इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको ruskin bond द्वारा लिखित a face in the dark जिसका हिन्दी अनुवाद “अंधेरे में एक चेहरा” होता है का book review और summary in hindi by ruskin bond को साझा करेंगे।
Table of Contents
Book Review
अगर आप भुतहा कहानियाँ पढ़ने के शौकीन हैं, या उस जैसे किताबों की तलास मे हैं। तो मैं आज आपको उस जैसी किताब के बारे मे जानकारी और कुछ कहानियाँ साझा करूंगा, जिसके लेखक रस्किन बॉन्ड हैं। अगर आप रस्किन बॉन्ड को जानते हैं और उनके लेखनी से सहमत हैं तो उन्होंने आपके लिए इस किताब को लिखा है, जिसका हर एक कहानी का हर एक पेज और हर एक पन्ना भुतहा कहानियों से संबंध रखता है।
“अंधेरे में एक चेहरा” रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित A face in the dark and other haunting का हिन्दी अनुवाद है, जिसे राजपाल एंड संस पब्लिशर ने रश्मि भारद्वाज के माध्यम से किया है। रस्किन बॉन्ड द्वारा यह कहानी संग्रह बाकि के कहानी संग्रह से बहुत ही खास होने के साथ-साथ बहुत ही अलग है।
इस कहानी संग्रह मे कुल 28 भुतहा कहानियाँ संलग्न हैं, जो बहुत ही रोचक होने के साथ-साथ थोड़ा-बहुत आपको सहमा देने वाली हैं। भुतहा कहानियाँ बहुत हो कम पढ़ने और देखने को मिलती हैं, लेकिन रस्किन ने इस किताब को लिख कर उस सूखे धरती को अपने तरफ से थोड़ा भीगने के लिए पानी डाला है।
जैसा की आपको पता हो, रस्किन बॉन्ड की ज्यादातर कहानियों मे पहाड़ी, नदी,-नाला, देवदार के पेड़ और जंगल-झाड़ियाँ मौजूद होती हैं, जिसका इस्तेमाल इस भुतहा कहानी संग्रह मे भी खूब शानदार तरीके से किया गया हैं। एक और बात जो रस्किन को खास बनाती हैं, वो ये हैं कि रस्किन अपनी कहानी आपको पूरा बताते हैं लेकिन उसका परिणाम आपके ऊपर छोड़ देते हैं, जो इस कहानी संग्रह को और भी मेजदार बनाता है।
मेरा यकीन करिए जब आप रस्किन की इस किताब को पढ़ेंगे एक पल को बोरियत महसूस नहीं होंगी। क्योंकि इस कहानी संग्रह मे अंधेरे में एक चेहरा है, बंदरों का प्रतिशोध, भुतहा साइकिल, अंधेरे मे सिटी की गूंज, विल्सन का पुल,काली बिल्ली, भुतहा पहाड़ी, बाग मे भूत और पहाड़ी पर मौजूद परियाँ इत्यादि। आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। तो चलिए शुरू करते हैं।
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summary in hindi by ruskin bond
रस्किन बॉन्ड द्वारा लिखित “अंधेरे में एक चेहरा” कुल 28 कहानियों का संग्रह हैं, जिसकों पढ़ने के बाद मैने उनमें से कुछ चुनिंदा कहानियों को ही आपसे साझा करूंगा, ताकि मुझे कहने मे और आपको पढ़ने मे मजेदार लगे, यदि आप और भी कहानियों के बारे मे जानना चाहते हैं मुझे कमेंट कर सकते हैं।
a face in the dark
यह कहानी एंग्लो-इंडियन शिक्षक ऑलिवर की हैं, जो देर रात शिमला के बाहर तीन मिल दूर बने अपने स्कूल से लौट रहे थे। जिसका रास्ता देवदार के घने जंगलों से होकर गुजरता था। जब हवा तेज चलती थी तब देवदार के पेड़ों से निकलती उदास, डरावनी-सी आवाजों की वजह से अधिकांश लोग उस रास्ते का इस्तेमाल न कर मुख्य रास्ते से ही जाते थे। लेकिन मिस्टर ऑलिवर उन सब चीजों का कोई फरक नहीं पड़ता था।
मिस्टर कुवारें ऑलिवर अपने पास सदा एक टॉर्च रखा करते थे, जिसकी बैटरी खत्म होने वाली थी । टॉर्च से निकलता अस्थिर प्रकाश जंगल के सँकरे रास्ते पर पड़ रहा था कि उसकी रोशनी थोड़ी दूर एक चट्टान पर बैठे एक छोटे बालक पर पड़ी। मिस्टर ऑलिवर रुक गए चुकी बच्चों को रात मे पहाड़ियों पर निकलने की अनुमति नहीं थी। अतः मिस्टर ऑलिवर ने सोचा कि उस लड़के के करीब जाकर पूछे कि वह इतनी रात गए यहाँ क्या कर रहा है?
