इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको अनुराग पाठक द्वारा लिखित 12th fail book की review and summary in hindi साझा करने के साथ-साथ कोट्स भी साझा करंगे।
Table of Contents
Book Review
“12th fail book” अनुराग पाठक द्वारा लिखी गई जज़्बात, जुनून, मेहनत और ईमानदारी के साथ अपने लक्ष्य पर डटे रहने वाले मनोज की कहानी है। जो पटखनी खाने के बाद भी उसी लगन से दोबारा लदानमे के लिए धूल झड़ता हुआ उठ खड़ा होता है। ताकि इस बार और तैयारी के साथ लड़ सके। और जीत हासिल कर सके।
मनोज की ये लगन देखकर पाठकगण को न सिर्फ कहानी अच्छी लगेगी बल्कि उससे बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा। हाँ ये जरूर है कि जब तक आपके हाथों में किताब रहेगी, आपकी आँखें कभी भी धोखा दे सकती है। और जी मचल सकता है।
अनुराग की कलम मनोज के जीवन मे बहुत सारी बाधाएं लेकर आती है लेकिन मनोज अपना लक्ष्य साधे अपने मार्ग पर एक अडिग की भांति डिगा रहता है और अंत तक हार नहीं मानता। शायद इसलिए इस किताब का एक टैग लाइन भी है। “हारा वही जो लड़ा नहीं”।
यह उपन्यास भारत भर मे आई.ए.एस, पी.सी.एस. की तैयारी कर रहे लाखों लड़के-लड़कियों को एक दिशा दिखाने का काम करेगी ताकि उन्हे भी मनोज और श्रद्धा जैसी लड़की से कुछ सीखने को मिल सके।
“12th fail book” एक ऐसे लड़के की रोचक कहानी है जो नकल नहीं होने पर 12th fail हो जाता है और बी. ए. भी सेकेंड डिविजन होने के बाद भी अपनी सच्ची लग्न और कड़ी मेहनत के साथ आई. ए. एस. जैसी परीक्षा को पास कर लेता है। जो बहुत ही गौरव पूर्ण है। अगर आप इसे पढ़ रहे हैं तो यकीन करिए मनोज आपको बहुत कुछ सिखाएगा।
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Book Summary
मुरैना जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर जौरा तहसील से सटे बिलग्राम निवासी मनोज स्कूल मे ट्वेल्थ का पहला पेपर देता है। स्कूल प्रबंधक द्वारा नकल की मदद से सब जल्दी-2 मैथ का पेपर सॉल्व कर रहे होते हैं कि अचानक एक दुष्यंत सिंह नाम का पी. एस. सी अधिकारी(एसडीएम) आ धमकते हैं और नकल रुक जाती है। एसडीएम की कार्यवाई के बाद स्कूल मे अगले पेपर की नकल बंद जाती है और नकल के भरोसे बैठे बच्चों का सारा पेपर खराब हो जाता है।
रिजल्ट के दिन मुहल्ले मे सोसाइटी द्वारा के क्रिकेट मैच रखा गया होता है, जिसके मुख्य अतिथि दुष्यंत सिंह होते हैं। मनोज द्वारा की जा रही उस मैच की कमेट्री को सुनकर एसडीएम साहब उससे प्रभावित होकर मिलते है और साबासी देते हैं। मनोज उनसे प्रभावित होता है। ट्वेल्थ की रिजलट आने के बाद मनोज को जब पता चलता है कि फैल हो चुका होता है तो उसे बहुत निराशा होती है। लेकिन उसके पिता को कोई फर्क नहीं पड़ता।
मनोज दोबारा ट्वेल्थ का पेपर देने के लिए फर्म भर देता है और घर बार का खर्चा चलाने के लिए माँ से कुछ पैसे लेकर आटो खरीद लेता है। लेकिन उसी रूट पहले चल रहे बस के मालिक से उसकी झगड़ा हो जाने के बाद उसकी आटो जप्त कर ली जाती है। और सयोंग वस मामला दुष्यंत सिंह के सामने जाता है।
