Biraj Bahu Book Summary in Hindi by Sharat chandra chattopadhyay. शरत चंद्र चट्टोंपाध्याय द्वारा लिखित बिराज बहु एक बहुत सुंदर और मार्मिक उपन्यास है, जो करुणा-भावना से भरा हुआ है।
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Biraj Bahu Book Review
“बिराज बहु” शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय द्वारा लिखित एक महिला प्रधान उपन्यास है। जिसमें रिश्तों और भावनाओं की भरमार है। पति-पत्नी का, भाई-बहन का, देवरानी और जेठानी का। शरतचंद्र की लेखकी पढ़ने वाले को एक बार भाव-विभोर जरूर कर देगी।
इस उपन्यास में शरतचंद्र ने बड़ी सहजता से गाव की रूढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था को इंगित किया है। बिराज एक सीधी-सादी लड़की है, जो अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए समाज के हर एक दंश को सहती है। अपने चरित्र पर उठ रहे सवाल और निर्धनता से परेशान होकर वो भीख मांगने से भी परहेज नहीं करती है।
हमारा सामाज आज तक दो पतिव्रत स्त्री को जानता है, पहली सीता और दूसरी शावित्री। लेकिन शरतचंद्र ने अपनी लेखनी से हमें बिराज बहु को भी सामने रखा है, जो पतिव्रत धर्म को पालन करने में अपनी इज्जत और मान-मर्यादा का खयाल रखते हुए एक पैर पर हमेशा खड़ी रहती है। चाहे उसके लिए उसे किसी भी हद तक क्यों ना जाना पड़े।
आज के समाज में हमें अब ना ही ये देखने को मिलता है और न ही, आज के लेखक की कलम से। ऐसी कहानियाँ बिरले ही मिलते हैं। लेकिन पुरानी कहानियों में जितना भी लगाव और समाज को दर्शाने का जो आईना है, वो चनकने के बाद भी इतना साफ दिखाएगा विश्वाश नहीं होता।
खैर… उपन्यास बहुत ही उम्दा है, अगर आप पुराने साहित्य मे रुचि रखते हैं, तो आपने पढ़ा होगा। अन्यथा अगर आप अभी कदम रखना चाहते हैं, तो शरत की बिराज अपने हाथों में स्वागत की थाली लिए खड़ी है, एक बार जरूर उसके दरवाजे पर जाए। यकीन करिए बिराज आपको मायूस नहीं करेगी। और सबसे खास बात ये कि यह उपन्यास मात्र 90 पेज है, जिसे आप आसानी से एक बार की बैठकी मे पढ़ सकते हैं।
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Biraj Bahu Book Summary in Hindi by Sharat chandra
हुगली जिले के सतयग्राम मे दो भाई नीलांबर और पीताम्बर रहते हैं। बटवारा होने के बाद दोनों ने अपना-अपना घर बना लिया था। नीलांबर मुर्दे जलाने, कीर्तन करने, ढोल बजाने और गांजे का डम भरने मे मगन रहता था। दूसरों की उपकारी मे उसे ख्याति मिली हुई थी तो वहीं गंवारपन मे अपने गांव-भर मे मशहूर था।
उसका छोटा भाई पीताम्बर ठीक उसके विपरीत था। शाम के बाद किसी के मरने के बाद उसका शरीर अजीब सा हो जाता था। वह नीलांबर जैसा बेवकूफ नहीं था। सवेरे ही वह भोजन करने के बाद बस्ता लेकर अदालत चला जाता और आम के पेड़ के नीचे लोगों की अर्जियाँ लिख कर पैसे कमाता था। और रात को घर की खिड़कियां बंद कर उन्हे बार-बार गिनने के बाद सन्दुक मे दबा कर रख देता था।
नीलांबर के साथ उसकी पत्नी बिराज, जिसका पउरा नाम ब्रिजरानी है लेकिन सब उसे प्यार से बिराज ही बुलाते हैं, और उसकी छोटी बहन हरिमती साथ मे रहते हैं। क्योंकि नीलांबर की माँ ने मरते वक्त हरिमती का ख्याल रखने के लिए नीलांबर को ही सौपा था। तब से नीलांबर और उसकी, जिसका विवाह मात्र नौ वर्ष की ही उम्र मे हो गया था, तब से दोनों मिलकर हरिमती का ख्याल रखते हैं।
