Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. panday

Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday

Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. panday ने प्रभात प्रकाशन से इस किताब को प्रकाशित किया है। जो जमशेदजी नौशेरवॉजी टाटा की एक छोटी बिजनेस से लेकर आज तक के रतन नवल टाटा के बारे मे जितना लिख सकते थे, उतना लिखा है।

Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday
Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday

Book Review: Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday

संकलन और संपादक बी. सी. पाण्डेय द्वारा लिखित और प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित बायोग्राफी ऑफ रतन टाटा या यूं कह ले कि बायोग्राफी ऑफ टाटा इंडस्ट्रीज है। क्योंकि टाटा इंडस्ट्रिज, टाटा परिवार का ही एक सदस्य है। अगर आप टाटा को जाने और टाटा इंडस्ट्रीज को ना जाने, चाहे आप टाटा इंडस्ट्रीज को जाने और टाटा को ना जाने ऐसा हो ही नहीं सकता। इसी कारण जहां तक मुझे लगता है, बी. सी. पाण्डेय ने शुरुआत जमशेद नौशेरवॉजी टाटा से की और अब तक ग्रोथ कर चुकी टाटा इंडस्ट्रीज लाकर खत्म कर दिया। वैसे इस किताब मे बहुत सारी ऐसी जानकारियाँ, रोचक तथ्य और टाटा द्वारा कही गई बातें हैं, जिन्हे शायद आप नहीं जानते होंगे।

अगर आपने इसके पहले कोई और बायोग्राफी जैसे की बायोग्राफी ऑफ अरुणिमा सिन्हा का पढ़ा होगा तो अरुणिमा की जीवन की सबसे बड़ी घटना से उठाकर फिर उनके साधारण से असाधारण जीवन तक पहुचने की गाथा है। लेकिन रतन टाटा की बायोग्राफी अलग है। इसमे टाटा इंडस्ट्रीज की निव से लेकर एक के बाद एक ऊपर पड़ते गए छत की कहानी है। जो जमशेद टाटा की देख-रेख से होते हुए रतन नवल टाटा के हाथों मे आई। और शायद आगे भी रहेगी। तो चलिए टाटा इंडस्ट्री की शुरुआत जमशेद जी से करते है।

Book Summary: Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday

“बायोग्राफी ऑफ रतन टाटा” की कहानी जमशेदजी टाटा से शुरू होती है। जो आज के रतन टाटा के परदादा थे। जब आप इस बायोग्राफी को पढ़ेंगे को तो बहुत ही ध्यान से जमशेदजी टाटा से लेकर रतन टाटा तक का जो दो-चार पीढ़ियों का नाम है, वो सब एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। आप आसानी से पता ही नहीं कर पाएंगे कि कौन किसके पिता का नाम और कौन किसके बेटे का नाम है। लेकिन रही बात बिजनेस की तो पूरा परिवार मिलकर ऐसे अपने धंधे को आगे बढ़ाया जैसे एक वट वृक्ष।

वट की डाली जहां तक पहुच सकती थी, वहाँ तक अपनी कोमल लताओं से एक मजबूत तना इतना ठोस बनाया। जीसे कोई आज भी आसानी से हिला नहीं सकता। टाटा भारत की अब तक ऐसी प्राइवेट कंपनी है, जिसके पास समुंदरी पार के नामी-ग्रामी कंपनी को अपने अधीन किया है। जिनमे कोरस(स्टील कंपनी) और जे. एल. आर. शामिल है। वैसे टाटा टी ने इंग्लैंड की काफ़ी कंपनी भी खरीदी है। टाटा ने अपनी कंपनी की निव जुबां और विश्वाश पर रखी है और टाटा ने इसे निभाया भी है। यही कारण है कि लोग टाटा पर एक मुस्त विश्वाश करते हैं।

