Aadmi Banne Ke Kram Main Poetry Book in Hindi

Review of Aadmi Banne Ke Kram Main Poetry Book in Hindi by Ankush Kumar

Review of Aadmi Banne Ke Kram Mein Poetry Book in Hindi by Ankush Kumar. हिंदीनामा के संपादक-सस्थापक अंकुश कुमार ने अपने कलम से एक बहुत ही सुंदर कविता-संग्रह की रचना की है। जिसका नाम उन्होंने “आदमी बनने के क्रम में” रखा है।

Review of Aadmi Banne Ke Kram Main Poetry Book in Hindi

“आदमी बनने के क्रम में” अकुश कुमार की पहली कविता-संग्रह किताब है। जिसे हिन्द युग्म ने प्रकाशित किया है। किताब कवर के अंदर अंकुश ने जितने भी कविता को छिपा रखा है, उन्हे आज़ाद करने पर सभी कविताओं ने चीख-चीख कर लोगों से आदमी बनने के क्रम में ही अपील की है। कविताएं बहुत सारे कवियों द्वारा लिखी-पढ़ी जाती हैं लेकिन ऐसी बहुत कम ही कवि देखने-पढ़ने को मिलते हैं, जो अपने लिखे के माध्यम से पाठकों से बात करते हैं। कुछ सलाह देते हैं तो कुछ डांट-डपट भी देते हैं। अंकुश की कविता मुझे पढ़ते वक्त ऐसी ही लगी।

अंकुश द्वारा लिखी गई यह कविता-संग्रह किताब बाकी कवियों द्वारा लिखी गई कविता-संग्रह से बहुत ही अलग है। इसकों पढ़ने के दौरान बहुत कम ही ऐसा लगा कि मेरे हाथ में कविता-संग्रह नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी घटनाओं का एक दो-चार लाइन में समेटा गया वाक्य है। जिसे आप आसानी से पढ़ते हुए एक-एक अक्षर को बड़े ही आसानी से समझ सकते हैं।

“आदमी बनने के क्रम में” अंकुश की कविता-संग्रह के साथ-2 अपना उनका परिवार भी मौजूद है। जिसमें मा-बाप गावं, घर समाज, पेड़-पौधे सब मौजूद हैं और अंकुश को अपना लायक बेटा या एक अच्छा साथी मानते हुए उनसे अपनी व्यथा व्यक्त करते हैं। जिसे अंकुश बखूबी सुनने के बाद अपनी कलम से इस किताब के माध्यम से दुनिया-समाज से उनके संरक्षण के लिए अपील करते हैं। उस दलील को सुनने वाले तो बहुत हैं, जो वाह-वाही करेंगे, लेकिन अमल कौन करेगा? ये देखना दिलचस्प होगा।

अपनी नंगी आँखों से देखे गए समाज को मन की उमड़ती भावनाओं को लोक-समाज के सामने व्यक्त करने वाले बहुत सारे आर्टिस्ट मिलेंगे। जैसे कि समाज की फ़ोटो लेने वाले फोटोग्राफर, पेंटिंग करने वाले पेंटर, घटनाओं को लिखने वाले लेखक और कवि। लेकिन वो अपनी कला में तभी निपुण समझे जाते हैं, जब अपनी मन में महसूस की गई भावनाओं को लोगों के सामने वैसा ही दिखा, सुना या पढ़ा सकें। और इस कविता-संग्रह के माध्यम से कवि अंकुश ने बखूबी किया है। जो की बहुत ही सराहनीय है।    

Summary of Aadmi Banne Ke Kram Main Poetry Book

गीत चतुर्वेदी के माध्यम से अंकुश अपने इस कविता-संग्रह में खुद के अलावा पूरा परिवार है, माँ-बापू-बीवी-बच्चे है, नींबू-खीरा-चाय-बिस्कुट हैं, मित्रगण हैं, अजनबी लोग हैं, आबाद दुनिया है, लेकिन अकेलेपन का एक एहसास अनवरत चलता रहता है। ऐसी कई स्थितियाँ बनती है, जहां कविता का नरेटर खुद को अकेला पाता है।– कुछ जगहों पर वह अपने अकेलेपन को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर देता है, तो कुछ जगहों पर मौन के ज़रिए। तब एक काव्यात्मक प्रश्न मन में उठता है- जब बाहर की भीड़, बाहर के बजाय, हमारे भीतर रहने लगती है, तब अकेलापन कही ज़्यादा महसूस होता है।