हिरामती नौ साल होने पर नीलांबर उसकी शादी की चर्चा करता है लेकिन अभी करने से बिराज मना कर देती है, क्योंकि वो नहीं चाहती कि उसकी तरह भी उसके सर पर इतनी जल्दी एक बोझ रख दिया जाए। 11 साल की होने पर एक बड़े घर मे दान-दहेज देकर हिरामती की शादी कर दी जाती है। इस शादी में नीलांबर की जमीन-जायजाद से लेकर बिराज के पास रखी उसकी जेवरात भी खर्च हो जाते हैं। लेकिन इस बात को समझती हुई बिराज अपने पति पर एक सवाल भी खड़ा नहीं करती।
धीरे-धीरे परेशानियाँ दोनों को घेरने लगती है, जिसकी चिंता मे नीलांबर गलने लगता है और उसकी ये हालत देखकर बिराज भी कूल्हने लगती है। बात हरिमती के शदी की नहीं थी, अपने दामाद को डॉक्टर बनाने का खर्चा भी नीलांबर उठाने लगता है। जिससे और भी परेशानी बढ़ने लगती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि घर मेन अनाज-पानी नहीं होने के वजह से उन्हे व्रत रहना पड़ता तो कभी सिर्फ पानी पीकर सोना पड़ता।
उसमें भी नीलांबर की खराब तबीयत बिराज को और भी बड़ी मुश्किल मे डाल देती । लेकिन बिराज ने उसके कभी किसी से अपनी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया। लेकिन एक दिन पीताम्बर की पत्नी मोहिनी को जब इसकी भयानक लगती है, तो अपने को नहीं रोक पाती और बिराज की मदद के लिए पहली बार उसके घर मे कदम रखती है, जिसे देख कर बिराज चौक जाती है।
मोहिनी बिराज के हालत पर दुख जताते हुए उसके हाथ मे अपने माँ के द्वारा दी गई गले की हार को रख देती है, ताकि बिराज उसे बेचकर कुछ खर्चे चला सकें। बिराज लेने से मना करती है लेकिन मोहिनी उसे अपने बहन कहते हुए किसी तरह समझा-बुझाकर अपने घर को चली जाती है।
एक दिन बिराज घर मे काम करने वाली सुंदरी के साथ घाट को नहाने जाती है, जहां उसका सामना गावं के सबसे बड़े जमींदार राजेन्द्र से होती है, जो उसके सामने आ कर खड़ा हो जाता है और अपने बिराज के यौवन पर मोहित होकर उसे अपने कुटिया मे आने का निमंत्रण देता है लेकिन बिराज अपने पति का धौस-घुड़की देकर अपने घर को चली जाती है। लेकिन सुंदरी उसकी जाल मे फंस जाती है।
बिराज और राजेन्द्र का सामना जब गावं मे फैलने लगता है तो नीलांबर से भी अछूता नहीं रहता। बिराज नीलांबर को अपने पतिव्रता का विश्वाश दिलाती है, जिसकी नीलांबर बात मान लेता है। बिराज अपने पति से राजेन्द्र के बारे मे नहीं बताती, क्योंकि उसे पता है कि अगर नीलांबर को राजेन्द्र की करतूत का पता चल तो वो उसे मार डालेगा, जो बिराज बिल्कुल नहीं चाहती।
एक तो पैसे की कमी ऊपर से जब बिराज को सुंदरी के बारे मे उसके राजेन्द्र के साथ का पता चलता है तो उसे अपने घर पर काम करने से मना कर देती है। और घर-बार का सारा काम खुद करने लगती है। जो नीलांबर को बर्दास्त नहीं होता और उसे अपने निकम्मा होने का एहसास होता है।
धीरे-धीरे दिन और भी बदतर होते जाते हैं। नीलांबर और भी दुबला होता जाता है। जिसकी चिंता बिराज को खाए जाती है। फिर एक बार और मोहिनी अपने घर से एक हार लेकर आती है, जो उसके शादी मे नीलांबर ने ही उसे दिया था। बिराज उसे लेने से मना करती है लेकिन मोहिनी उसे किसी तरह देने मेन सफल हो जाती है। मोहिनी का इस कदर अपने प्रति लगाव देख बिराज की आंखे डबडभा जाती है।
कुछ दिनों तक खर्चा चलने के बाद बिराज का हाथ फिर खाली हो जाता है। और नीलांबर गाँजा मारे इधर-उधर दूसरे लोगों की भलाई मे अपने पैर कीचड़ मे डाले फिरता है। एक दिन तो हद हो जाती है। जब बिराज घर पर नहीं होता, अपने एक रिश्तेदार के दाह-संस्कार मे तीन दिन के लिए बाहर गया होता है। और घर मे कुछ भी खाँने को नहीं होता तो बिराज किसी तुलसी महतो के घर रात के अंधेरे मे चावल मांगने निकल पड़ती है।