कदम उसके तरफ अभी बढ़ ही रहे थे कि उन्हे कुछ महसूस हुआ, लड़के के रोने की सिसकियाँ भरने की आवाज आ रही थी। मिस्टर ऑलिवर थोड़े नरम पड़ गए और जब करीब पहुंचे लड़का टोपी लगाए दूसरे तरफ देखते हुए लगातार सिसकियाँ भरते जा रहा था। मिस्टर ऑलिवर से रहा नहीं गया और उन्होंने उसके बारे पूछना जारी रखा। तुम कौन हो, यहा क्या कर रहे हो, रो क्यों रहे हो, इतनी रात को बच्चों को पहाड़ियों पर नहीं घूमना चाहिए।
मिस्टर ऑलिवर के इतने सारे सवाल का उस बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी सिसकियाँ रुक गई थी। अंत मे जब उस बच्चे ने अपना सर मिस्टर ऑलिवर के घुमाया तो मिस्टर ऑलिवर उसका चेहरा देखते ही सहम गए, क्योंकि वह लड़का कोई मामूली नहीं था, क्योंकि उस लड़के का आँख, कान, नाक कुछ भी नहीं था। सिर्फ और सिर्फ एक चिकना सफेद कंकाल।
जिसे देखते ही मिस्टर ऑलिवर के पाँव तले ज़मीन खिसक गई। टॉर्च हाथ से छूट गया और मिस्टर ऑलिवर अपने मदद को चिल्लाते हुए बेतहासा स्कूल के तरफ भागने लगे। स्कूल के करीब पहुचते हुए उन्होंने एक जलती हुई लालटेन देखि। मिस्टर ऑलिवर के पैर तभी रुके जब उनकी टकराहट चौकीदार से हुई।
चौकीदार ने पूछा-”क्या हुआ साहब”
मिस्टर ऑलिवर ने हाफते हुए जवाब दिया-“वहाँ मुझे रास्ते मे एक लड़का दिखा, जिसका आँख, कान, नायक, मुँह कुछ भी नहीं था, सिवाय एक चिकना सफेद कंकाल के।”
‘क्या मतलब हैं आपका, क्या वह ऐसा था?” चौकीदार ने कहते हुए लैम्प को उठाते हुए अपने चेहरे के तरफ ले गया। जिसकी न आंखे थी, न कान, न नाक और नाही मुँह। हवा तेज चलने एक वजह से लैम्प भी हिलोरे मारते हुए बुझ गया।
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बंदरों का प्रतिशोध-
यह कहानी है, बंदरों के झुंड, कुत्तों का झुंड और उसके महिला मालिक की! हुआ यू कि रस्टी देहरा की एक सोसाइटी मे एक दिन अपने कमरे पर रुका हुआ था। उसने आधी रात को लगभग छः कुत्तों के भोंकते हुए देखा जो सामने एक सिंदूर की पेड़ के नीचे खड़े होकर उसके चमकते पत्ते को देखते हुए पूरी रात बेतहासा भोंकते जा रहे थे, हालांकि उस पेड़ पर कुछ भी नहीं था, यहाँ तक कि एक उल्लू भी नहीं।
अब कुत्तों के भोंकने से नींद तो आ नहीं थीं, किसी तरह सुबह हुई और इस घटना के बारे मे उसने अपने पड़ोसी फैनशॉ (जो कि आर्मी से रिटायर्ड कर्नल थे, और उनके पास भी एक कुत्ता था,) के साथ पहाड़ी पर टहलते हुए आंधी रात को भोंकने वाले कुत्तों के बारे मे बताया तो उन्होंने एक कहानी सुनाई।
कुछ साल पहले की बात हैं, जिस सिंदूर के पेड़ को तुम देख रहे उसके पीछे एक घर हैं, अगर तुमने गौर किया हो तो वह मकान कई सालों से बंद ही पड़ा है। रस्टी ने हामी भरी। और वह भोंकने वाले कुत्ते उसी मकान मे रहने वाली मिस फेयरचाइल्ड के हैं। जिनकी मृत्यु 15 साल पहले हो गई। जो लगभग एक अधेड़ उम्र की महिला थी, लेकिन उसके चेहरे चमकदार थे।