टाटा ने जिस प्रकार टाटा इंडस्ट्री को आगे बढ़ाया उससे भी तेज भारतीय गरीब लोगों के लिए ऐसी बहुत सारी सेवा ट्रस्ट भी खोला। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि टाटा अपनी टोटल कमाई का 65.8% मुनाफा हर साल लोगों को दान करने मे चला जाता है। चाहे वो 2004 मे आने वाली सुनामी से लेकर ताज होटल मे मारे गए विदेशी पर्यटक हो या काम करने वाले कर्मचारियों के परिवार का खर्चा आजीवन चलाने का वादा किया। आज के समय मे बात करें अगर कोरोना काल की टाटा ने 10,000 करोड़ रुपये दान दिए। जो किसी भी भारतीय बिजनेस मैन के लिए इतना आसान नहीं था।

सबसे एक अच्छा पॉइंट की बात करे तो जे. आर. डी.  टाटा की तरह नवल रतन टाटा एक कुशल पाइलट भी हैं।  जो अपना जहाज खुद उड़ाते हैं। और भी बहुत कुछ है, जीसे मैं लिखने लगूँ तो फिर दोबारा किताब तैयार हो जाएगा। मैंने लगभग उन सभी पॉइंट को आपके समक्ष रखा है, बाकि आप और भी जानकारी के लिए किताब को खरीद सकते हैं।   

Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday पात्रों का चरित्र-चित्रण-

भारतीय उद्योग जगत के अग्रगण्य पुरुष जमशेद नौशेरवॉजी टाटा का जन्म 3 मार्च, 1839 को नवसारी मे पारसी पुरोहित के एक परिवार मे हुआ था। उन्हे भारतीय उद्योग का जगत कहा जाता है। वे अपने पिता के एकमात्र पुत्र थे। जब जमशेद 13 वर्ष के थे, उनके पिता बंबई मे निर्यात व्यवसाय का शुभारंभ किया। 14 वर्ष की उम्र मे उनका बंबई मे प्रदापन हुआ। पारसी परंपरा के अनुसार इनका विवाह 16 वर्ष की उम्र मे हीराबाई(10 वर्ष) से हो गया।

17 साल की उम्र मे उन्हे ‘एल्फिंस्टन कॉलेज’ मे दाखिला करने के कुछ वर्षों बाद ‘ग्रीन स्कॉलर’ के रूप शिक्षा सम्पन्न होने के बाद पिता ने उन्हे 1859 मे हाँगकाँग भेजा। जहां वे अपनी पारिवारिक फर्म की एक शाखा खोलने हेतु कार्य किया तथा अन्य संबंधित कार्यों मे व्यस्त रहने के कारण 1863 तक रहे।

जमशेदजी टाटा 29 वर्ष की आयु मे 1868 मे 21,000 रुपये की पूंजी से उन्होंने एक वैयक्तिक व्यापारिक फर्म शुरू की। जिसमे साथियों के साथ मिलकर विदेशों मे कुछ सैनिक साजो-सामान की आपूर्ति का ठेका प्राप्त किया। और पौसा कमान के बाद 1869 मे बंबई मे एक पुरानी तेल मिल खरीदी और उसे टेक्सटाइल कारखाने मे परिवर्तित कर दो साल बाद एक व्यापारी को बेच दिया। और पुनः 1872 मे जमशेद जी ने इंग्लैंड का रुख किया। भारत कपड़ा उद्योग के विकास के लिए वहाँ के कपड़ा उद्योग को समझने के बाद मुंबई वापस लौट आए। मुंबई मे लगभग एक दर्जन कपड़ा मिल होने के कारण जमशेद जी नागपूर का रुख किया। जिसमे उन्होंने तीन मुख्य तथ्य सामने रखा-कपास उत्पादन, रेलवे सुविधा तथा ईंधन एवं जलापूर्ति की स्थिति।

1884 मे साथियों की मदद से 15,00,000 रुपये की पूंजी से उन्होंने ‘द सेंट्रल इंडिया स्पिनिंग विविंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी’ की शुरुआत की। 1 जनवरी 1877, क्वीन विक्टोरिया को भारत की रानी घोषित कीये जाने पर नागपूर मे ‘एंपैरस मिल’ का शुभारंभ हुआ।

