इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपसे Satya vyas द्वारा लिखित 1931, जो कि सत्य घटना से प्रेरित होकर क्रांतिकारियों की कहानी को कहता है, Book Review के साथ-साथ Summary in hindi और Quotes के साथ-साथ PDF Download भी साझा करेंगे।
Table of Contents
Book Review
आखिर आ ही गई! और समय खत्म हुआ इंतजार का। सत्य व्यास एक लंबे समय बाद अपने लेखनी लेकर मौजूद हैं। जिसे हाथों-हाथ लिया जा रहा है। और पाठकों का ताता लगा हुआ है, उनकी लेखनी को पढ़ने के लिए। हालांकि मैने भी प्री बुकिंग कर रखी थी, और मुझे भी पहले ही दिन मिल गई। मैने झट से पढ़ा लेकिन रिव्यु आज दो हफ्ते बाद साझा कर रहा हूँ, कुछ मजबूरीयों ने बांध रखा था। जिसके लिए मैं आप सब से क्षमाप्राथि हूँ।
“1931”! सत्य व्यास द्वारा लिखित एक उपन्यास है, जिसमे 1931 के समय भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन कर रहे क्रांतिकारियों से प्रेरित होकर कोलकाता के प्रमुख घटना का वर्णन किया गया है। जैसा की हम सभी व्यास की लेखनी से प्रभावित है, और व्यास ने हमेशा एक नया फ्लेवर ही हमारे सामने रखा है। जिसमें यह उपन्यास एक अलग ही जगह बनाती दिख रही है।
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यूं तो 1931 जैसी और भी लेखकों द्वारा लिखी गई उपन्यास मौजूद हैं, लेकिन जब आप इसे खरीदने जाएंगे तो सत्य व्यास की महक आपको अपने तरफ आकर्षित करेगी। जिसमें क्रांतियों की अपने देश के प्रति मत मिटने की जज्बा दिखेगा तो वही हल्की और सोंधी खुशबू प्यार की भी मिलेगी। जो इस किताब को और भी रुचिकर बनाती है।
कुमुद और प्रबोध की केमेस्ट्री और एक-दूसरे का समर्पित भाव आपको अपना बना कर ही मानेगा। मैं ये नहीं कह सकता है, कि इस लेखक ने कोई कसर छोड़ी है, क्योंकि इनकी लेखनी मुझे पहले से ही मंत्रमुग्ध कर चुकि है। आप इस किताब को पढ़ने की शुरुआत एक पन्ने से करेंगे लेकिन कब आप आखिरी पर होंगे इसका एहसास आपको मालूल नहीं होगा। इसके पात्र क्रांतिकारी है, जिसकी रचना एक क्रांतिकारी ने ही की है।
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Summary in hindi
कहानी की शुरुआत गोरी सरकार द्वारा बंदी बनाए गए प्रबोध से होती है। जहां उसे संतरियों द्वारा सताया जा रहा होता है। और उससे कुछ पुछताछ होती रहती है। प्रबोध तबतक बर्दास्त करता है, लेकिन जब उसे लगता है कि अब वह नहीं सह पाएगा तो वह जेलर दिलाबर हुसैन को सब सही-सही बताना शुरू करता है।
प्रबोध कोलकाता के मिदनापुर नामक ग्राम का निवासी है, जहां गोरी सरकार का अत्याचार अपने चरम सिमा पर है। युवा होने के नाते वह भी सुबाश बोस की संगोष्ठी में शामिल होता है। गोरी सरकार को भनक लगती है कि योजना कुछ बड़ी बनाई जा रही है, जिसके बाद धड़-पकड़ शुरू होती है।
कुछ पकड़े जाते हैं और कुछ भाग जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे क्रांतिकारियों का समूह उन्हे छुड़ाने में कामयाब होता है। अभी कुछ दिन बीते होते हैं कि मार्च 1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी क्रांतिकारियों के जहन में आग पैदा कर देती है।
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और सारे क्रांतिकारी एक योजना के तहत कोलकाता के जिलाधिकारी जेम्स पेड्डी को मारने में कामयाब होते हैं। शहर के जिलाधिकारी की मौत के बाद गोरी सरकार उत्तेजित हो जाती है। और किसी भी प्रकार की सरकार विरोधी योजना से जुड़े लोगों की गिरफ़्तारी होने लगती है।
जिसमें प्रबोध भी शामिल होता है। उसे पकड़ लिया जाता है और जिस योजना के तहत जेम्स पेड्डी मारा गया था, उसके मुखिया की तलास शुरू होती है। प्रबोध को बचाने के लिए उसके क्रांतिकारी दल जैल में हमला कर उसे छुड़ा ले जाते हैं। जिसके बाद एक दूसरा अधिकारी शहर में प्रवेश करता है और उसकी क्रूरता और भी ज्यादा होती है। जिससे सभी परेशान होने लगते हैं।
