इस ब्लॉग पोस्ट मे हम आपसे Allahabad Dairy की book review और summary in hindi के साथ-साथ quotes और pdf download भी साझा करेंगे।
Table of Contents
Allahabad Dairy: Book Review
“इलाहाबाद डायरी: एक गैर मामूली दास्तान।“ वीरेंद्र ओझा द्वारा लिखित एक उपन्यास है। जिसे हिन्द युग्म ने जुलाई 2022 मे प्रकाशित किया था। और आज तक इसका दूसरा संस्करण भी पाठकों को तेजी से वितरित किया जा रहा है। ओझा द्वारा लिखित यह उपन्यास यूपीएससी की तैयारी करने वालें एसपेरेंट छात्रों के लिए मार्गदर्शन साबित करती है।
आपने बहुत सारे ऐसे लेखकों द्वारा यूपीएससी पर लिखी गई उपन्यासों को पढ़ा होगा, जैसे डार्क हॉर्स, टवेल्थ फैल, कभी गांव, कभी शहर, यह भी उसी तरह है लेकिन फिर भी उन उपन्यासों से थोड़ा अलग है। पिछले सभी रचनाओं ने यूपीएससी की तैयारी करने और उस पर विजय हासिल करने को बताया गया है लेकिन यह उपन्यास सिर्फ और सिर्फ इंटरव्यू पर आधारित है।
इलाहाबाद डायरी का मुख्य पात्र अनुराग शर्मा प्रारम्भिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा को पास कर चुका है लेकिन उसे सबसे ज्यादा डर, होने वाले इंटरव्यू की है। जिसे निकालने के लिए उसे बहुत ज्यादा तिगड़म, दाव-पेंच और होशियारी करनी पड़ती है। शुरुआती शिक्षा हिन्दी माध्यम होने कारण उसे बहुत सारे परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वो हार नहीं मानता है और दिन-रात मेहनत करता रहता है ताकि उसकी माँ उसे आईएएस की वर्दी मे देख सके। जो उसका भी सपना है।
आजकल नए लेखकों द्वारा लिखी जा रही यूपीएससी पर रचनाएं बहुत चर्चा बटोर रही हैं। और यह सही भी है। लेखक ने इसका निर्माण इतनी शानदार तरीके से किया है कि आपको इसमें अपने माँ की बेटे से जित तहे दिल से सम्मान करती है उसी तरह वह एक आई पी एस की भी करती है। अपने उपन्यास में थोड़ा सा शृंगार करते हुए लेखक ने बीच-बीच में कविता, संवादों के बीच शायराना अंदाज पाठकों के लिए एक रिचिकर साबित होता है।
ऐसे रचनाएं पाठकों का मार्गदर्शन भी करती है और मनोरंजन भी। मेरे ख्याल से आपको यह उपन्यास एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए। मुझे यह उपन्यास बहुत अच्छी लगी, उम्मीद है आपको भी अच्छी लगेगी।
आप हमें कमेंट कर बता सकते हैं।
यह भी अवश्य पढ़ें:- कभी गांव काभी कॉलेज
Allahabad Dairy: Summary in hindi
इलाहाबाद शहर के किसी कोने में किराये के मकान में रहते हुए अनुराग शर्मा ने हिन्दी माध्यम से ही अपनी प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर बीएससी और फिर विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री तक को ग्रहण किया। पिता एक छोटे से सरकारी कर्मचारी थे, जिससे रोज का खानाबदोश ज़िंदगी में सुबह-शाम की दो वक्त की रोटी आराम से मिल जाया करती थी।
पर ऐसे ज़िंदगी कब तक चलता। पिता का भी दबाव था और माँ का आशीर्वाद। बल्कि माँ ने अपने मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूरे जीवन भर में कीए हुए सारे पूजा-पाठ के फल को यह कह कर ठुकरा दिया कि मुझे मोक्ष नहीं, बल्कि तेरे शरीर पर आईपीएस की वर्दी चाहिए।
होनी को भी यही मंजूर था। पर यह इतना आसान नहीं था। अब इसे संजोग कहें या सबके कर्मों का फल। अनुराग ने इंटरमिडीएट करने के बाद बहुत सारे प्रतियोगी परीक्षा में भाग लिया पर किसी भी में सफलता हासिल नहीं हुई। दूसरा तो दूसरा, वह खुद को फेलियर मानने लगा था और इलाहाबाद की गालियां भी उसे भगा दिया करती थी। पर कदम किसी तरह विश्वविद्यालय में वकालत की डिग्री तक जा रुका। इलाहाबाद की गलियों में सुबह की सोंधी खुशबू न जाने कहाँ से सिविल सेवा की ओर ले गई। और यह मतवाला उस ओर मुड़ गया।
