Gora novel summary in hindi

Gora novel summary in hindi: book review, ravindranath taigor, pdf download

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Book Review

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित “गोरा” धार्मिक सहिष्णुता-असहिष्णुता और राष्ट्रवाद की श्वेत-श्याम छवि के बीच उभरते प्रेम के पागलपन मे राष्ट्रीय गौरव की एक अद्भुत कथा है। मेरे द्वारा पढ़ी जाने वाली उनकी यह पहली किताब हैं किन्ही कारणों से इसे अब पोस्ट किया जा रहा है। आज के समय के लेखकों को पढ़ने के बाद जब आप कुछ नया फ्लेवर खोजने की तलास मे है, तो आपको टैगोर को जरूर पढ़ना चाहिए।

ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगौर ने गोरा जैसी उपन्यास का रचना कर धर्म, जाति के साथ राष्ट्रीयता की रक्षा करने का परिचय दिया हैं । आज के समय के लेखकों मे ऐसा देखने को नहीं मिलेगा।

“गोरा” धर्म परायण पिता कृष्णदयाल और ममता मूर्ति माता आनंदमयी का बेटा है। जो कट्टर हिन्दू होने के साथ हमेशा ब्राम्हणत्व को बनाए रखने की कोशिश करता है। जिसे देख कर आस-पास तथा मुहल्ले के लोग बहुत प्रभावित रहते हैं और कुछ युवा उसे अपना गुरु मानते हैं।

मंडली के लोग मिलकर गोरा को हिन्दू धर्म सबसे बड़ा यज्ञ करने वाले होते है, जिसमे उसे प्रकांड पांडित्य की उपाधि मिलने वाली होती है लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है।“गोरा” जो अब तक गौरमोहन बाबू बना था, वापस उसे गौरमोहन बाबू से “गोरा” बनना पड़ता है। जिसे ना अपने धर्म का पता होता है और ना जाति का।  

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Gora novel summary in hindi

“गोरा” एक कट्टर हिन्दू ब्राम्हण है। जो छुआ-छूत और जाति-पाति मे विश्वाश करता है। यहाँ तक की बचपन मे मालिस करने वाली घर की नौकरानी लक्षमिनिया का भी छुआ हुआ पानी नहीं पिता है और लक्षमिनिया के माँ के कमरे मेन जाने से वह अपने मा के कमरे मे भी प्रवेश नहीं करता है। जिससे प्रभावित होकर गोरा का दोस्त विनय(जिसको उसकी सौतेली माँ से प्यार नहीं मिला लेकिन गोरा की माँ उसे अपने बेटे की तरह ही प्यार देती है, जिसके लिए वह सदा आता-जाता रहता है।)

 विनय अपने दोस्त गोरा को अपने ब्राम्हणत्व के प्रति सेवा-भाव और निष्ठा देखकर उसके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करता है और उसका बहुत ही सम्मान करता है। विनय को धीरे-2 एक ब्रम्ह समाज मे विश्वाश रखने वाले परेश बाबू की बेटी ललिता से प्यार हो जाता है और उससे शादी करना चाहता है। जिसके यहाँ कभी-कभी गोरा भी आता-जाता है।

जब ये बात गोरा को पता चलता है तो विनय से अपने सारे रिश्ते तोड़ देता है। यहाँ तक की उसकी शादी मे ममता मूर्ति माता आनंदमयी को भी जाने से मना करता है लेकिन आनंदमयी विनय को भी अपना बेटा मानकर गोरा की बातों पर ध्यान नहीं देती है।  

गोरा के इस त्याग से ब्राम्हण समाज के लोग उससे बहुत प्रभावित होते हैं। गोरा को उसके मंडली के लोग हिन्दू धर्म का प्रकांड पांडित्य की उपाधि देने के लिए एक यज्ञ करते हैं, जिसमे दूर-दराज से साधु-संत गोरा को आशीर्वाद देने आए होते हैं। सारी तैयारिया हो चुकि होती हैं कि तभी उसे पता चलता है कि उसके पिता कृष्णदयाल की हालत गंभीर है, वो उससे कुछ बात करना चाहते हैं।

