Chandranath Book Summary in hindi

Chandranath Book Summary in hindi by sharatchandra

इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको Chandranath Book Summary in hindi, जिसे sharatchandra chattopaadhyaay ने लिखा है। उस समय कि यह काफी मशहूर उपन्यास है। हम आपको chandranaath की book review, summary, इस किताब के कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश के साथ-साथ, पात्रों के चरित्र-चित्रण सहित कोट्स भी गए हैं।

Book Review

“चन्द्रनाथ’ शरतचंद्र द्वारा लिखित यह उपन्यास अपने मे दो कहानियों को समेटे हुए है। जिसका लीड रोल चन्द्रनाथ है, तो वही सरयू उसकी सहयोगिता। जिसने इस कहानी मे चार चाँद लगा दी है। सरयू का अपने स्वामी के प्रति प्रेम और चन्द्रनाथ का अपने सरयू के प्रति ऐसा लाड,  जो एक समय पर सरयू की सच्चाई जानने पर उसका प्यार सरयू को जहर लाकर देने से भी नहीं हिचकता।

ऐसी अद्भुत रचना शरतचंद्र द्वारा ही की जा सकती है। शरतचंद्र की लेखनी मे जो महिला हृदय के दर्शन है, शायद ही कोई इतना मार्मिक लिख सकता है। चन्द्रनाथ और सरयू का प्यार एक तरफ और विशु और कैलाशचंद्र के बीच दादा-और पोते का प्यार एक तरफ। जिसकी बिछोह से कैलाशचंद्र अपना प्राण तज देता है।  

शरतचंद्र द्वारा रचित “चन्द्रनाथ” एक लोकप्रिय उपन्यास है। यह उपन्यास चन्द्रनाथ और सरयू की प्रेम कथा का वर्णन करता है। जिस प्रकार शरतचंद्र ने कच्ची उम्र मे ही पक्के बंधन मे बधने वाले चन्द्रनाथ व सरयू के प्रेम को दर्शाया है, वह अद्भुत है। जीवन मे आने वाली समस्याओं और सामाजिक बेड़ियों को तोड़ते हुए किस प्रकार रूढ़िवादी समाज मे यह प्रेम समय के साथ और घनिष्ठ होता है, यह शरतचंद्र ने बखूबी प्रस्तुत किया है।

Chandranath Book Summary in hindi

चन्द्रनाथ पिता को मुखाग्नि देने के बाद अनाथ हो गया। क्योंकि बचपन में माता के मरने के बाद, पिता ने ही उसे पाला-पोशा था। पिता की कमाई समपत्ति इतनी है कि उसे संभालने भर से उसका जीवन आराम से कट जाएगा। जिसके लिए खजांची(सरकार) भी निहित है।

चंद्रभान अपना सारा कार्यभार कुछ दिन के लिए सरकार के हाथों सौप कर घूमने के काशी में अपने मामा हरीदयाल ठाकुर के यहाँ जा पहुंचता है। हरीदयाल ठाकुर काशी मे जजमान खोजने और पांडा का काम कर अपना जीवन यापन करते हैं।

कुछ दिन वहीं ठहरने के नियत से चन्द्रनाथ रुक जाता है। उसी घर मे काम करने वाली एक औरत(गंगा) से उसकी मुलाकात होती है। जिसके साथ उसकी 9 साल की पुत्री सरयू भी रहती है। सरयू से प्रभावित होकर चन्द्रनाथ उससे विवाह कर मामा का आशीर्वाद लेकर अपने घर को पहुचता है।

सरयू के कदम जब चन्द्रनाथ के घर मे पड़ते हैं, तो वहाँ कि चका-चौंध को देखकर वह बहुत प्रभावित होती है। ठीक उसी प्रकार उतनी तीव्र गति से उसके मन मे चन्द्रनाथ की इज्जत बढ़ती जाती है। सरयू चन्द्रनाथ से इतनी प्रभावित होती है कि उसे अपना भगवान और अपने को उसका दासी मानने लगती है।