अपनी इन प्राथमिक सफलताओं से उत्साहित होकर वर्ष 1886 मे ही उन्होंने एक कुख्यात बीमार मिल को खरीदने का विचार किया। 47 वर्ष की आयु मे इस बीमार मिल को एक स्वस्थ मिल का स्वरूप देने की चुनौती स्वीकार की। यह मिल, जिसे स्वदेशी आंदोलन के तर्ज पर ‘स्वदेशी कॉटन मिल’ नाम दिया गया, जिसमे भारतीय शेयर होल्डरों द्वारा खुशी-2 इसमे निवेश किया।

दोराबजी टाटा, जमशेद जी टाटा के बड़े पुत्र थे। जिनका जन्म 1859 हुआ था। इनका पूरा नाम दोराबजी जमशेदजी टाटा है। प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा बंबई के प्रपराइटरी स्कूल मे हुई। तत्पश्चात उन्हे इंग्लैंड भेजा गया। 18 वर्ष की उम्र मे उन्होंने कैम्ब्रिज मे गोनविले एंड कॉलेज मे दाखिल लिया। कैम्ब्रिज मे पढ़ाई के दौरान उन्होंने खेला मे भी अच्छा प्रदर्शन किया तथा क्रिकेट एवं फुटबॉल मे कई पुरस्कार भी जीते। 1879 मे भारत लौटने के बाद ‘बॉम्बे गज़ट’ मे एक पत्रकार के रूप मे अपने करियर की शुरुआत की और 1884 मे अपने पिता की पैतृक व्यवसाय मे प्रविष्ट हुए। 1897 मे जब उनकी उम्र 38 वर्ष की थी, तब उनकी शादी एच. जे. भाभा की पुत्री मेहरबाई(18 वर्ष ) से संमपन्न हुआ।

दोराबजी मे टाटा परिवार के वे सभी गुण थे, जिनके लिए उनका परिवार जाना जाता है। ये गुण हैं—अग्रगण्यता, नेतृत्व तथा उद्देश्य की प्राप्ति। यह उनकी सोच एवं दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि उन्होंने अपने पिता के वे सारे सपने साकार किये, जिन्हे जमशेद जी जीते-जी पूरा न कर सके। अपने निकट संबंधी आर. डी. टाटा की सहायता से सर्वप्रथम उन्होंने उन परियोजनाओं पर ध्यान दिया, जो उनके पिता ने शुरू की थी। 

रतन दादा भाई टाटा, दोराबजी टाटा के चचेरे भाई थे। जिनका जन्म 1856 मे नवसारी मे हुआ था। यही उनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई। बाद मे एल्फिस्टन कॉलेज मे उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद मद्रास मे कृषि विज्ञान का अध्ययन किया। शिक्षा सम्पन्न होने के बाद उन्होंने अपने पिता की कंपनी टाटा एंड कंपनी से अपने कार्य की शुरुआत की।

रतन दादाभाई को ‘इंपैरस मिल्स’ मे इसके प्रबंधन बेजनजी दादाभाई मेहता के साथ संबंध किया गया। बेजनजी तब तकनीकी एवं प्रबंध का काम देख रहे थे, जबकि रतन दादाभाई को वित्तीय पक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी अवधि मे उनके चचेरे भाई दोराबजी टाटा के साथ यवतमाल मे एक फैक्टरी खोलने की जिम्मेदारी सौंपी गई। स्वदेशी मिल की आर्थिक स्थिति उस समय ठीक नहीं थी, अतः  आर. डि. को उसका वित्तीय कार्यभार सौंपा गया।

नौशेरवॉजी द्वारा स्थापित कंपनी के व्यवसाय से जमशेद जी द्वारा स्थापित कंपनी का व्यवसाय भिन्न था, अतः उन्होंने पूर्वी शाखा का कार्यभार अपने चचेरे भाई आर. डी. को सौंप दिया गया।आर. डी. टाटा कुछ वर्षों के लिए हाँग काँग चले गए, जहां उन्होंने शंघाई आदि स्थानों पर शाखाएं स्थापित कीं, जो कि चावल व रेशम का व्यवसाय करती थी।