पिता की गंभीर हालत जानने के बाद सबकुछ छोड़ कर वह घर चला आता है। मृत्यु शैया पर लेटे कृष्णदयाल को लगता है कि अब वो जीवित नहीं बचेंगे तो मरने से पहले गोरा को एक राज की बात बताते हैं, जिसे आज तक छुपाया गया था।  

कृष्णदयाल कहते हैं कि गोरा उनका अपना लड़का नहीं है, उसे पाया गया है। अंग्रेजों और विद्रोहियों के युद्ध के दौरान उसके पिता मारे गए थे। वह एक आयरिश थे। लेकिन आनंदमयी को भी लड़का न था, अतः उसने उसे गोद ले लिया और पाला-पोशा।  गोरा ब्राम्हण क्या! वो तो एक हिन्दू भी नहीं है, जो अपने पिता को मुखाग्नि भी दे सके।

गोरा इससे आहत न होता हुआ सबसे पहले परेश बाबू के पास पहुंचता है, जिसे उनके ब्रम्ह समाज के लोगों ने विनय से अपनी बेटी की शादी करने एक बाद बाहर कर दिया है। दोनों की ही एक सी स्थिति होती है।  

गोरा वापस गौरमोहन बाबू बनकर आनंदमयी के कदमों मे ये कहते हुए लेट जाता है कि “माँ, तुम्ही मेरी माँ हो। जिस माँ को मैं खोजता फिर रहा था, वह तो यही मेरे कमरे मे बैठी हुई थी। तुम्हारी जात नहीं है, तुम उंच-नीच का विचार नहीं करती, घृणा नहीं करती, तुम केवल कल्याण की मूर्ति हो। तुम मेरी भारतवर्ष हो।” और आनंदमयी उसे अपने कलेजे से लगा लेती है।

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

वरदासुन्दरी:- आप क्या साकार उपासना मे विश्वाश करते हैं?

गोरा- आकार नाम की चीज की बिना वजह मैं अवज्ञा करू ऐसा कुसंस्कार मेरा नहीं है। आकार को गाली देने से क्या वह मीट जाएगा? आकार का रहस्य कौन जान सका है?

परेश बाबू- लेकिन आकार सीमा-विशिष्ट जो है।

गोरा- सीमा के न होने से तो कुछ प्रकट ही नहीं हो सकता असीम अपने को प्रकट करने के लिए सीमा का ही आश्रय लेता है, नहीं तो वह प्रकट कहाँ है, और जो प्रकट नहीं है, वह सम्पूर्ण नहीं है। वाक्य मे जैसे भाव निहित है, वैसे ही आकार मे निराकार परिपूर्ण है।   

बीमार बच्चा जब दवा नहीं खाना चाहता, तब माँ बीमार न होने पर भी स्वयं दवा खाकर उसे यह दिखाती है कि तुम्हारी और मेरी हालत एक जैसी है।

धर्म के साथ देश का क्या संबंध है? क्या धर्म देश से परे नहीं है?

देश से जो परे है, जो देश से कहीं बड़ा है, वह देश के भीतर से ही प्रकट होता है। ऐसे ही विचित्र भाव से ईश्वर अपने अनंत स्वरूप को व्यक्त करते हैं। जो कहते हैं कि सत्य एक है, इसलिए केवल एक ही धर्म सत्य हो सकता है या धर्म का एक ही रूप सत्य हो सकता है, वे इस सत्य को तो मानते हैं कि सत्य एक है, लेकिन इस सत्य को नहीं मानना चाहते हैं कि सत्य अंतहीन होता है।

वह जो अंतहीन एक है, वह अंतहीन अनेक मे अपने को अकाशीत करता रहता है- उसी की लीला तो सारे जगत मे हम देखते हैं। इसलिए धर्म-मत भी विभिन्न रूप लेकर कई दिशाओं मे उसी धर्म-राज की उपलब्धि कराते हैं। मैं निश्चयपूर्वक आपसे कहता हूँ, भारतवर्ष की खुली खिड़की से आप सूर्य को देख सकेंगी-इसके लिए सागर-पार जाकर किरिस्तानी गिरजाघर की खिड़की मे बैठने की कोई आवश्यकता न होंगी।

