Harappa Curse of the Blood River Book Summary in Hindi by Vineet Bajpai. विनीत बाजपेयी द्वारा लिखा गया एक सबसे शानदार उपन्यास। जिसकी कल्पना न कोई कर सकता है और नाही कभी कोई करेगा।
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Book Review
“Harappa: Curse of the Blood River” विनीत बाजपेयी द्वारा लिखित हड़प्पा शृंखला की पहली किताब है। जिसे 9 जून 2017 को प्रकाशित किया गया था। और इसका हिन्दी अनुवादक उर्मिला गुप्ता जी हैं। विनीत बाजपेयी की यह किताब ईसा से 1700 साल पहले से लेकर आज के काशी की संस्कृति की तालमेल बैठाती एक बेंच हैं।
हड़प्पा क्या है, क्यू है, कैसा है? पहले कैसा था, कब खोज हुई, पश्चिम के लोगों ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया, उस दौरान हड़प्पा में कौन से प्रचलन थे, और कैसे विलुप्त हो गए। आज के समय में किस भागों में स्थित है। उसका अस्तित्व क्या है? इस सब को बड़े ही सटीकता और बड़े मनोहर मनोरंजक के साथ विनीत ने अपने कुछ शक्तिशाली पात्रों को बुन कर एक ऐसा गाथा रचा है कि पढ़ते वक्त आप आनंद से झूम उठेंगे।
विनीत को ऐतिहासिक उपन्यास ग़ढ़ने में महारत हासिल है। आज की काशी और 3700 साल पहले की हड़प्पा से तालमेल बैठाना काबिल-ए-तारीफ़ है। ऐसी कहानियाँ पढ़ने में बहुत रोचक होती हैं, जिनमें आपको कुछ बीते हुए कल की जानकारी मिले और आज की चटपटी पात्र की शक्ति से रू-ब-रू होने को मिले।
विनीत के द्वारा रची गई इस नई हड़प्पा में आपको जादू-टोना, भूत-पिशाच, पूजा-पाठ, शक्ति, कुछ रत्न , परिवार और प्यार ये सब आपको जानने-समझने को मिलेगा, जो आपको शुरू से लेकर इस शृंखला की आखिरी किताब तक बांधे रखेगा। इसके कुछ पात्र आम आदमी होते हुए भी बहुत शक्तिशाली है, धैर्यवान हैं, विरवान है, तो वहीं इनके विपक्षी पात्र शैतान, षणयंत्रकारी और जादू-टोना जैसी माया शक्ति के परिचालक हैं। जो हड़प्पा को जानने के लिए बहुत ही रोचक बनाता है।
“हड़प्पा: रक्त धारा का श्राप” एक फिक्शन के साथ-साथ सस्पेंस, थ्रीलर उपन्यास है। मेरा वादा है कि फिक्शन पढ़ने वालों के लिए यह शानदार किताब साबित होंगी। ऐसी किताबें भारतीय लेखकों द्वारा अब पढ़ने को मिल रही हैं, यह बहुत ही अच्छा है। आशा करता हूँ, कि हर पाठक को यह किताब बहुत पसंद आएगी।
Harappa Curse of the Blood River Book Summary in Hindi
विनीत ने अपने इस उपन्यास को दो भागों में लिखा है, एक 1700 ईसापूर्व हड़प्पा और दूसरा नई दिल्ली, 2017।
नई दिल्ली, 2017
विद्धुत शास्त्री, दिल्ली के युवा उद्यमी को उसके 108 वर्षीय परदादा का बुलावा आता है। उसके परदादा अपनी मृत्युशैय्या पर हैं। भारत की प्राचीन नगरी, काशी के बुजुर्ग मठाधीश विद्धुत को एक प्रागैतिहासिक अभिशाप के बारे में बताना चाहते हैं। ऐसा अभिशाप जिसने हजारों साल पहले न सिर्फ एक सभ्यता को भस्म कर दिया, बल्कि उसके सत्य को भी मिटा दिया।
अब तक।
बुजुर्ग ब्राम्हण द्वारका शास्त्री बनारस के शिव मंदिर की जटिल भूल-भुलैया के गुप्त तहखाने की रक्षा करने वाली शृंखला की अंतिम कड़ी है। वहाँ कूट शब्दों में हाथ से लिखा, 3500 साल पुराना, संरक्षित संदेश दबा हुआ था। उस पर संस्कृत का एक दोहा लिखा था, साथ ही एक भविष्यवाणी कि शख संवत में रोहिणी नक्षत्र की किसी खास पूर्णिमा को, उनके ही वंश का कोई व्यक्ति, जो अपने पूर्वजों के पाप से अछूता है, इस काले रहस्य से पर्दा उठाएगा।