मनोज एक तरह खड़ा हुए एक घूसखोर आधिकारी को मी. दुष्यंत सिंह द्वारा ईमानदारी से कीए गए कार्यवाई को देखता है तो बहुत प्रभावित होता है और मन ही मन उनके जैसा बनने की थान लेता है। और दुष्यंत सिंह के सामने अपना मसला रखे वापस लौट जाता है।
समय अनुसार इस साल ट्वेल्थ सेकेंड डिवीजन पास करने के बाद बी. ए. करने के लिए ग्वालियर चला जाता है। जहां त्रिलोकी की मदद से उसका ललितपुर कॉलोनी मे रहने का ठिकाना और एडमिशन एमएलबी कॉलेज मे हो जाता है। मनोज के पिता को उनके आफिस से निकाल दिए जाने पर घर से खर्चा-पानी आना बंद हो जाता है। और ऊपर से कमरे के लड़के उसे दूसरे कमरे लेने के लिए कहने लगते हैं।
मनोज ऐसा करने मे असमर्थ होता है और एक दिन उसे कमरे निकाल दिया जाता है। मनोज तीन दिन तक पूरे ग्वालियर मे भटकते हूर एक होटल वाले से ये कहते हुए खाना माँगता है कि वो उस खाने के बदले कुछ भी काम कर सकता है। होटल मालिक उसपे तरस खाकर खाना दे देता है। अब खाना खाने के बाद मालिक के लाख मना करने के बावजूद मनोज बर्तन को धूल कर खाने की कीमत चुका देता है।
कमरे से निकाल दिए जाने के बाद मनोज इंग्लिश पढ़ाने वाले एक 30 वर्ष के शिक्षक के साथ उनके कमरे पर रहने लगता है। जहां उसकी मुलाकात एक मोना नाम की लड़की से होती है, जिसे इंग्लिश का तिवारी शिक्षक भी उसे पसंद करता रहता है। शिक्षक को जब लगता है कि दोनों अब करीब आने लगे हैं तो मनोज को अपने कमरे से भगा देता है। जिसके बाद मनोज अपने घर को लौट जाता है।
घर से लौटने के बाद माँ द्वारा दी गई पैसे से मनोज ‘टोपे वाले मुहल्ले’ मे अपना ठिकाना खोजता है। फर्स्ट ईयर की पेपर हुई, जिसमे सेकेंड डिवीजन पास हो गया। सीजन की छुट्टी बिताने के बाद सेकेंड ईयर के लिए ग्वालियर आया तो दोस्त रविकांत के कहने पर मनोज ने विवेकानंद केंद्र के युवा प्रेरणा शिविर ज्वाइन कर लिया, जिसमे उसका आना-जाना शुरू हो गया।
मनोज उस शिविर से इतना प्रभावित था कि कि अपने सब्जेक्ट को छोड़ कर विवेकानंद की 7-8 किताबों को पढ़ डाला। देश सेवा के लिए उसे इससे अच्छा मार्ग और कुछ नहीं लगा, जिससे पी. एस. सी. की इच्छा पीछे छुटने लगी। और नतीजा ये हुआ कि बीए सेकेंड ईयर की परीक्षा मे सिर्फ पास होने योग्य ही नंबर आए।
तीसरे साल की परीक्षा देने पहले मनोज एक बार फिर पंद्रह दिन के शिविर मे भाग लिया और पूरा शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद वापस लौटा। सारे पैसे खत्म होने के बाद जब गांव लौटा तो उसकी मुलाकात राकेश से हुई और मनोज ने राकेश से अपने शिविर के दिनों की बात करता है, जिसे सुन कर राकेश आश्चर्यचकित होता है कि मनोज ने पी. एस. सी से अपने को कन्नी काट लिया है।
