इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे विक्रम सिंह द्वारा लिखित Bhagat Singh चेतना श्रोत की book review के साथ-साथ biography in hindi और Quotes के साथ-साथ pdf download को भी साझा करेंगे।
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Bhagat Singh: Book review
“भगत सिंह” भारत कोई भी युवा या बुजुर्ग व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जो जानता न हो। और इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण भी है। देश के प्रति अपनी शहादत देकर आजाद कराने का अपना कर्तव्य को निबाहना। 1947 में भारत के आजाद होने के साथ-साथ आपका नाम भी आज़ाद हो गया। आपके नाम से तब भी लोग प्रेरित हुए थे, आज भी हो रहे है, और मुझे लगता ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि जब तक भारत इस ब्रम्हांड में अपनी वजूद बनाए रखेगा और लोग भगत सिंह से प्रेरित होते रहेंगे।
इस किताब को मैपल प्रेस प्राइवेट लिमिटेड ने प्रकाशित किया है।
भगत सिंह के जीवन पर आधारित बहुत से लेख व जीवनियां लिखी जा चुकि हैं परंतु अब तक कोई उपन्यास नहीं लिखा गया। भगत सिंह पर आधारित विक्रम सिंह द्वारा लिखा गया यह पहला उपन्यास है। जो अत्यंत ही रोचक है। विक्रम सिंह ने बहुत ही सहज भाव से इतिहास को साहित्य में परिवर्तित कर दिया है।
इसके विचारों की गति इतनी लुभावनी है कि अगर कोई इसे पढ़ना शुरू करे तो पूर्ण रूप से समाप्त कीए बिना नहीं रुक सकता। लेखक इस बात को प्रदर्शित करने में सफल रहे हैं। कि कैसे गांव का साधारण सा लड़का भगत सिंह एक असाधारण व्यक्तित्व बन गया।
यह उपन्यास बताता है कि भगत सिंह सिर्फ एक सफल क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि एक उच्च दर्जे विचारक व बेहद अच्छे इंसान भी थे। भगत सिंह ने श्री कृष्ण के कथनों अनुसार कर्मयोग को समझा और अर्जुन की भांति सच्ची निष्ठा और लग्न से अपना कर्म करते हुए खुशी-खुशी फांसी के फंदे रूपी दुल्हन को हमेशा-हमेशा के लिए गले लगा लिया।
विक्रम सिंह द्वारा लिखी गई इस किताब की खास बात यह है कि इसमें आपको भगत सिंह के अलावा और भी कांतिकारियों की छवि और कुछ विदेशी आक्रान्ताओं के बारे में भी पढ़ने और जानने को मिलेगा। सारे घटनाओं और पात्रों को बहुत ही सटीकता से एक के बाद एक बैठाया गया है। जो इस किताब को और भी पढ़ने योग्य बनाती है।
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Bhagat Singh: Biography in hindi
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को बंगा जिला, पंजाब में (जो आज के समय पाकिस्तान में है) में हुआ था। आपके पिता का नाम अर्जुन सिंह और माता का नाम विद्यावती देवी है।
जन्म के कुछ दिनों बाद दादी जयकौर ने बच्चे का नाम भागोंवाला रखा लेकिन पिता ने इसे पुराना नाम कहकर दूसरा नाम देते हुए भगत सिंह रखा और ये भी कि भगत सिंह को देश के नाम समर्पित करते हैं। जिसे आगे चलकर पिता की बात को भगत सिंह ने सच कर दिखाया। गायत्री मंत्र से बच्चे का उपनयन संस्कार हुआ। बचपन से ही भगत इतने प्रखर थे कि उन्हे गायत्री मंत्र का पूरा अर्थ पता था, जिसे सुनने के बाद सब उनसे प्रभावित हुए।
