Brahman ki beti

Brahman ki beti: book review, book summary, Quotes, pdf download

इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित Brahman ki beti उपन्यास का book review के साथ-साथ book summary और Quotes के साथ-साथ इसका pdf download भी साझा करेंगे।

Book review

“Brahman ki beti ” शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय द्वारा लिखित बांग्ला उपन्यास का हिन्दी अनुवाद है। जिसे maple press pvt. Ltd. ने प्रकाशित किया है। 104 पन्ने की यह उपन्यास अपने में बहुत कुछ समेटे हुए हैं। जाति-धर्म, मान-मर्यादा, उंच-नीच, दवा-दारू…. इत्यादि। “Brahman ki beti” उपन्यास में शरतचंद्र ने गांव के जटिल रूढ़िवादी विचारों को अपने सहज शब्दों में उकेरा है। समाज को उसका आईना दिखाती ब्राम्हण की बेटी।

शरतचंद्र द्वारा लिखित यह किताब मेरे द्वारा पढ़ी जाने वाली किताबों में से “Brahman ki beti” चौथी किताब है। और यह उतनी ही बेहतरीन है, जितना की पिछली उपन्यासों को पढ़ने के दौरान या बाद में महसूस हुआ है। कहानी क्या होती है, कड़ियाँ और घटनाएं आपस में कैसे जुड़ती है, समाज को संदेश या आईना दिखाना कोई शरतचंद्र से सीखे।

अगर मैं इस किताब को एक लाइन में कहूँ, तो शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय की लाज बचाती और मान बढ़ाती, यह ब्राम्हण की बेटी। शरत की इस उपन्यास से समाज जो आईना देखता है, वह अब फुट चुका है, अब ऐसी घटनाएं बिरले ही देखने को मिलेंगे और यह ठीक भी है।

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Brahman ki beti: book summary

कहानी चौदह-पंद्रह साल की कुलीन वर्ग के ब्राम्हण प्रियनाथ और जगद्धात्री की एकलौटी बेटी संध्या की है, जो बहुत ही तेज-तर्रार है और होशियार होने के साथ-साथ कर्मठ भी है। संध्या के पिता घर जमाई हैं। एक छोटे-मोटे वैद्य हैं, जो मुहल्ले में घूम-घूम कर लोगों को दवा वगैरह किया करते हैं। लोगों की सेवा करना ही अपना कर्तव्य समझते हैं।

घर खर्चे के लिए पैसे की कमी होने पर जगतधात्री उनसे बहुत नाराज रहती है। आए दिन दोनों में कुछ न कुछ बहस होता ही रहता है। लेकिन संध्या हमेशा से अपने पिता के पक्ष को ही मजबूत करती है। जिसे देखते हुए जगतधात्री कभी नाराज होती है, तो कभी खुश होती है।

संध्या के घर एक निम्न स्तर का लड़का अरुण, जिसके सर से बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया। कभी-कभार आता-जाता रहता है। जिसे संध्या अरुण भईया कह कर पुकारती रहती है। धीरे-धीरे दोनों एक साथ बड़े होते हैं। और उन दोनों को साथ देखकर संध्या की नानी  रासमणि को अरुण फूटी आँखों नहीं भाता। इसलिए वाब जगतधात्री से गावं के सबसे बुजुर्ग और धनी आदमी ऊपर से कुलीन ब्राम्हण में सबसे उच्च कोटी के आदमी गोलोक बाबू से रिश्ता जोड़ने को कहती है।

इस रिश्ते को सुनते तो संध्या जैसे आग-बबूला हो जाती है तो वहीं जगतधात्री को भी कुछ रास नहींआता। और रह गई बात प्रियनाथ की तो उन्हे इन सब बातों से ज्यादा कुछ-लेना देना नहीं। वह तो यू अपनी दावा की किताब और कुछ दबा की सिसि लिए भटकते रहते हैं, भले ही उनके दावरा दिए गए दावा से कोई ठीक न हुआ हो। पर वह अपनी मिया मिट्ठू कैसे बना जाता है, यह कोई प्रियनाथ से सीखे।

अब कोई प्रियनाथ पर विश्वास करे या न करें लेकिन संध्या को अपने पिता पर पूरा विश्वास है। वह प्रियनाथ को छोड़कर कभी और किसी से दावा नहीं कराती और न ही खाती है। उसके लिए उसका पिता ही सब कुछ है। और प्रियनाथ को भी अपने बेटी संध्या पर गर्व है।