जमशेदजी की मृत्यु के पश्चात सं 1907 मे ‘टाटा एंड संस’ नाम परिवर्तित होकर ‘टाटा एंड संस कंपनी’ हो गया। इसके तीन भागीदार थे- सर दोराबजी, सर रतन टाटा और आर. डी. टाटा।

जमशेदजी के छोटे बेटे सर रतन टाटा का जन्म 20 जनवरी 1871 को हुआ। वे दोराबजी से 12 वर्ष छोटे थे। सेंट जेवीयर्स कॉलेज, बंबई मे उनकी शिक्षा सम्पन्न हुई। सं 1892 मे नवाजबाई से उनका विवाह सम्पन्न हुआ।

सर रतन टाटा का सामाजिक जीवन भी व्यस्तताओं से भरा था। ऊअनकी यात्राओं मे काफी रुचि थी। अपने जीवन के उत्तरार्ध मे प्रतिवर्ष उन्होंने अपना ज्यादा समय इंग्लैंड मे बिताया। वे ‘कार्लटन क्लब’ लंदन के सदस्य थे तथा इंग्लैंड की उची सोसाइटी मे एक सम्मानित सदस्य गिने जाते थे। 1906 मे उन्होंने इंग्लैंड मे लंदन के नजदीक टिवकेनहम मे स्थित ‘यार्क हाउस’ को खरीद लिया तथा इससे सटे 12 एकड़ के क्षेत्रफल मे एक सुंदर बगीचा विकसित किया।

भारत की गरीबी तथा लोगों की दयनीय दशा को देखकर सर रतन काफी उद्वेलित थे तथा वे इसमे सुधार चाहते थे। उनका आग्रह था कि इस विषम मे वैज्ञानिक तरीके से जांच-पड़ताल होनी चाहिए। सं 1912 मे उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय को इस दिशा मे कार्य करने के लिए एक निकाय के गठन हेतु आर्थिक मदद का प्रस्ताव किया, ताकि गरीबी एवं दयनीय दशा के कारण को चिन्हित कर उनका निदान करने हेतु सुझाव प्राप्त हो सके।

सर रतन टाटा काफी उदार हृदय थे। किसी भी ऐसे कार्य के लिए उन्होंने मुक्तहस्त दान दिया, जिससे वे प्रभावित हुए। प्राकृतिक आपदाओं जैसे-बाढ़, अकाल अथवा भूकंप की स्थिति मे राहत हेतु उन्होंने अपना भरपूर योगदान दिया। इसका अलावा सार्वजनिक स्मारकों, स्कूलों एवं अस्पतालों को भी उन्होंने काफ़ी आर्थिक सहायता प्रदान की। ‘जार्ज पंचम एंटी ट्यूबरकुलोसिस लीग’ को उन्होंने दस वर्षों तक प्रतिवर्ष 10,000 रुपये आर्थिक मदद की।

नवल होरमुसजी टाटा का जन्म 30 अगस्त,1904 को बंबई मे एक मध्यवर्गीय परिवार मे हुआ था। उनके पिता  होरमुसजी टाटा अहमदाबाद की मिल मे स्पिनिंग मास्टर थे। जब नवल चार वर्ष के थे तो पिता की मृत्यु हो गई। अब विधवा माँ को अपने बच्चों का पालन पोषण करना दूषवार हो गया था तो उन्होंने अपने पैतृक गावं नवसारी को अपना आश्रय स्थल बनाया। इसी बीच उनके दोराबजी का दृश्य-पटल पर आगमन हुआ। उनकी मदद से नवल के दो भाइयों को जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय मे शरण मिली। ठीक एक साल बाद उन्हे भी यहाँ शरण दी गई।