अब इस अधिकारी से निजात पाने के लिए शहर का सारा क्रांतिकारी दल मिलकर प्रबोध को कार्य सौपतें हैं, जिसे निभाने के लिए प्रबोध बाध्य होता है। और अपने प्यार और माता-पिता के लगाव को भंग कर क्रांतिकारी सदस्य का युवा नेता के तौर पर उभर कर सामने आता है।
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सत्य व्यास की यह उपन्यास जिस प्रकार क्रांतिकारियों को आगे रखता है उसी प्रकार प्यार, मोह को छोड़ने की भी बात करता है। बलिदान की बात करता है। व्यास की उपन्यास की सबसे खास बात यह होती है कि यह बहुत की कम शब्दों में एक मार्मिक विषय पाठकों के लिए लेकर आते हैं, जो एक बार की पढ़नीय होता है।
खैर! मैने तो पढ़ लिया और अभी रिव्यु के साथ-साथ समरी भी साझा किया है, पढ़ने को इस उपन्यास में बहुत सारी चीजें हैं, जिसे आपको पढ़ कर ही पता लगाना चाहिए, बाकि आपको मेरे द्वारा दी जाने वाली रिव्यु कैसी लगी, जरूर कमेंट कर बताएं।
पाठकगण! कृपया ध्यान दें:- Qitraah: Book by सुषमा गुप्ता
कुछ अच्छे और महत्वपूर्ण अंश-
मित्रों, आने वाली पीढ़ियों के लिए सम्मान और मर्यादित जीवन सुनिश्चित करने के लिए एक पीढ़ी का बलिदान क्रांति का आवश्यक तत्व है। शांतिपूर्ण या रक्तहीन क्रांति के लिए इतिहास में कोई मिसाल नहीं है। हम देख भी रहे हैं की सरकारी बाल ऐसी क्रांति पर कोई ध्यान नहीं देता। जीवन और रक्त बलिदान के बिना कोई परिवर्तन प्राप्त नहीं होता है।
आततायी जेम्स पेड्डी, जो कि हमारे दुर्भाग्य से हमारा जिलाधिकारी भी है, का अनमूलन हमारा उद्देश्य है, जिस हेतु हम यहाँ एकत्रित हुए हैं।
याद रहें! साधी जब समक्ष होता है तो साधक के मन में प्रश्न आने स्वाभाविक हैं। यह बहुत संभव है कि जब आप लक्ष्य के बहुत समीप रहें और वो राक्षस जेम्स पेड्डी आपके बिल्कुल सामने होतो आपके मन में विचार उत्पन्न होने लगे। जैसे कि वैचारिक संघर्ष में व्यक्ति विशेष का क्या दोष? यह वध क्यों इत्यादि।
यद्यपि अगर ऐसे प्रश्न मन में उठे तो इनका उत्तर भी आपके अंदर से ही आना चाहिए। फिर भी मैं बता देता हूँ, गुरिल्ला युद्ध का प्रथम नियम हमेशा याद रखे-व्हेन यू आर इन डाउट, जस्त शूट।
दल का उद्देश्य अंग्रेजी राज से आज़ादी है। और इस युद्ध में या तो हम धर्म के साथ हैं, या अधर्म के साथ। यदि हम धर्म के साथ है तो हम वह निमित्तमात्र हैं। एक कां हमें सुपुर्द हुआ है और उसे करना है। आप बस बलिदानी हैं और बलिदानी, शत्रु पर जो भी प्रहार करता है, वह हठात नहीं होता। उसके पीछे सदियों की बुद्धि और सोच होती है।
पाठकगण! कृपया ध्यान दें:-
पाठकगण! कृपया ध्यान दें:- Dark Horse: Book by नीलोत्पल मृणाल
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
प्रबोध-
प्रबोध, क्रांतिकारियों दल का सबसे युवा और सबसे प्रबुद्ध सदस्य है। जिसे राजनीतिक गतिविधियों ने अपने आगोश में ले रखा है। बंगाल वॉलन्टियर्स की विद्यालयी गोष्ठियों में शामिल होते हुए वह सरकार की दमनकारी नीतियाँ समझ ही रहा था कि सुभाष बोस के आह्वान पर वह क्रांति के मार्ग पर अग्रसर हो गया।
कुमुद-
कुमुद इस उपन्यास की उस रातरानी की तरह है, जिसके पास जाने से आपको एक हल्की और शानदार खुशबू महकने को मिलेगी। उसका चरित्र भी कुछ ऐसा ही है। और जिस प्रकार आधी रात के बाद सूरज की लालिमा आने पर रातरानी के फूल गिरने लगते हैं, ठीक उसी प्रकार प्रबोध का उससे दूर जाने पर भी वह जमींदोष हो जाती है।
जेम्स पेड्डी-