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गोलोक चटर्जी की उम्र 50 के करीब  है, उनका एक बेटा भी है जिसकी उम्र लगभग 10-12 साल है। माँ के मर जाने के बाद उस बच्चे का देख-भाल उसकी मौसी ज्ञानदा ही करती है। जिसकी शदी हो चुकि है लेकिन ज्ञानदा का पति मर चुका है। उसके सास-ससुर वाराणसी में उसकी राह तक रहे हैं। लेकिन 25 की उम्र में विधवा होना उसे भाता नहीं है। ऐसा गोलोक चटर्जी भी कहते हैं।

बच्चे की मोह कहें या गोलोक चटर्जी का प्यार उसे यहाँ से जाने ही नहीं देता। एक दिन ज्ञानदा को अपने बूढ़े-सास-ससुर की याद आने के कारण अपने ससुराल जाने को कहती है लेकिन गोलोक चटर्जी उसे किसी तरह बहला-फुसलाकर मना कर देते हैं। और ज्ञानदा भी न चाहते हुए मासूम बच्चे की चेहरे को देखकर ठहर जाती है।

 रासमणी जब गोलोक चरजी से संध्या के लिए बात करती है तो वह उसे स्वीकार कर अब ज्ञानदा को किसी तरह अपने यहाँ से भगाने का स्वांग रचता है लेकिन ज्ञानदा हैं कि अब जाने का नाम ही नहीं लेती। उसकी तलास में यहा तक उसके ससुर भी आआ जाते हैं, लेकिन वह उनके साथ जाने से साफ इंकार कर देती है। और वो भी बिचारे गाली-वगैरह देने के बाद धीरे से चलते बनते हैं।

बिलायत से लौटने के बाद जब अरुण सीधे संध्या से मिलने उसके घर चला जाता है। दोनों एक दूसरे को देखकर बहुत खश होते हैं। अरुण अपने मन की भावनाओं को संध्या के सामने रख देता है लेकिन संध्या ये कहते हुए मना कर देती है कि विलायत जाकर तुम अपना धर्म-कर्म सब भूल चुके हो। तुमने न जाने कितने नीच-जाति के लोगों को छुआ होगा और उनके साथ रहा होगा। घर वाले इसकी स्वीकृति नहीं देंगे। अतः तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए।

तब तक घर में जगतधात्री का प्रेवश हो चुका होता है। जब उसकी नजर अरुण पर पड़ती है तो वह आगबहुला होते हुए उसे बहुत खरी-खोटी सुना देती है। और दोबारा अपने घर न आने का धमकी भी देती है। जिससे संध्या एकदम निहाल हूँ जाती है और अरुण भी बिना कुछ बोले चुप-चाप अपने घर को चला जाता है।

तालाब से नहाकर लौटती हुई जगतधात्री को रास्ते रासमणी मिलती है और वह गोलोक चटर्जी से संध्या की शादी की बात कहलाती है, जिसे जगतधात्री को उसकी बातों पर विश्वास ही नहीं होता, या फिर फिर वो करना ही नहीं चाहती। जिससे कारण जगतधात्री संध्या का व्याह प्रतिष्ठित एवं कुलीन जयराम मुखर्जी के धेवते विरचन्द्र बनर्जी के साथ स्थिर कर दिया जाता है।

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वाराणसी में रहते अपने सास को जगतधात्री संध्या के व्याह के लिए बुलावा भेजती है। जिसे स्वीकार कर सास चली आती है। व्याह के कामों से बेखबर होकर प्रियनाथ जब घर को लौटते हैं तो अरुण की तबीयत खराब होने की खबर देतें हैं, जिसे संध्या और उसकी मां जगतधात्री दोनों परेशान हो जाते हैं और दूसरे मरीज के लिए जाते-जाते प्रियनाथ से जगतधात्री अरुण को बुलावा भेजती है लेकिन संध्या मना कर देती है।

संध्या के विवाह से एक रात पहले जब प्रियनाथ का गोलोक चटर्जी के यहाँ बुलावा आता है तो वह बिना किसी देरी के चला जाता है। वहाँ जाकर उसे पता चलता है कि ज्ञानदा के पेट में गोलोक बाबू का पल रहा बच्चा को गिराना है, जिसे अस्वीकार कर प्रियनाथ एक पाप करने से तो बच जाता है पर उसे गोलोक बाबू द्वारा प्रियनाथ को दोसी ठहराया जाता है कि रात को पीछे के दरवाजे से घर में घुस आता है और आज वह पकड़ा गया।

