dr bhimrao ambedkar biography in hindi

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इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको dr bhimrao ambedkar biography in hindi में सारी जानकारी साझा करेंगे। dr bhimrao ambedkar ने कैसे सारी परेशानियों का सामना करते हुए एक उच्च शिक्षा को हासिल कर समाज में न सिर्फ अपनी एक पहचान बनाई बल्कि लोगों का मार्गदर्शन करते हुए संविधान भी लिखा ।

Book Review

“भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर” पंकज किशोर द्वारा लिखित बायोग्राफी है। जिसे प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित किया है। यह किताब मोटी तौर पर सिर्फ और सिर्फ भीमराव की कुछ छवियों को दर्शाती है। मुझे नहीं लगता कि भीमराव को जानने के लिए सिर्फ अस्सी पेज पर लिखित कुछ प्रति काफी होंगी। एक तरह से देखा जाए तो ये खुद में भीमराव के जीवन परिचय की एक समरी है।

हा! ये अलग बात है कि इस माध्यम से आप भीमराव के जीवन में आसानी से झांक सकते हैं। और मोटी-2 कुछ जानकारी हासिल कर सकते हैं। इस किताब में भीमराव की जन्म, शिक्षा, दलितों के प्रति अपनी दायित्व, उनका नेतृत्व, हिन्दू धर्म के खिलाफ एक मोर्चा लेकिन अहिंसा पूर्ण, बौद्ध धर्म मे प्रवेश और लोगों को जागरूक, शुरू से अंत तक अपने दलित भाई-बहनों के प्रति श्रद्धा । इन्ही सब के बारे में कुछ जानकारी दिया गया है।

मैं एक सवर्ण हूँ, और ये किताब मेरे लिए वैसे ही है, जैसे किसी कठिन सत्य को स्वीकार करना। अंबेडकर ने बहुत कोशिश की दलितों को सवर्णों के द्वारा प्रताड़ित ना कीये जाए और समाज में उन्हे भी उठने-बैठने, खाने-पीने की समानता मिले जैसे बाकी लोगों को मिलता है।

मैने भी अपने जीवन में कुछ दलितों को उत्पीड़न होते हुए देखा है, पर उतना भी नहीं जितना अंबेडकर ने इसमे साझा किया है। पानी तक पीने के लिए तालाब से वंचित रखा गया। जो बहुत ही दुख दाई है। वैसे मैं कहूँगा कि इस किताब को एक बार आप सभी पढे।

भीमराव की जीवन कितने कठिनाई और परेशानियों का सामना करते हुए उस समय सबसे उच्च शिक्षा, अमेरिका और लंदन जैसे बड़े शहरों में पढ़ाई और भारतीय राजनीति में नेहरू से कंधे से कंधे मिलाकर साझदार, संविधान के लिए उठाए गए कदम के साथ कलम की सहमति और फिर बुद्ध का आशीर्वाद। यह सब बहुत ही रोचक है। आप चाहे किसी भी वर्ग, जाति, समाज के हो  यह किताब आप एक बार जरूर पढे।

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भीमराव का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में महू छावनी में 14 अप्रेल 1891 को हुआ था। पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। इस दौरान पिता फौजी बच्चों के लिए चलाए जाने वाले एक स्कूल में 14 वर्ष तक कार्यरत थे।

जब भीमा का जन्म हुआ।वैसे भीमा का परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी के मंडनगढ़ के गावं अंबेडकर मे रहता था। भीमराव ने औपचारिक शिक्षा 7 नवंबर 1900 से प्रारंभ किया। सतारा हाई  स्कूल के प्राचार्य एक सवर्ण होने के बाद भी भीमराव से उनका खास लगाव था। जिसने भीमराव को अंबेडकर उपनाम से संबोधित किया।

भीमराव ने सन 1908 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। जो उनके और उनके समाज के लिए त्योहार मनाने की खुशी थी। जिसके लिए उन्हे श्री ए. के. केलुस्कर ने बड़ौदा के महाराज और शिक्षयाप्रेमी श्री सायजीराव गायकवाड़ से भीमराव के आगे की शिक्षा के लिए 20 रुपये का वजीफा दिलवाया।

भीमराव की विवाह जब अभी 17 साल के थे, तभी 10 साल की रमाबाई से हो गया। 1912 में इन्टर की डिग्री मिली। जिसमें उन्हे 750 से 282 नंबर ही मिले लेकिन उनके और उनके समाज के लिए ये बहुत ही गौरव पूर्ण बात थी।  भीमराव ने अपनी पहली नौकरी बड़ौदा के राजा से मिलकर फौज में लेफ्टिनेंट की नौकरी कर ली।

नौकरी को अभी मुश्किल से पंद्रह दिन ही हुए थे कि पिता की तबीयत खराब होने पर इस्तीफा देकर पिता की अंतिम दर्शन के लिए घर को निकल गए। रामजी मृत्यु 2 फरवरी, 1913 को हो गई।