मानवजाति के इतिहास के सबसे दागदार कलंक का अंत करेगा।
इसी कारण से विद्युत के परदादा ने उसे बुलाया था। वो खास समय आ पहुंचा था। विद्युत को उसकी पिछली तीन पीढ़ियों ने काशी से दूर रखा था, क्योंकि वो सभी उस श्राप को ढो रहे थे। वो श्राप और किसी का नहीं, बल्कि उसके अपने पूर्वज विवास्वन पुजारी का था, जिसने 3700 साल पहले अपने लोगों, अपनी सभ्यता के साथ धोखा किया था। उसने दुनिया के पहले विकसित नगर, हड़प्पा के विनाश का द्वार खोल दिया था।
लेकिन उससे भी बड़ा अपराध उसने ज्ञान की महान नदी के साथ किया था। उसने उस नदी को रक्त-धारा में बदल दिया था।
1700 ईसापूर्व, हड़प्पा:
ज्ञान और वैदिक जीवन का अनुसरण करने वाला नगर, हड़प्पा दुनिया का सबसे शक्तिशाली राज्य है। विवास्वन पुजारी को हड़प्पा के प्रधान पुजारी बनाए जाने की घोषणा बस होने ही वाली है- आर्यवर्त में इस पद को सबसे शक्तिशाली पद माना गया है। सप्त ॠषियों ने मिलकर विवास्वन को सरस्वती का आठवाँ पुत्र और अपना साथी यानि कि अष्टॠषि बनने का अवसर दिया, जिससे विवास्वन आधा मानव और आधा भगवान बन जाता है। इस पवित्र और इच्छित पद तक पहुचने के लिए उसने आधी शदी तक कड़ा परिश्रम किया।
लेकिन विवास्वन की बहन प्रियंवदा अपने पति चंद्रधर के साथ मिलकर धोखा दे देती हैं ।
प्रियंवदा चाहती है कि उसका पति चंद्रधर हड़प्पा का राजा बने और वो महारानी। प्रियंवदा चंद्रधर से विवास्वन के पत्नी दामिनी और उसके पुत्र मनु को मारने के लिए भी कहती है लेकिन चंद्रधर ऐसा करने से मना कर देता है। क्योंकि दामिनी और कोई नहीं बल्कि चंद्रधर की बहन है और मनु उसका अपना भांजा।
ये सब एक तरफ, चंद्रधर कहता है कि विवास्वन उसका प्रिय साथी है वो उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता लेकिन प्रियंवदा उसे समझाती है और अंत में अपने देह त्यागने की बात करती है, जो चंद्रधर को स्वीकार नहीं होता और विवास्वन का प्रतिद्वंदी बन जाता है।
चंद्रधर और उसकी सुंदर सम्मोहक पत्नी अपने रक्षामंत्री रंगा के साथ मिलकर मेसोपोटामिया के तीन लंबे चेहरे वाले जादूगरों अप,गुन और शा जिनकी आँखों में पुतलियाँ नहीं थी, के काले जादू का इस्तेमाल किया। उँ जादूगरों की मदद से शहर का सारा पानी दूषित कर शहरवासियों हिंसात्मक बना दिया। विवास्वन पुजारी को एक भयानक षणयंत्र में फसाते हुए नयनतारा का हत्यारा घोषित कर दिया। सुंदर नर्तकी नयनतारा की पहचान उसकी कोहनी से ऊपर पहनी जाने वाली चूड़ियां थी।
ये चूड़ियाँ वो अपने शक्तिशाली और प्रभावशाली मेहमानों के सामने नृत्य करते समय पहनती थी।
सार्वजनिक न्यायालय में विवास्वन को दंडित ठहराकर, उसे हड़प्पा के मृत कारावास में डाल दिया गया, जहां उसने प्रतिशोध का प्रण लिया। उसी कारावास की दीवार पर उसने अपने ही खून से ‘प्रतिशोध’ के शब्द लिखे। ये प्रतिशोध चंद्रधर के विरुद्ध नहीं था, उस भयानक षणयंत्र के विरुद्ध भी नहीं। ना ही उस न्यायाधीश के विरुद्ध, जिसने उसे दोषी करार दिया और न ही मेसोपोटामियाँ के उन काले जादूगरों के विरुद्ध।
उसने पूरे हड़प्पा से प्रतिशोध लेने की शपथ ली! उसके मामले की सुनवाई विशाल स्नानागार पर हुई थी। वहाँ लोगों ने उस पर थूका और पत्थर बरसाए, उन्ही अपने लोगों ने, जिनके लिए उसने अपना पूरा जीवन समर्पित किया था। उसकी संपती को कब्जे में ले लिया गया था और उसके परिवार को बेरहमी से मार दिया गया। वो नफरत से चिल्लाया। और लोगों को आगाह किया कि “वो आधा-मानव और आधा-भगवान है।“
