपने जमाने में तहलका मचाया बल्कि आज भी मचाने का जुनून रखती है। 135रुबाइयों(चौपाई) का ऐसा संगठन, जिससे पूरी एक किताब बन गई। मुझे लगता है, ये अपने आप में अनोखा है।

आज कल के युवा पीढ़ी से मैं तो कहूँगा कि अमिताभ बच्चन को जानने से पहले उनके पिता के बारे में जान लेना ठीक रहेगा। वो कहते हैं न, की बाप- बाप होता है। इस पंक्ति को बखूबी निभाया है हरिवंश राय बच्चन ने। और साबित किया है कि “रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं।”

“मधुशाला” जैसी कृतियाँ बहुत कम देखने को मिलती हैं। शुक्र है कि बहुत कम देखने को मिलती हैं। नहीं तो हर जगह ऐसी कृतियाँ उपलब्ध होने लगती तो उतना मजा नहीं आता । ऐसी कृतियों का निर्माण करना भी तो हर किसी के बस की बात नहीं है। 135 रुबाइयाँ और हर रुबाइयों के अंत में मधुशाला का जिक्र होना इसे अपने में एक खास बनाता है। जिसे पढ़ने और सुनने वाले का मज़ा दोगुना कर देता है।    

इस किताब के पब्लिशर हैं राजपाल पब्लिशिंग हाउस, जो 1912 से अपनी सेवा देते आ रहे हैं। हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को जन-जन के हाथों तक पहुचाने में राजपाल पब्लिशिंग हाउस का बहुत अहम भूमिका रही है।

Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

धर्म-ग्रंथ सब जल चुकी है
जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरजे-सबको
तोड़ चुका जो मतवाला,            
  पंडित, मोमिन, पादरियों के            
  फंदों को जो काट चुका,                
          कर सकती है आज उसी का  
          स्वागत मेरी मधुशाला।  


बजी न मंदिर में घड़ियाली,
चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज़्जिन
देकर मस्जिद में ताला,      
    लूटे खजाने नरपतियों के        
   गिरी गढ़ों की दीवारें;                  
रहे मुबारक पिनेवाले,                   
खुली रहे यह मधुशाला।    

बड़े-बड़े परिवार मिटे यों,
एक न हो रोनेवाला,
हो जाएं सुनसान महल वे,
जहां थिरकती सुरबाला,            
राज्य उलट जाएँ, भूपों की            
भाग्य-सुलक्ष्मी सो जाए;                                
जमें रहेंगे पीनेवाले,                                
जमा करेंगी मधुशाला  

एक बरस में एक बार ही
जलती होली की ज्याला,
एक बार ही लगती बाजी,
जलती दीपों की माला;                
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन                
आ मदिरालय में देखों,                        
दिन को होली, रात दिवाली,                        
रोज़ मनाती मधुशाला।    

दुत्कारा मस्जिद ने मुझको
कहकर है पिनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने
देख हथेली पर प्याला,               
कहाँ ठिकाना मिलता जग में               
भला अभागे काफिर को                       
शरनास्थल बनकर न मुझे यदि                       
अपना लेती मधुशाला।  

सजें न मस्जिद और नमाजी
कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता,
बन ठनकार, पिनेवाला,                 
शेख कहाँ तुलना हो सकती                 
मस्जिद की मदिरालय से                            
चिर-विधवा है मस्जिद तेरी,                            
सदा-सुहागिन मधुशाला।  

मुसलमान औ’ हिन्दू हैं दो,
एक, मगर, आँका प्याला,
एक मगर, उनका मदिरालय,
एक, मगर, उनकी हाला;                 
दोनों रहते एक न जब तक                  
मस्जिद-मंदिर में जाते;                              
वीर बढ़ाते मस्जिद-मंदिर                               
मेल करती मधुशाला!    