भीमराव पहली बार बड़ौदा के राजा ई मदद से अमेरिका पढ़ने गए, इस शर्त पर कि उन्हे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ौदा राज्य में दस वर्ष नौकरी करनी होंगी। भीमराव इसे स्वीकार करने के बाद कोलम्बिया विश्वविद्यालय को रवाना हो गए।

अमेरिका में भीमराव को सबसे अच्छी बात ये लगी कि उन्हे यहा पर किसी से कोई छुआ-छूत या किसी प्रकार का कोई भेदभाव का सामना नहीं करना होता था। वर्ष 1915 में एम. ए. और 1916 में पी. एच. डी. की डिग्री कोलम्बिया विश्वविद्यालय से प्राप्त कर लिया।

डॉ. भीमराव  कानून और राजनीति-विज्ञान का अध्ययन करने के लिए लंदन चले गए और बड़ौदा एक खत लिखा कि उनकी वजीफा उसने नए पते पर भेजा जाए लेकिन अफसरों ने ऐसा करने से मना कर दिया और उन्हे तुरंत भारत वापस आने को कहा । जिसके कारण डॉ. भीमराव को 21 अगस्त,1917 को भारत वापस आना पड़ा।

कुछ साल इधर-उधर नौकरी की और फिर जब उन्हे लंदन जाने का मौका मिला तो पैसे की कमी होने के कारण 5000 रुपये कर्जा लेकर अपनी बाकी की पढ़ाई को कंपालित करने के लिए लंदन रवाना हो गया। जब तक लौटे भारत में दलितों की स्थिति बहुत डामाडोल थी।

उनकी समानता के लिए बहुत सारा पापड़ बेलना पड़ा। सवर्णों द्वारा बहिष्कार किया गया, हमला भी हुआ लेकिन डॉ. भीमराव ने अपने साथियों को बिल्कुल समझा बुझा कर रखा और अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए धीरे-2 दलितों को जागरूक करने लगे।

भीमराव का कहना ना था कि जीतने भी छोटे वर्ग के काम है, जैसे मरे हुए जानवरों से खाल निकालना, उनका मांस खाना, मैला-कुचैला कपड़ा पहनना, इन सब में बदलाव लाइये। जैसे उच्च वर्ग के लोग जैसे रहते और खाते-पीते हैं वैसे रहिए। लोगों ने उनके बातों पर गौर भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

जब डॉ . भीमराव की मुलाकात गांधी से हुई तो उन्होंने गांधी से कहाँ कि आप सिर्फ हिन्दू, मुस्लिम और सींख, ईसाई करते हैं, क्यों नही , हिन्दू धर्म के अंदर ही जो दलितों को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है आप उसके खिलाफ बोलते या लोगों को समझाते लेकिन गांधी ने उनकी एक न सुनी और दोनो के बीच एक मतभेद बना रहा।

भारत के आजाद के बाद जब उन्होंने एक लेख विधानसभा में पारित किया तो नेहरू सरकार ने उसका विरोध किया और बिल को पास नहीं किया गया। जिसके वजह से भीमराव बिल्कुल टूट गए और जब उन्हे लगा कि ऐसे दलितों का काम नहीं चलेगा तो उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने का मार्ग निकाला। जो हिन्दू और बाकी धर्मों से बहुत ही शांत और सबके लिए मनोहरकारी था। जिस दिन डॉ. भीमराव ने बौद्ध में कदम रखा, उनके साथ उनके 5,00,000 अनुयाई भी बौद्ध मे प्रवेश कर गए।

4 दिसंबर, 1956 को डॉ अंबेडकर ने थोड़ी देर राज्यसभा में भाग लिया। फिर उन्होंने कुछ पत्र लिखवाए।  5 दिसंबर, 1956 को सारा दिन अपने दफ्तर में काम किया। शाम को उन्होंने अपने सचिव रत्तू  से कहा कि वह उनकी पुस्तक “बौद्ध और उनका धर्म” के टाइप किए हुए कुछ पृष्ठ ले आएं।  वह रात में इस पर कार्य करना चाहते थे। लेकिन बाबा साहब 6 दिसंबर 1956 की सुबह नहीं देख पाए और उनकी मृत्यु हो गई।  

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश –

कथन १ – हमें इस भाग्यवादी विचारधारा को अस्वीकार कर देना चाहिए कि बच्चों को जन्म देने वाले माता-पिता ही अपने बच्चों के कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं है, बल्कि हमें इस अवधारणा को अपने मस्तिष्क की गहराई में बैठा लेना चाहिए कि माता-पिता ही अपने बच्चों के लिए उत्तरदायी है। अगर लड़कियों को अपने भाइयों के साथ ही शिक्षित किया जाए तो हम शीघ्र ही उन्नति करेंगे।

कथन २ – भारत के हरिजन अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। उनके लिए यह जातिगत मतभेद की लड़ाई भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

कथन ३ – महात्मा गांधी हरिजनों के उत्थान पर इतना ज़ोर नहीं देते हैं। जितना हिन्दू-मुसलमान एकता पर और खादी के इस्तेमाल पर।                 