राकेश उसे दुष्यंत सिंह का उदाहरण देते हुए समझाता है ,जो मनोज के मन पर काफी प्रभाव डालता है और वापस ग्वालियर लौटकर उसे अपने आखिरी साल का पेपर देने के तुरंत बाद बिना तैयारी के अनुभव के लिए पी. एस. सी. प्रिलिम्स का पेपर देता है । उसी दौरान उसकी मुलाकात पांडे और गुप्ता नाम के एक लड़के से होती है। जो पी. एस. सी. प्रिलिम्स की परीक्षा दे चुके होते हैं।
परीक्षा देने के बाद मनोज पैसे की कमी होने के कारण घर को लौट जाता है लेकिन वहाँ भी पता चलता है कि पिता को सस्पेंड होंने कारण घर की हालत भी तंगी है। वापस ग्वालियर को लौटने से पहले एक बार राकेश से मिलने चला जाता है और अपने सारी व्यथा बता देता है।
राकेश उसे अपनी मार्ग पर टीके रहने का संदेश देते हुए विक्रमादित्य नाम के आदमी से मिलवाता है, जो विवेकानंद के शिविर मे रहते हुए मनोज को देखा था और उससे प्रभावित भी थे। मनोज की व्यथा सुनने के बाद उसे ग्वालियर मे एक लाइब्रेरी में उसके रहने और पढ़ने का प्रबंध कर देते हैं।
मनोज वापस ग्वालियर लौट कर लाइब्रेरी मे 400 रुपये महीने पर रहने लगता है। सब कुछ अभी ठीक-ठाक चलता रहता है कि एक दिन मालिक द्वारा उसके ऊपर चोरी का इल्जाम लगा देता है। विक्रमादित्य और पांडे उसे समझाते हैं लेकिन मनोज ये कहते हुए मना कर देता है कि जहां उसके ईमानदारी पर सवाल उठाए जा रहे हैं ऐसे जगह पर नहीं रहेगा।
एक दिन जब पांडे उससे मिलने के लिए लाइब्रेरी जाता है तो उसको नहीं पाकर दूसरे कर्मचारी द्वारा दिए गए एक पते पर जाता है। जहां देखता है कि मनोज एक आटा-चक्की पर काम कर रहा है। पांडे उसे अपने साथ पी. एस. सी. की तैयारी करने के लिए आफ़र देता है, जिसे मनोज स्वीकार करता है और आटा-चक्की का काम छोड़ कर पीलिकोठी उसके साथ रहने लगता है। जहां तैयारी करने वाले बहुत सारे लड़के रहा करते हैं। पिछले साल यहीं से दीपसोनी नाम के लड़के और अंशु गुर्जर नाम की एक लड़की दोनों की डी. एस. पी. मे सेलेक्शन हो गया था।
पापा की नौकरी मे बहाली होने के बाद मनोज की अब आर्थिक स्थिति ठीक हो गई थी। मनोज पीलिकोठी मे पांडे और गुप्ता के साथ रहकर पी. एस. सी. की तयारी करने लगा। लेकिन जब पेपर देने का समय आया तो पता चला कि पेपर इस साल स्थगित कर दिया गया है। जिससे उनको बहुत निराश हुई लेकिन माहौल को समझते हुए पीलिकोठी मे अंशु गुर्जर आ गई।
उसने मनोज और बाकी लड़कों को यू. पी. एस. सी. की परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरित किया। मनोज ने कहा कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो दिल्ली मे रह कर कोचिंग के साथ तैयारी करे। अंशु अपने तरफ से ये विश्वाश करते हुए उसे 10,000 रुपये देती है कि उसका हो जाएगा। मनोज ने यू. पी. एस. सी. की प्रिलिम्स की परीक्षा देने के बाद मेंस की तैयारी के लिए दिल्ली को निकल गया।
मनोज और पांडे मुखर्जी नगर से लगे हुए नहरुविहार के सि ब्लाक मे कमरा किराये पर ले लिया। मेन्स के लिए मनोज ने हिन्दी साहित्य की कोचिंग के लिए उसने दृष्टि कोचिंग को ज्वाइन कर लिया। और विकास सर की नज़रों मे छा जाने के बाद धीरे-2 क्लास मे भी छा गया। कुछ दिनों बाद प्रिलिम्स का रिजल्ट आ गया, जिसमे मनोज ने बाजी मार ली थी।