2017, बनारस:
विद्युत बनारस में अपने देव-राक्षस मठ को खोजते हुए पहुच जाता है। जहां उससे मिलकर परदादाजी और बाकी मठ के संरक्षक बहुत ही खुश होते हैं। द्वारिका शास्त्री आराम से एक-एक कर विद्युत से उसके ज्ञान के बारे में पूछते रहते हैं। उससे 3700 साल पूर्व हड़प्पा के बारे में बात करते हैं।
विद्युत को इसी दौरान दशाश्वमेघ घाट पर सिगरेट्स पीते समय रोमी परेरा नाम के एक साधारण आदमी से मुलाकात होती है। जो अपना लाइटर विद्युत के पास ही छोड़ कर चला जाता है। सिगरेट्स खत्म होने के बाद जब वो मठ को अपने परदादादाजी के पास पहुचता है तो उसके परदादादाजी बता देते हैं कि वो किससे मिला, और वो कोई और नहीं बल्कि उसे मारने आया था। तो तुम्हें हमेशा सावधान रहना है।
विद्युत को द्वारिका शास्त्री ये जानते हुए प्रभावित तो होता है लेकिन ये भी सोचने को मजबूर हो जाता है कि उससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई। इसके लिए विद्युत अपने परदादाजी से माफी माँगता हैं।
द्वारिका शास्त्री और विद्युत में कुछ हड़प्पा को लेकर चर्चा होती है जिसमें द्वारिका बताते हैं कि अंग्रेजों ने हड़प्पा को 1842 में ईस्ट इंडिया कंपनी, और ब्रिटिश राज ने खोज लिया था और उस समय हड़प्पा का नाम ब्राम्हीनाबाद था लेकिन वो समाज के सामने नहीं लाना चाहते थे क्योंकि गलत असर उन पर पड़ता। उनकी प्रभुता पर गलत असर पड़ता। वो भारतीय को अपनी संस्कृति से प्रभावित करना चाहते थे। अपने को सबसे पुराना और आधुनिक बताना चाहते थे ।
इसलिए अंग्रेजों ने उसमें से निकले चीजों को जलाकर नष्ट कर दिया फिर उसमें निकले ईंटों को अपने यहाँ बन रहे रेलवे ट्रैक में लगा दिया ताकि कभी किसी को भी पता न चले। फिर जॉन हुबर्ट मास्टर ने उस जगह की खोज 1921 में की थी। जो हमें आज की किताबों में पढ़ाया जाता है।
इसी दौरान मठ में विद्युत की मुलाकात दामिनी से होती है, जिसे जानकर विद्युत बहुत अचंभित होता है। क्योंकि दामिनी वही लड़की है, जो उसके साथ दिल्ली में रहा करती है। उसे मठ में देखकर विद्युत चौक जाता है तब पूछने पर पता चलता है कि उसने कैब ड्राइवर की मदद से पता लगाते हुए यहाँ तक पहुंची है।
विद्युत दामिनी की मुलाकात मठ के और भी लोगों से होती है, दामिनी को उनसे बात कर अपने संस्कृति के प्रति एक श्रद्धा भाव जागता है। और फिर विद्युत परदादाजी द्वारिका शास्त्री से भी मिलवाता है। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत प्रभावित होते हैं। और अंत में विद्युत को बता ही देते हैं कि विद्युत और कोई नहीं बल्कि विवास्वन का इस जनम में अवतार है और दामिनी उसकी अर्धांगिनी संजना है। जिसे जानने के बाद विद्युत उत्साहित होता है।
विद्युत दामिनी के साथ को एक रेसत्रों में खाते हुए रोमी का पत्र मिलता है कि वो दशाश्वमेघ घाट पर आरती के समय मिलना चाहता है। विद्युत ये बात परदादाजी को बताता है तब द्वारिका शास्त्री बताते हैं कि अब अंतिम समय आ गया है। अगले दिन उसी घाट पर विद्युत अपने मठ के संरक्षकों के साथ हाथियार सहित आरती के समय मिलते हैं, जिनमे दोनों गुटों में खून खराबा होता है। विद्युत को उसी के मठ का संरक्षक बाला धोखा देता है और विद्युत को गोली मार देता है। जिसके बाद…..