आनंदमयी ने आंखे पोंछ ली। उनकी आँखों मे जो आँसू थे, उनमे केवल माँ के दिल का दर्द नहीं था, उनके साथ खुशी और अभिमान भी मिला हुआ था। उनका गोरा क्या मामूली गोरा है। उसने तो सारा जुर्म कुबूल करके जेल की तकलीफ जान-बूझकर अपने कंधे पर ओढ़ लिया है। उसकी इस तकलीफ के लिए किसी से कोई झगड़ा करने की जरूरत नहीं है। गोरा धीरज से उसे सह रहा है और आनंदमयी भी सह लेगी।

एक दिन शाम को चटाई पर आनंदमयी के फैले हुए पैरों के पास सर रखते हुए विनय बोला-“माँ, जी चाहता है, अपनी सारी विद्या, बुद्धि ईश्वर को लौटाकर फिर नन्हा बच्चा बनकर तुम्हारी गोद मे आसरा पाऊं-दुनिया मे तुम्हारे सिवा और मेरा कुछ न हो।”

आनंदमयी विनय से कहती है। “मनुष्य के मन की कोई जात नहीं है-वहीं आकार भगवान सबको मिलते हैं और खुद भी आ सकते हैं। उन्हे हटाकर मंत्र और मतवाद पर मिलने का जिम्मा छोड़ देने से थोड़े ही चलेगा।“

परेश बाबू ने कहा- पछतावा तो ईश्वर की दया है, पानु बाबू! मैं अपराध से ही डरता हूँ, पश्चाताप से नहीं।

परेश बाबू ने कहा-संप्रदाय ऐसी चीज है बेटी कि लोगों को यह जो सबसे सीधी बात है कि इंसान इंसान है, यही भुला देती है। इंसान ब्राम्ह है कि हिन्दू, समाज की रची हुई इस बात को विश्व-सत्य से बड़ा मानकर एक व्यर्थ का झमेला खड़ा कर देता है। अब तक मैं इसी झूठ की भंवर मे फसा हुआ था।

मैं हिन्दू हूँ। हिन्दू तो कोई गुट नहीं हुआ, हिन्दू तो एक जाति है। यह जाति इतनी विशाल है कि इसका जातित्व किसमे है-यह किसी परिभाषा मे बंधा नहीं जा सकता। समुद्र जैसे उसकी लहर नहीं है।वैसे ही हिन्दू कोई गुट नहीं है।  

हिन्दू धर्म माँ की तरह अनेक मत-विश्वासी लोगों को अपनी गोंद मे लेने का यत्न करता रहा है अर्थात दुनिया मे केवल हिन्दू धर्म ने मनुष्य को मनुष्य कहकर जाना है, केवल गुट का व्यक्ति नहीं समझा।

हिन्दू धर्म मूढ़ को भी मानता है, ज्ञानी को मानता है और ज्ञान की भी केवल एक मूर्ति को नहीं मानता, उसके अनेक प्रकार के विकास को मानता है। किरिस्तान वैचित्र्य को स्वीकार नहीं करना चाहते। वे कहते हैं, एक तरफ किरिस्तान धर्म और दूसरी तरफ अनंत विनाश और इनके बीच कोई विचित्रता नहीं है।

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पात्रों का चरित्र-चित्रण-

गोरा- गोरा एक कट्टर हिन्दू ब्राम्हण है। जिसका लंबा-चौड़ा शरीर है। उसकी चमड़ी किसी अंग्रेज के समाज है, जिसे लोग गोरा कहते हैं। गोरा स्वाभिमान का बहुत बड़ा उदाहरण है। उसे शास्त्र के बारे मे अच्छा ज्ञान है। वह अपने धर्म को बहुत ही अच्छे से निबाहना जानता है। वह अपने माँ और बाप से भी बढ़कर धर्म को मानता है।  

आनंदमयी- आनंदमयी एक ममता मूर्ति माँ है, जिसने सदैव गोरा को अपना बेटा समझा और उसने दोस्त विनय को गोरा से भी अधिक प्यार दिया। वह बहुत ही दयालु और भावुक स्त्री है। उसे अपने बेटे गोरा पर बहुत गर्व है। वह अपने बेटे पर कभी भी कोई सवाल नहीं उठाती।