अगले दिन क्लास मे सब मनोज को एक इज्जत भरी नज़रों से देख रहे थे। उस दिन उसकी मुलाकात श्रद्धा नाम की लड़की से होती है। जो बी. ए. एम. एस कर रही होती है और साथ ही दृष्टि कोचिंग ज्वाइन कर यू. पी. एस. सी. की तैयारी के लिए आई होती है। मनोज को उससे प्यार हो जाता है। श्रद्धा को भी जब मनोज के बारे मे पता चलता है तो उससे काफी प्रभावित होती है। दोनों धीरे-2 मिलने लगते हैं।
पांडे को बर्दास्त तो तब नहीं होता जब मनोज उसके साथ की सिट को छोड़कर मनोज आगे वाली बेंच पर श्रद्धा के साथ बैठने लगता है। दोनों साथ-2 पढ़ने लगते हैं। मनोज को श्रद्धा से अति लगाव हो जाता है। जिससे वो दूर होना नहीं चाहता। लेकिन हिन्दी साहित्य का कोचिंग पूरा होने के बाद मनोज श्रद्धा से अलविदा लेता है। श्रद्धा भी उसे मुख्य परीक्षा के शुभकामनाए देती है।
परीक्षा को दस दिन होते हैं जब पांडे और मनोज श्रद्धा से विदा लेने के बाद वापस ग्वालियर आकर पीलिकोठी पर एक कमरा किराये पर ले लेते हैं। कुछ दिन बाद मनोज पेपर देने भोपाल चला जाता है और उसे लगता है कि इस बार ही निकल जाएगा लेकिन पता चलता है कि उसने पहला पेपर खराब कर दिया है, जिसके कारण मनोज बाकी का बचा पेपर देने से इंकार कर देता है।
इंग्लिश की कोचिंग के लिए पांडे और मनोज रविकांत द्विवेदी को ज्वाइन कर लेते हैं। जहां इस बार पांडे एक योगीता नाम की लड़की के प्यार के जाल मे फस जाता है। और उससे जी भर के प्यार करने लगता है। जिसके कारण पढ़ाई से पांडे का मन हट जाता है और इस बार प्रिलिम्स का पेपर फैल हो जाता है। मनोज का भी नहीं निकल पाता। इस तरह मनोज का तीसरा अटेम्पट भी नागवार साबित होता है।
मनोज चौथी और आखिरी बार के लिए इस बार फिर से दिल्ली का रुख करता है क्योंकि इस बार श्रद्धा का उसको फोन आता है कि वो भी इस बार दिल्ली जा रही है तैयारी के लिए। इस बार दिल्ली मनोज, पांडे, गुप्ता और अविनाश कूच करते हैं। कोचिंग ज्वाइन करने के बाद मनोज और श्रद्धा दोनों एक साथ-एक दूसरे के कमरे पर तत्पर होकर पढ़ाई करने लगते हैं।
पैसे की कमी के कारण मनोज 800 रुपये महीने की कुत्ता घूमाने का काम पकड़ लेता है। श्रद्धा भी उसका इसमे साथ देती है लेकिन जब उसे लगता है कि मनोज को परीक्षा के समय केवल और केवल पढ़ाई करनी चाहिए तो उसे काम से छुड़ा कर अपने पैसे से उसकी मदद करती है।
परीक्षा का डेट निर्धारित हो जाता है। मनोज प्रिलिम्स देता है और क्वालिफाई कर जाता है। श्रद्धा भी स्टेट प्रिलिम्स क्वालिफाई कर जाति है। और जब तक मनोज का मेंस होता है श्रद्धा मेंस देने के बाद अलमोंढा निकल जाती है ये कहते हुए कि वो इंटरव्यू पापा के साथ देने जाएगी। कुछ दिन बाद मनोज का भी पेपर देने के बाद रिजल्ट भी आ जाता है जिसमे मनोज पास कर चुका होता है। अब बारी होती है इंटरव्यू कि!
