A Handful of Nuts Book Summary in Hindi | Mutthi Bhar Yaadein by Raskin Bond pdf download. A Handful of Nuts रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखी गई एक बहुत ही शानदार किताब है। जिसे बॉन्ड ने 60 साल की उम्र में अपनी 21 साल की उम्र में महसूस किये गए चीजों को लिखा, जो बहुत ही अच्छी है।
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Book Review
“मुट्ठी भर यादें” A Handful of Nuts का हिन्दी अनुवाद है। जिसे रस्किन बॉन्ड ने 2009 में लिखा था। कई सारे पाठकों से होते हुए आज ये मेरे पास भी आया। हमने बहुत सारे लेखकों को पढ़ा, साहित्य से लेकर आज तक के नई वाली हिन्दी के लेखकों तक। लेकिन जो लेखकी रस्किन की है उसका फ्लेवर बिल्कुल उनसे जुदा है। कम शब्दों में अपनी भावनाओं या समाज के समस्या की व्याख्या करना, कवियों से बेहतर कोई नहीं जानता, शायद उसी ही कोशिश में रस्किन भी रहे हैं, क्योंकि उनकी उपन्यास 100-150 पन्ने के ही होते हैं।
रस्किन ने इस किताब को साथ वर्ष की आयु में लिखा, पर मुट्ठी भर यादें, उस समय से जुड़ी हैं जब रस्किन 21 साल के थे, एक ऐसी उम्र जो सबके लिए बहुत खास होती है। यह वह उम्र होती है जब हमें अपने ही स्वभाव से समझौते करने पड़ते हैं, अगर हमें अपने चुनी हुई राह पर जीवन की लंबी यात्रा में आने वाली कठिनाइयों के बीच बने रहना हो तो समझौते करना जरूरी हो जाता है।
मुट्ठी भर यादें’ एक छोटा उपन्यास है, जो मात्र 100 पन्ने के अंदर ही समेटा गई है। एक ऐसी शैली जो रस्किन के मिजाज और स्टाइल से मेल भी खाती है। इस उपन्यास में रस्किन ने अपना वही 21 साल वाला बेअदब तरीका कायम रखा;
इसमे रस्किन एक ऐसे लेखक के तौर पर सामने आते हैं, जो संवेदनशील और कभी-कभार नटखट छोकरे-सा दिखता है। फिर कहीं-कहीं नटखट बुजुर्ग लेकक भी झलकता है जो अपनी मासूम जवानी के दिनों की यादें दोहरा रहा है। अगर इस कहानी का कोई साहित्यिक पूर्वज है, तो वह लेकक स्टर्नीज की पुस्तक सेंटीमेंटल जर्नी है।
आप भी जब इस किताब को पढ़ेंगे तो आपको ये महसूस नहीं होगा कि इसे लिखने वाली उम्र साठ साल है। ये वाकई रस्किन की जिंदादिल की पहचान है। जो रस्किन ने आज तक बनाए रखा है। ये कुछ खास है। जो आपको अच्छा लगेगा।
A Handful of Nuts Book Summary in Hindi
ये कहानी हैं इक्कीस वर्षीय रस्किन की । जिसके माता-पिता के गुजर जाने के बाद देहरादून में अपने-आप को कैसे भी कर के संभाला और अपने अकेले पन को अपने लिखने में व्यस्त कर लिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि उसने 17 वर्ष की कम उम्र में ही उसकी एक उपन्यास प्रकाशित हो गई।
उस उपन्यास के बाद रस्किन इंग्लैंड चला गया। चार साल बिताने के बाद जब उसका मन वहाँ नहीं लगा या यूं कह ले कि उसे इंग्लैंडवासियों से उसे उतना प्यार नहीं मिला जितना भारत में उसे मिला करता था, पुनः भारत को लौट आया। अपने शहर देहरादून में एक में सड़क से नजदीक कमरा लेकर रहने लगा। रस्किन शहर में आने वाले सभी पत्रिका को पढ़ना अपना फर्ज मानता है क्योंकि उसने सोच लिया है कि वो अपने लेखनी को ही अपना रोजगार बनाएगा।