भगत सिंह के जीवन पर अपने चाचा और चाची का बहुत प्रभाव पड़ा। एक की तो अंग्रेजों के हाथों मृत्यु हो गई लेकिन दूसरे को अंग्रेजों ने जैल में बंद कर रखा था। जब इन्हे पता चला तो इन्होंने अपने चाची से वादा किया कि वह अपने चाचा को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद जरूर कराएंगे और देश को भी।
पढ़ाई में रुचि होने के कारण उनका दाखिला लाहौर के डि ए वी स्कूल में करा दिया गया। जब स्कूल का अर्द्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उन्होंने उसे बताने के लिए अपने दादाजी को पहली बार एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने सकुशल हाल-चाल और परीक्षा के परिणाम को भी बताया।
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भारतीयों पर अंग्रेजों द्वारा ढाहे जा रहे खबर पर उनकी पल-पल नज़र रहती थी। गांधी जी द्वारा सत्याग्रह आंदोलन के लिए जालियावाला बाग में लोग इकट्ठा हुए थे तो जनरल डायर द्वारा नर संघार किया गया। और हजारों लोग मारे गए। इससे भगत सिंह बहुत आहत हुए।
जालियावाला बाग कांड से आक्रोशित देशवासियों ने खून का बदला खून से लेने के कारण जब चौरी-चौरा कांड हुआ तो गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया, जो देश के नए आक्रोशित युवाओं को यह बात अच्छी नहीं लगी कि उन्होंने बिना किसी से कुछ पूछे बगैर इतने बड़े आंदोलन को एक झटके में खत्म कर दिया।
भगत सिंह के जीवन पर करतार सिंह का बहुत बड़ा असर पड़ा, जिन्होंने मात्र 19 साल के उम्र में ही अपनी जान देश के लिए न्योछावर कर दी। उस समय देश के लिए मर-मिटने वाला ऐसा कोई भी नहीं था, जो करतार सिंह के बारे में न जानना चाहता हो। उन्ही में से एक भगत सिंह थे। भगत सिंह ने करतार सिंह की चर्चा अपने पिता से की।
पिता ने जन्म से लेकर करतार सिंह द्वारा अमेरिका में बनाए गए गदर पार्टी तक का बात बताया लेकिन अपने ही किसी चुगलखोर द्वारा अंग्रेजों के हाथों करतार सिंह पकड़े गए और उन्हे फांसी की सजा दी गई। तब से भगत सिंह ने करतार सिंह की मार्ग पर चलने की ठान ली और अंग्रेजों के खिलाफ अपनी बिगुल भी बजा दिया।
भगत सिंह को यह बात बहुत रोचक लगती थी कि आखिर भारत अंग्रेजों का गुलाम कैसे बन गया। जो एक समय सबसे अमीर और उच्च कोटी का हुआ करता था। जिसे जानने के लिए भागात सिंह लाइब्रेरी से बहुत सारी किताबें घर लेकर आते थे और जब पढ़ने बैठते तो भूख-प्यास सब मर जाता। जिसे लेकर माँ को चिंता होने लगी। पूछने पर भी कहते कि वह देश के लिए समर्पित होना चाहते हैं।
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माँ को यह बात सोने नहीं देती थी। जिसके लिए उन्होंने भगत सिंह की शादी करने की सोची। यह भनक जैसे ही भगत सिंह के कानों में पड़ी वह तुरंत अपने पिता के लिए एक पत्र लिख, घर-बार छोड़कर कानपुर भाग गए। उस समय कानपुर एक राजनैतिक केंद्र बन चुका था। अपनी जीविका चलाने के लिए उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी से मुलाकात की और उनके माध्यम से एक संपादक का काम करने लगे।
कानपुर में उनकी मुलाकात बहुत से ऐसे कांतिकारियों से हुई, जो हर हाल में अंग्रेजों को मार भगाने का काम करते थे, जिनमें चंदशेखर आज़ाद, कामरेड शिव वर्मा, कामरेड जयदेव कपूर व कामरेड अजय घोष मुख्य थे।