मिस फेयरचाइल्ड ने छः अलग-अलग तरह के कुत्ते पाल रखे थे। अगर तुमने देखा हो तो एक लंगूरों का झुंड उस सिंदूर के पेड़ पर निकले नए पत्तों को खाते रहते हैं। रस्टी ने न में जवाब दिया। तो तुम उन्हे जल्दी ही देखोगे। वह बहुत ही राक्षस प्रवृति के हैं। जिससे मिस फेयरचाइल्ड बहुत ही घृणा करती थी। वह सब कुछ नष्ट कर देते थे।
मिस फेयरचाइल्ड ने अपने घर के सामने डहेलिया के पौधे लगा रखे थे, जिससे वह बहुत प्यार करती थी। एक रोज उस लंगूरों का झुंड उस डहेलिया का स्वाद चख लिया और फिर उसके बाद वो हर रोज आने लगे और जब भी मिस फेयरचाइल्ड नए पौधों को लगाती वह उसके कलियों को खाने के बाद पौधों को तोड़-मरोड़ देते।
फिर एक दिन मिस फेयरचाइल्ड ने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाया और अपने शॉट गन से उनके झुंड पर फायर कर दिया, जिसका नतीजा ये हुआ कि उनमें एक लंगूर मर गया। कुछ दिन शांति रही। लेकिन एक दिन लंगूरों के झुंड ने मौका पाकर मिस फेयरचाइल्ड के ऊपर हमला कर दिया, जिसमें मिस फेयरचाइल्ड को अपनी जान गवानी पड़ी और बचाव मे आए कुत्ते भी मारे गए। और वहीं कुत्ते उस सिंदूर के पेड़ के उन लंगूरों को देखते हुए भोंकते रहते हैं।
अगली रात को भी रस्टी ने दोबारा उन कुत्तों के भोंकने की आवाजें सुनी।
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भुतहा बंगला-
यह कहानी देहरा मे अपने मकान मे दादा-दादीजी के साथ रह रहे रस्टी की है। जिसके घर के सामने एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। ऐसा कहा जाता है कि भूत अक्सर पीपल के पेड़ पर ही रहते हैं। लेकिन मेरे दादाजी का ऐसा नही मानना था और उन्होंने घर के आगे कुछ निर्माण कार्य शुरू करा दिया, जिसके कारण उन्हे उस लंबे-चौड़े पीपल के पेड़ को वहाँ से हटाना पड़ा।
उसके बाद घर मे कुछ अजीव-अजीब सी घटनाए घटने लगी। कभी दादाजी का चश्मा गायब होने लगा, तोते का पिंजरा खुला हुआ मिलता, जिसका इल्जाम रस्टी के सरों पर मढ़ा जाता।
एक दिन जब दादाजी अपने मटर के पौधों को देखने गए तो सारे पौधे उखड़े पड़े थे, जो साधारण तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा था। हद तो तब हो गई, जब दादा जी दोपहर के नास्ते पर बैठे, उन्होंने कहा कि वो जब भी सोने के चद्दर को शरीर पर डालते हैं वह किसी के द्वारा खिच दिया जाता है। दादीजी ने जवाब दिया कि हो-न-हो वह पीपल का भूत हमारे बंगले मे आ चुका है। और ये सब देखने और जानने के बाद मुझे चिंता हो रही है कि अब आगे क्या होगा?