जेम्स पेड्डी इस उपन्यास का विलेन किरदार तो है ही, असल घटनाओं से भी प्रेरित है। जिससे भारतवासी खौफ खाते थे, तो वही क्रांतिकारियों की निगाह इसके वध के लिए हमेशा आतुर रहती है। इसके नियम-कानून से सभी परेशान रहते हैं। और आखिर एक दिन वह भी आता है, जब इसकी वध कर दी जाती है।
पाठकगण! कृपया ध्यान दें:-
Quotes
विपत्ति आएगी, यह जानते हुए भी कि दिन व्यतीत हो जाते हैं, उसका आना निश्चित होने पर भी व्यग्रता से केवल उसकी प्रतीक्षा में बैठा जा सकता है। परंतु जब सर पर ही aअ पड़ती है तो मनुष्य तुरंत ही उसका कुछ-न-कुछ निपटारा कर देने के लिए बाध्य हो जाता है।
सत्य व्यास
अपना सुधार, समाज की सबसे बड़ी सेवा है।
1931
बड़ी योजनाओं के निर्वाह के लिए छोटी भावनाओं की तिलाजली देनी पड़ती है।
1931
असफलता और वह भी योजना की असफलता पावों में पत्थर बांध देती है।
1931
व्यक्ति विशेष से सफलता की अपेक्षा एक अदृश्य अतिरिक्त दबाव ही है।
1931
क्रांति बलिदान ही मांगती है।
प्रेम का व्यवहार विचित्र है। स्वयं पर अधिकार नहीं रहता और दूसरे पर अधिकार रखना चाहता है।
1931
प्रेम में डूबा इंसान सामने वाले अपयश को न सिर्फ छुपाता है बल्कि अवश्यंभावी होने पर दोष अपने ऊपर भी ओढ़ लेता है।
1931
प्रेम यदि कुआं है तो आत्मसम्मान सागर।
1931
प्रेम कितना भी गहरा क्यों न हो आत्मसम्मान की जगह नहीं ले सकता।
1931
पैसे का क्या है आज नहीं तो कल मिल ही जाएगा। मगर समय जो चला गया वह नहीं मिलेगा।
1931
सुख जब अनायास आए तो विशिष्ट हो जाता है। इतना विशिष्ट कि बात-बेबात चेहरा भी प्रसन्नता सए रक्तिम हो उठता है।
1931
प्रेम क्षणों का खेल है। क्षणों में ही बनता है। क्षणों में ही बीतता है और क्षणों में ही सहेज लिया जाता है।
सत्य व्यास
मोह, बलिदान की राह में सबसे बड़ा अवरोध है।
सत्य व्यास
माँ-बेटे का नाल तो सभी देख लेते हैं मगर पिता-पुत्र का रिश्ता जिस अदृश्य नाल से जुड़ा होता है। उसे देखने के लिए पिता होना होता है।
सत्य व्यास
इंसान अपनी नियति के वशीभूत हो काम करता है।
सत्य व्यास
आदमी जब दर्द से हार मान बैठे तो दर्द भी अपनी जीत पर खुश होकर यंत्रणा कम कर देता है।
सत्य व्यास
अविवेक में इंसान ज़्यादा बोलता है और यह भी भूल जाता है कि क्या कह रहा है।
सत्य व्यास
अपनी शरण में आए हुए शरणागत को जो शत्रु के हवाले करता है उसका तो हवं देवता भी स्वीकार नहीं करते।
सत्य व्यास
आदमी जब पारिवारिक जिम्मेदारियों से बंध जाता है तो खुद के लिए नहीं वरन अपनी जिम्मेदारियों के कारण कमज़ोर पड़ जाता है।
सत्य व्यास
भागे और भटके हुए बच्चों के वापस लौटने पर पिता, पिता नहीं रहता, माँ हो जाता है।
सत्य व्यास
वियोग प्रेम की निशानी है। वह प्रेम को प्रकट भी करता है और प्रेम को विकट भी।
सत्य व्यास
प्रेम में अंतर हो न हो किन्तु माँ और पिता के आंसुओं में थोड़ा अंतर होता है।
सत्य व्यास
बलिदानी का आचरण ही नहीं आवरण भी पूजनीय होता है।
सत्य व्यास
जीवन बलिदान और ताजा रक्त आहुति के बिना कोई परिवर्तन प्राप्त नहीं होता है।
सत्य व्यास
FAQ
Q 1931 का लेखक कौन है?
सत्य व्यास 1931 के लेखक हैं।
Q 1931 का प्रकाशक कौन है?
193 का प्रकाशक दृष्टि प्रकाशक है।
Q 1931 को कब प्रकाशित किया गया था?
1931 को फरवरी 2023 में पहला संस्करण प्रकाशित किया गया था।
Q 1931 का सारांश क्या है?
“1931”! सत्य व्यास द्वारा लिखित एक उपन्यास है, जिसमे 1931 के समय भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन कर रहे क्रांतिकारियों से प्रेरित होकर कोलकाता के प्रमुख घटना का वर्णन किया गया है। जैसा की हम सभी व्यास की लेखनी से प्रभावित है, और व्यास ने हमेशा एक नया फ्लेवर ही हमारे सामने रखा है। जिसमें यह उपन्यास एक अलग ही जगह बनाती दिख रही है।
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