सरयू को लगता है कि चन्द्रनाथ ने उसे कहाँ से उठा कर कहाँ बैठा दिया है। जिसके लायक वो है नहीं। इसी कारण वश सरयू शादी के छः साल बाद भी आँख उठाकर कभी चन्द्रनाथ को नहीं देखा।

एक दिन अचनाक राखालदास नाम का एक आदमी हरीदयाल ठाकुर के यहाँ आ धमकता है और गंगा के बारे मे कहता है कि वो वेश्या है। ठाकुर ने एक वेश्या के हाथ का बना खाना-पानी खाया है। और उसने न जाने कितनों को अशुद्ध किया है। अगर ठाकुर ने उसे दो हजार रुपये नहीं दिए, तो वह उसके समाज मे सारे लोगों से कह देगा, जिसके वजह से उसका हुक्का-पानी बंद हो सकता है और उसे समाज से बाहर भी निकाला जा सकता है।

जिसके डर से ठाकुर कुंठित हो उठता है और अपने पास उतने पैसे न होते हुए किसी तरह उसे फुसलाने के लिए 2 रुपये की पेशकश करता है। राखालदास पैसा लेकर चलता बनता है लेकिन जाने से पहले सरयू का पता लिए जाता है ताकि वो उसके पति से पैसा मांग सके। ठाकुर पता दे देता है।

ठाकुर इस बात को पचा ही नहीं पाता और गांव मे चन्द्रनाथ के चाचा मणिशंकर को गंगा और सरयू की सूचना दे दी जाती है और ये भी कि राखालदास उसके पास पैसे के लिए जा रहा है। जिसे जानकर चाचा अपने पास का पता दे देता है।

अगले दिन जब चाचा चन्द्रनाथ से सारी बातें कहते हैं, तो चन्द्रनाथ उससे अपने को छुड़ाने की लिए निर्णय करता है और बात यहाँ तक पहुचती है कि चन्द्रनाथ उसे मरने के लिए जहर लाकर दे जाता है। पहले तो सरयू बिल्कुल खुशी-खुशी तैयार होती है लेकिन चन्द्रनाथ के मोह के वजह से वह जहर खाने मे असमर्थ होती है और चन्द्रनाथ भी खिड़की से उसे देखता रहता है।

समाज से एक हफ्ते का समय लेकर चन्द्रनाथ उसे उसी जगह पर छोड़ने की निश्चय करता है जहां से उसने उसे लाया था। चन्द्रनाथ अपने गांव के दो लोगों के साथ वही भेज देता है। लेकिन हरीदयाल ठाकुर अपने यहाँ शरण देने से मना कर देता है और गंगा भी अब वहाँ नहीं रहती, जिसकी वजह से सरयू को कुछ समझ मे ही नहीं आता कि क्या करे? वही दरवाजे के बाहर बैठी रहती है।

एक 65 साल का वृद्ध आदमी कैलाशचंद्र, जो कभी-कभी हरीदयाल ठाकुर के यहाँ चेस खेलने आया करता था, वो उसे अपनी बेटी और माँ कहकर संबोधित करता है और अपने यहाँ रहने को शरण देता है। ये देखते हुए ठाकुर उसे अपने समाज से निकालने की धमकियाँ भी देता है लेकिन वो वृद्ध आदमी उसके बात को सिरे से नकारते हुए खारिज कर देता है।

सरयू उस वृद्ध आदमी के यहाँ रहने लगती है। और बदले उसकी सेवा-पानी करती है। कुछ ही दिन बाद पता चलता है कि सरयू को बच्चा होने वाला है। और समय आने पर हो भी जाता है लेकिन ये बात जानने के बाद भी चन्द्रनाथ कुछ कर नहीं सकता।