कुछ वक्त बितने के दौरान भगत सिंह के पिताजी उन्हे ढूंढते हुए आ गए। भगत सिंह ने उन्हे समझाया कि वह शादी नहीं करेंगे। जब पिता ने यह बात स्वीकार कर ली तब भगत सिंह घर आने का वादा किया और कुछ दिनों बाद ही घर को चले गए। लेकिन उसके बाद उनके घर के किसी सदस्य ने कभी भी शादी को लेकर कोई चर्चा नहीं किया।
साइमन कमीशन वापस जाओं का नारा जब लाला लाजपत राय ने बुलंद किया तब अंग्रेजों ने उनके सर पर लाठी से प्रहार कर दिया और नतीजा ये हुआ कि 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई। जिसके बाद पूरे देश में कोहराम मच गया और पुलिस ने पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया।
उसी रात भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव चंद्रशेखर आज़ाद, जयगोपाल आदि सदस्यों की मीटिंग कामरेड भगवती चरण वोहरा के घर हुई और लालाजी को मारने वाले स्कॉट को मारने का प्लान बनाया गया। पर अफसोस कि उसके बदले दूसरा अधिकारी मारा गया।
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इन्हे आतंकवादी न समझा जाए इसलिए भगत सिंह ने अपने साथियों के इस संगठन को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी नाम दिया। इसी नाम से हर जगह पर्चे बाटें गए और यह बताया गया कि लालाजी का बदला ले लिया गया है। अंग्रेजों ने इस ग्रुप को बहुत पकड़ने की कोशिश की पर कभी सफल नहीं हुए। और इन्हे आतंकवादी संगठन घोषित करने में लगे रहे।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी को कोई आतंकवादी संगठन न समझा जाए इसके लिए सबने मिलकर एक योजना बनाई, जिसमें भगत सिंह ने अपने को बलिदान देने का सुझाव दिया। चंद्रशेखर आज़ाद की नेतृत्व में इसे मान्यता दी गई और भगत सिंह ने एक युक्ति बताई।
केन्द्रीय दिल्ली असेंबली में भगत सिंह और बटूकेश्वर दत्त ने अंग्रेजी वेश-भूषा में पत्रकार का किरदार निभाते हुए पहुंचे और असेंबली के बीचों-बीच एक एक बाद एक दो छोटे बम मारा। उसके बाद तो जैसे असेंबली में तहलका मच गया। और दोनों ने अपने को पुलिस के हवाले सरेंडर कर दिया। यह बात किसी चमकती प्रकाश की तरफ देश-विदेश के कोने-कोने में फैल गई।
धीरे-धीरे सबको पकड़ा गया और सब काल-कोठारी में डाल दिए गए। आज़ाद जब भगत और बटूकेश्वर को छुड़ाने ने लिए अपनी योजना बना रहे तभी किसी अपने ही नमकहराम ने चंद पैसों के लिए अंग्रेजों से मुखबिरी कर दी। उसी दिन कुछ क्रांतिकारी मारे गए और आजाद ने भी अपने ही हाथों मातृ भूमि की सेवा में न्योछावर कर दिया।
मामला कोर्ट में पहुंचा कुछ विरोधी दल भी आए और अंग्रेजों के दवाब में आकर उन्होंने उल्टा-पुलटा, गलत-सही बयान दे दिया। भगत सिंह ने अपने वाकतव्य से कोर्ट को और वहाँ उपस्थित लोगों को प्रभावित तो किया लेकिन उन्होंने उनकी एक न सुनी और फांसी की सजा सुना दी गई।
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कोर्ट ने 24 मार्च, 1931 को भगत सिंह और उनके अन्य साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन कहीं कोई बड़ी घटना या भारतीयों का जन समूह न उमड़ पड़े, इसके डर से अंग्रेजों ने 23 मार्च, 1931 को रात 07:30 बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया।