मेरे तरफ से-  

अंकुश की जो कविता लिखने का तरीका है, बड़ा मजेदार है। पढ़ते वक्त कभी-2 ऐसा लगा कि मैं कोई शेर पढ़ रहा हूँ, तो कभी-कभी बस किसी चीज के बारे में एक गंभीर वाक्य। अंकुश को पढ़ना बहुत ही आसान और समझना और भी आसान है। मैने एक बार थोड़ी कोशिश कि की कुछ चुनिंदा कविता के बारे में कुछ लिखूँ, लेकिन थोड़ा बहुत लिखने के बाद ऐसा लगा कि जो मैं लिख रहा हूँ वो खुद कविता में लिखा हुआ है। फिर मैने उसे नहीं लिखा।

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अंखुश की कविता खरीदी हुई एक आईना के तरह है। जब आप उसे पढ़ने जाएंगे तो आपको अपना खाली-दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा,  उसे समझने के लिए। मैने ने तो कुछ ही चुनिंदा कविता लिखी है, बाकि अगर आपको ऐसी और भी कविता पढ़नी है तो आप एक जरूर किताब को खरीदे।

कुछ अच्छे और चुनिंदा कविता

वैसे अंकुश द्वारा लिखा गया कविता -संग्रह “आदमी बनने के क्रम में” बहुत सारी अच्छी कविता समूह है। उनमें से मैंने कुछ बेहतरीन कविता को आपके लिए चुना है।

समाधान

  • बहुत कुछ कह लेना
  • समाधान नहीं है
  •  
  • बहुत कुछ सुन सकना
  • हो सकता है समाधान

कहाँ

  • आदमी को कहाँ होनया चाहिए
  • ये उसे खुद तय करना होगा
  • अपने आप से हर जिरह के बाद
  • अगर वह अपने आप में नहीं है
  • तब उसे कहीं नहीं होना चाहिए

चूमना

  • चूमने का कोई नियम नहीं होता
  • प्रक्रिया होती है केवल
  • जैसे बारिश चूमती है धरा को
  • और भर देती है जीवन इसमें
  • झरने गिरते हैं नदी में जैसे पत्थरों को चूमते हुए
  • तुम चूमना ऐसे मुझे
  • जैसे दूर क्षितिज पर
  • चूमता है आसमान धरती को

वे

लाचार  

  • उस आदमी से ज़्यादा लाचार कोई नहीं
  • जो बिना रोए
  • कातर नेत्रों से देख रहा है
  • अपनी पत्नी का शव
  • जिसे वह आजन्म प्रेम करता रहा
  • और जिसके लिए वह उम्र भर जिया
  • क्या इस दशा में छोड़कर चली जाएगी
  • इसी चिंता को धुएं में उड़ाता
  • आँसू रोके
  • बीड़ी पीते हुए

रिक्शेवाला

  • पसीने की हर टपकती बूंद पर
  • वह और तेज चलाता है
  • और खिचता है पूरे ज़ोर से
  • अपने घर को
  • जिसे बरसों पहले छोड़ आया था
  • किसी आदिम गावं में
  • जहां उसके बच्चे कर रहे हैं इंतज़ार
  • हाथ में थाली लिए
  • कि जब तब  इसमें गिरे भात
  • तो वे समेट लें
  • और पहुंचा दें अपनी डकार
  • उस शहर में
  • जहां वह खिच रहा है रिक्शा
  • और वह सो जाए चादर ओढ़कर
  • सड़क के किनारे आराम से
  • वह सिर्फ रिक्शा नहीं खिचता
  • अपना परिवार खिचता है

दुत्कार 

  • मुझे दुत्कारा जाता है हमेशा मंचों से
  • प्रपंचों से, आधुनिक ढकोसलों से
  • और मैं फिर से लग जाता हूँ
  •  तैयारी में
  •  
  • मुझे मालूम है ये
  • कि वो दिन जरूर आएगा
  • जब मुझे स्थान दिया जाएगा
  • अपने साथ, वो मुझे देखकर प्रसन्न होंगे
  • और उनका प्रसन्न चेहरा देखने के लिए ही
  • मैं नहीं छोड़ पाता
  • खुद से लड़ना
  •  
  • कभी-कभी कुछ लोग आते हैं
  • बैठ जाते हैं साथ
  • और एक छुपी हुई हंसीं लेकर
  • मन में
  • सवेदनाएं प्रकट करते हैं
  • सशरीर
  • जैसे उनका शरीर कांप रहा हो
  • थर-थर
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  • मेरे नाकामयाबी से
  • पर मैं भी उनसे
  • सधन्यवाद
  • इतना कह देता हूँ
  • मैं किसी कि वेदना से पीड़ित नहीं
  • कि संवेदनाए दी जाएँ