लंदन में डॉ. अंबेडकर एक ‘पेइंग गेस्ट’ के रूप में रहने लगे। वह दिन में सिर्फ दो बार खाना खाते थे- एक बार सुबह और दूसरी बार शाम को। अपना अधिकतर समय वह पढ़ने में बिताने लगे। एक बार किसी ने उनको सलाह भी दी कि थोड़ा आराम भी किया करें। डॉ. ने कहा कि मेरे पान न पैसा है, न खाना है और ना ही सोने का समय।

धार्मिक असमानता ही इस धर्म की मूल है। मैं गांधीजी की इस बात से सहमत हूँ कि हर व्यक्ति को धर्म की आवश्यकता होती है। पर मैं दादा-परदादा से चलते आ रहे उस धर्म को मानते रहने को तैयार नहीं हूँ, जो व्यक्ति या समुदाय को प्रगति न करने दे।

भीमराव ने किसी भी परिस्थिति से गुजरते हुए अपने पढ़ाई को नहीं छोड़ा, क्योंकि उन्हे पता था कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो वो अपने समाज को कभी भी उठा नहीं सकेंगे। उन्हे हमेशा दबना पड़ेगा।

भीमराव के कोट्स-

  • अगर अभी बलिदान देंगे तो हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ इसकी सफलता को भोग सकेंगी।             
  • किसी भी वयस्क भारतीय से मत देने का अधिकार उसकी गरीबी तथा अशिक्षा के आधार पर नहीं छीना जाना चाहिए।
  • एक शिक्षित व्यक्ति समझदार होता है और अपने हित को समझता है।
  • व्यक्ति अपने अनुभव द्वारा ज़्यादा सिखता है।
  • राजनीति में मिले अधिकार ही आपको बेहतर बना सकते हैं।
  • प्रार्थना करने से बेहतर है लोगों को काम करना चाहिए।
  • स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए।
  • लोग अपने भाग्य का निर्माता  स्वयं बने।
  • प्रगति के लिए आवश्यक है कि आप महत्वकांक्षी हो और पूरी तरह आशावादी हो।
  • जिस व्यक्ति में उम्मीदें, इच्छाएं और लक्ष्य हैं, वही सही मायने में जीवित है।
  • व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य है वह आंतरिक मूल्यों को बचाए रखे।

पात्रों का चरित्र-चित्रण-

रामजी सूबेदार- उस समय चलाए जा रहे आर्मी स्कूल के 14 वर्ष तक प्रधानाध्यापक रहे। बहुत ही सीधे-साधे और ईमानदार व्यक्ति थे। उनका शिक्षा के प्रति शुरू से लगाव था। जिसके कारण उन्होंने अपने बेटे भीमा को पीछे नहीं रखा और स्कूल में दाखिल करा दिया।   

रमाबाई- रामबाई अंबेडकर की पहली पत्नी थी । जब भीमराव से विवाह हुआ तब रमाबाई की उम्र 10 साल थी। रमाबाई धर्मशील और कर्तव्य परायण और बहुत ही निष्ठावान महिला थी। अंबेडकर अपनी कार्य को लेकर इधर-उधर हमेशा भटकते रहते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी भीमराव से कोई शिकायत या मांग नहीं की। जिनकी सराहना खुद भीमराव भी किया करते थे।

FAQ-

Q-डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

डॉक्टर भीमराव का जन्म इंदौर के महू छावनी में 14 अप्रेल 1891 को हुआ था।

Q-भीमराव ने अपनी औपचारिक शिक्षा कब और कौन से स्कूल से प्राप्त कि थी ?

भीमराव ने अपनी औपचारिक शिक्षा सतारा के उच्च माध्यमिक विद्यालय में 7 नवंबर, 1900 से शुरू किया था।

Q-भीमराव गरीब होने के बावजूद अपनी शिक्षा के लिए अमेरिका कैसे चले गए?

बड़ौदा के महाराजा ने कुशाग्र बुद्धि वाले बच्चों को, जिनमे से एक भीमराव भी थे। कोलम्बिया विश्वविद्यालय अपने पढ़ाई को पूरा करने के लिए अमेरिका भेजा। सारा खर्चा की व्यवस्था महाराजा ने की थी।

Q-भीमराव के जीवन में पहली ऐसी कौन घटना घटी, जिसने उन्हे दलितों का मसीहा बना दिया?

डॉ. भीमराव को जुलाई 1923 में बंबई उच्च न्यायालय में बतौर वकील काम करते थे, जिसमें उन्हे दलित और निम्न लोगों का ही केस लड़ कर गुजारा होता था। एक बार एक मानहानि का केस आया जिसमें तीन लेखकों बागड़े, जेचे और जवल्कर के खिलाफ था। ये तीनों लेखक निचले तबके के थे और उन्होंने एक पुस्तक लिखी “एनेमिज ऑफ कंट्री” जिसमें उन्होंने ने ब्राम्हनों को देश की दुर्दशा के लिए दोषी ठहराया था। अंबेडकर की दलीले सुनकर जज के केस खारिज कर दिया, जिसके बाद अंबेडकर को दलितों का मसीहा माना जाने लगा। 

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