यम आएगा लेने जब,
तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के
क्या समझेगा मतवाला,      
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी      
अन्यायी यमराजों के                 
डंडों की जब मार पड़ेगी,                 
आड़ करेगी मधुशाला।  

याद न आए दुखमय जीवन
इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को
मुक्त, उठा लेता प्याला,        
शौक साध के और स्वाद के        
हेतु पिया जग करता है,              
पर मैं वह रोगी हूँ जिसकी              
एक दवा है मधुशाला।  
 
मेरे शव पर वह रोए,
हो जिसके आँसुन में हाला,
आह भरे वह, जो हो सुरभित
मदिरा पिकर मतवाला,          
दें मुझको वे कंधा जिनके          
पद मद-डगमग होते हों,                
और जलूँ उस ठौर, जहां पर                 
कभी रही हो मधुशाला।  

किस्मत में था खाली खप्पर,
खोज रहा था मैं प्याला;
ढूंढ रहा था मैं मृगनयनी,
किस्मत में थी मृगछाला;           
किसने अपना भाग्य समझने           
में मुझ-सा धोखा खाया;                    
किस्मत में था अवघट-मरघट,                    
ढूंढ रहा था मधुशाला।   

बहुतेरे मदिरालय देखे,
बहुतेरी देखि हाला,
भांति-भांति का आया मेरे
हाथों में मधू का प्याला,       
एक-एक से बढ़कर, सुंदर        
साकी ने सत्कार किया,                  
जँची न आँखों में, पर, कोई                   
पहली-जैसी मधुशाला।   

मैं मदिरालय के अंदर हूँ,
मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय
बिंबित करनेवाली है हाला;           
इस उधेड़-बन में ही मेरा           
सारा जीवन बित गया                   
मैं मधुशाला के अंदर या                   
मेरे अंदर मधुशाला ।
 
जितनी दिल की गहराई हो
उतना गहरा है प्याला;
जितनी मन की मादकता हो
उतनी मादक है हाला;         
जितनी उर की भावुकता हो         
उतना सुंदर साकी है,                  
जितना ही जो रसिक, उसे है                  
उतनी रसमय मधुशाला।  

बड़े-बड़े नाज़ों से मैने
पाली है साकीबाला
ललित कल्पना का ही इसने
सदा उठाया है प्याला,       
मान-दुलारों से ही रखना        
इस मेरी सुकुमारी को;               
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब            
     सौप रहा हूँ मधुशाला।  
famous poem of Harivansh Rai Bahcchan

Jivan Parichay

श्री हरिवंश राय बच्चन की एक शाश्वत रचना “मधुशाला” का क्रेज था और जब भी श्री हरिवंश राय बच्चन ने इसे मंच पर प्रस्तुत किया तो दर्शक इसमें इतने व्यक्तिगत रूप से शामिल हो गए कि पूरा हॉल उसमें संदेश के प्रभाव में बह गया।

“मधुशाला” जैसी महाकाव्य कि रचना करने वाले वाले माननीय हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक मध्यमवर्गीय श्रीवास्तवा परिवार में हुआ। बच्चन ने 1929 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और बहुत जल्द वे माहात्मा गांधीं की लपेटे में आकर स्वतंत्रता संग्राम के भंवर में फंस गए।

एक पत्रकार के रूप में एक छोटे से कार्यकाल के बाद, उन्होंने स्थानीय अग्रवाल विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। अध्यापन कार्य के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया और एम.ए. और बी.टी. दोनों प्राप्त किए।

वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर के रूप में और बाद में 1941 में अंग्रेजी साहित्य में लेक्चरर के रूप में शामिल हुए। विश्वविद्यालय से एक विश्राम लेते हुए, वह “डब्ल्यू.बी.” पर डॉक्टरेट के काम के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए। वह कैम्ब्रिज से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।

अपने शोध को पूरा करने के बाद वे अपने मातृ संस्थान में शामिल हो गए और एक छोटे कार्यकाल के बाद, बच्चन कुछ समय के लिए आकाशवाणी, इलाहाबाद में निर्माता के रूप में शामिल हो गए। जवाहरलाल नेहरू के कहने पर, वह 1955 में केंद्रीय विदेश मंत्रालय में हिंदी प्रकोष्ठ में ओएसडी के रूप में शामिल हुए, ताकि अंग्रेजी से हिंदी में आधिकारिक दस्तावेजों का अनुवाद किया जा सके, जिसे उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति तक जारी रखा था।