1918 मे 47 वर्ष की आयु मे सर रतन टाटा की इंग्लैंड मे मृत्यु होने के बाद ‘उत्थमा संस्कार’ के लिए एक बेटे का होना जरूरी था। इसलिए पुत्र के लिए किसी को गोद लिया जाना था। नवल की माँ, सर रतन की सबसे प्रिय चचेरी माँ थी, इसलिए नवल को गोंद लिया गया। नवाजबाई ने इस पारिवारिक निर्णय को स्वीकार कर लिया और इस तरह नवल होरमुसजी टाटा को गोद लिया गया।

बंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र मे स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद एकाउंटेंसी में एक लघु पाठयक्रम पूरा करने के लिए वे इंग्लैंड गए। 1930 मे वहाँ से लौटने के बाद उन्होंने डिस्पैच कलर्क असिस्टेंट सकरेटरी के रूप मे टाटा संगठन मे प्रवेश पाया। 1933 मे वे वैमानिकी विभाग मे सचिव बनाए गए। बाद मे कपड़ा विभाग मे एक्जिक्यूटिव के रूप मे उन्हे स्थानांतरित कर दिया गया। उनकी योग्यता देख कर सन 1939 मे उन्हे टाटा द्वारा संचालित कपड़ा कारखानों का सयुक्त प्रबंध निदेशक बनाया गया। सं 1941 मे उन्हे टाटा संस मे एक डायरेक्टर के रूप मे पददोन्नत कर दिया गया।

वे भारतीय हॉकी फेडरेशन के भी कई वर्षों तक अध्यक्ष रहे। उनके अध्यक्षीय कार्यकाल मे भारत ने ओलंपिक मे लगातार तीन स्वर्ण-पदक जीते। टाटा स्पोर्ट्स क्लब ने भारतीय हॉकी की महत्वपूर्ण सेवा की।

जहांगीर रतन दादाभाई टाटा (जे. आर. डी.)  का जन्म 29 जुलाई,1904 को पेरिस मे हुआ था। उनकी माता फ्रांसीसी थीं। पिता का नाम रतन दादा भाई टाटा था। वे जमशेदजी के चचेरे भाई और आर. डी. के नाम से जाने जाते थे। जे. आर. डी. की शिक्षा फ्रांस, जापान मे हुई। उन्होंने एक वर्ष फ्रांस की सेना मे प्राथमिक सेवा भी की। उनकी इच्छा थी कि वे सेना मे बने रहे, लेकिन विधाता को कुछ और ही मौजूद था। अतः उन्हे फ्रांस की सेना को अलविदा कहना पड़ा। पिता का पत्र पाकर उन्हे भारत लौटना पड़ा। जे. आर. डी. के कार्य की शुरुआत टाटा संस मे एक सहायक के रूप मे हुई। पिता आर. डी की मृत्यु के कुछ समय बाद1926 मे उन्हे कंपनी मे एक निदेशक के तौर पर शामिल कर लिया गया। 1938 मे चेयरमैन नियुक्त हुए।

25 मार्च 1991, को उन्होंने अपने कनिष्ठ साथी रतन नवल टाटा को टाटा संस का कार्यभार सौंप दिया। टाटा संस के बोर्ड ने उन्हे एकमत से आजीवन अध्यक्ष (अवकाश-प्राप्त) चुना।

जे. आर. डी. को भारत मे विमानन का संस्थापक माना जाता हई। वे भारत के प्रथम ऐसे पायलट थे,जिन्होंने यह योग्यता प्राप्त की थी। 1932 मे उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रीय वाहक ‘टाटा एयरलाइंस ’ की स्थापना की। 1946 मे इसका नाम ‘एयर इंडिया लिमिटेड’ कर दिया गया। टाटा एयर लाइंस की उदघाटन उड़ान कराची से बंबई के बीच हुई, जिसका नियंत्रण जे. आर. डी. के हाथों मे था। बाद मे भारत सरकार के साथ मिलकर लंबी दूरी के लिए ‘एयर इंडिया इंटेरनेशनल लिमिटेड’ की स्थापना की। 1953 मे इसके राष्ट्रीयकरण होने तक वे इसके कार्यकारी अध्यक्ष रहे।

