हिंदीनामा के संपादक-सस्थापक अंकुश कुमार ने अपने कलम से एक बहुत ही सुंदर कविता-संग्रह की रचना की है। जिसका नाम उन्होंने “आदमी बनने के क्रम में” रखा है।
गीत चतुर्वेदी के माध्यम से अंकुश अपने इस कविता-संग्रह में खुद के अलावा पूरा परिवार है, माँ-बापू-बीवी-बच्चे है, नींबू-खीरा-चाय-बिस्कुट हैं, मित्रगण हैं, अजनबी लोग हैं, आबाद दुनिया है।
अंकुश की कविता खरीदी हुई एक आईना के तरह है। जब आप उसे पढ़ने जाएंगे तो आपको अपना खाली-दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा, उसे समझने के लिए।
कुछ अच्छे और चुनिंदा कविता
बहुत कुछ कह लेना समाधान नहीं है बहुत कुछ सुन सकना हो सकता है समाधान
आदमी को कहाँ होना चाहिए ये उसे खुद तय करना होगा अपने आप से हर जिरह के बाद अगर वह अपने आप में नहीं है तब उसे कहीं नहीं होना चाहिए
ये कहते हुए कि हमें हत्याएं रोकनी होंगी वे बंदूकें लहरा रहे थे जहां उन्होंने कहा हम अहिंसा-पसंद हैं लोग गवाह हैं कि उनके हाथ में डंडा था
एक आदमी बनने में जो समय लगता है वह एक प्रगतिशील प्रक्रिया का हिस्सा होता है जो नहीं बीठा सके सामंजस्य समय के साथ वे पिछड़ गए और जो रहें हैं संघर्ष हमेशा उनकों समय ने भी समय दिया है