रस्किन अपनी छोटी-छोटी कहानियाँ लिखकर प्रकाशक को भेजता, जिससे उसे मासिक के 250 रुपये खर्चे की मिल जाया करते थे और उसका महिनाका खर्चा आराम से निकल जाया करते थे।
रस्किन के बाजू वाले क्वार्टर में अपने माता-पिता के साथ रहने वाला सीताराम उसका दोस्त बनता है। जो एक धोबी है। सीताराम रस्किन के यहाँ उसके कपड़े और चादर-वगैरह लेने आ जाया करता है, जिससे उसकी मुलाकात हो जाया करती है। दोनों कभी-कभार साथ में जलेबियाँ खाने बाहर जाया करते थे।
होटल में बैठे सीताराम और रस्किन जब कॉफी की घुट लगा रहे होते हैं कि मगदौर की दौलतमंद महारानी और उसकी बेटी इंदु से मुलाकात होती है। रस्किन उन दोनों को जानता है क्योंकि रस्किन को कॉलेज के दिनों में उसके साथ पढ़ने वाली इंदु से प्यार हो गया था और वो उसके लिए लेटर लिखा करता था लेकिन वो लेटर उस तक पहुचते ही नहीं थे। महारानी उस लेटर को पढ़ कर फाड़ दिया करती थी। जिससे उन्हे भी पता था कि रस्किन कौन है।
सबसे अचंभे कि बात ये की महारानी ने रस्किन को आज तक कभी कुछ कहा नहीं, और आज भी जब होटल में मिली तो अपने घर आने का बुलावा देतीं गई। इंदु पीछे खड़ी मुसकुराती रही। जिसे देख कर सीताराम उछलने लगा।
अगले दो हफ्तों में रस्किन इक्कीस का होने वाला है और अपनी इस उम्र को लेकर बड़ा उत्साहित रहता है। सीताराम से भी कहता है। दोनों एक छोटी सी पार्टी रखने की प्लान बनाते हैं। रस्किन महारानी और इंदु को भी बुलावा भेजना चाहता है लेकिन उसके मन में एक शंका होती है कि वो पता नहीं आएंगे या नहीं। और फिर वो उन्हे बुलाए या नहीं। जब उससे नहीं रहा जाता तो सीताराम से सलाह लेता है।
सीताराम कहता है कि उन्हे बुलाना चाहिए। रस्किन कहता है कि अगर उसकी महारानी आ गई तो। “ये तो और भी ठीक है, एक तीर से दो निशान” सीताराम कहता है।
रस्किन अपने मकान मालकिन से साइकिल उधार लेकर सीताराम के साथ घूमने निकला होता है कि लौटते समय इंदु के घर से होकर निकलते हैं और उसके घर के दरवाजे के पास आकर रूक जाते हैं। इंदु अपने घर के बाउंड्री के उस तरफ झाड़ियों की छटनी करती रहती है कि इन दोनों की आवाज सुनकर बाहर आ जाती है।
रस्किन इंदु को अपने जन्मदिन पर बुलावा देता है। जिसका जवाब इंदु देती है कि साथ में माँ भी आएंगी। रस्किन स्वीकार करता है। इन सब बातों के दौरान इंदु लगातार रस्किन की आँखों में देखती रहती है। कुछ ही पल बाद अचानक रस्किन कह देता है कि इंदु मैं एक दिन तुम्हारा चुंबन ज़रूर लूँगा।
“आज क्यों नहीं” इंदु कहती है।
और इंदु अपना गाल आगे कर देती है। शुरुआत होने के बाद रस्किन उसके होंठों तक पहुच जाता है। उसके बाजू में खड़ा सीताराम ज़ोर से उसका हाथ दबाता है। ताकि अपनी मौजूदगी जाहीर कर सके। इंदु को अपनी माँ की पुकारने की आवाज आती है। तब वहाँ से दोनों शहर के तरफ चल देते हैं।