अगले दिन अरुण अपने घर में रात के अंधेरे में चुपचाप लेता हुआ कहीं खोया होता है कि किसी के दरवाजे के खटखटाने की आवाज आती है। दरवाजा खोलने पर देता है कि संध्या शादी के जोड़े में उसके दरवाजे पर खड़ी है, पहले तो अरुण को कुछ समझ में ही नहीं आता फिर संध्या पूरी बात बताते हुए कहती है कि उसे आज तक जिस ब्राम्हण के होने का गुमान था, असल में वह ब्राम्हण है ही नहीं।

वह एक नाई की लड़की है। बात दरअसल ये है कि आठ-नौ साल की उम्र में जब दादी की शादी जब उसके दादा से हुई थी, जो करीब बुड्ढे हो चुके थे, और उनकी बहुत सारी पत्नियाँ थी। दादी के पास पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने  पैसे देकर किसी नाई को भेज दिया जिससे उसके पिताजी का जन्म हुआ, और दादाजी के मर जाने पर दादी ने किसी तरह पाला-पोशा और मेरे पिता की शादी मेरे माँ से कर दी। 

इस सच्चाई के बाहर आने से मेरा शदी टूट चुका है, दूल्हा मंडप छोड़कर भाग चुका है। मैं चाहती हूँ, कि तुम मेरी माँ रखो और चलो अभी उस मंडप में मुझसे शादी रचालों। इतना सब कुछ सुनने के बाद अरुण भी कुछ समय माँगता  है लेकिन तब संध्या लौट जाती है।

घर पहुचने पर उसी रात जब अपने पिता घर छोड़कर वृंदावन जाने की तैयारी कर रहे होते हैं तो वह भी जाने को कहती है। लेकिन प्रियनाथ उसके जगतधात्री के साथ रहने को कहते हैं लेकिन संध्या किसी भी प्रकार से उसके साथ रहने को मना कर पिता के घर से स्टेशन को निकल जाती है।

स्टेशन पर पहुचने पर ट्रेन का इंतजार करती हुई एक किनारे ज्ञानदा पर नजर पड़ती है। प्रियनाथ को सारी बातें मालूम थी, अतः वह उसे भी अपने साथ वृंदावन के लिए टिकट ले लेता है ये कहते हुए कि “चलो जो होगा देखा जाएगा।”

कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

जगतधात्री क्रुद्ध स्वर में बोली,”क्या दुले, डोम आदि अनाथ होने के कारण ब्राम्हनों के साथ रहने के अधिकारी बन जाते हैं? क्या शस्त्रों का यही विधान है?”

सास ने कहा, शास्त्रों की बात तो शास्त्रकार जानते होंगे, किन्तु मैं तो अपनी व्यथा-कथा को जानती हूँ। छोटी जाति के लोगों से घृणा करने का भगवान क्या दंड देते हैं, यदि तुम मेरे साथ बीती घटना से परिचित होती, तो यह थोथा अभी मान कदापि न करती। तुझे यह समझ आ जाती कि जाति के आधार पर उंच-नीच का विचार करना ओछा और निंदनीय है।

यदि तुम्हें जाति-प्रथा के दोषों की थोड़ी सी भी जानकारी होती, तो तू अपनी बेटी को इस तरह गड्ढे में न धकेलती।“

क्रुद्ध स्वर में जगतधात्री बोली, जिस कुलीनता से सारा संसार चिपका हुआ है, वह क्या धोखे की टट्टी है?”