जब तक लौटती, नीलांबर घर मे मौजूद होता है। दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर बिराज सीधे बढ़ते कदमों से रसोई मे चली गई। बिराज ने देखा था, नीलांबर की आंखे गाँजा फुकने के वजह से गाढ़ी लाल हो चुकी थी। नीलांबर ने भी बिराज से पूछा भी कि इतनी रात गए कहाँ गई थी और बिराज ने उसका जवाब “यमराज के यहाँ” कह कर शांत हो गई।
बिराज कुछ देर बाद जब थाली मे चावल डालकर नीलांबर के सामने रखती है कि दोनों मन बहस छिड़ जाती है ,जिसके कारण नीलांबर का हाथ उठ जाता है। बिराज को कतई भी बर्दास्त नहीं हुआ और उसी रात घर से निकल गई।
अगली सुबह जब तक नीलांबर की आंखे खुलती तुलसी महतो दरवाजे पर पहुँच जाता है। तुलसी से बात करने के दौरान जब असली बात उसे पता चलती है तो नीलांबर उसे खोजने के लिए निकलता है।
ये बात बड़ी ही तेजी से चारों तरफ फैल जाती है। बिराज की पूरे गावं वाले भी खोजने लगते हैं। मोहिनी के कहने पर पीताम्बर भी गावं के पास वाली नदी मे अपने कुछ आदमियों को लगा देता है लेकिन कुछ भी पता नहीं चलता। अंत मे नीलांबर सुंदरी के कुटिया मे पता करने जाता है, जिसके बाद सुंदरी उससे उस रात की घटना बताती है कि बिराज उस रात उसके पास आई थी और मेरे साथ राजेन्द्र के कुटिया मे गई और फिर दोनों भाग कहीं भाग गए।
ये बात मोहिनी को नहीं पचती । उसे विश्वाश होता है कि बिराज दीदी ऐसा नहीं कर सकती। नीलांबर को भी लगता है कि अगर उसने ऐसा किया भी है तो ठीक ही किया है, मैने उसे बहुत दुख दिया, उसने भी जब तक हो सका बर्दास्त किया पर जब पानी सर से ऊपर हो गया, बिचारी से रहा न जा सका।
कुछ दिन बाद हरिमती अपने मायके से भईया का खयाल रखने के लिए चली आती है। हरिमती नीलांबर को खुश रखने और उसके शरीर मेन थोड़ा सुधार लाने के लिए तीर्थ करने को कहती है, जिसकी बात मानते हुए नीलांबर उसके साथ हो लेता है।
कुछ दिन घूमने के बाद जब नीलांबर का मन अब घर को लौटने को बेचैन हो उठता है कि एक मंदिर मे भीख मांगती हुई फटे-चिटे कपड़ों मे बीराज नजर आती है, जिसे हरिमती तुरंत पहचान लेती है। बिराज की तबीयत बहुत खराब होती है। हरिमती और नीलांबर बिराज को लेकर घर चले आते हैं।
बिराज उस रात की सारी घटना बताते को बताते हुए कहती है कि उस रात वो राजेन्द्र के कुटिया मे गई जरूर थी लेकिन उसके स्वाभिमान ने ऐसा लात मारा कि तनिक भी टीक न सकी और पास ही के घाट से नदी मे छलांग लगा दिया। उसके बाद किसी ने उसकी सहायता की और सरकारी अस्पताल मे दाखिल करा कर चला गया।
होश आने पर अपने घर को जाना था, लेकिन जिसे वो छोड़ चुकी थी, अब लौटने को मन नहीं किया। नीलांबर बिराज के सर को अपने गोद मे लिए बैठा रहता है, बिराज की हालत को देखकर उसे भी पता होता है कि अब यह बचने से रही। और कुछ देर बाद अपनी इच्छा अनुसार पति के गोद मे बिराज अपना प्राण तज देती है।
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
ताकेश्वर मेन बाजार लगा हुआ था। बैलगाड़ियों का आना-जाना हुआ था। एक बूढ़े को रो-धोकर ले जाने के लिए राजी कर लिया।
उस दिन आकाश मेन बादल छाए हुए ठे। तीसरा पहर होते-होते अंधकार-सा छा गया। सुबह मुह से बहुत खून निकल जाने से बिराज और भी कमजोर हो गई थी। वह मंदिर के पीछे मुहँ छुपाये पड़ी रही। उसके मन मेन अनेक तरह के भावों का आना-जाना लगा रहा । उसने तय किया कि अब वह भीख नहीं मांगेगी। दरअसल भीख का भाव अब उसके चेहरे पर नहीं था। एक अजीब-सा विद्रोह था जो अभीमाँ की दीप्ति से झिलमिला रहा था।
वह परिक्रमा की राह के पास लेती हुई थी। अचानक किसी का पाँव उसके हाथ पर पड़ा। उसे दारुण वेदना हुई वह कराह उठी- “आह!”