हरिवंश राय अपनी पहली पत्नी श्यामा की असामयिक मृत्यु के कारण आर्थिक चिंताओं, अकेलेपन जैसी घरेलू कठिनाइयों की आलोचना से विचलित तो थे मगर उतने ही और दृढ़ थे, उन्होंने विवेक के साथ परिपक्व सूक्ष्मता को जोड़ते हुए लिखना जारी रखा। तेजी सूरी के साथ उनके विवाह ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और, उनके स्वयं के प्रवेश से, उनकी कविता। उनका रचनात्मक करियर, जो 1932 में शुरू हुआ और 1995 तक जारी रहा, 63 साल की साहित्यिक यात्रा थी।

“तेरा हर उनका” पहला संग्रह गीत था। मधुशाला (हाउस ऑफ मीड, 1935) के प्रकाशन के साथ, बच्चन की एक साहित्यिक कृति, शराब पर एक राग और जीने की खुशी, एक प्रमुख हिंदी कवि के रूप में उनकी स्थिति मजबूती से स्थापित हुई।

उन्होंने 1935 में एक शाम मधुशाला के अपने पाठ के साथ हिंदी कविता के क्षितिज पर एक चमकते सितारे के रूप में फूट डाला, एक युवा व्यक्ति की आत्मा से सीधे रोना, एक विशाल दर्शकों के लिए, श्रोताओं के लिए रिंगों के साथ एक आकर्षक दुनिया का खुलासा किया। अपनी खूबसूरत प्रेमिका के साथ एक शाश्वत मिलन की लालसा, कविता में कई तरह के प्रतीकों का इस्तेमाल होता है, विशेष रूप से शराब का, जैसा कि फ़ारसी कविता की परंपरा में है। (इन प्रतीकों का अर्थ कई स्तरों पर संचालित होता है।)

उनकी शैली

उमर खय्याम की रूबैयत और उसकी शैली के प्रभाव से उन्होंने मधुशाला(1935), मधुबाला (1936), और मधुकलश (1937) के साथ एक त्रयी को पूरा करते हुए दो अन्य लंबी कविताएँ लिखी थीं।

इन तीन संग्रहों का अंतर्निहित संदेश घिनौनी सांसारिक महत्वाकांक्षाओं की निरर्थकता, लालच अधिग्रहण, धर्म, नैतिकता और व्यवहार में कट्टरता और असहिष्णुता था। एक दुखद काव्यात्मक विडंबना में, हरिवंश राय ने रुग्ण परंपरावाद और नैतिकतावादी को साहसपूर्वक चुनौती दी और इस प्रकार, हिंदी कविता को एक बिल्कुल नया आयाम दिया।

श्यामा की मृत्यु का उनके मानस पर गहरा प्रभाव पड़ा, उनकी सभी आशाओं और सपनों को चकनाचूर कर दिया। उनके गहरे दुख और निराशावाद की भावनाओं को निशा निमात्राण (इनविटेशन टू नाइट, 1938), सौ गीतों के संग्रह के माध्यम से व्यक्त किया गया था।

हरिवंश ने सॉनेट के अपने संस्करण और अपनी काव्य शैली के अनुरूप विकसित करने का प्रयास किया था। ऑक्टेव और सेक्सेट के पारंपरिक पैटर्न का पालन करने के बजाय, उनके गीतों में हिंदी भाषा के अनुकूल 13 लाइनें शामिल थीं। अकेलेपन के रोने से शुरू होकर एक आश्वासन के साथ समाप्त, इन गीतों की मूल कल्पना अंधेरे और प्रकाश से जुड़ी हुई थी, जो उनके दुःख और आशा का प्रतीक था।