आगे का हिस्सा विनीत ने अपने दूसरे किताब में छिपा रखा है तो आपको इसके लिए दूसरे ब्लॉग पोस्ट का इंतजार करना होगा।
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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
- काशी- हिन्दू धर्म में काशी को सबसे पवित्र नगर माना गया है, जहां पृथ्वी का संभवतः सबसे प्राचीन धर्म और जीवन शैली विद्यमान हैं। मूल रूप से इसे काशी और वाराणसी कहाँ जाता आठ, जबकि हजारों साल पहले इसका नाम पहले वाराणसी और फिर पाली साहित्य के प्रभाव में बनारस कर दिया गया। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में कहाँ गया है कि जब भीषण बाढ़ पूरी दुनिया को तबाह कर देगी और प्रलय का दिन आ पहुचेगा, तब स्वयं भगवान शिव अपने त्रिशूल की नोक पर काशी को उठाकर इसकी रक्षा करेंगे।
- हड़प्पा- हड़प्पा भारत की एक उन्नत और प्राचीन सभ्यता थी जो सिन्धु नदी के तट पर बसी हुई थी जिसका कुछ भाग अभी के पंजाब , गुजरात ,हरयाणा ,पाकिस्तान और हिमाचल प्रदेश में भी है | यही वह सभ्यता थी जहाँ धार्मिक प्रथाए प्रचलित थी | ७००० हजार साल पहले लोग यहाँ आये | ६००० हजार साल पहले खेती बाड़ी शुरू की | ५००० साल पहले उन्होंने बिल्डिंग बनानी शुरू की और ऐसे ही उनकी सभ्यता फलती और फूलती गयी | हड़प्पा के निचे साइड में मोहनजोदारो बसा हुआ था जहां दुनिया के सबसे पहले बाथरूम और वेस्टर्न टॉयलेट पाए गए थे |
- एक ब्रिटिश अधिकारी ने वर्ष 1921 में हड़प्पा साईट की खोज की थी। उसका नाम सर जॉन हुबर्ट मार्शल था। अगले कुछ सालों में दूसरे स्थलों जैसे मोहन जोदड़ों की भी खोज की गई 1931 तक।
- हिन्दू धर्म व्यक्ति विशेष की स्वतंत्र इच्छा को पोषित करता है। पैरा छूना एक प्रतीक है। यह बड़ों के प्रति स्नेह और सम्मान दर्शाता है। वैसे ही जैसे पश्चिम में हाथ को चूमना सम्मानजनक माना गया है। अगर एक महिला अपने से बड़ों के पैर छूना चाहती है तो, यह उसकी पसंद है। अगर वो इस परंपरा का निर्वाह नहीं करना चाहती, तो भी यह उसी की पसंद का मामला है। यह उदारता और पसंद का विकल्प ही तो हमारे प्राचीन धर्म को खास बनाता है।
- 10,000 से अधिक शरद देख चुका ये नगर, वाराणसी विश्व के महान रहस्यों के ज्ञाताओं का घर रहा है। यह नगर ग्रह के भीषणतं पापों का संरक्षक भी है।
कोट्स-
- कभी कभी जब कोई स्वयं पूरी तरह तस्वीर में डूबा हो, तो वोउसके स्याह प्रभाव को नहीं देख पाता।
- समय इतनी तेजीसे पलटता है कि बुलंद किस्मत भी पल भर में धरती पर रेंगती नजर आती है।
- सच को न तो कभी झूठ की तरफ बेचा जाता है और न उसका वैसे प्रचार किया जाता है।
- सबसे काली बुराई और सबसे उजली अच्छाई एक ही हृदय में छिपी होती है। उसे दबाए रखना या उभारना सिर्फ उसी प्राणी पर निर्भर करता है।
- खुशकिस्मती और दोस्त एक साथ ही आते हैं, और एक ही साथ चले जाते हैं।
- धर्म एक सबसे बड़ा शुद्धिकरण होता है, लेकिन गंदगी साफ करते-करते अक्सर वह स्वयं भी गंदा हो जाता है।
- पैसा और ताकत आ जाने पर इंसान कभी-कभी बदकिस्मतों की भयानक सच्चाई से मुह मोड़ लेता है।