लेकिन भगत सिंह द्वारा दिया गया नारा “इंकलाब ज़िन्दाबाद” जैल के कोने-कोने में गूंज उठा और सबकी आंखे नम हो गई।
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
एक साल बाद 1913 में कैलिफोर्निया में मौजूद बहुत से भारतीयों ने मिलकर गदर पार्टी बनाई। गदर पार्टी का उद्देश्य ‘भरत को गुलामी से मुक्ति’ और अमेरिका जैसी लोकतान्त्रिक प्रणाली स्थापित करना था। नवंबर 1913 में गदर नाम से पहला साप्ताहिक पर्चा निकला जिसमें संगठन के उद्देश्य की जानकारी दी गई।
करतार सिंह ने इस पर्चे पर लिखा ’आज विदेशी धरती पर गदर शुरू होता है। पर हिन्दुस्तानी जुबान में यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ है।’
गदर के पर्चों के माध्यम से गुलाम भारत की दुर्दशा के बारे में बहुत कुछ लिखा गया। इन पर्चों के माध्यम से हथियार बनाने व प्रयोग करने की विधि बताई जाने लगी। पहले ही पन्ने पर लिखा होता ’अंग्रेजी हुकूमत के दुश्मन’ हमें चाहिए बहादुर सिपाही। तनख्वाह-मृत्यु। इनाम-शहादत। पेंशन-आज़ादी। युद्ध का मैदान भारत।
“भारतीय दर्शन कहता है कि प्रकृति स्त्री है, ईश्वर पुरुष! ईश्वर ही प्रकृति को चलाता है। प्रकृति ईश्वर की माया आहै। तुम क्या कहते हो?” दुर्गा ने पूछा।
“नहीं, वैज्ञानिक सोच यह कहती है इस ब्रम्हांड में परस्पर विरोधी चीजें हैं, जैसे दिन-रात या अंधेरा-उजाला, अच्छाई-बुराई, स्त्री-पुरुष आदि, पर पहली चीज दूसरी चीज से बड़ी नहीं हो सकती। जैसे दिन और रात; दोनों बराबर हैं। तो यह कहना कि दिन रात पर नियंत्रण करता है, ठीक न होगा। इसी तरह ईश्वर अगर हो तो भी वह प्रकृति से बड़ा व शक्तिशाली नहीं होंगी। वह इसके बराबर ही होगा। इसी तरह पुरुष स्त्री में बेहतर नहीं है, वह उसके समान है। ”
Bhagat Singh: Quotes
चरित्र ही एक पूंजी है जो सदा हमारे साथ रहती है।
Bhagat Singh
संकटकाल व शक्तिशाली अवस्था में कोई क्या निर्णय लेता है इस बात से उस व्यक्ति के चरित्र का पता चलता है।
Bhagat Singh
वर्तमान पर ही भविष्य टीका है।
Bhagat Singh
ये भी जानना चाहिए कि हमारे अपने नियंत्रण में सिर्फ वर्तमान है, भविष्य या भूतकाल नहीं।
Bhagat Singh
जिसने पढ़ना छोड़ दिया समझो उसने जीवन जीना छोड़ दिया।
Bhagat Singh
लेखक के शब्दों पर कभी भी आँख मुंड कर विश्वास नहीं करो।
Bhagat Singh
नए विचारों को आजमाओं। फिर स्वयं के विचारों के साथ विचारों को परखो।
Bhagat Singh
शिक्षा से भाषा की निपुणता भी आती है।
Bhagat Singh
व्यक्तित्व के निखार के लिए सिर्फ एक भाषा की निपुणता की बात नहीं करनी चाहिए।
Bhagat Singh
किसी भी भाषा की निपुणता उस भाषा के शब्दों के प्रयोग से आती है।
Bhagat Singh
भाषा व ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं।
Bhagat Singh
जब तक देश एक विचारधारा से नहीं सोचेगा ऐसे ही गुलाम रहेगा।
Bhagat Singh
हर वह दिन एक अति शुभ दिन है जब हम संकल्प के साथ कार्य करते हैं।
Bhagat Singh
कोई भी बड़ा काम संगठन के बिना नहीं होता।
Bhagat Singh
शिक्षा हमारा ज्ञान ही नहीं, बल्कि हमारी कल्पनाशक्ति भी बढ़ाती है।
Bhagat Singh
शिक्षा से हमें कई वो रास्ते दिखते हैं जो साधारणतया हम नहीं देख पाते।
Bhagat Singh
शिक्षा से हमारे जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है।