राखालदास ठाकुर के दिए पते पर जब पैसे के लिए जाता है तो चाचा के यहाँ पहुचता है, तो चाचा अपनी चालाकी से किसी तरह उसे अपने पैसे चोरी के इल्जाम लगा कर पुलिस को पकड़वा देता है, जिसमें उसको दो साल की सजा हो जाती है।  मणिशंकर चन्द्रनाथ को अकेले और व्याकुल रहते, देख उसके मन को ठेस पहुचती है, जिसके बाद उसे शादी के लिए भी कहता है लेकिन चन्द्रनाथ मना कर देता है।

दो साल बाद एक बार तो चाचा के कहने पर चन्द्रनाथ कोलकाता लड़की देखने भी जाता है लेकिन वहाँ से लौटते वक्त जब काशी को पहुंचता है तो ठाकुर के यहाँ सरयू को न पाकर बहुत दुखी होता है। ठाकुर से पता लगाने पर कैलाशचंद्र का पता चलता है, जहां सरयू अपने लड़के समेत रहती है।

उस दिन चन्द्रनाथ अपने लड़के विशु, (जिसका नाम उस वृद्ध आदमी ने विशेश्वर रखा है और सब प्यार से उसे विशु कह का पुकारते हैं) और सरयू से मिलकर बहुत खुश होता है। विशु को अपने साथ घर ले जाने को कहता है। जिसे जानकर सरयू के तो आँखों से अश्क रुकते ही नहीं और चन्द्रनाथ भी अपने लड़कों को सिने से चिपकाए रोता रहता है।

कुछ दिनों बाद चन्द्रनाथ सरयू और अपने बेटे को लेकर घर को चला जाता है। लेकिन कैलाशचंद्र की आत्मा उस लड़के मे बस चुकी होती है, जिसके बिछोह मे वह अपनी प्राण त्याग देता है।

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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

सरयू चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही।

चंदनाथ ने फिर कहाँ-‘अब समझ आया कि क्यों तुम इतनी डरी-डरी-सी रहती थी! अब समझा की इतना प्यार करने पर भी मुझे सुख क्यों नहीं मिला। पहले की सभी बातें स्पष्ट हो गई-शायद इसी वजह से तुम्हारी माँ ने किसी तरह यहाँ आना स्वीकार नहीं किया?’

सरयू ने सर हिलाकर कहा-‘हाँ!’

शंभर मे ही चन्द्रनाथ को पिछले दिनों की सारी बातें याद आईं, वहीं काशिवाश, वहीं चिरशुद्धमूर्ति सरयू की विधवा माता-वही उसकी कृतज्ञ और असजल दो आँखें और स्निग्ध-शांत बातचित। चन्द्रनाथ सहसा नरम होकर बोला-‘सरयू, सच्ची बात मुझे खोलकर बता सकती हो?’

‘बतला सकती हूँ!’ मेरे मामा का घर नवद्विप के पास है। राखाल भट्टाचार्य का घर मेरे घर के पास ही था। बचपन से ही माँ उसे प्यार करती थी। दोनों मेन एक बार शादी की बातचीत भी हो गई थी, परंतु उसे नीच घर का कहकर शादी नहीं हो सकी। मेरे बाबा का घर हाली शहर मे है। जब मैं तीन साल की थी, तो बाबा के मरने के बाद-माँ मुझे लेकर नवद्विप लौट आई। इसके बाद जब मैं पाँच साल की थी, तबही मुझे लेकर माँ…

चन्द्रनाथ ने कहा-‘उसके बाद ?’

‘हम कुछ दिनों मथुरा रहे, वृंदावन रहे, इसके बाद काशी आए। इसी समय राखाल ने शराब पीना शुरू कर दिया। मां के पास कुछ गहने थे-उसी को लेकर रोज झगड़ा होता। इसके बाद एक रात को वह सब कुछ चुराकर भाग गया। उस समय मां के हाथ मेन एक पैसा भी नहीं था। साथ-आठ दिनों तक हम भीख मांगकर किसी तरह रहे, इसके बाद जो कुछ हुआ-वह तुम खुद ही जानते हो!’