बहुतों ने बहुत समझाया कि यह रास्ता आसान नहीं है पर इसने सुना नहीं किसी का। और अपनी वाली करता ही गया। बल्कि इसके मामा ने भी बहुत समझाने की कोशिश की क्योंकि अनुराग से भी तेज उसने लड़के-लड़की ने भी यह परीक्षा पास नहीं कर पाया था। पर अनुराग ने किसी एक की एक न सुनी। पिता ने तो बेटे से बात करना ही बंद कर दिया।
पूरे समाज में किसी को किसी पर विश्वास हो या न हो, पर माँ को अपने बेटे पर विश्वास जरूर होता है। अनुराग ने मेहनत की और साथ में माँ ने अपने जीवन भर कीए हुए पूजा-पाठ से मिले मोक्ष जैसे फल को ठुकरा कर बेटे को आईपीएस बनने का आशीर्वाद दे दिया।
अनुराग ने शहर में ही होने वाले कोचिंग को ज्वाइन किया और अपने सीनियरों से कुछ शिक्षा और उनका मार्गदर्शन लेते हुए परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। उस तैयारी में ईमानदारी के साथ किया गया मेहनत इतना था कि पहले ही साल यूपीएससी की प्रारम्भिक परीक्षा पास कर लिया। और तो और मेंस भी क्लियर हो गया।
घर-गांव, गली-मुहल्ला, नुक्कड़-रास्ते, कोचिंग से लेकर विश्वविद्यालय तक ये हल्ला हो गया कि अनुराग बाबू आईएएस बन गए। बल्कि मामा जी, जो कल को मना करते थे वो आज अपने साढ़ू के लड़की की रिश्ते लेकर चले आए।
इंटरव्यू दिल्ली होना था। जिसके लिए अनुराग एक सप्ताह पहले ही पहुँच गया। दिल्ली में एक सप्ताह तक ठहरने के लिए माँ ने अपने बचपन की सहेली के यहाँ का पता देकर भेज दिया। वह पूसा इंस्टीट्यूट में काम करती थी। वह विधवा थी पर उनका एक लड़का था, जो उनके साथ नहीं रहता था। वह अमेरिका में एक इंजीनियर था। और डॉलर छापता था।
आंटी का मन अनुराग पर इतना मोहित था कि वह अपने बेटे से भी ज़्यादा हो गया। पहला कारण यह था कि वह अपने जीवन में अकेली थी, जिसे कुछ दिन तक सुनने वाला मिल गया था, और दूसरा ये था कि अनुराग की माँ के साथ बचपन से सपना था कि दोनों अपने लड़के या लड़की को आईएएस की तैयारी कराएंगी पर ऐसा न हो सका।
पहले पहल तो लड़के ने स्वीकार किया और दिल्ली आईआईटी में इंजनीयरिंग के साथ-साथ तैयारी भी करता था, पर अचानक उसने मना कर दिया और नौकरी मिलते ही अमेरिका चल गया। और ऐसा बहुत कम ही होता है कि जो अमेरिका सेटल हो जाता है, उसके अपने देश लौटने के चांस बहुत कम होते हैं। माँ का सपना, सपना ही रह गया। लेकिन अनुराग की छोटी सी दीपक ने उसके घर को उजाले से भर दिया था, जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित थी।
अनुराग उनके मन की व्यथा को बहुत ही दिल लगा कर सुनता था और उन्हे समझने की कोशिश करता था।ऐसे ही धीरे-धीरे एक-एक दिन बीतते गए और अनुराग यूपीएससी जाकर वहाँ के छात्रों और शिक्षकों से इंटरव्यू में पूछने वाले सवालों पर चर्चा किया करता था। पहनावा पर चर्चा होता था। कौन से इंटरव्यूवर कौन से बैच का इंटरव्यू लेते थे, यह सब पता चलता था।
इन सब बातों से परिचित होकर अनुराग ने एक इंटरव्यू को निकलाने के लिए अपने लिए एक व्यूह की रचना किया। उसे पता था कि आपने जो भी अपने परीक्षा फार्म में भरा होता है उसी से जवाब-सवाल कीए जाते हैं। और उसके बदले आप जो भी जवाब देते हैं, फिर उसी से दूसरे सवाल पनपते हैं।