अगला हफ्ता बहुत सारी घटनाओं से भरा हुआ बीता। मेज से गुलदान गिरने लगे, तोते के पंख चाय की केतली मे मिलने लगे, जबकि तोता आंधी रात को कर्कश आवाजें निकालता, खिड़कियां जब बंद की जाती तो अपने आप कुछ देर बाद खुल जाया करती और खुली हुई खिड़कियां बंद हो जाया करती। बिस्तर पर कौवों का घोंसला मिलता, बाहर निकालने पर कौवों द्वारा हमला किया जाता।
और एक दिन जब एक मेहमान रहने को आया तो चीजे और भी बदतर हो गई, ऐसा लगा भूत ने उन्हे नापसंद कर दिया। उनके टूथपेस्ट मे दादाजी का सेविंग क्रीम से बदल दिया गया था। और तो और दो दिन बाद उस मेहमान ने शिकायत की कि उन्हे नाक पर मारा गया।
उसकी फुली हुई नाक को देखकर दादाजी बिल्कुल सहम गई और निर्णय लिया गया कि अब इससे पहले की और भी घटनाएं बढ़ें, हमें यह घर छोड़ देना चाहिए। और दादाजी ने भी कुछ हफ्तों या महीनों के लिए घर से दूर रहना ही सही संमझा और रस्टी अपने दादा-दादाजी सहित सारे सामानों के साथ घर छोड़ दिया। जो अब भूत-बंगला हो चुका था।
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पानी मे कुछ है-
इस कहानी की शुरुआत तब होती हैं जब रस्टी रामपुर मे रहते हुए उसने एक तालाब की खोज की, जो चारों तरह पेड़ से ढका हुआ था। उस तालाब का पानी बेहद ही ठंढा था। जिसमें नहाने के लिए रस्टी अपने सारे कपड़े उतार कर उस तालाब मे कूद गया और खूब गोता लगाया लेकिन कुछ समय बाद उसे पता चला कि कोई चिपचिपी चीज उसके शरीर को स्पर्श कर रही है, कोई जानवर हो सकता है या कुछ और।
जब उसे कुछ खतरे का एहसास हुआ तो जल्दी से किसी तरह तैरता हुआ बाहर आ गया और फिर इसके बाद वो अपने घर लौट गया। फिर कभी उस तालाब के तरह मुह मोड कर नहीं देखा। कॉलेज खुल जाने के वजह से रस्टी दिल्ली को चला गया। और आज दस साल बाद वापस रामपुर को लौटा है।
लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। रामपुर मे अब बहुत सारी ऊंची बिल्डिंग खड़ी हो गई हैं। इन्ही सब नज़ारों को देखते हुए जब रस्टी उस तालाब के पास से गुजरता हैं तो देखता है कि बहुत सारे मजदूर बाल्टियाँ और प्लास्टिक की पाइप की मदद से उस तालाब का पानी खिच रहे हैं। इन सबका निरीक्षण करते हुए एक सफेद सूट मे सुसज्जित व्यक्ति दिखाई देता है, जिससे रस्टी कुछ पूछने चला जाता है। उस व्यक्ति से बात करने के दौरान पता चलता है कि वह बाजू मे बन रहा एक स्कूल का मालिक, कपूर है।
मिस्टर कपूर रस्टी से बात करते हुए अपने घर लेकर चले जाते हैं, जो बहुत ही आलीशान बना होता है। रस्ती उससे पूछता है कि आप इस तालाब को क्यों खाली करा रहे हैं? जिसका जवाब मिस्टर कपूर देतें है कि उनके स्कूल के दो लड़के इसमें डूब कर मर चुके हैं। हालाकि किसी ने उने मार कर इसमें फेक दिया था, क्योंकि उनका शरीर बिल्कुल बुरी तरह से तोड़ा-मरोड़ा गया था।
रस्टी इस जगह को छोड़ देने को कहता हैं। और तालाब को काटों और बाड़ों से घेर देने को सुझाव देता है। लेकिन मिस्टर कपूर कहते हैं कि वो इस तालाब को मिट्टी से भर कर एक ओपन एयर थियेटर बनाना चाहते हैं। अभी दोनों बात कर ही रहे थे कि मिस्टर कपुर और रस्टी ने खिड़की से देखा कि तालाब मे बस एक आदमी रह गया था….