चन्द्रनाथ के माथे मे जैसे आग लगी। सरयू के मुँह की ओर करूर दृष्टि से देखकर उसने कहा-‘छि:-छि:, सरयू तुम ऐसी हो?! तुम लोग ऐसे हो! सब कुछ जान-बूझकर भी तुमने हमारा इस तरह सर्वनाश किया? यह तो मैने सपने मे भी नहीं सोचा था कि तुम महापतिता हो!’    

पात्रों का चरित्र-चित्रण-

चन्द्रनाथ-

चन्द्रनाथ एक पढ़ा-लिखा होशियार नौजवान है। जो बहुत ही धीर और गंभीर है। उसे अपने कुल और मान –मर्यादा पर बहुत गर्व और नाज है। उसे लोक-लज्जा की भी चिंता है। जब उसे सरयू की सच्चाई का पता चलता है तो उसे घर से निकाल देता है लेकिन दिल मे उसके प्रति करुणा-भावना होने के कारण उसे हर महीने कुछ पैसे भी भेजता रहता है। 

सरयू-

सरयू एक वेश्या की पुत्री है लेकिन उसके अंदर अपने पति के प्रति असीम प्यार समाया हुआ है। जिसे वो भगवान मानती है। उसके अंदर ममता और करुणा कूट-कूट कर भरी हुई है।। जो हमेशा उसके आँखों से निकलती रहती है। चन्द्रनाथ के घर से निकाल दिए जाने पर भी उसे उसके परती कोई रोष की भावना जागृत नहीं होती और खुशी-खुशी स्वीकार कर लेती है।

हरीदयाल ठाकुर-

हरीदयाल ठाकुर काशी मेन निवाश करने वाला एक पांडा है, जो अपनी जीविका चलाने के लिए जजमानों को खोजता रहता है। उसका दिल मेन भी करुणा है एलकीं उससे भी ज्यादा उसके मन मे समाज और लोक-आचार का डर छिपा हुआ है। जो उसे कतई बर्दास्त नहीं हो पाता।

कैलाशचंद्र-

कैलाशचन्द्र एक 65 वर्ष का वृद्ध आदमी है। जिसके अंदर करुणा की धार हमेशा बहती रहती है। जिसे लोक-समाज का तनिक भी डर नहीं। जो सरयू को अपने यहाँ शरण देता है। उसका हृदय गंगा के समान पवित्र है। उसके बेटे को बहुत प्यार करता है और अंत मे उसके जुदा होने पर अपने प्राण भी तज देता है।

कोट्स-

  • यह संसार बहुतों को कंटकाकीर्ण जंगल की तरह लगता है-और उन्हे प्रयास करके रास्ता बनाना पड़ता है। किसी को रास्ता मिलता है, किसी को नहीं मिलता।
  • उम्र के सम्मान का ज्ञान जितना पुरुषों मे रहता है, ऊतना नारियों मे नहीं।
  • सबकी किस्मत में एक तरह की पत्नी नहीं होती । किसी की स्त्री नौकरानी होती है, किसी की दोस्त होती है, और किसी की मालिक।
  • मनुष्य को दीर्घ-जीवन मे अनेक कदम चलना पड़ता है। दीर्घ-पल मे कहीं कीचड़ रहता है और कहीं सूखा, और कहीं वह नीचा रहता है।
  • जिसके पास रुपया है-वही समाज का मालिक है।  
  • किसी सामान्य कारण से ही गुरुत्तर अनिष्ट की उत्पत्ति होती है।  

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FAQ-

Q- “चन्द्रनाथ” किसकी रचना है?

शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय ।

Q- “चन्द्रनाथ” को आज के समय में किसने प्रकाशित किया है?

मैपल प्रेस ।

Q- “चन्द्रनाथ” कितने पेजों की कहानी है?

100.

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