अगर आप ऐसा कोई तोड़ निकाल लेते हैं तो पूरा इंटरव्यू अपने कंट्रोल में होगा। इंटरव्यू के दिन अनुराग तैयार होकर आंटी का आशीर्वाद लेने के बाद यूपीएससी ऑफिस पहुचता है। जहां पहले से ही बहुत सारे लड़के और लड़कियां मौजूद होते हैं।
अनुराग की जब बारी आती है तो उसका इंटरव्यू ठीक उसी तरह जाता है, जिस तरह उसने व्यूह की रचना की होती है। लेकिन उसी दौरान उसकी नजर एक बोर्ड मेम्बर की तरफ जाती है, जो सिर्फ और सिर्फ उसे ही देखते रहते हैं और अपने बाजू में बैठे साथी से कुछ कहते हैं। जिसके बाद इंटरव्यूवर की सवाल अचानक बदल जाता है और कुछ इधर-उधर के सवाल पूछे जाने लगते हैं। जिसे अनुराग साफ शब्द में मना कर देता है।
इंटरव्यू खत्म होने के बाद पता चलता है कि उसी के कॉलेज से निकली सुरुचि मिश्रा का इंटरव्यू सबसे अच्छा हुआ है। क्योंकि उसका माध्यम अंग्रेजी से था। और जो सवाल उससे पूछे गए वह ठीक वही सवाल अनुराग से भी पूछे गए थे, जिसका जवाब अनुराग ने नहीं दिया और सुरुचि ने बिल्कुल सही और सटीक जवाब दिया। दो-चार सवाल और भी होते हैं, जिसका जवाब अनुराग नहीं दिया होता है।
अब इस बात को लेकर उसके मन में संशय होने लगती है। कि पता नहीं क्या होगा। बल्कि उसने यहाँ तक सोच लिया होता है कि इस बार नहीं निकलेगा। तो क्यों न अगले साल की तैयारी की जाए। रिजल्ट एक महीने बाद आने वाली होती है, तब तक अनुराग अपने घर को लौट जाता है। और वहाँ के शिक्षकों और कोचिंग सेंटर पर आना-जाना लगा रहता है। कि एक महिना कब गुजर जाता है, उसे पता ही नहीं चलता।
रिजल्ट डिक्लेयर होती है और अनुराग पास कर चुका होता है। सुरुचि मिश्रा को 49वी रैंक और अनुराग को 102-107 के बीच रैंक मिलता था। जिसके बाद पूरे मोहल्ले में खुशी का मौहौल होता है। हर जगह होर्डिंग लग जाती है। चारों तरह अनुराग का चर्चा होने लगती है। अनुराग के माँ की मुराद पूरी होती है। पिता भी अपनी भीगी आँखों से बेटे को गले लगा लेता है, उसे गर्व होता है कि बेटे ने उन्हे गलत साबित कर दिया।
यह भी अवश्य पढ़ें:- तवेल्थ फैल: आईपीएस बनने की एक संघर्ष भरी कहानी।
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
मैं जीवन में कुछ करना चाहता हूँ। मेरे कदमों के निशान पर बहुत से लोग और चलें, लोग यह कह सकें कि यह जो राख दिख रही वह उस चिराग की है जिसने अपने को जलाकर रात को रौशन किया था।
आंटी- अनुराग, मेरी ख्वाहिशों का बोझ भी अब तुमको उठान होगा। कई बार अपने खून से ज्यादा धड़कने उस पर भरोसा करती हैं जिस पर रक्त को यकीन होने लगता है। तुम कितनी भी ख्वाहिशें पौरी करों हर एक के अंदर एक ख्वाहिश तुमको तड़पती दिखेगी। तुम हो ही ऐसे, ईश्वर तौफीक भी देखकर ही देता है। उसने अगर तुमको तौफीक दी है तो तुम्हें उसके निर्देशों का पालन भी करना होगा।
तुम समुंदर हो अगर तो तुम्हें साहिल पर बने बच्चों के घरौंदों को सहेजने की जिम्मेदारी भी है। तुम लहरों को किनारों की तरफ हौले-हौले भेजों ताकि वह घरौंदों को छूकर निकल जाए और अबोध बच्चे कह सकें समुंदर की लहरे घरौंदों से खेलने आती है।
तुम अगर बेवजह भी किसी को खत भेज दोगे तो उस खत में अपने ख्वाबों की ताकिर तलाशने लगेंगे। तुम मेरे साथ रहे तो कुछ ही दिन हो पर वह सारे दिन यादगार हैं मेरे लिए। तुम्हारी माँ सब एक संस्कारों के गांव से आयें थे । हमारे पूर्वजों ने पीढ़ी-डर-पीढ़ी संस्कारों को जंबील की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरित किया, उर्मिला ने तो पूरी सजीदगी से उसकों सँजोया और तुम्हारे लहू के रेशे में पिरो दिया।