 परेश बाबू- परेश बाबू ब्रम्ह समाज मे विश्वाश रखने वाले हैं, लेकिन समाज से उठ कर अपने बेटियों को उच्च शिक्षा देते है और साथ ही उन्हे वो आजादी भी। ताकि उनकी बिटिया समाज की बेड़ियों मे जकड़ी ना रह जाए। उन्हे अपने कर्म पर विश्वाश है।

कोट्स-

  • बरसात की रात के स्तब्ध अंधकार को भंग करते हुए बादल बीच-बीच मे गरज उठते हैं।
  • जो अन्याय सहता है, वह भी दोषी है, क्योंकि दुनिया मे अन्याय का बढ़ावा देता है। दुस्त के साथ भलमन साहत धर्म नहीं है: उससे दुस्त लोगों का हौसला बढ़ता है।
  • बुराई तो बाहर से की जा सकती है, लेकिन न्याय करने के लिए भीतर पैठना होता है। केवल घटना के कारण किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता।
  • जब हम “सत्य के अनुरोध” से “कर्तव्य के अनुरोध” से प्रेरित होकर दूसरों की गलती पर घृणा प्रकट करने वाला दंड का विधान करने को तैयार होते हैं, तब सत्य और कर्तव्य के अनुरोध को मानना हमारे लिए बहुत कठिन नहीं होता।
  • चुप न बैठकर चंचल हो उठने से तो फंदे मे और भी गाँठे पड़ सकती हैं। कुछ करने को ही कर्तव्य कहा जाए, यह जरूरी नहीं है, कुछ न करना ही कई बार सबसे बड़ा कर्तव्य होता है।
  • धर्म के भी तो दो पक्ष होते हैं- एक नीती पक्ष और दूसरा लौकिक पक्ष।
  • धर्म जहां समाज के नियम से प्रकाशित होता है वहाँ उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती-ऐसा करने से समाज टूट जाता है।
  • अगर हम स्वयं अपने को नियमों के द्वारा समाज के अधीन कर लेते हैं तो समाज के गहरे भीतरी उद्देश्यों मे बाधक हो जातें हैं, क्योंकि वे उद्देश्य गूढ होते हैं। उन्हे स्पस्ट देख सकना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए हम मे यह क्षमता होनी चाहिए कि बिना विचार किये भी समान को मानते चल सके।
  • जब हम सत्य को पा लेते हैं, तब वह अपने सारे अभाव और अपूर्णता के बावजूद हमारी आत्मा को तृप्त कर देता है, तब उसे झूठे उपकरणों से सजाने की इच्छा तक नहीं होती।

FAQ-

Q गोरा उपन्यास का लेखक कौन है?

गोरा उपन्यास का लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर है।

Q गोरा उपन्यास किस बारे मे लिखा गया है?

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित “गोरा” धार्मिक सहिष्णुता-असहिष्णुता और राष्ट्रवाद की श्वेत-श्याम छवि के बीच उभरते प्रेम के पागलपन मे राष्ट्रीय गौरव की एक अद्भुत कथा है।

Q गोरा उपन्यास की रचना कब की गई थी?

गोरा उपन्यास की रचना 1909 मे रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गई थी।

Q गोरा उपन्यास का प्रमुख पात्र कौन है?

गोरा उपन्यास का प्रमुख पात्र गौरमोहन बाबू हैं। जिसे प्यार से लोग गोरा कहकर संबोधित करते हैं। गोरा एक कट्टर जनेऊधरी हिन्दू ब्राम्हण है। जिसका लंबा-चौड़ा शरीर है। उसकी चमड़ी किसी अंग्रेज की तरह दिखती है। गोरा स्वाभिमान का बहुत बड़ा उदाहरण है। उसे शास्त्र के बारे मे अच्छा ज्ञान है। वह अपने धर्म को बहुत ही अच्छे से निबाहना जानता है। वह अपने माँ और बाप से भी बढ़कर धर्म को मानता है।

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