दरार

  • दरार पड़ गई हैं दीवार में अब
  • एक समय ये बड़ी सुहानी लगती थी
  • मैं हाथ फेरता रहता था,
  • ये करना इस पर मुझे बहुत भाता था
  •  
  • अब हाथ रखू तो छील जाते हैं
  • लहूलुहान कर देती हैं अब ये मुझे
  • मरम्मत की जरूरत है इसे अब
  • ताकि मैं फिर से महसूस कर पाऊँ
  • इसकी ताजगी को, इसके नयेपन को
  • कहीं हमारे रिश्ते को भी
  • मरम्मत की जरूरत तो नहीं?

प्रियतम    

  • मेरे ज़ख्मी हृदय को अकेला छोड़कर
  • जब तुम
  • बढ़ते हो रेलगाड़ी के अंतिम डिब्बे की ओर
  • तो मैं नहीं समझ पाती
  • कि तुम्हारे संग अंतिम डिब्बे तक आँऊ
  • या खड़ी रहू बीते दिनों की याद लिए
  •  
  • तुम नहीं देख पाते हो मेरे आँसू
  • न ही वेदना में कपकपाते शरीर को
  • मुझे मुड़कर देखना शायद तुम्हारे लिए भी आसान न हो
  • मैं इस सच्चाई को जानती हूँ
  • कि तुम दुखी होओगे
  • मुझे इस तरह तड़पता देखकर
  •  
  • मैं मुड़ती हूँ
  • और चल देती हूँ स्टेशन से बाहर
  • रेलगाड़ी के चलाने की आवाज बाहर आती है
  • तुम जा रहे हो प्रियतम
  • जाओ, आते रहने के लिए जाओ !

आदमी बनने के क्रम में 

  • एक आदमी बनने में
  • जो समय लगता है
  • वह एक प्रगतिशील प्रक्रिया का
  • हिस्सा होता है
  •  
  • जो नहीं बीठा सके सामंजस्य
  • समय के साथ
  • वे पिछड़ गए
  •  
  • और जो रहें हैं संघर्ष हमेशा
  • उनकों समय ने भी समय दिया है

बाज़ीगर


  • मैं कहाँ अर्ज़ी दूँ
  • उनकी खत्म हो चुकी संवेदना के लिए
  • किस न्यायालय में रोऊँ दुखड़ा
  • मौत पर उनके ज़मीर की
  •  
  • वे जो कर चुके हैं
  • अपने आपको एक बाज़ीगर के हवाले
  • जिन्हे वह जब चाहे
  • नचाता है अपने इशारे पर
  •  
  • वह यह भी चाहता है
  • कि वह संवेदनशील दिखाई देता रहे
  • इसलिए कभी-2 मैने देखा है उसे
  • भरी सभाओं में रोते हुए
  •  
  • परंतु मैं जानता हूँ
  • वह हमारे लिए नहीं
  • उनके लिए रोता है
  • जिसे देखकर वे मंत्रमुग्ध रह जाते हैं
  •  
  • हालाँकि इसका पता उन्हे बाद में चलता है
  • कि वह उनके लिए भी नहीं रोया था
  • परंतु तब तक उनका सब खत्म हो चुका होता है

गायें  

  • वे रंभाती रही हैं आदिकाल से
  • आदिकाल से उन्हे माँ कहा जाता रहा है
  • वे माओं की तरह पवित्र हैं
  • माओं की तरह निष्ठावान
  • और तिस पर तो यह
  • कि वे माओं की तरह
  • बहुत भोली भी रही आईं
  • इसलिए जब माओं की तरह ही एक दिन
  • छोड़ दिया जाता है उन्हे
  • जब वे लगने लगती हैं बे-काम
  • तब माओं की तरह ही साध लेती हैं चुप्पी
  • और बेखटके आती-जाती हैं सपनों में
  • रंभाते हुए

माँ 

  • दूर घर से रात को खाते समय
  • मैने कितनी बार सोचा होगा माँ के बारे में
  • क्या वह खा चुकी होंगी?
  • या अभी तैयारी में होंगी
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  • सबको खिला देने के बाद
  • वह सोचेगी मेरे बारे में
  • क्या मैने खा लिया?
  • क्या मैं रोटी के हर टुकड़े के साथ
  • नहीं कर सकता इतना भी
  • कि माँ को याद करूँ?
  • वह भी तो करती होंगी मुझे याद
  • खड़ी रहती होंगी बाहर
  • मेरे लौट आने की राह में  

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