जन्मदिन के दिन सीताराम बाहर से कुछ समोसे, जलेबियाँ और छोटे केक खरीद लाया। उसके जन्मदिन की बात जब मकान ,मालकिन को हुई तो उसने हरे मिच के पकौड़े तल के भेज दिए। मुहल्ले और जान-पहचान के लोग इकट्ठे होने लगे घर में बियर भी मौजूद थी, और जो लेने लायक था, उसे दिया गया। सीताराम ने एक जिम्मेदार और मालिकाना हक से सारे काम देखता रहा।
इंदु और महारानी प्रवेश करते हैं। महारानी की नजर जब मिर्च पकौड़ों पर पड़ी तो उन्होंने तुरंत उसे लपक लिया और फिर तीखा लगने के बाद अपनी लाल आँखों से रस्किन को देखने लगती है। गरिमत थी कि पार्टी में बियर मौजूद था, जिसका सेवन महारानी किया करती थी। और आज भी उन्हे ठंढा करने का काम बियर ने किया लेकिन उसके तुरंत बाद महारानी इंदु की जन्मदिन पर बुलावा देकर शुक्रिया कहते हुए चली गई।
इसी बीच रस्किन अपनी कहानियाँ लिखता रहता है। जिसमें इंदु के साथ उसकी कपोल कल्पना भी होती है। अपने माता-पिता से झगड़ा के बाद सीताराम रस्किन के साथ ही रहने लगता है। कुछ दिनों बाद दोनों पास में लगे हुए सर्कस देखने जाते हैं, जिसमें भालू से कुश्ती करने वाली लड़की से सीताराम को प्यार हो जाता है।
उसके बाद दो हफ्तों तक सीताराम उस लड़की को देखने के लिए सर्कस जाता रहता है। सीताराम को उस लड़की को देखना इतना भा जाता है कि सर्कस में ही वो खच्चरों को नहलाने का काम पकड़ लेता है।
सब कुछ ठीक चलता रहता है कि एक दिन सर्कस से एक चीता के भागने पता चलता है। जो देहरादून की सड़क पर आराम से टहल रहा होता है। उस चीते को पकड़ने के दौरान शहर का एक दारोगा मारा जाता है। और चीता वापस दहरादून की जंगलों में कहीं गायब हो जाता है।
मानसून के दौरान सीताराम निर्णय लेता है कि वो सर्कस के लिए काम करते हुए देहरादून छोड़ देगा। जिसमें उस लड़की का पूरा हाथ था।एक दिन रस्किन एक होटल में कॉफी पी रहा होता है कि अचानक् महारानी प्रवेश करती हैं। रस्किन के द्वारा कॉफी पूछने पर तुरंत स्वीकार कर लेती हैं। जो रस्किन को थोड़ा अचरज लगता है। कॉफी के बाद महारानी रस्किन को कहीं बाहर घूमने का ऑफर करती हैं, जिसे रस्किन मना नहीं कर पाता।
महारानी रस्किन को लेकर अपने घर गई और इंदु की गैर मौजूदगी में रस्किन के ना चाहते हुए भी महारानी रस्किन को उत्तेजित कर उसे अपनी आगोश में ले लेती है। रस्किन को ऐसा लगा जैसे वो किसी घटिहा सा दिखने वाला मगरमच्छ की चंगुल में फस गया है। रस्किन जब वहाँ से निकला तो इंदु किसी दूसरे लड़के के साथ बाइक पर दिखी,जो क्रिकेट खेलता है। दोनों ने एक दूसरे को अभिवादक किया और अपने-2 रास्ते चलते बने।
घर पहुचने पर सीताराम हाथ में छोटा सा पौधा लिए उसका इंतजार करता रहता है। रस्किन उसे सारी बातें बता देता है। जिसके बाद सीताराम उससे दूर रहने की हिदायत देकर अपने साथ सर्कस में काम करने की ऑफर देता है। लेकिन रस्किन स्वीकार नहीं करता।