तालाब के तल से कुछ निकला। वह एक दैत्यकार घोंघे की तरह लग रहा था, लेकिन उसके सर का आधा हिस्सा मानव का था। उसका शरीर और अवयव आधे घोंघे या ऑक्टोपस की तरह थे। एक विशाल स्कूबी, स्त्री दैत्य। वह तालाब मे खड़ी उस आदमी से ज्यादा लंबी थी। एक नरम और लिसलिसी जीव, हमारे प्राचीन काल की उत्तरजीवी।
तेज शोषक गति से, उसने उस आदमी को अपनी बाजुओं मे लपेट लिया कि आदमी की बाहें और पैर ही बेतहाशा और निरर्थक रूप से संघर्षरत दिखाई दे रहे थे। स्कूबी, स्त्री दैत्य ने उसे पानी मे खींच लिया। इतना सब कुछ देखने के बाद दोनों से रहा नही गया और दोनों उस तालाब के तरफ तेजी से भागते हुए पहुंचे तो देखा की आदमी का दम पूरा चूस लिया गया था और उसके मुख से झाग निकल रही थी।
उसके बाद तालाब मे और कोई काम नहीं हुआ। बाकि सब लोगों को बताया गया कि मजदूर की मौत फिसल कर पत्थर पर गिर जाने से हुई है। मिस्टर कपूर ने रस्टी से वचन लिया कि वो कभी भी किसी से कुछ साझा नहीं करेगा। जिसके बाद मिस्टर कपूर ने उस तालाब के चारों तरह एक लंबी-चौड़ी दीवार खड़ी कर दी।
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कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
1955 की बात है। मैं तीन साल इंग्लैंड मेन रहने के बाद देहरादून लौट चुका था, अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था- भारत मेरा देश होगा और मैं एक लेखक बनूँगा। यह एक कठिन समय था। आँडरें डॉइच प्रकाशक संस्थान द्वारा मेरी पहली किताब “दी रूम ऑन दी रुफ” के लिए दी गई पचास पाउंड की पेशगी खत्म हो रही थी और किताब अब भी प्रकाशित नहीं हुई थी।
मेरी माँ और सौतेले पिता बाकि परिवार के सदस्यों के साथ दिल्ली चले गए थे। मैं उनके साथ नहीं गया था। क्योंकि मैं अपने हिसाब से जीवन जीने की आज़ादी चाहता था। हालांकि मेरे पास वह आज़ादी थी और मैं बहुत छोटा था- अब तक इक्कीस का अभी नहीं हुआ था-लेकिन भविष्य अनिश्चित ठा। कभी-कभी मैं अकेलापन महसूस करता ता और दुविधा मेन पद जाता था कि मैने सहीन निर्णय लिए हैं या नहीं।
मैं मुख्य बाज़ार मेन स्थित एक छोटी किराने की दुकान के ऊपर बने कमरे मेन किराये पर रहता था, जिसमें एक छोटी बालकनी थी लेकिन बिजली नहीं थी और नल का पानी नहीं आटा था। मकान मालकाईं के जीवन मेन अपनी समस्याएं थीं जिनमे वह उलझी हुई थी और मुझे लगभग अकेला छोड़ दिया गया आठ, लेकिन धोबी के बेटे सीताराम ने मेरे पीछे आना अपना एकमात्र लक्ष्य बना रखा था। मैं जहां भी जाता वह मेरे पीछे हो लेता और मेरी शांति भंग करता रहता।
एक सुबह मैने तय किया कि साइकिल से शहर के बाहर के इलाके मेन दूर तक घूमने जाऊंगा। मैने यहाँ सुबह के उगते सूरज के बारे मेन बहुत कुछ पढ़ा था, लेकिन कभी भी इतनी जल्दी उठ नहीं सका कि इसे देख पाऊँ । मैने सीताराम से कह कि वह मुझ पर एक उपकार करे और मुझे सुबह छः बजे उठा दे।
उसने मुझे पाँच बजे उठा दिया। तब रोशनी हो ही रही थी। जब तक मैने कपड़े पहने, आकाश का रंग नीले से साफ हल्के बैंगनी रंग मेन बदल गया था और फिर सूरज अपनी पूरी आभा के साथ आकाश मे चमक उठा।
कोट्स-
अगर आपके पास दौलत हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं।
FAQ-
Q- a face in the dark का लेखक कौन है?
रस्किन बॉन्ड।
Q- a face in the dark का हिन्दी अनुवादक कौन है?
रश्मि भारद्वाज।
Q- a face in the dark को हिन्दी पब्लिश कब किया गया था?
राजपाल एण्ड संस ने 2016 मे पहला हिन्दी संस्करण पब्लिश किया गया था।
Q- a face in the dark जर्ने क्या है?
काल्पनिक के साथ-साथ भुतहा।
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