जे. आर. डी.के सुझाव पर भारत सरकार ने दो उड़ान कॉर्पोरेशन –एयर इंडिया एवं इण्डियन एयरलाइंस स्थापित क्ये। जो क्रमशः अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलू उड़ानों के लिए गठित किये गए थे। उन्हे एयर इंडिया का चेयरमैन नियुक्त किया गया। इस पद पर वे 1978 तक कार्य करते रहे।

रतन नवल टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 मे बंबई मे हुआ। माता सुनू और पिता होरमुसजी टाटा है । रतन टाटा जब 7 वर्ष के थे, तब उनकी माता-पिता के बीच तलाक हो गया। जिसके बाद रतन और भाई जिम्मी की परवरिश उनकी दादी नवाजबाई द्वारा हुई। 15 वर्ष की उम्र मे पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हे अमेरिका भेज दिया गया। अमेरिका के कर्नेल विश्वविद्यालय से उन्होंने सं 1962 मे आर्किटेक्चर एवं स्ट्रक्चर इंजीनियरिंग मे स्नातक डिग्री प्राप्त की। उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से अड्वान्स मैनेजमेंट पोग्राम का कोर्स भी किया।

1962 मे भारत आने के पश्चात उन्होंने टाटा ग्रुप मे प्रवेश पाया। तब जे. आर. डी. टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे। उन्होंने रतन को स्टील मे कार्य कारण एके लिए जमशेदपुर भेज दिया। ताकि वे स्टील के कार्य को अच्छी तरह समझ सके। वहाँ उन्होंने नीली वर्दी पहन कर कर्मचारियों के बीच फावड़े लेकर चुने के पत्थरों को हटाने के कार्य से लेकर धधकती हुई भट्ठियों से संबंधित कार्य किये।

1975 मे हावर्ड स्कूल से प्रबंधन मे उच्च शिक्षा प्राप्त की दिसंबर 1988 मे उन्हे टेल्को का चेयरमैन बनाया गया। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात सं 1989 मे चेयरमैन के रूप मे उन्होंने ‘सर रतन टाटा ट्रस्ट ’ का कार्यभार संभाला।

25 मार्च, 1991 को जे. आर. डी. टाटा ने अपने उत्तराधिकारी के रूप मे रतन नवल टाटा का नाम ‘टाटा संस’ के चेयरमैन पद हेतु प्रस्तावित किया और स्वयं अवकाश ग्रहण कर लिया।

Biography of Ratan Naval Tata Book in Hindi by B. C. Panday के कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-