अब वो भी दिन आता है, जब सर्कस के तंबू उतरने लगते हैं। रस्किन बाज़ार से सीताराम के लिए पतंग लेकर घर पहुचता है, तो उसके माँ के द्वारा पता चलता है कि सर्कस वालों को दोपहर की अमृतसर के लिए ट्रेन पकड़नी थी। जिनके साथ सीताराम भी चला गया। रस्किन अपने कमरे में अकेला था कि उसके दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। इत्र की सुगंध से रस्किन को पता चल जाता है कि महारानी है।
रस्किन दरवाजे नहीं खोलता और पीछे के दरवाजे से निकल कर सिताराम के साइकिल को लेकर रोड के तरफ तेजी से चलाते हुए निकल जाता है कि पीछे से उसे महारानी के गाड़ी की आवाज आती है, इससे पहले कि रस्किन कुछ करता। उसकी साइकिल डगमगा जाती है वो सड़क के किनारे झाड़ियों में गिर जाता है।
होश में आने के बाद रस्किन अपने घर पहुचता है और बैंक से सारे पैसे निकालने के बाद मकान मालकिन को अपना नया पता न बताने का वादा करके शहर छोड़कर ॠषिकेश के लिए बस पकड़ लेता है।
सीजन बिताने बाद जब रस्किन अपने देहरादून को लौटा तो अपने घर के छत पर किसी को पतंग उड़ाता देख चौक गया और जब भागते हुए छत पर पहुंचा तो देखा कि सीताराम सारी दुनिया से बेखबर आनंद में पतंग उड़ा रहा है। दोनों एक-दूसरे को गले लगाते हैं। पूछने पर पता चलता है कि उसने सर्कस छोड़ दिया। दोनों कमरे में पहुचते हैं
कमरा खोलने पर रस्किन को दो-चार लेटर मिलता है, जिसमें कुछ सीताराम के होते हैं, जब वो अमृतसर था और एक प्रकाशक का होता है कि उसकी पिछली किताब पर एक टी. वी. सिलियल बनाना चाहता है। इस खबर से दोनों खुश होते हैं और बाजार को जलेबियाँ खाने निकल पड़ते हैं।
रस्किन बॉन्ड की अन्य किताबें- “द रूम ऑन द रुफ़ बुक समरी”
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
- इक्कीस का उम्र- खैर, एक बात तो साफ है, अक्सर यह किसी भी नौजवान के इवान का सबसे अहम साल होता है। प्यार में पड़ने का समय; अपने सपनों को साकार करने का समय; कुछ नया कर दिखाने; नए रास्ते बनाने का समय; खतरे मोल लेने; अपने बलबूते पर कुछ कर दिखाने और अपने स्टार के पीछे चलने का समय…. और रस्किन के साथ भी ऐसा ही था।
- एक फ्रीलांस लेखक कह नहीं सकता कि वह अगले महीने क्या कमाने वाला है। यह अनिश्चितता ही उसके लेखन जीवन का आकर्षक है पर सब उँ हालात में बहुत रोमांचपूर्ण हो सकता है जब आपको घर का किराया, खाने का बिल, लेखों के लिए डाक का खर्च, टाइपिंग पेपर, टूथपेस्ट, जुराबों , शेविंग सोप , बिजली बिल और दूसरे जरूरी सामान का इंतजाम करना हो।
इंदु मेरी आँखों में देख रही थी, तो मैने अचानक कह दिया और फिर अपने ही साहस पर हैरानी भी हुई ”इंदु, एक दिन मैं तुम्हारा चुंबन ज़रूर लूँगा।”
“आज क्यों नहीं”