Bhagat Singh
धर्म से बड़ा देश होता है। मातृभूमि होती है।
Bhagat Singh
जीवन की प्रेरणा हमें अपने अंदर से ही मिलती है।
Bhagat Singh
जब हम अपनी स्वयं की आवाज सुनने लगते हैं तो हम स्वतः प्रेरित होने लगते हैं।
Bhagat Singh
कर्तव्य की भावना कि कोई तुम्हें आकर तुम्हारा कां नहीं बताएगा। हम स्वयं आगे बढ़कर अपना कर्तव्य पूरा करेंगे।
Bhagat Singh
बिना पुरुषार्थ के कुछ प्राप्त नहीं होता।
Bhagat Singh
प्रेम हमेशा चरित्र को बड़ा व ताकतवर बनाता है कमजोर नहीं।
Bhagat Singh
सच्चा प्रेम पैदा नहीं किया जा सकता वह अपने आप प्रकट होता है।
Bhagat Singh
बिना सम्मान के जीवन व्यर्थ है।
Bhagat Singh
जब आप चीजों को लिखते हो तो आप विचारों में केंद्रित हो जाते हो, आपका फोकस बढ़ जाता है।
Bhagat Singh
सही बात सही वक्त पर सही लोगों को कहनी चाहिए।
Bhagat Singh
जब मनुष्य सच्चे आदर्शों की प्रेरणा से वंचित रह जाएगा तब उसका पतन हो जाएगा।
Bhagat Singh
‘विश्वास’ कष्टों को हल्का व सहने लायक बना देता है।
Bhagat Singh
ईश्वर में मनुष्य को बहुत ज्यादा सांत्वना देने वाला एक आधार मिल जाता है।
Bhagat Singh
प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है।
Bhagat Singh
सफलता तो संयोग व वातावरण पर निर्भर करती है।
Bhagat Singh
अंधविश्वास खतरनाक चीज है। यह दिमाग को सुस्त व मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है।
Bhagat Singh
हमारा देश ही हमारा परिवार है।
Bhagat Singh
हमें मरने से बचाने की बजाय जीना सीखना चाहिए।
Bhagat Singh
जीवन सांस लेना नहीं है बल्कि कर्म कारण आहै।
Bhagat Singh
अपनी हर इंद्री, हर यंग, मन-मस्तिष्क, हर योग्यता का प्रयोग ही हमें पूर्ण जागरूक बनाता है।
Bhagat Singh
जागरूक बनना हमारा अपने प्रति कर्तव्य है जो संसार के हर कर्तव्यों से बड़ा है।
Bhagat Singh
शिक्षा ही तुम्हें सही रास्ता दिखा सकती है।
Bhagat Singh
सन्यासी, स्वामी या महात्मा बनने से बेहतर है मातृभूमि के लिए निस्वार्थ बलिदान देना।
Bhagat Singh
FAQ
Q भगत सिंह चेतना श्रोत का लेखक कौन है?
“विक्रम सिंह” भगत सिंह चेतना श्रोत के लेखक हैं।
Q भगत सिंह अपने जीवन में सबसे ज्यादा किससे प्रभावित थे?
भगत सिंह अपने जीवन में सबसे ज्यादा सरदार करतार सिंह सराभा “जिन्होंने ने अमेरिका के कैलिफोर्निया में गदर पार्टी का निव रखा था।” से प्रभावित थे।
Q भगत सिंह के क्रांतिकारी पार्टी का नाम क्या था?
भगत सिंह के क्रांतिकारी पार्टी का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी” था।
Q हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के मुख्य सदस्य कौन-कौन थे?
चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और बटूकेश्वर दत्त हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के मुख्य सदस्य थे ।
Q भगत सिंह को पहली बार जैल कब हुआ?
8 अप्रेल, 1929 को केन्द्रीय असेंबली दिल्ली में बम फोड़ने के बाद भगत सिंह और बटूकेश्वर दत्त ने पुलिस को सरेंडर कर दिया। जिसके बाद दोनों को जैल हो गई।
Q भगत सिंह को कब फांसी दी गई।
23 मार्च, 1931 को से 07:30 बजे भगत सिंह और अन्य साथियों को फांसी दी गई।
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