  1. 7 व्यवसाय क्षेत्रों मे कार्यरत यह ग्रुप 98 कमपनियों से संघटित है। इसनामे से 27 कंपनियां सार्वजनिक कमपनियों के रूप मे सूचीबद्ध है। टाटा ग्रुप के 65.8 प्रतिशत का स्वामिती इसके चेरीटेबल तरस्तों के पास है। ग्रुप मे सबसे बड़ी हिस्सेदारी टाटा स्टील, कोरस स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कम्यूनिकेशन, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा पॉवर, टाटा टी, टाइटन इंडस्ट्रीज, टाटा टेलीसर्विसेज एवं ताज होटल्स आदि की है।
  2. टाटा स्टील-जमशेदजी टाटा ने स्टील प्लांट की स्थापना हेतु काफी संघर्ष किया, लेकिन प्लांट की स्थापना के लिए जगह की तलास किये जाने से तीन वर्ष पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। पेरीं ने कंपनी के प्लांट की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट सौंपने के बाद भी चार्ल्स पेरीं तब तक भारत मे रुके रहे जब तक कि साकची मे प्लांट की स्थापना का निर्णय नहीं हो गया। साकाची का नाम ही बाद जमशेदपुर कर दिया गया। और यह नाम-रूपांतरण भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड द्वारा किया गया। कालीमाटी स्टेशन का नाम ‘टाटा नगर’ भी तभी पड़ा।
  3. टाटा केमिकल्स– इसकी स्थापना सं 1939 मे हुई। विदेशी निर्माता से आयातित तर्बो जेनरेटरों की इसकी पहली खेप उन दिनों जारी द्वितीय विश्व युद्ध की भेट चढ़ गई और समुन्द्र मे डूब गई। आज टाटा केमिकल्स ली. दुनिया मे दूसरा सबसे बड़ा सोडा ऐश उत्पादक है। इसकी उत्पादक इकाइयां भारत के अलावा ब्रिटेन, केन्या तथा अमेरिका आदि देशों मे हैं।
  4. टाटा मोटर्स(टेल्को) – इसकी स्थापना 1945 मे हुई थी और इससे वाहनों का उत्पादन 1954 मे आरंभ हुआ। आज 50 लाख से अधिक वाहन भारत की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। जहां तक यात्री वाहनों का संबंध है, सर्वोच्च तीन उत्पादनकर्ताओं मे इसकी गिनती होती है। त्रां उत्पादन मे कंपनी का स्थान दुनिया मे चौथा तथा बस उत्पादन मे दूसरा है। 1998 मे रतन टाटा ने पहली भारतीय कार के नाम से प्रसिद्ध इंडिका को कई वर्षों की मेहनत तथा रिसर्च के बाद बाजार मे उतारा। जिसके बाद दुनिया की सबसे छोटी और सस्ती कार टाटा नैनो और महंगी और वी. आई.  पी. कार जे. एल. आर. है।
  5. टाटा-टी– टाटा टी संसार की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है, जिसका ब्रांडेड चाय का व्यवसाय 60 सए अधिक देशों मे फैला हुआ है। टाटा टी ग्रुप मे प्रमुख कंपनियां हैं- टाटा टी, टाटा द्वारा अधिकृत इंग्लैंड की टेटले चाय कंपनी(यह अधिग्रहण 2004 मे 40.7 करोड़ डॉलर) तथा टाटा काफ़ी।
  6. टाटा पॉवर– टाटा हाइड्रॉइलेक्ट्रिक पावर सप्लाई कंपनी की स्थापना 1911 मे हुई थी। इसके बाद 1916 मे स्थापित आंध्र वैली पावर सप्लाई कंपनी का एकीकरण इसके साथ हुआ। आज टाटा पॉवर कंपनी ली. भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट लाइट उत्पादन कंपनी है। इसकी उत्पादन क्षमता 3000 मेगावाट है। आगे अभी और भी यूनिट के काम  होने वाले हैं।
  7. टी. सी. एस.- 1968 मे एकाधिकार व्यापार प्रतिबंध के आसन्न संकट को देखते हुए टाटा संस ने विशेषतया के आधार पर कंसल्टेंसी इकाइयों का गठन किया। 1. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज 2. टाटा कसंल्टिंग इंजीनियर्स 3. टाटा इकोनॉमिक कसल्टेंसी सर्विसेज 4. टाटा फैनेशियल सर्विसेज।
  8. टी. सी. एस. ने ही आयकर विभाग के लिए करदाताओं हेतु पैन(PAN card) नंबर विकसित किया। आज टी. सी. एस. के लगभग 50 देशों मे 1,12,000 से अधिक आई. टी. कसल्टेंट हैं।
  9. ताज होटल ग्रुप – जिनमे मुंबई मे स्थित ताज होटल सर्वोपरि है। जमशेदजी ने बंबई मे भारत के सरवॉटम होटल ताजमहल होटल का निर्माण किया। जिसका उद्घाटन 1903 मे हुआ। इसमे एक सोडा एवं बर्फ करखाना, वाशिंग एवं पॉलीशीग मशीन, लॉन्ड्री, इलेवेटरतथा इलेक्ट्रिक गेनएरेटर सहित सभी जरूरी व्यवस्थाएं की गई। उस समय ताज होटल पूरे बंबई का एक मात्र भवन था, जो बिजली से प्रकाशित था। इसमे अमेरिकी पंखे, टर्की शैली के बाथरूम और कीचेन के लिए अंग्रेजी बटलरों की नियुक्ति की गई थी।
  10. ताज होटल मे 565 कमरे तथा 46 सुइट्स हैं। इसके अंदर की सेवा मे शामिल वायरलैस इंटरनेट एवं ब्राडबैंड, इंटरनेट एक्सेस, कलर कॉपियर,इन हाउस कॉन्फ्रेंसिंग, किराये पर मोबाइल, लैपटॉप, पोर्टेबल प्रिंटर उपलब्ध अनुवाद, दुभाषिया तथा सेक्रेटेरियल सेवाएं , मल्टी मीडिया। अन्य सेवाओं मे 24 घंटे डाइनिंग, बेबी सीटींग, ब्यूटी सैलून, कार हायर, करेंसी एक्सचेंज, ड्राईक्लीनिंग, फ्लोरिस्ट, हाउस डॉक्टर, तथा ट्रैवल सेवाएं आदि।