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
अनुराग शर्मा-
अनुराग एक स्वाभिमानी और संवेदनशील लड़का है। उसे अपने पिता की हालत माँ की ममता से प्यार है। वह होशियार है। उसे अपने हद में रहते हुए किसी कां को करना आता है। उसे दूसरों की मान-मर्यादा का भी ख्याल है। उसे अपने ऊपर आत्मविश्वास तो है, लेकिन उसे उसका कोई घमंड नहीं है। वह ठीक किसी साधारण मानव की तरह ही है, जो भावनाओं में बहते तो है, पर कीयतन आबहना है, उसका भी खयाल रखते हैं।
आंटी-
पुसा इंस्टीट्यूट में काम करने वाली आंटी अनुराग की माँ की बचपन की दोस्त हैं। जिसने अपने बेटे को भी आई ए एस बनाने का सपना देखा था, पर लड़के ने इंजनीयरिंग करना सही समझा और आज उसे छोड़कर इंग्लैंड में रहता है। आंटी को अपनी ममता से लगाव तो है, लेकिन वह अनुराग को भी अपने बेटे से कम नहीं मानती। जो उनके भी ख्वाबों को पूरा केरने के लिए बीड़ा उठाता है।
चिंतन सर-
इस पूरे उपन्यास में तीसरा सबसे शानदार पात्र मुझे चिंतर सर लेग। इनके बारे में पढ़ते हुए और इनके संवाद को पढ़ते हुए मुझे दबंग की चुलबुल पांडे की याद आती है। संस्कृत से पढ़ाई करने के कारण पांडित्य तो है लेकिन मजाकिया भी है। उन्हे अपनी ड्यूटी करनी आती है। लेकिन उन्हे लोगों की पहचान है। वह अनुराग उसकी माँ और आंटी का सम्मान भी करते हैं।
Allahabad Dairy: Quotes
यहाँ शहर में सैलाब की ख्वाहिश तो सबको है पर दरिया कोई नीचे उतारकर लाना नहीं चाहता।
Allahabad Dairy:
दूसरे का दुख-दर्द देखकर कई बार अपना दर्द कम लगाने लगता है।
Allahabad Dairy:
इतिहास सबका इंतजार करता है, जो भी इसे लिखने की कोशिश करता है।
Allahabad Dairy:
ज़मीर के साथ शास्त्रार्थ बहुत ही कठिन होता है।
Allahabad Dairy:
तुम मत बाध्य करो मुझे उस घोड़े की रास पकड़ने को जिसकी जिन चढ़ाने की कला मुझे नहीं सिखाई गयी।
Allahabad Dairy:
ख्वाब एक खिलोना है जो हमें हर रोज़ मिलता है।
Allahabad Dairy:
मैने भी चाहा था शबनामी स्याही से अपना मुकद्दर लिखना पर बेलिखे मुकद्दर की ख्वाहिश सबकी होती है पर यह एक सराब है, दिखता जरूर है हमें, पर मिलता नहीं है।
Allahabad Dairy:
इन विज्ञान के विद्यार्थियों को राष्ट्रीय आंदोलन ठीक से पढ़ाया जाना चाहिए।
Allahabad Dairy:
ख्वाहिशों के बोझ तले दबा आदमी स्वतंत्र नहीं होता।
Allahabad Dairy:
असफलता कई बार बहुत ही नायाब द्वार खोल देती है।
Allahabad Dairy:
अगर एक हाथ का ज़हर नासूर बनकर पूरे शरीर में फैल रहा हो तो उसे काट देना ही बेहतर है।
Allahabad Dairy:
अभिव्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण जीवन है।
Allahabad Dairy:
हर बार जरूरी नहीं है अल्फ़ाज़ अपनी बात कहें। आँख की भाषा होती है, चेहरे की अभिव्यक्ति होती है।
Allahabad Dairy:
FAQ
Q इलाहाबाद डायरी का लेखक कौन है?
इलाहाबाद डायरी का लेखक वीरेंद्र ओझा हैं।
Q इलाहाबाद डायरी का प्रकाशक कौन है?
इलाहाबाद डायरी का प्रकाशक हिन्दी युग्म है।
Q इलाहाबाद डायरी का पहला संस्करण कब प्रकाशित हुआ था?
इलाहाबाद डायरी का पहला संस्करण जुलाई 2022 को प्रकाशित हुआ था
Q इलाहाबाद डायरी किस पर आधारित है?
हिन्दी माध्यम से पढ़ाई करने के बाद यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बड़ा इंटरव्यू की तैयारी के लिए अनुराग शर्मा के जद्दोजहद जीवन पर आधारित है।
pdf download
नीचे दिए गए print बटन पर क्लिक करें और save as pdf पर क्लिक करें।