अपरिचित आदमी चौककर कह उठा- “हाय, यहाँ कौन पड़ा है? मुझसे पाप हो गया। ज्यादा चोट तो नहीं आई?”
बिराज ने अपने मुहँ से कपड़ा हटाकर देखा तो वह नीलांबर ही था। लेकिन वहाँ रुका नहीं था।
नीलांबर ने हरिमती से कहा-“हरिमती! वह स्त्री मुझसे कुचल गई है । उस भिखारिन की कुछ सहायता कर दो।”
पूंटी ने आकर भिहरीं से पूछा-“अजी! तुम्हारा घर कहाँ है?”
“सप्तग्राम!” वह हास पड़ी।
बिराज की भूलने वाली जो चीज थी, वह थी उसकी हंसी। उसे एक बार जिसने देख लिया, वह भूल नहीं सकता।
“अरे! यह तो भाभी है।” पूंटी उस जीर्ण-शीर्ण देह पर पड़ गई और लिपटकर रो पड़ी।
नीलांबर ने सब-कुछ समझ लिया। लपककर आया, बोला-‘’पूंटी! यहाँ मत रो… उठ!”
नीलांबर उस कमजोर भूखी देह को बच्चे की तरह उठाकर अपने डेरे की ओर चल पड़ा।
कोट्स-
- कितने ही नाते-रिश्ते हों, पर पत्नी से ज्यादा सही प्रार्थना पति के लिए कोई नहीं कर सकता।
- सत्य सदा सत्य ही रहा है। सत्य पहले भी सत्य था, आज भी सत्य है और कल भी सत्य रहेगा।
- पुरुषों की माया-ममता का पता भी समय के बिना अच्छी तरह नहीं जाना जा सकता।
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
बिराज-बिराज लंबी-चौड़ी यौवनपूर्ण एक सुंदर महिला है। जिसके अंदर कर्तव्य-परायण, धर्मनिष्ठता और पतिव्रता रग-रग मेन बसा हुआ है। वह स्वाभिमानी भी है। अपने पति की दुख-दर्द में सहभागिता भी है। उसे मेहनत करके खाने मेन तनिक भी लज्जा नहीं है।
नीलांबर– नीलांबर मुर्दे जलाने, कीर्तन करने, ढोल बजाने और गांजे का दम भरने में मस्त रहता है। उसका लंबा कद, गोरा बदन, बहुत ही चुस्त , फुर्तीला तथा ताकतवर है। दूसरों के उपकार के मामले में उसकी ख्याति बहुत है तो गवारपन मेन भी वह गांव-भर मे बदनाम है।
मोहिनी– मोहिनी नीलांबर के भाई की पत्नी है। जो बहुत ही अच्छी और स्वर्णिम महिला है। उसके हाथ बिराज के सेवा और दान के लिए हमेशा खुले रहते हैं। उसके दिल मे सम्मान और इज्जत, मान-मर्यादा, नीलांबर के प्रति सेवा-भाव हमेशा जागृत रहता है। मोहिनी बिराज के पतिव्रता धर्म का पालन देख हमेशा उस पर मोहित रहती है। मोहिनी भी बिराज की तरह एक धर्म-परायण महिला है।
FAQ-
Q-बिराज बहु का लेखक कौन है?
शरतचंद्र चट्टोंपाध्याय ।
Q-बिराज बहु का जर्ने क्या है?
काल्पनिक।
Q-बिराज बहु पहले किस भाषा मे पब्लिश हुआ था?
बांग्ला भाषा।
Q-बिराज बहु का पूरा नाम क्या है?
ब्रजरानी! जिसे नीलांबर प्यार से बिराज ही पुकारता है।
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