सुखी हंसी हँसकर बुढ़िया बोली, बेटी, यही वास्तविकता है। यह सब हम जैसे असहाय लोगों के गले में फंदा है। समर्थ लोग इसकी परवाह ही कहां करते हैं? मैने धूप में बाल सफेद नहीं कीए, झूठ को सम्मान देकर ऊंचा उठाने की कितनी भी चेष्टा क्यों न करों, उसे तो मुँह के बल गिरना ही है, असल में देखा जाए तो यही सब कुछ हो भी रहा है।“

Quotes

लोगों को दूसरों के घर को फूंककर तमाशा देखना बहुत अच्छा लगता है।        

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

उचित समय पर उचित कां न करने वाला सदैव अपने दुर्भाग्य को कोसते देखा जाता है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

झूठ को सम्मान देकर ऊंचा उठाने की कितनी भी चेष्टा क्यों न करो, उसे तो मुँह के बल गिरना ही है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

किसी भी प्रथा के गुण-दोष की समय-समय पर जांच-परख करते रहना चाहिए।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

सत्य से आँख चुराने वाला ही अपनी मृत्यु को निमंत्रण देता है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

जाति-भेद के नाम पर मनुष्य-मनुष्य में अंतर करने की प्रवृति स्वार्थों और धूर्त मनुष्यों की दें है। इसमें भगवान को घसीटना मनुष्य की दूसरी  बड़ी चालाकी और धूर्तता है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

स्वार्थी मनुष्य एक-दूसरे में भेदभाव की खाई को जितनी गहरी करता जाता है, लड़ाई-झगड़े और ईर्ष्या-द्वेष की प्रवृतियाँ भी उसी स्तर पर गहरी जड़ जमाती जा रही हैं।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

जाति के आधार पर किसी का मूल्याकन करना केवल मूर्खता को बढ़ावा देना है।

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

महत्व गुणों को देना चाहिए, जाति-पाति को नहीं।  

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

पात्रों का चरित्र-चित्रण-

संध्या- संध्या कुलीन वर्ग के ब्राम्हण की बेटी है। चौदह-पंद्रह साल की जवान बिटिया है। तेज उसके मुख-मण्डल से झलकता है। होशियार है। उसे अपने पिता पर बहुत गर्व है। वह अपनी मान-मर्यादा जानती है। अच्छा-बुरा क्या होता है, उसे अच्छी तरह पता है। उसका मन दयालु  और करुणा से भरा है।

प्रियनाथ- प्रियनाथ एक कुलीन वर्ग के सीधा-सादा ब्राम्हण हैं। जो लोगों की सेवा करना ही पाना परम कर्तव्य समझते हैं। उन्हे अपने मुह मिया मिट्ठू बनना अच्छा लगता है। लेकिन अपने परिवार के प्रति बहुत लापरवाह है। प्रियनाथ एक झोला छाप डॉक्टर है। पैसे की उसे तंगी है पर वह कभी बुरा कर्म नहीं करता। अपने बिटिया के प्रति उसे प्रेम है।  

रासमणी- रासमणी प्रियनाथ की मौसेरी सास है। जो बहुत ही कट्टर ब्राम्हण है। जो ढकोसला पर जीती है। उसे अपने माँ-मर्यादा को कोई परवाह नहीं। औरत होकर औरत जाति को तुच्छ समझती है। वह बहुत चालबाज है। उसके मन संध्या को लेकर हमेशा घृणा भरी रहती है। वह कपटी है।

गोलोक चटर्जी- गोलोक चटर्जी शुद्ध ढकोसला और बहुत ही कपटी ब्राम्हण है। इसका चरित्र ऐसा है कि मुह में राम बगल में झुरी। गोलोक चटर्जी बहुत ही घटिहा और घृणा से भरा गावं का धनकुबेर ब्राम्हण है। जिसका 50 साल का मन सिर्फ और सिर्फ नई और खूबसूरत लड़कियों के तरह अग्रसर रहता है।

FAQ

Q Brahman ki beti का लेखक कौन है?

शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय! Brahman ki beti का लेखक है।

Q Brahman ki beti सर्वप्रथम हिन्दी भाषा में कब प्रकाशित हुआ था?

Brahman ki beti सर्वप्रथम हिन्दी भाषा में 2005 में प्रकाशित हुआ था

Q Brahman ki beti सर्वप्रथम कौन से भाषा में प्रकाशित हुआ?

Brahman ki beti सर्वप्रथम बांग्ला भाषा में प्रकाशित हुआ था?

Q Brahman ki beti उपन्यास किससे प्रेरित है?

Brahman ki beti उपन्यास जाति-धर्म, छुआ-छूट, पखंडी पांडित्य जैसे घटनाओं से प्रेरित है।

Q शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय का जन्म कब और कहां हुआ था?

शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय का जन्म 15 सितंबर, 19976 में देवानंदपुर गावं में हुआ था, जो बंगाल के हुगली जिले में स्थित है।

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