मनोज जब श्रद्धा को इस बारे मे बताता है, तब तक श्रद्धा डिप्टी कलेक्टर बन चुकी होती है। यह जानते हुए हुए उसे बहुत खुशी होती है । उसे ये महसूस होता है कि इस वक्त उसे मनोज के साथ होना चाहिए। श्रद्धा अपने पिता से कहना तो चाहती है पर कह नहीं पाती है क्योंकि किसी ने उसके और मनोज के बारे मे उसके माता-पिता को बता दिया है। लेकिन किसी तरह हिम्मत कर कहती है।
इंटरव्यू के लिए मनोज जब तैयारी कर रहा होता है तब अचानक श्रद्धा आकर उसका हौसला ऑफ़जाही करती है, जिससे मनोज को एक हिम्मत मिलती है। दोनों साथ मे यूपीएससी ऑफिस पहुचते हैं। जहां पहले से ही बहुत सारी भीड़ लगी होती है। और प्रतिभागी के साथ आए लोगों को एक पार्क मे बैठने को कहा जाता है। जहां श्रद्धा बैठ कर इंतजार करती है।
इंटरव्यू होने लगता है। एक के बाद एक लड़के जाते रहते हैं। कोई मुख लटकाए बाहर आता है तो कोई खुशी से उछलता हुआ। और आखिर मे मनोज अंदर जाता है। वहाँ उसके साथ ऐसे बहुत सारे सवाल-जवाब होते हैं। जिन्हे मनोज बड़े ही सहजता से एक के बाद उत्तर देता चला जाता है। जब रिजल्ट की बारी आती है तो मनोज रिजल्ट देखने से घबरा जाता है। और श्रद्धा को देखने के लिए बोलता है।
श्रद्धा जब देखने के बाद उसके करीब मुख लटकाए आती है तो मनोज की साँसे तेजी से धड़कने लगती हैं। फिर श्रद्धा चिल्लाती हुई कहती है कि उसका सेलेक्शन हो गया है। दोनों खुश हो जाते हैं। और एक चपरासी पूछने पर जब मनोज कहता है कि उसका सेलेक्शन हो गया तो चपरासी तुरंत उसे सैल्यूट करता है, जिससे प्रभावित होकर मनोज उसे गले लगा लेता है।
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कुछ अछे और महत्वपूर्ण अंश-
विवेकानंद कहते थे कि अपने आप को कमजोर मानने से बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं। इंसान अपने जीवन मे कुछ भी कर सकता है, उसके भीतर असीम शक्ति है। देश से बड़ा दूसरा कोई धर्म नहीं है, और देशभक्ति से बड़ा दूसरा कोई लक्ष्य नहीं होना चाहिए।
मनोज का श्रद्धा के लिए- “श्रद्धा मेरे लिए क्या है, तुम नहीं समझ सकते। मैं अब श्रद्धामय हो गया हूँ। रात-दिन मुझे श्रद्धा ही दिखती है। तुम इसे प्यार कह सकते हो, मैं इसे भक्ति कहताआ हूँ। यही भक्ति मुझे शक्ति देती है।”
यदि प्रेम है तो विचलन का तो प्रश्न ही नहीं उठता, प्रेम तो स्थिर करता है, एकाग्र करता है। मन की सारी नकारात्मकता को दूर करता है। यदि आप प्रेम मे हैं तो आप जो भी कार्य करेंगे उसे उत्साह के साथ करेंगे, प्रसन्नता से करेंगे, पवित्रता से कारेगे, एकाग्रता से करेंगे।
पांडे का मनोज के बीच मौलिक अधिकारों का उखाड़ना- “मुझे तुमसे यही उम्मीद थी मनोज।“ इतना कहकर पांडे ने तुरंत अपना सूटकेस उठाया, उसमे अपनी किटाबे और कपड़े भरे, दीवार पर चिपका सविधान के मौलिक अधिकारों का पेज उखाड़ा और मनोज से फिर कहा-“यहाँ अपनी प्रेमिका का फ़ोटो चिपका लेना मनोज। मौलिक अधिकार पढ़ने की जरूरत तो अब तुम्हें नहीं रही, श्रद्धा का फ़ोटो देखकर ही पास हो जाओगे। ”