पात्रों का चरित्र-चित्रण–
द्वारिका शास्त्री-
द्वारिका शास्त्री विद्युत के परदादा हैं, जो बनारस के बहुत ही बड़े प्रकांड पंडित हैं। जिनकी उम्र लगभग 105 साल है। अपने आस-पास के लोगों को आंखे बंद कर के भी उसके बारे में जान जाते हैं। जब उन्हे लगता है कि शैतान वापस आआ चुका है तो विद्युत को अपने पास नूला लेते हैं और अपने संरक्षकों से उसकी सुरक्षा करते हैं और उन सबका मार्गदर्शन करते हैं।
विद्युत-
उसकी मजबूत और चौड़ी छाती, बांह और कंधों के साथ उसकी तेजमयी रंगत उसे शाही, गरिमामयी वंशावली का अंश बताती हैं। उसकी तेज आंखे और तराशे हुए नैन-नक्श पर उसके लंबे, हल्के भूरे बाल खूब फबते थे। विद्युत हर अंश से अपने नाम का ही घोतक प्रतीत होता था। विद्युत 34 वर्ष की युवावस्था में ही कामयाब उद्यमी बन चुका था । वो संगीतज्ञ था, कवि, लेखक, पेंटर, मार्शल आर्ट जानता था, खूब मजे की पार्टी देता था और स्वभाव से ही उसमें नेतृत्व की क्षमता थी।
विवास्वन-
पचपन साल का वो आदमी देखने में पैतीस साल से एक भी दिन बड़ा नहीं दिखाई देता था। गोर वर्ण की उसकी त्वचा असामान्य तेज से चमकती थी और उसका चौड़ा माथा प्रभावशाली राजवंश का प्रतीक ठा। अपने अनेक नेक कार्यों की वजह से हड़प्पा का सूर्य कहलाने वाला आदमी नरमदिल था, और आनंद से अधिकारों भरे अपने जीवन को जी रहा था।
उसका शरीर कुशल खिलाड़ी की तरह चुस्त था और उसकी कशी हुई मांसपेशी उसके शानदार अंगवस्त्र के नीचे से चमक रही थी। विवास्वन पुजारी सिर्फ प्राचीन ग्रंथों, मंत्रों और श्लोकों का ही ज्ञाता नहीं था, बल्कि वह वेदों के रचीयता में से भी एक था।
रोमी परेरा-
दुबला-पतला, चश्मे वाला बेचारा लड़का था। जिसके बिखरे बाल, गोरा रंग और मासूम दिखने वाला चेहरा था। रोमी का व्यक्तित्व एक असुरक्षित, दब्बू लड़के का था। वो किसी का भी सामना नहीं कर सकता था। यहाँ तक की उसने अपने अत्याचारी बाप के प्रति कभी आवाज नहीं उठाए ये अलग बात है कि उसकी मृत्यु एक रहस्यमयी तरीके से हुई थी। वो किसी भी चीज और किसी भी इंसान से डर जाता था। अपनी कमजोर और मीठी आवाज में कुछ भी बोलने से पहले वो हकलाता था। लेकिन रोमी पढ़ने में तेज था।
प्रियंवदा-
प्रियंवदा हड़प्पा के सूर्य कहे जाने वाले वासवाँ की बहन और चंद्रधर की पत्नी थी। जो बहुत ही बिगड़ैल और दुष्ट थी। उसे घृणित कार्य करने से तनिक भी डर नहीं लगता था। वो हड़प्पा का राज पानए के लिए कुछ भी कर सकती थी। उसने काली शक्ति का सहारा लिया, जिससे वो और भी क्रूर हो गई थी।
FAQ
Q-हड़प्पा:रक्त धारा का श्राप के लेखक कौन है?
विनीत बाजपेयी।
Q-हड़प्पा:रक्त धारा का श्राप एक सच्ची घटना है?
नहीं! यह लेखक की कपोल कल्पना है।
Q-हड़प्पा:रक्त धारा का श्राप का जर्ने क्या है?
काल्पनिक।
Q-रोमी परेरा कौन है? और विद्युत को मारना क्यों चाहता है?
रोमी परेरा न्यू वर्ल्ड ऑर्डर,(इंटेरनेशनल गैंग) का एक भेजा हुआ गुर्गा है। क्योंकि विद्युत काली मंदिर की रहस्य से जुड़ा हुआ है।
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