FAQ

Q: टाटा की सबसे पहला बिजनेस कब, कौन सा किसने किया।

Ans: टाटा का सबसे पहला बीजनेस नौशेरवॉजी टाटा ने 1852 मे बंबई मे निर्यात व्यवसाय का शुभारंभ किया। 29 वर्ष की आयु मे जमशेद जी टाटा ने 1868 मे 21,000 रुपये की पूंजी से एक वेकटिक व्यापारिक फर्म शुरू की। 

Q: टाटा की आज तक कितनी कंपनियां है। ?

Ans: टाटा की आज तक 110 दस कंपनियां हैं।

Q: टाटा की अब तक की सबसे महंगी डील कौन सी थी?

Ans: टाटा की अब तक की सबसे महंगी कोरस स्टील कंपनी की डील थी। जो 12 अरब डॉलर मे हुआ था।

Q: टाटा अपने संपत्ति का कितना प्रतिशत दान करते हैं?

Ans: टाटा अपने समपत्ति की 65.8% दान करती है।   

Q:टाटा ने साइरस मिस्ट्री को अपने कंपनी के चेयरमैन की पद से क्यू निकाला? 

Ans: जापान की डोकोमो कंपनी वर्ष 2009 में जब भारत आई थी तो उसने टाटा के 26% शेयर खरीदे थे। टाटा ने वादा किया था कि जब भी डोकोमो को जाना होगा, जा सकते हैं। तब की मार्केट वैल्यू के हिसाब से उन्हे पैसे दे दिए जाएंगे। कुछ समस्याओं की वजह से जब टाटा टेली सर्विसेज अच्छा काम नहीं कर पा रही थी तो डोकोमो ने वापस जाने का निर्णय किया। तब तक साइरस चेयरमैन का पद पर अग्रसर थे। और उन्होंने आर. बी. आई. की गाइडलाइंस का उपयोग करते हुए पैसे देने से मना कर दिया और वह केस लड़ने लगे। पैसे दे देना उनके हिसाब से अच्छा बिजनेस नहीं था। यह बात डोकोमो को अच्छी नहीं लगी, क्योंकि वह टाटा के नाम पर भरोसा करके उनके साथ काम कर रही थी; क्योंकि टाटा ग्रुप अपनी वैल्यू और कमीटमेंट  के लिए पूरे विश्व मे प्रख्यात है। यह चीज रतन टाटा को भी सही नहीं लगी। यही एक कारण थ साइरस मिस्ट्री को चेयरमैन के पद से हटाने का।

Q: ‘द ट्री ऑफ लाइफ’ क्या है?

Ans: ‘द ट्री ऑफ लाइफ’ 26 नवंबर 2011 को ताज होटल मे मारे गए कुछ विदेशी पर्यटक से लेकर कर्मचारी तक के नाम पर बना एक स्मारक है। जीसे  जयदेव बघेल ने बनाया और 5वी मंजिल की सीढ़ियों के पास स्थापित किया गया। ताकि उन सभी को हमेशा के लिए याद किया जा सके। टाटा ने इतना ही नहीं उन सभी परिवार वालों को हमेशा के लिए खर्चा भी उठाना स्वीकार किया, जो सालाना 30-50 रुपये तक होता है।

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