मनोज का श्रद्धा को अपने प्यार का इजहार करना-मेरे हाथ मे नहीं है कुछ भी श्रद्धा! मैं क्या करू? नहीं निकलती तुम मेरे दिल से। मैं क्या करू? कोई कुछ भी कहे, मैं तुमसे दूर नहीं हो सकता। मैं प्यार नहीं कर रहा हूँ तुमसे, मैं तो केवल साँसे ले रहा हूँ तुम्हारे नाम की! बच्चों, यह इंपोर्टेन्ट नहीं है कि हम अपनी ज़िंदगी मे क्या लक्ष्य बनाते हैं। इंपोर्टेन्ट यह है कि हम उस लक्ष्य को जी-जान से जुटाने हैं की नहीं? हमे वादे करना चाहिए खुद से, अपने माता-पिता से, अपने दोस्तों से कि जब तक हमें अपना लक्ष्य न मिल जाए, हम चैन से नहीं बैठेंगे।
पात्रों का चरित्र-चित्रण-
मनोज- मनोज अति आदर्शवादी, कर्मठ, ईमानदार, परेशानियों का डट कर सामना करने वाला लड़का है। जिसका दिल दया और कोमल से भारी है।
पांडे- पांडे, मनोज का दोस्त है, जो गिरते हुए मनोज को अपनी उंगली का सहारा देकर चलना सिखाता है और जब मनोज खुद चलाने लगता है तो उसे मनोज से जलन होने लगती है। जीसे एक दिन छोड़ कर चला जाता है।
श्रद्धा- श्रद्धा अलमोंढा की रहने वाली है। जो मेहनती और समझदार है। श्रद्धा बीएएमएस के साथ-2 स्टेट पीएससी की तैयारी करती है। जिसमे मनोज उसका और श्रद्धा मनोज मार्गदर्शन करते हैं। और दोनों एक साथ सफल हो जाते हैं।
कोट्स-
- छात्र जीवन की कठिनाइयाँ ही उसे आगे बढ़ाती हैं।
- अपनी पुरानी कमजोरियों को झूठ के सहारे छुपाने के स्थान पर सच्चाई के साथ उसका सामना करों।
- ईमानदारी की रक्षा अभाव सहकर भी होनी चाहिए।
- बाहर का अंधकार समस्या नहीं है, समस्या तब होती है जब हमारा मन सुविधाओं के लालच मे समझौतों के अंधकार मे डूब जाता है।
- उड़ान हमेशा ऊंची भरना चाहिए, नहीं मिलेगी मंजिल तो कोई गम नहीं, पंख तो मजबूत होंगे।
- दूर दिखने वाला आसमान और उसमे चमकने वाले तारे हमेशा से इंसान के लिए रहस्य और आकर्षण का केंद्र रहे हैं।
- जब आप किसी एक से भरपूर प्यार करते हैं तों आपके दिल मे किसी से नफरत करने की जगह कहाँ बचती है?
- अपनी अयोग्यता को जितना ही सबसे बड़ी बात होती है।
- किन्ही दो लोगों की तुलना उनके परिणामों से नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनकी परिस्थितियों और सुविधाओं के आधार पर भी होनी चाहिए।
- यदि आप प्रेम मे हैं तो आप जो भी कार्य करेंगे उसे उत्साह के साथ करेंगे, प्रसन्नता से करेंगे, पवित्रता से कारेगे, एकाग्रता से करेंगे।
- अपने आप को कमजोर मानने से बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं।
FAQ-
Q- twelfth fail का लेखक कौन है?
अनुराग पाठक।।
Q-twelfth fail क्या सहचि घटनाओं पर आधारित है?
हा! यह कोई फिक्शन बुक नहीं है।
Q- एस. डी. एम. किसे कहते हैं?
सब डिवीजन मे काम करने वाले डिप्टी कलेक्टर को एसडीएम कहते है।
Q-मार्क्सवाद क्या है?
मनोज के अनुसार-“दुनिया मे आमिर और गरीब दो वर्ग हैं। आमिर वर्ग अपने लालच के लिए गरीब वर्ग का शोषण करता है, इसलिए गरीब वर्ग को अपने अधिकार अमीरों से छिन लेना चाहिए।“
Q- यू. पी. एस. सी. का फूल फार्म क्या होता है?
UNION PUBLIC SERVICE COMMISSION यानि की संघ लोक सेवा आयोग।
Q- पी. एस. सी. का फूल फार्म क्या होता है?
PUBLIC SERVICE COMMISSION यानि की लोक सेवा आयोग।
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