वह अपना गाल मेरे आगे कर रही थी, और मैने वही से शुरुआत की, पर फिर उसने, मुझे अपने होंठों पर चूमने दिया, और यह सब इतना मीठा और मादक था कि जब किसी ने मेरा हाथ दबाया तो मुझे लगा की वह इंदु का ही हाथ रहा होगा। मैने भी उसी तरह वह दबाया तो एहसास हुआ कि वह तो दीवार की दूसरी ओर थी, उसके हाथ में अब भी झाड़ियां काटने वाली बड़ी कैंची थी। शायद मैं सीताराम की मौजूदगी के बारे मे भूल गया था। सीताराम के हाथ का दबाव बढ़ रहा था।
मैने उसे मुड़कर देखा और उसने सहमति में सिर हिलाया। इंदु को ज्यों ही अपनी माँ की आवाज सुनाई दी तो वह चिहुँक कर पीछे हटी:
हम सभी को किसी ऐसे दोस्त की जरूरत होती है, जिसे सब बताया जा सके, जिसके आगे अपनी हर गलती कबुल की जा सके, दुख के समय सहानुभूति की अपेक्षा की जा सके।
रस्किन बॉन्ड की अन्य किताब:- “पैन्थर्स मून बुक समरी”
कोट्स-
- हमारी प्रिय पुस्तकें हमारे सपनों से कहीं अधिक समय तक बनी रहती हैं…
- पैसा बोलता है- और अक्सर यह अलविदा ही बोलता है।
- जब मन निराश और मायूस हो तो अपना सर उठाओ और चिल्ला कर कहो, “आज का दिन कितना महान होने वाला है!”
- हमें वह सब सलीके से सहेजना चाहिए, जो अच्छा हो।
- सर्कस में सभी लोग एक तंबू में आआ जाते हैं।
- जब तक हमारे आस-पास नन्ही खरपतवार उगी हुई है, तब तक इंसान और प्रकृति के लिए उम्मीद भी जिंदा रहेगी।
- कहते हैं कि जिनका मन साफ हो, उन्हे गहरी नींद आती है।
- बहाव से अलग चलना आसान नहीं होता।
रस्किन बॉन्ड की अन्य किताब:- देवरारों के साये में बुक समरी
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
रस्किन- रस्किन एक 21 वर्षीय युवा है। सीधा-सादा और भोला है। समझदारि उसके लेखन से झलकती है। आंखे दुरदर्शी और मन विचारक है। उसका यौवन अपनी बहकने के चाहत रखता है लेकिन उसका खुद का अपने पर पउरा नियंत्रण है। सीताराम को अपना दोस्त मानता है। और दोनों साथ रहते हैं।
सीताराम- सीताराम करीब सोलह बरस का लड़का है। लंबे हाथ, पैर और कानों वाली दुबली देह। उसके होंठ बहुत कामुक। जवानी की ओर तेज कदमों से चलता एक नौजवान। सीधा-सादा और भोला लड़का।
महारानी- महारानी 45 साल की एक अधेड़ उम्र की दौलतमंद महिला है। जिसका अपने पर काबू नहीं है। 21 साल के भोले-भाले रस्किन को अपने हवस का शिकार बनाती है लेकिन रस्किन उसके जल्द ही उसके चंगुल से छूट कर फरार हो जाता है। उसका थुलथुल शरीर और झूलते हुए चमड़े उसी से उसके होने का न्याय मांग रहे हैं। जो रस्किन को बिल्कुल नहीं भाते।
इंदु- इंदु महारानी की एक 18 वर्षीय युवती है। जिसका दिल कोमलता से भरा हुआ है। उसके यौवन रस्किन को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। लेकिन उसके भीतर अपनी माँ का डर रहता है।
FAQ-
“मुट्ठी भर यादें” का लेखक कौन है?
रस्किन बॉन्ड
क्या “मुट्ठी भर यादें” रस्किन की सत्य घटना पर आधारित है?
नहीं! लेकिन उनकी इक्कीस साल की उम्र से प्रेरित जरूर है।
“मुट्ठी भर यादें” का जर्ने क्या है?
काल्पनिक।
“मुट्ठी भर यादें” कब पब्लिश की गई थी?
अग्रेजी में 2009 में और हिन्दी में 2018 में पब्लिश की गई है।