कवि ने बाहरी दुनिया के संदर्भ में अपनी आंतरिक भावनाओं को व्यक्त किया, इस प्रकार प्रतीकों का एक ब्रह्मांड बनाया। माथुर के शब्दों में, “निशा निमात्रां त्रासदी और पीड़ा का एक अत्यधिक गतिशील काव्यात्मक दस्तावेज बनी रहेगी। संपूर्ण आधुनिक हिंदी कविता में निशा निमत्रण जैसी कोई कृति नहीं है, जिसने जीवन में दुःख या दुखद शून्य की भावना को इतनी गहराई से चित्रित किया हो। ”

निशा निमात्रा का अनुसरण करते हुए एकांत संगीत (अकेलेपन का गीत, 1939), 1938-39 की अवधि के दौरान लिखा गया था जब वह एक मानसिक संकट से गुजर रहे थे। गीत उनके संवेदनशील मूड और उनके जीवन के गंभीर चरण को दर्शाते हैं। संग्रह उनकी काव्य शक्ति के शिखर को चिह्नित करता है और प्रेमपूर्ण दु: ख की नियति और अत्यधिक अकेलेपन के अनुभव को प्रकट करता है।

कवि ने लिखा था कि जिस अँधेरे में उन्होंने निशा निमात्रा में प्रवेश किया था, उसने उन्हें एकांत संगीत, एकांत संगीत सुनने के लिए प्रेरित किया था, और संगीत उन्हें अकुल अंतरा (द रेस्टलेस हार्ट, 1943) तक ले गया। अकुल अंतरा के प्रकाशन के साथ ही उनके लेखन का पहला चरण समाप्त हो गया था।

बच्चन ने अवधी में भगवद्गीता का अनुवाद जनगीता (1958) और आधुनिक हिंदी, नागरगीता (1966) में भी किया था। उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं का कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इसके अलावा, उन्होंने निबंध, यात्रा वृतांत लिखे और अपनी और अपने समकालीनों की कविताओं के कई संस्करणों का संपादन किया। उन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग में यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ (1981) और फिल्म ‘आलाप’ (1977) के लिए ‘कोई गाता मैं सो जाता’ के अपने गीतों के साथ योगदान दिया है।

गद्य लेखन में हरिवंश राय की महान उपलब्धि चार खंडों में उनकी आत्मकथा थी नए पुराने झरोखे (विंडोज न्यू एंड ओल्ड) की शुरुआत क्या भूलों क्या याद करूं (क्या भूलूं और क्या याद रखूं) से हुई। एक मौलिक कार्य के रूप में माना जाता है जिसे खुद के लिए एक और जगह बनाना था, काम अपने सुंदर स्वीकारोक्ति और महान दुखद आयामों की स्थितियों में उनकी अंतरतम भावनाओं के अंतरंग खाते से अलग है।

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FAQ

Q: श्रीवास्तव से बच्चन बनने के पीछे क्या माजरा है?

Ans: हरिवंश राय बच्चन अपने घर के बड़े लड़के थे, जिसकों सभी प्यार से बच्चा कह कर पुकारते थे और इस प्रकार उनकी नाम के आगे बच्चन लग गया।

Q: मधुशाला का पहला संस्करण कब छपा था और आज तक कितना संस्करण छप चुका है?

Ans: “मधुशाला” का पहला संस्करण 1935 और आज के समय तिहत्तरवां संस्करण अगस्त 2021 में छपा  है, जो की किसी भी काव्य के लिए यह बहुत ज्यादा संस्करण है।

Q: हरिवंश राय बच्चन का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

Ans: हरिवंश राय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 27 नवंबर 1903 को हुआ था।

Q: हरिवंश राय बच्चन की पहली रचना कौन सी है?

Ans: “मधुशाला।”

Q: हरिवंश राय बच्चन ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कौन सि डिग्री हासिल की?

Ans: पीएचडी और अंग्रेजी साहित्य।

Q: रुबाइयाँ का क्या मतलब होता है?

Ans: रुबाइयाँ का मतलब चौपाई होता है। 

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